शनिवार, 30 नवंबर 2013

ईरान की बढ़ती अहमियत से सऊदी अरब परेशान क्यों

कभी ईरान के शाह पहलवी अमेरिका के बहुत प्रिय हुआ करते थे लेकिन जब उनकी यादतियां सारी हदें पार कर गईं तो ईरान की अवाम ने पेरिस में रह रहे एक धार्मिक नेता अयातोल्ला खुमैनी के नेतृत्व में उनका तख्त बदल दिया, ताज बदल दिया और इस्लामी सरकार कायम कर दी। ईरान में अपनी तरह की लोकशाही शुरू हो गई और अमरीका और ईरान में दूरियां बढ़ गईं। एक मुकाम तो ऐसा भी आया जब अमरीका ने ईरान पर सद्दाम हुसैन से हमला करवाया। यह पुरानी बात है। उसके बाद से दजला और फरात नदियों में बहुत पानी बह गया। सद्दाम हुसैन जो कभी अमेरिका के सबसे करीबी भक्त हुआ करते थे, अमेरिका की कृपा से मारे जा चुके हैं, इराक में अब शिया मतावलंबी प्रधानमंत्री पदस्थ किया जा चुका है और अमेरिका की समझ में पूरी तरह से आ गया है कि ईरान से पंगा लेना उसको बहुत महंगा पड़ सकता है। ऐसे माहौल में अमेरिका ने एड़ी चोटी का जोर लगाकर ईरान से दोस्ती की कोशिश शुरू कर दी है। परमाणु हथियारों की अपनी दादागीरी की आदत से अमेरिका को बहुत नुकसान हुआ है लेकिन वह दुनिया के किसी मुल्क की परमाणु ताकत को वह अभी भी दबा देना चाहता है। अमरीका समेत सुरक्षा परिषद के सभी पांचों स्थायी सदस्यों की इच्छा यही रहती है कि उनके अलावा और कोई भी परमाणु ताकत न बने लेकिन उनकी चल नहीं रही है। ईरान के मामले में भी एक बार यही हो रहा है लेकिन दुनिया की राजनीति के बदल रहे नए समीकरणों के चलते अब खेल बदल गया है। अब ईरान को एक परमाणुशक्ति के रूप में स्वीकार करने के अलावा अमरीका के सामने और कोई रास्ता नहीं है।

ईरान के साथ अमरीका और अन्य देशों के समझौते का जश्न पश्चिमी दुनिया में मनाया जा रहा है लेकिन इस समझौते से एक तरह से परमाणु हथियारों की दुनिया में अपना दबदबा बनाए रखने की सुरक्षा परिषद के स्थायी देशों की मंशा ही सबसे स्थायी कारण नजर आती है। इजरायल के दबाव में पिछले कई वर्षों से इ्ररान पर पश्चिमी देशों की तरफ से लगाई गई पाबंदियां भी देश के हौसले को नहीं रोक पाईं। बहरहाल आखिर में उनकी समझ में आ गया कि ईरान से बातचीत करने का सही तरीका यह है कि उसको रियाया न समझा जाए, उसके साथ बराबरी के स्तर पर बातचीत की जाए ।

