शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

ग्रामीण स्वास्थ्य की दशा सुधारने की कोशिश

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने ग्रामीण स्वास्थ्य की दशा और दिशा सुधारने वाला एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला लिया है। बुधवार को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में सामुदायिक स्वास्थ्य में बीएससी पाठयक्रम को मंजूरी दी गई। यह पाठयक्रम सरकार की उस योजना को कारगर बनाने में सहायक सिध्द होगा, जिसके तहत वह ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्यकर्मियों का एक विशेष दल तैयार करना चाहती है। इस तरह के किसी फैसले की वर्षों से प्रतीक्षा थी। बल्कि यूं कहना ज्यादा सही होगा कि इस ओर अरसे से प्रयास जारी थे, लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से अडंग़ा लगाया जाता रहा। केंद्र ने अभी जो फैसला लिया है, छत्तीसगढ़ की प्रथम सरकार ने भी ऐसा ही निर्णय लिया था, किंतु वह लंबे समय तक लागू न हो पाया। दरअसल इसका विरोध मुख्यत: चिकित्सकों की ओर से ही होता आया, जिनका यह मानना है कि ऐसा करने से इस व्यवसाय के लोगों के दो स्तर निर्मित होंगे और उससे दीर्घकालिक नुकसान होगा। इस देश की आम जनता जानती है कि इसमें असल में किसका नुकसान है और चिकित्सा क्षेत्र को मुनाफे का व्यवसाय बना देने वाले किस मानसिकता से कार्य करते हैं। इसे विडंबना कहें या विरोधाभास कि एक ओर देश में मेडीकल टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, अर्थात विदेशों से मरीजों को इलाज के लुभावने पैकेज देकर आमंत्रित किया जा रहा है और दूसरी ओर यहां की गरीब व मुख्य रूप से ग्रामीण जनता के लिए मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं का अकाल पड़ा हुआ है। लाखों रुपए देकर सात सितारा अस्पतालों में इलाज करवाने की सुविधा यहां है, जहां डाक्टरों व मरीजों के बीच व्यापारी व ग्राहक का रिश्ता बना हुआ है। उधर, ग्रामीण इलाकों में स्थिति इतनी बदतर है कि मरीज को जानवर की तरह दो बांसों के बीच लटकाकर पास के शहरी अस्पताल में लाया जाता है और इन अस्पतालों में गरीब मरीजों के साथ लगभग जानवरों जैसा ही व्यवहार भी होता है। कराहते, तड़पते मरीज गलियारों में पड़े रहते हैं, गर्भवती महिलाएं सड़क पर ही बच्चे को जन्म देती हैं, टीबी, मलेरिया, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियां अब भी काल का कहर बनकर  टूटती हैं, यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है, लेकिन इसे खत्म करने का कोई ठोस उपाय नहींकिया गया। जब-जब आम आदमियों तक स्वास्थ्य सुविधाएं आसानी से पहुंचाने की बात होती है, देश में डाक्टरों का एक बड़ा वर्ग या कह लें इनका संगठित गिरोह इसके खिलाफ मोर्चा खोल देता है। क्योंकि इसमें इन्हें अपना नुकसान नजर आता है। लाखों रुपए की चिकित्सा शिक्षा प्राप्त कर, उसका लाभ करोड़ों लोगों तक पहुंचाने की जगह वे करोड़ों रूपए कमाने की ख्वाहिश रखते हैं। इसलिए स्वास्थ्य सुविधाएं अब आकर्षक पैकेजों मेंउपलब्ध होने लगी है, जो केवल संपन्न तबके की पहुंच में है। गरीब आदमी आज भी सरकारी अस्पतालों में बीमारी की पीड़ा सहते हुए लंबी कतार में लग कर इलाज की प्रतीक्षा करने के लिए अभिशप्त हैं। देश के नीति नियंताओं तक इनकी कराहें नहींपहुंचती। अगर वे सुनना चाहें तो भी उनके निर्णय लेने में बाधाएं खड़ी की जाती हैं। अभी जो तीन वर्ष का पाठयक्रम है, इसी तरह का एक फैसला संसद की स्थायी समिति ने पहले लिया था जिसमें चिकित्सा स्नातकों को तीन साल ग्रामीण इलाकों में सेवाएं देना अनिवार्य किया गया था। किंतु यह भी फलीभूत नहीं हो पाया।


बहरहाल, सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस तीन वर्षीय पाठयक्रम में सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों का एक ऐसा दल तैयार होगा, जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करेगा। इस पाठयक्रम के स्नातक ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात होंगे और मूलभूत स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराएंगे। उदाहरण के लिए सामान्य प्रसूति, जच्चा-बच्चा की प्रारंभिक देखभाल, टीकाकरण, सर्दी-जुकाम, सामान्य बुखार, टीबी, मलेरिया आदि का प्रारंभिक इलाज इन सब को करने में सामुदायिक स्वास्थ्य के स्नातक सक्षम होंगे। इससे ग्रामीणों को प्रारंभिक इलाज प्राप्त होगा ही, झोलाछाप डाक्टरों, झाड़-फूंक करने वालों से मुक्ति भी मिलेगी।



देशबन्धु

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