सोमवार, 25 नवंबर 2013

आपराधिक तत्‍व मुक्‍त चुनाव प्रक्रिया के लिए नया कानून जरूरी

देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को धन बल और बाहुबल के प्रभाव से मुक्तन कराने के निर्वाचन आयोग के प्रयासों को काफी सफलता मिली है लेकिन अभी भी चुनाव सुधारों के लिए  बहुत कुछ करना बाकी है। चुनाव प्रक्रिया से आपराधिक तत्वोंी को पूरी तरह बाहर रखने के सवाल पर गंभीरता से विचार की आवश्यरकता है।

चुनाव प्रक्रिया को आपराधिक तत्वों की भागीदारी से मुक्त कराने के इरादे से निर्वाचन आयोग चाहता है कि कानून में ही ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने का प्रावधान किया जाये जिनके खिलाफ अदालत में उन अपराधों के लिये अभियोग निर्धारित किये जा चुके हैं, जिनमें दोषी पाये जाने पर कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है।

केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी पिछले दिनों संकेत दिया है कि संसद और विधानमंडलों से दागी व्यक्तियों को बाहर रखने के लिये एक नया कानून बनाया जायेगा।
विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल चाहते हैं कि हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे कम से कम सात साल की सजा वाले गंभीर अपराधों के आरोपियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखा जाये। माना जा रहा है कि इस संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार है और इसे शीघ्र ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष विचारार्थ रखा जायेगा। यह विचार अच्छा है लेकिन इस विषय के साथ जुडी कुछ भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है।

निर्वाचन आयोग ने भी हाल ही में उच्चतम न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में कहा है कि ऐसे व्य क्तियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने के प्रस्ताव पर विचार किया जाये जिनके मामले में अदालत ने आरोपों और साक्ष्यों की न्यायिक समीक्षा के बाद पहली नजर में अभियोग निर्धारित करके मुकदमा चलाने का निश्च य किया है और दोषी पाये जाने की सिथति में उसे कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है।

जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा आठ के अनुसार कतिपय अपराधों के लिये अदालत द्वारा दोषी ठहराए गये और कम से कम दो साल की सजा पाने वाले व्येक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं। यह अयोग्यता ऐसे व्य क्ति की रिहार्इ होने की तारीख से छह साल तक प्रभावी रहती है।
धारा आठ में पहले से ही उन अपराधों का विस्तार से उल्लेख है जिसके लिये दोषी पाये जाने और कम से कम दो साल की कैद की सजा होने पर ऐसा व्याक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य होता है। इसमें सभी गंभीर किस्म के अपराध शामिल हैं।

इस धारा के दायरे में भारतीय दंड संहिता के अतंर्गत आने वाले कर्इ अपराधों को शामिल किया गया है। मसलन इसकी धारा 153-ए के तहत धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच सौहार्द बिगाड़ने के अपराध, धारा 171-र्इ के तहत रिश्व तखोरी, धारा 171-एफ के तहत चुनाव में फर्जीवाडे़ के अपराध, धारा 376 के तहत बलात्कार और यौन शोषण संबंधी अपराध, धारा 498-ए के तहत स्त्री के प्रति पति या उसके रिश्ते दारों के क्रूरता के अपराध, धारा 505 :2: या :3:  के तहत किसी धार्मिक स्थल या धार्मिक कार्यों के लिये एकत्र समूह में विभिन्न वर्गो में कटुता, घृणा या वैमनस्य पैदा करने वाले बयान देने से संबंधी अपराध के लिये दोषी ठहराये जाने की तिथि से छह साल तक ऐसा व्यरक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य होता है।

इसी तरह, नागरिक अधिकार संरक्षण कानून के तहत अस्पृश्यनता का प्रचार और आचरण करने के कारण उत्पन्न निर्योग्यता लागू करने के लिये दंडित होने पर, सीमा शुल्क कानून धारा 11 के तहत प्रतिबंधित सामान के आयात-निर्यात के अपराध के लिये दोषी, विधि विरूद्ध क्रियाकलाप निवारण कानून की धारा 10 से 12 के अतंर्गत गैरकानूनी घोषित किसी संगठन के लिये धन संग्रह या किसी अधिसूचित क्षेत्र के बारे में किसी आदेश के उल्लंघन से जुड़े अपराध, विदेशी मुद्रा विनियमन कानून, स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ कानून, टाडा कानून, 1987 की धारा 3 से छह के प्रदत्त अपराध, धार्मिक संस्था दुरूपयोग निवारण कानून की धारा 7 या उपासना स्थल विशेष प्रावधान कानून के तहत धार्मिक स्थल का स्वरूप बदलने के अपराध, जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125 के तहत चुनाव के बारे मे विभिन्न वर्गो में वैमनस्य पैदा करने या धारा 135 के तहत मतदान केन्द्र से मतपत्र बाहर ले जाने, धारा 135-ए के तहत मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने या धारा 136 के तहत कपटपूर्ण तरीके से नामांकन पत्र खराब करने या नष्ट करने के अपराध, राष्ट्र गौरव अपमान कानून के तहत राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान या देश के संविधान के अपमान के अपराध, सती निवारण कानून, भ्रष्टाचार निवारण कानून या आतंकवाद निवारण कानून 2002 के तहत अपराध में दोषी ठहराये जाने को भी अयोग्यता के दायरे में शामिल किया गया है।

अब चूंकि उन व्यठक्तियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने पर विचार हो रहा है जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में अदालत अभियोग निर्धारित कर चुकी है और अगर सरकार ऐसे व्य क्तियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखना चाहती है तो इसके लिये जनप्रतिनिधित्व कानून में अपेक्षित संशोधन करके इसकी धारा 8 में ही प्रावधान किया जा सकता है।

यह स्पष्ट करना भी उचित होगा कि यदि अदालत में निर्धारित अभियोग निर्धारित निरस्त कराने के लिये किसी अन्य अदालत में अपील लंबित है तो ऐसी  सिथति में कोर्इ सांसद या विधायक या आम नागरिक चुनाव लड़ने के अयोग्य होगा या नहीं।

देश की राजनीति और संसद तथा विधान मंडलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों से मुक्त कराने के लिये कोर्इ भी कानून बनाते वक्त इसका दुरूपयोग रोकने की ओर भी ध्यान देने की आवश्यसकता है। इस समय राज्यों में अलग अलग दलों की सरकारें हैं और राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण विरोधियों को चुनावी मैदान से दूर रखने के लिये इस तरह के किसी भी कानूनी प्रावधान के दुरूपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय पहले ही दो साल या इससे अधिक की सजा पाने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों को संरक्षण प्रदान करने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8:4: को निरस्त कर चुका है। इस धारा के निरस्त होने के कारण कम से कम दो संसद सदस्यों की सदस्यता भी खत्म हो चुकी है।

दूसरी ओर, पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में कैद व्यकित को चुनाव लड़ने से वंचित करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न स्थिति का निराकरण करते हुये संसद ने पहले ही जनप्रतिनिधित्व कानून में अपेक्षित संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के बाद हिरासत के दौरान जेल में बंद व्यपक्ति को एक बार फिर चुनाव लड़ने की पात्रता मिल गयी है।

देश की राजनीति को धन बल और बाहुबल से मुक्त कराने की दिशा में निर्वाचन आयोग लंबे समय से प्रयत्नशील है और समय समय पर उच्चतम न्यायालय की महत्वपूर्ण न्यायिक व्यवस्थाओं ने चुनाव सुधारों को गति प्रदान करने में काफी हद तक अहम भूमिका निभार्इ है।


PIB

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