मौजूदा समझौते के बाद ईरान का परमाणु संवर्धन का कार्यक्रम जारी रहेगा। दस्तावेज में लिखा है कि शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए आपसी परिभाषा के आधार पर परमाणु संवर्धन का कार्यक्रम चलाया जाएगा। इरान ने वचन दिया है कि वह समझौते के छ: महीनों में यूरेनियम का पांच प्रतिशत से यादा का संवर्धन नहीं करेगा  या 3.5 प्रतिशत संवर्धन वाला जो उसका भण्डार है उसमें कोई वृध्दि नहीं करेगा। 3.5 प्रतिशत के संवर्धन पर ही बिजली पैदा की जा सकती है जबकि हथियार बनाने के लिए 90 प्रतिशत संवर्धन की जरूरत पड़ती है। इरान ने समझौते में पूरा सहयोग किया है। उसने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को अपने परमाणु ठिकानों की जांच करने का पूरा अधिकार देने का वचन दिया है। इसके बदले में  अमरीका, फ्रांस, चीन, रूस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ईरान को वादा किया है कि वह उसके तेल पर लगाई गई पाबंदियों पर ढील देगें।  ईरान से पेट्रोल के निर्यात पर जो पाबंदी लगी हुई है वह भी दुरुस्त की जायेगी। सुरक्षा परिषद में भी ईरान के खिलाफ कोई पाबंदी  का प्रस्ताव नहीं लाया जाएगा। ओबामा की सरकार भी  ईरान पर पाबंदियां लगाने या उसकी धमकी देने से बाज आयेगी। यह पाबंदियां इरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए लगाई गई थीं। वह तो कहीं रुका नहीं अलबत्ता ईरान की जनता ने सारी तकलीफें झेलीं।  इजरायल इस नए कूटनीतिक विकास से सबसे यादा परेशान है। उसके जाहिर से कारण हैं। अभी तक वह अमेरिका के लठैत के रूप में पश्चिम एशिया में मनमानी करता रहा है लेकिन सऊदी अरब की परेशानी भी कम नहीं है। ईरान के साथ अमरीका के रिश्ते ठीक होने का नतीजा यह होगा कि पश्चिम एशिया में अमेरिका के सबसे भरोसेमंद अरब देश के रूप में पहचाने जाने वाले देश के रूप में सऊदी हनक कम हो जायेगी। ईरान की कोशिश यह भी चल रही है कि पश्चिम एशिया में शिया शासकों की संख्या बढ़ाई जाए। जबकि यह  रियाद को यह बिलकुल पसंद नहीं है। सऊदी अरब  ने देखा है कि किस तरह से 2010 के चुनाव के बाद भी ईरान की मदद से इराक में शिया राष्ट्रपति बना रहा गया। रियाद की परेशानी यह है कि अमरीकी सत्ता में उनके कोई लाबी ग्रुप नहीं हैं। इसलिए वह अमेरिका की नीतियों को उस तरह से नहीं प्रभावित कर पाता जिस तरह से इजरायल कर लेता है। इसलिए ईरान के साथ हुए अमेरिका और अन्य ताकतवर देशों के समझौते को समर्थन देने के अलावा सऊदी अरब के पास कोई रास्ता नहीं था। सउदी अरब को डर है कि पश्चिम एशिया की राजनीति में उनकी घट रही ताकत को और गति मिल जायेगी। उनके घोषित शत्रु ईरान अब उनके आका अमेरिका के करीब आ  जाएगा। ईरान ने अपनी ताकत इराक और लेबनान में बढ़ा ही लिया है। सीरिया में भी बशर अल असद के साथ इरान के सम्बन्ध हैं और सुन्नियों के हमलों को रूस और इरान के बल पर लगातार नाकाम किया जा रहा है। सऊदी अरब को उम्मीद थी कि वह सीरिया के खिलाफ भी फौजी ताकत का इस्तेमाल करेगा। खासतौर से जब पिछले अगस्त में दमिश्क के पास एक आबादी पर सीरिया की सेना की तरफ से कथित रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल की खबर आई थी। अगर ऐसा हुआ होता तो बशर अल असद की सत्ता को हटाकर सऊदी पसंद का कोई शासक वहां बैठाया जा सकता था लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने दूसरा रास्ता चुन लिया। उन्होंने रूस से समझौता कर लिया कि सीरिया अपने रासायनिक हथियारों को खत्म कर देगा। हालांकि इस समझौते को ओबामा की भारी कूटनीतिक सफलता माना गया लेकिन सऊदी अरब को इस से बहुत निराशा हुई।

अमेरिका की कथित शह से पश्चिम एशिया और उत्तर अफ्रीका में लोकतंत्र की आवाजें जब जोर पकड़ने लगीं तो सऊदी हुक्मरान बहुत चिंतित हुए। इसी प्रक्रिया में उनका सबसे करीबी अरब दोस्त होस्नी मुबारक हटा दिया गया और बहरीन में भी सुन्नी शासक के खिलाफ जब लोकतंत्र वाले जुलूस निकलने लगे तो सउदी अरब वालों को लगा कि उस अभियान को भी ईरान का सहयोग हासिल है। बहरीन का शासक सुन्नी है लेकिन वहां भी आबादी का बहुमत वाला हिस्सा शिया समुदाय वालों का है।

कुल मिलाकर सऊदी अरब को इस बात से नाराजगी तो है कि अमेरिका ईरान की तरफ खिंच रहा  है लेकिन जानकारों को मालूम है कि अमेरिका अभी सउदी अरब से रिश्ते खराब नहीं कर सकता। खाड़ी के देशों में अमरीकी हितों के सबसे बड़े संरक्षक के रूप में रियाद की हैसियत अभी कायम है और आने वाले बहुत दिनों तक उसके कमजोर होने की कोई संभावना नहीं है। लेकिन अमेरिका भी खाड़ी के देशों में सऊदी अरब के विकल्प की तलाश कर रहा है। इराक में सत्ता परिवर्तन के साथ उनको उम्मीद थी कि वहां एक ऐसा साथी मिल जाएगा जो पुराने सद्दाम हुसैन की तरह काम करेगा लेकिन वाहन बहुमत की सत्ता आ गई और बहुमत वहां शियाओं का है। नतीजा यह  हुआ कि वहां का शासक ईरान के यादा करीब चला गया। अमेरिका को खाड़ी के धार्मिक संप्रदायों की उठापटक में कोई रुचि नहीं है। उसे तो वहां ऐसे राजनीतिक हालात चाहिए जिससे उसकी मौजूदगी और ताकत मजबूती के साथ जमी रहे। सबको मालूम है कि किसी भी कूटनीतिक चाल का उद्देश्य अपने राष्ट्रीय हित को मुकम्मल तौर पर पक्का करना होता है। इसलिए अमेरिका इस इलाके में सऊदी अरब के ऊपर निर्भरता कम करने के लिए ईरान को साथ लेने की नीति पर काम कर रहा है। यह शुरुआत है। सऊदी अरब को मालूम है कि  ओबामा अब खाड़ी के देशों की राजनीति पर उतना ध्यान नहीं देंगे क्योंकि अब चीन के आसपास के देश उनकी प्राथमिकता सूची में यादा ऊपर आ गए हैं।


