रविवार, 24 नवंबर 2013

महिलाओं का अपना बैंक

भारतीय महिला बैंक महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह औरतों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ देश के आर्थिक विकास में उनकी भागीदारी बढ़ाएगा।

मंगलवार को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुंबई में इसकी पहली शाखा का उद्घाटन किया। गौरतलब है कि इस बार के आम बजट में वित्त मंत्री ने महिला बैंक का प्रस्ताव रखा था और इसके लिए 1000 करोड़ रुपये की पूंजी रखी गई थी। फिलहाल बैंक की 7 ब्रांचें हैं, पर अगले छह महीने में इसकी 20 शाखाएं काम करने लगेंगी।

यह बैंक खोले जाने के पीछे मूल मकसद है महिलाओं को छोटे-छोटे उद्यम के लिए आसान शर्तों पर कर्ज देना। यह एक विडंबना ही है कि एक तरफ तो कई बड़े बैंकों में टॉप लेवल पर महिलाएं बैठी हैं, पर देश की एक औसत स्त्री को किसी बैंक में खाता खुलवाने के लिए भी दस बार सोचना पड़ता है। एक तो सामाजिक परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं हैं, दूसरे व्यवस्थागत कमियां भी हैं।
विश्व बैंक की ग्लोबल फाइनेंशल इनक्लूजन डेटाबेस स्टडी के मुताबिक भारत में केवल 26 प्रतिशत महिलाओं का किसी वित्तीय संस्था में औपचारिक खाता है। यह वैश्विक औसत 47 प्रतिशत से कम है, यहां तक कि विकासशील देशों के 37 प्रतिशत के मुकाबले भी कम है। अधिकांश बैंक स्त्रियों को ऋ ण देने में आनाकानी करते हैं। इसकी एक वजह यह है कि बैंक कर्ज के बदले कुछ संपत्ति गिरवी रखना चाहते हैं, लेकिन आमतौर पर औरतों के पास संपत्ति नहीं होती। या घर की संपत्ति बंधक रखने का फैसला उनके हाथ में नहीं होता।


भारतीय महिला बैंक की शुरुआत इस तरह की समस्याओं को दूर करने के लिए ही की गई है। इस बैंक से अब महिलाओं को मनपसंद किचन बनवाने से लेकर डे-केयर सेंटर खोलने जैसे कारोबार तक के लिए भी कर्ज मिल जाएगा। कमजोर वर्ग की महिलाओं पर बैंक खासतौर से ध्यान देगा। चूंकि बैंक की कर्मचारी भी महिलाएं ही होंगी, इसलिए कर्ज लेने या दूसरे काम के लिए आने वाली औरतें खुद को यहां सहज महसूस करेंगी। हालांकि इस बैंक की असली परीक्षा तब होगी जब गांवों में इसकी शाखाएं खुलेंगी। औरतें यहां तक पहुंच सकें, इसके लिए इसका प्रचार भी जरूरी है।   

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