इस सबके बावजूद भी सउदी अरब और अमेरिका के बीच बहुत कुछ साझा है। दोनों ही देश पश्चिम एशिया में अल कायदा और ईरान की बढ़ती ताकत से परेशान हैं। अमेरिका को लाभ यह है कि वह ईरान से दोस्ती करके अपनी कूटनीतिक चमक को मजबूत कर सकता है लेकिन यह रियाद वालों को बिलकुल सही नहीं लगता।  उनके पास अमेरिका के अलावा किसी और से मदद की उम्मीद भी नहीं है और संभावना भी नहीं है। बीच में सऊदी शासकों ने यूरोपियन यूनियन से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश की थी लेकिन वे बेचारे तो अमेरिका की ही मदद के याचक  हैं।  रूस और चीन भी अमेरिका का विकल्प नहीं बन सकते इसलिए न चाहते हुए भी सऊदी अरब को अमेरिका का साथी बने रहने में भलाई नजर आती है।  लेकिन एक बात साफ है कि ईरान से जिनेवा में हुए इस समझौते के बाद खाड़ी की राजनीति में मौलिक बदलाव आने वाला है।  यह भी तय है कि पिछले कई दशकों से अमरीकी राजनीति की गलतियों के चलते पश्चिम एशिया में जो संघर्ष के हालात पैदा हो गए थे अब उनमें भी बदलाव होना तय है। हो सकता है कि इसका श्रेय बराक ओबामा के खाते में जाय और उनकी वाहवाही हो लेकिन मध्यपूर्व में अमेरिका के सबसे बड़े सहयोगी के रूप में सऊदी अरब की हैसियत कम हों एक दिन बहुत करीब आ गए हैं।




देशबन्धु

बेरोजगारी की वार्षिक रिपोर्ट 2012-13 जारी

भारत में शिक्षित बेरोजगारी और युवाओं के  रोजगार में घटते अवसरों पर श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से संबद्ध श्रम ब्यूरो, चंडीगढ़ ने अपने प्रथम वर्ष के तृतीय वर्ष 2012-13 के लिए रोजगार एवं बेरोजगार रिपोर्ट  28 नवंबर 2013 को जारी की. इससे पूर्व श्रम  एवं रोजगार मंत्रालय रोजगार एवं बेरोजगार से संबंधित दो रिपोर्ट 19 सितंबर 2013 को जारी कर चुका है.

इस रिपोर्ट में मुख्यतः  रोजगार एवं बेरोजगारी आंकड़ो को मापने के लिए आयु समूहों ,शिक्षा एवं ग्रामीण और शहरी  क्षेत्रो को सम्मिलित किया गया है.  इसमें अक्टूबर 2012 से मई 2013 तक के राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रो के श्रम संबंधी अनुमानों को शामिल किया गया है.

राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी की दर

आयु समूह
बेरोजगारीकी दर(प्रतिशत में)
15 से 24 वर्ष
18.1
18 से 29
 13.0
15 से 29  
13.3

श्रम शक्ति सहभागिता दर

•  विभिन्न आयु समूह में श्रम शक्ति सहभागिता दर 15 से 24 में 25.5, 18 से 29  में 41.2, 15 से 29  में 34.2 प्रतिशत रही है.
•   उत्तरी राज्यों में श्रम  शक्ति सहभागिता दर पंजाब में 36.2, चंडीगढ़ में  36.2, हिमाचल प्रदेश में 45.2 प्रतिशत रही.

विभिन्न वर्ष आयु समूह से संबंधित तथ्य

इसमें तीन आयु समूह 15 से 24 वर्ष,  18 से 29 वर्ष, 15 से 29 वर्ष  को शामिल किया गया है और 15 से 29 वर्ष आयु समूह मुख्य है.
राज्य स्तर पर इस आयु समूह में बेरोजगारी की दर हिमाचल प्रदेश में 17.7, पंजाब में 13.5 हरियाणा में 12.3, चंडीगढ़ में 13.6 प्रतिशत.
जारी किये गए रिपोर्ट कार्ड के अनुसार 15 से 29 आयु समूह के मध्य रोजगार में लगे युवाओं में अधिकतर स्वरोजगार को अपनाते है.
इस आयु समूह में शिक्षा का स्तर बढ़ने के साथ -साथ बेरोजगारी की दर भी बढ़ रही है रिपोर्ट कार्ड के अनुसार प्रत्येक तीन स्नातक या उच्च शिक्षित युवाओं में से एक युवा बेरोजगार पाया गया है.
ग्रामीण क्षेत्रों में इस आयु समूह के स्नातक लोगो की बेरोजगारी की  दर 36.6 प्रतिशत जबकि उच्च शिक्षित लोगो में बेरोजगारी की  दर 26.5 प्रतिशत रही .
•  अखिल भारतीय स्तर पर इस आयु समूह में वो लोग जो किसी भी भाषा को लिखने या पढ़ने में सक्षम नहीं पायें गए उनकी बेरोजगारी दर सबसे कम 3.7 प्रतिशत रही.

रिपोर्ट से संबंधित तथ्य

इस रिपोर्ट को तैयार करने में युजुअल प्रिंसिपल स्टेटस एपोच, युजुअल प्रिंसिपल एण्ड साब्सिडियरी स्टेटस एप्रोचवर्तमान साप्ताहिक स्तर और मौजूदा दैनिक स्तर दृष्टिकोण को शामिल किया गया.

इस रिपोर्ट कार्ड के आंकड़ो को तैयार करने में ग्रामीण क्षेत्रों के 82,624 आवासों एवं 50,730 शहरी क्षेत्रों के आवासों को सम्मिलित किया गया है.इस रिपोर्ट कार्ड की अनुशंसा अक्टूबर 2012 से मई 2013 तक के सम्मिलित आंकड़ो  के आधार पर की गयी.

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

NEPAL ELECTIONS 2013

As the Nepal’s election result unfolds, the sudden setback to ‘progressive forces for Change’ is surprising. The Madhes movement of 2007, which invoked federalism, gave rise to political parties from Madhes, drew into the national discourse and garnered support to institutionalise the nation as the ‘Federal Democratic Republic of Nepal’. While Madhesi parties (region-based) performed well in the Constituent Assembly (CA) I election, they have not been able to make the same impact in the CA II election, especially since in CA I, they were perceived as ‘king-makers’ in national government formation or alliances. What has changed in Madhesi politics? What will be the direction of Madhesi politics in the future of Nepal?

Burden of Proof vs. Benefit of Doubt
Since 2008, Madhesi parties have been in the national government with key cabinet positions. However, they have not able to perform as per the expectation of the Madhes people. The political parties were unable to deliver their agenda, and the failure of CA I is considered a major setback for Madhesi parties, leading to overall disenchantment.

Moreover, while contesting for the CA II election, Madhesi parties have divided into many groups to represents the Madhesis. This also contributed to their unpopularity. Interestingly, after 2008, Madhesi parties’ splits were expedited to join successive formations of the national government.

In such a scenario, the election campaign for CA II raised serious concerns about the ability of Madhesi parties to represent the Madhesis. In addition, the national parties have put forward Madhesi candidates in the heartland to appeal to the Madhesi electorate by reaffirming that federalism is now their agenda too.

National parties have therefore placed the burden of Proof on Madhesi parties, that is, since they failed to deliver the agenda of the Madhesis the first time around, what is the likelihood that they will succeed the second time?  This gives national parties the opportunity to ask the Madhesis to allow them to represent their concerns if they are voted in. 

Election of ‘Constituent Assembly’ vs. ‘Parliament’
There was widespread understanding among the people that apart from ‘federalism’ and ‘forms of Government’, CA I resolved issues of constitution-making. Technicalities of federalism are no more an issue as identity is ensured along with economic capability as understood across political parties. The CA II election has more to do with development politics, and hence, CA II is also seen as a normal parliamentary election in which basic amenities of the people matter. In this context, CA I could not deliver and therefore the overall uneasiness with Madhesi parties was strong as they were a part of national government holding key cabinet positions.

Divided Madhesi Parties vs. Division of Votes
The division of Madhesi parties from four parties during the CA I election to nearly thrity (including old and newly registered parties) has severely damaged the credibility of Madhesi politics. This led to a division of votes among the Madhesis. National parties too fielded Madhesi candidates to galvanise Madhesi votes so as to make use of the way Madhesis vote, which is on the basis of their identity/region/caste or language.

Direction of Madhesi Politics
Although Madhesi parties have suffered a serious setback, the emergence of Madhesi politics has raised some major political concerns that have already introduced them into the national discourse. There is a fair chance that they will be able to pull in Madhesi sentiments towards inclusive/representative democracy, distribution of resources, doing away with a monolithic hill-centric nationalism to inclusive citizenship, devolution of power from caste of high hills elites (CHHE) under  a centralised system to a decentralised form of governance under identity-based federalism, rights of self-determination etc. Hence, even if Madhesi parties do not make it to the formation of government/ cabinet bargaining, Madhesi politics would find a way ahead until the CA II does not address the demands of Madhesis, who feel they have suffered emotional discrimination in Nepal.

Challenges for the Constitution-Making Process
At this point, it is extremely difficult to analyse the people’s verdict of the CA II election. Madhesi parties are alleging that the overall process of the CA II election was rigged and are demanding proper investigation to establish the truth. However, this could also be a tactic to buy some time to decide their future course of action. Nonetheless, the political presence of Madhesi parties is inevitable, as is their alliance with progressive federal forces like Janjati’s group and UCPN-Maoist. At the same time, it is the responsibility of the Nepali Congress and CPN-UML to reconcile with other political players.


Historically, Nepal has made numerous mistakes in framing the idea of a nation. At this critical juncture, Nepal cannot afford any failure in making an acceptable constitution. The nation as a whole should also learn from past experience that the culture of winners imposing on losers in the name of ‘people’s mandate’ has detrimental effects on achieving national consensus. This is even more so if the constitution-making process is at stake.  

गुरुवार, 28 नवंबर 2013

यौन उत्पीड़न का सिलसिला

महिलाओं के खिलाफ अपराधों के पंजीकृत मामलों की बढ़ती संख्या महिला सशक्तिकरण की संकेतक है, लेकिन अन्य संकेतकों की तरह ही यह भी असंतुलित है। देश के अनेक भागों में महिलाएं आज भी शोषण का शिकार हैं और चुपचाप पुरुष वर्चस्व वाले समाज में ज्यादतियां बर्दाश्त करती रहती हैं। यह न केवल विद्यमान सामाजिक असमानता का संकेतक है, बल्कि बढ़ती सामाजिक रुग्नता और पाखंड का भी प्रतीक हैं। एक तरफ भारत में देवियों की पूजा की जाती है और दूसरी तरफ उनका शोषण और उत्पीड़न किया जाता है। इस साल मध्य नवंबर तक दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 1435 मामले दर्ज किए जा चुके हैं, जबकि 2012 में महज 706 मामले दर्ज हुए थे। इससे पता चलता है कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार अब मामलों में तब्दील होने लगे हैं। लंबे समय से महिलाएं चुपचाप समाज के अत्याचार सहन कर रही थीं। इस कदम से उन्हें न्याय मिलने में एक हद तक सहायता मिलेगी। हालांकि यह सामाजिक मूल्यों के पतन का भी संकेतक है।

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के जज, जो अब रिटायर हो चुके हैं, पर उनकी सहायिका ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इसके बाद विधि क्षेत्र में ही वरिष्ठ पेशेवरों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के कुछ और मामले उजागर हुए हैं। यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब यह आशंका पैदा हो गई है कि सफल वकीलों के दफ्तर में युवा महिला अधिवक्ताओं के काम करने के अवसर सिकुड़ न जाएं। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को क्या करना चाहिए। उन्हें इन मामलों की शिकायत दर्ज करनी चाहिए या नहीं? इस प्रकार की परिस्थितियों में फंस चुकी बहुत सी महिलाएं महसूस करती हैं कि उनके पास हालात से निपटने का कोई कारगर उपाय नहीं है। खासतौर पर उन्हें नौकरी गंवाने की चिंता सताती है। उन्हें लगता है कि गलत हरकतों का विरोध करने पर उन्हें नकारात्मक परिणाम भुगतने पड़ेंगे, जो उनकी सुरक्षा या फिर काम की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकते हैं।

नौकरी गंवाने का डर या फिर अनुचित व्यवहार की आशंका कुछ महिलाओं को हालात के सामने समर्पण करने को मजबूर कर देती है। ऐसे में वे गलत हरकतों का विरोध करने के बजाय उन्हें बर्दाश्त करने और अवांछित मांगों की पूर्ति के लिए राजी हो जाती हैं। चूंकि पीड़िता को लग सकता है कि गलत मांगों को मानने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है, वे प्रतिकार के डर से गलत संबंधों को स्वीकार भी लेती हैं। आंकड़े बताते हैं कि इस साल 540 मामलों में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न करने वाला उनका दोस्त या प्रेमी है, 330 मामलों में पड़ोसी है और केवल 53 मामलों में पीड़िता से किसी अनजान व्यक्ति ने दुष्कर्म किया है। यह सामाजिक मूल्यों के पतन का द्योतक है।

तरुण तेजपाल के हाई प्रोफाइल मामले में साथी कर्मचारी ने यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई है। तरुण तेजपाल ने इसे नशे में की गई चुहल बताया है और इसमें पीड़िता की सहमति को भी दर्शाया है, लेकिन इससे अनेक सवाल उठते हैं। इसके पीछे क्या मानस था और वह भी अपनी बेटी की दोस्त के साथ इस तरह के व्यवहार का। क्या यह इसलिए हुआ कि वह शराब के नशे में चूर थे या उनके मन में वासना थी? या फिर सत्ता के मद में चूर होने के कारण यह सब हुआ? जिस प्रकार समाज में भ्रष्टाचार के लिए भौतिक संपदा और ताकत महत्वपूर्ण कारण हैं, उसी प्रकार इस प्रकार के आपराधिक कृत्य के लिए वासना और सत्ता प्रमुख कारण हैं। संपत्ति जुटाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाना हमें हमारे स्व से काट देता है। इसी प्रकार महिलाओं के प्रति वासना हमें हमारी आत्मा से काट देती है। यह हमें अंतश्चेतना के बजाय तन की वासना की ओर ले जाती है और इससे जुड़ी माया या भ्रम जारी रहता है। आत्मा से कट जाने का दुष्परिणाम यह होता है कि हम खुद से बाहर आनंद तलाशने लगते हैं और यह भूल जाते हैं कि सुख हमारी आत्मा की सहज अवस्था है। यह भी मान लिया गया है कि धन, वासना और सत्ता हमें आनंद देती हैं और इसीलिए भौतिक सुविधाओं को हासिल करने और महिलाओं को काबू में करने की इच्छा बलवती हो जाती है।

आत्मा से संबंध विच्छेद का एक और महत्वपूर्ण कारण है मन की कमजोरी। इसके कारण व्यक्ति बाहरी प्रभावों में बह जाता है, जैसे शराब का नशा और सत्ता का मद। इनके प्रभाव में व्यक्ति विवेक का त्याग कर देता है। आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य हमारे काम को परिणाम की कसौटी पर परखता है, जो जिम्मेदारी का भाव लाने में एक अहम पहलू है। इस सोच के व्यक्ति ही मूल्यों के आधार पर चीजों को देख पाते हैं और सही-गलत के बीच अंतर को पकड़ पाते हैं। अध्यात्म का सबसे महत्वपूर्ण सबक है अहं, क्रोध, लालच, वासना और अनुराग जैसी बुराइयों को त्याग देना। ये सब भ्रम या माया हैं। हालांकि आत्मा से संबंध विच्छेद के कारण हम इन बुराइयों को त्याग नहीं पाते। एक बुराई से दूसरी पैदा होती है और यह कुचक्त्र इसी प्रकार चलता रहता है। जब हम समाज में ऐसे लोगों को अहमियत पाते देखते हैं जिनके पास पैसा, सत्ता और महिलाएं हैं तो हम भी इन्हें प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।


जैसे-जैसे यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ती हैं, समाज की बुराइयां भी उजागर होती हैं। हमें खुद को ऐसे व्यक्ति के रूप में बदलना होगा जिसका लक्ष्य 'काम करना' है न कि इस पर विचार करना कि 'आप कैसा महसूस करते हैं।' इसलिए अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों को निर्धारित कीजिए, भौतिक सुख तो खुद ब खुद मिल जाएगा। ज्ञानोदय तो अवधारणा में परिवर्तन मात्र है। ध्यान बाजार में बिकने वाली प्रतियों से हटाकर इस पर लगाना चाहिए कि पत्रिका में वास्तव में लोग काम करते हैं। अगर तरुण तेजपाल अपनी आत्मा से जुड़े रहते और अपना ध्यान 'मैं क्या हूं' से हटाकर 'मैं यह करता हूं तो क्या हो जाऊंगा' पर केंद्रित करते तो यह घटना नहीं घटती।

ईरान से स्वागतयोग्य समझौता

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर दुनिया के छह शक्तिशाली देशों, अमरीका, रूस, चीन. फ्रांस, जापान और जर्मनी के साथ जिनेवा में हुआ समझौता इस बात का परिचायक है कि अगर इच्छाशक्ति दिखलाई जाए तो वार्ता से शांतिपूर्ण ढंग से समस्याओं का समाधान तलाशा जा सकता है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम में विश्व में तनाव का एक बड़ा कारण बना हुआ था। अमरीका और उसके साथी देश ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को बंद कराना चाहते थे। उन्हें संशय था कि शांतिपूर्ण कार्यक्रम की आड़ में ईरान विध्वंस के हथियार न बना रहा हो। जबकि ईरान ऐसे आरोपों को खारिज करता रहा। अपनी बात मानते न देख अमरीका ने ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे, जिसकी वजह से उसकी आर्थिक स्थिति चरमरा गयी थी। ईरान की सीमा में पहुंचते ही वस्तुओं के दाम दोगुने-चौगुने हो जाते। खाद्य सामग्री, दवा व चिकित्सीय उपकरणों के महंगा होने से आम जनता को बेहद तकलीफ थी। ईरान से होने वाले तेल के निर्यात पर भी इसका विपरीत असर पड़ा। इससे न केवल ईरान को बल्कि उसके साथ व्यापार कर रहे दूसरे देशों के लिए कई संकट खड़े हो गए। भारत भी इसका भुक्तभोगी है। बहरहाल, अब ऐसी कई मुश्किलें थोड़े समय के लिए आसान हो जाएंगी, ऐसे आसार बन रहे हैं। जिनेवा में पांच दिनों की वार्ता के बाद जो परमाणु समझौत हुआ उसके तहत ईरान अगले छह महीनों तक अपनी परमाणु संवर्धन क्षमता में कोई वृध्दि नहीं करेगा और इसके लिए जो नए परमाणु संयंत्र वहां बनाए जा रहे हैं, उनके निर्माण कार्य को वहीं का वहीं छोड़ देगा। बदले में उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों में लगभग 7 अरब डॉलर की ढील दी जाएगी। हालांकि ईरान के राष्ट्रपति ने कहा है कि परमाणु संवर्धन के उसके अधिकार को मान्यता दी गई है, लेकिन अमरीका के विदेश मंत्री जॉन कैरी ने इससे इंक़ार किया है। पर ईरान पांच प्रतिशत से ऊपर यूरेनियम संवर्धन रोकने पर सहमत हुआ है। एक राष्ट्रव्यापी प्रसारण में ईरान के राष्ट्रपति रोहानी ने दोहराया कि उनका देश कभी परमाणु हथियार नहीं बनाएगा। साथ ही उन्होंने कहा, कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि व्याख्या कैसे की जा रही है, संवर्धन के ईरान के अधिकार को मान्यता दी गई है। उन्होंने समझौते की ये कहते हुए सराहना की है कि ये ईरान के बुनियादी उसूलों के हिसाब से है। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खमेनेई ने भी इस समझौते का स्वागत किया है। 6 महीनों के लिए वैध इस समझौते से सभी प्रसन्न हैं, किंतु इजराइल खिन्न है। उसके मुताबिक यह ऐतिहासिक भूल है। जहां तक भारत का सवाल है, यह समझौता उसके लिए भी फायदेमंद हो सकता है। भारत में तेल आयात का बड़ा हिस्सा ईरान से आता था। अमरीकी दबाव के कारण भारत की इस तेल व्यापार में भागीदारी ख़ासी घट गई और इसका नुकसान भारत को भुगतना पड़ा। फिलहाल ईरान से भारत का तेल आयात घटकर 10 फ़ीसदी से भी नीचे चला गया है। अब इसमें सुधार होगा।


 ईरान भारत का पड़ोसी देश है और वहां से तेल मंगाना आसान और फ़ायदेमंद होता है। ईरान से गैस आयात के लिए जिस पाइपलाइन की बात हो रही है, उस पाइपलाइन परियोजना पर आगे बढ़ा जा सकेगा। ईरान-पाकिस्तान-भारत पाइप लाइन पर तो प्रगति होगी ही, दूसरी तरफ़ ईरान से समुद्र के रास्ते भारत तक गैस पहुंचाने के प्रस्ताव में भी थोड़ी तेज़ी आएगी। भारत की ओएनजीसी विदेश और इंडियन ऑयल जैसी कंपनियों ने ईरान में भारी निवेश कर रखा है, प्रतिबंध के कारण वहां काम शुरु नहींहो पा रहा था, लेकिन अब वह आगे बढ़ेगा। ईरान में पुनर्निर्माण के काम शुरू होंगे और उसमें भाग लेने भारतीय कंपनियां ईरान जा सकेंगी। इस संभावित आर्थिक फायदे  के अलावा भारत को अपनी पिछली कूटनीति पर गौर करने का एक मौका भी मिल रहा है। अमरीकी दबाव में जरूरत से ज्यादा झुककर ईरान से दो हजार साल पुराने संबंधों को दांव पर लगा दिया गया था। अब संबंध सुधारने का अवसर आया है और भारत को इसका पूरा लाभ लेना चाहिए।

बुधवार, 27 नवंबर 2013

लघु उद्योगों का संवर्धन एवं विकास

लघु उद्यमी एवं लघु व्यानपार विकास का राष्ट्रीरय संस्था न (नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर इंटरप्रेन्योरशिप एंड स्मॉल बिजनेस डवेलेपमेंट-एनआईईएसबीयूडी) सूक्ष्मा, लघु तथा मध्यसम उद्यमी विकास मंत्रालय के अंतर्गत 6 जुलाई 1983 से काम कर रहा है। इस संस्थासन का मूल उद्देश्या सूक्ष्मर, लघु एवं मध्यीम उद्यमों का संवर्धन करना है। संस्था न प्रतिस्पसर्धा बढ़ाने के अनेक उपाय करता है।
इस संस्थान के प्रमुख कार्य निम्न्लिखित हैं-
प्रशिक्षण
संस्थान जो प्रमुख कार्य करता है उनमें शामिल हैं- प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम (टीटीपी), प्रबंध विकास कार्यक्रम (एमडीपी), विभाग प्रमुखों (एचओडी) तथा वरिष्ठ् कार्यपालकों के लिए उन्मुमखता कार्यक्रम तथाउद्यम-सह--कौशल विकास कार्यक्रम (ईएसडीपी) और विभिन्नख लक्ष्यी समूहों के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई प्रायोजित गतिविधियां।
हाल ही में इस संस्थान ने विभिन्न  क्षेत्रों के कुशल कामगारों का कौशल बढ़ाने के उद्देश्य से उन वर्गों के विभिन्न् कामगारों के लिए उद्यम सह-कौशल विकास कार्यक्रम (ईएसडीपी) चलाना शुरू किया है जिन वर्गों और उद्योगों में इनकी कमी महसूस की जाती रही है। साथ ही यह समसामयिक क्षेत्रों में शुल्क-आधारित  प्रशिक्षण गतिविधियां आयोजित करता रहा है।
यह संस्थान जुलाई 1983 से मार्च 31, 2013 तक अपने 5,951 विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये अपने 1,58,700 लोगों को प्रशिक्षित कर चुका है। प्रशिक्षित लोगों में 2,453 अंतर्राष्ट्रीय भागीदार शामिल हैं जो दुनियाभर के 130 से ज्यादा देशों से आये।
2013-14 के दौरान करीब 1 लाख लोगों को ट्रेनिंग दिये जाने की संभावना है। नवम्बर 2013 तक 60,000 से ज्यादा को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
अनुसंधान/मूल्यांकन अध्य्यन
प्रारंभिक/मूल अनुसंधान के अलावा यह संस्थांन विभिन्नो सरकारी स्कीमों/कार्यक्रमों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं का मूल्यांयकन और समीक्षा करता रहा है। औद्योगिक संभावित क्षमता का सर्वेक्षण भी यह संस्थान करता रहा है। यह सभी के प्रोजेक्ट् प्रोफाइल भी तैयार करता रहा है जो संस्थािन की बहुआयामी गतिविधियों का अभिन्न अंग है। इन गतिविधियों का उद्देश्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के क्षेत्र को बढ़ावा देना है।
वर्ष 2012-13 में इस संस्थान ने मूल्यांकन/अनुसंधान के 7 अध्ययन पूरे किए। संस्थान अनेक मूल्यांकन/अनुसंधान अध्ययनों पर वर्तमान में काम कर रहा है और ये प्रगति के विभिन्न चरणों में हैं।
पाठ्यक्रमों का विकास
इस संस्थान ने विभिन्न नौ लक्ष्य् समूहों के लिए आदर्श उद्यम विकास कार्यक्रम विकसित किए हैं। ये हैं- सामान्यक उद्यम, विज्ञान एवं टैक्नोनलॉजी उद्यम, महिला उद्यमी, शिक्षित बेरोजगार उद्यमी, पूर्व सैनिक उद्यमी, ग्रामीण उद्यमी (समाज के दुर्बल वर्गों सहित), दस्तदकार उद्यमी, आदिवासी उद्यमी और विकलांग उद्यमी।
फिलहाल यह संस्था न सूक्ष्मौ, लघु तथा मध्यउम उद्यम मंत्रालय के कोर ग्रुप की नये पाठ्यक्रमों के शुरू करने/ मानकीकरण में सहायता कर रहा है।
प्रकाशन
यह संस्थान उद्यमिता तथा इससे जुड़े हुए विषयों पर विभिन्न प्रकार के प्रकाशन एवं उद्यमिता में काम आने वाले उपकरणों का विकास एवं संचालन करता रहा है। हाल ही में इस संस्थान ने एक पुस्तिका प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है लर्न टू अर्न (सीखो और कमाओ)- स्कूली छात्रों के लिए उद्यमिता की शुरूआत। कंप्यूटर हार्डवेयर एंड नेटवर्किंग, खाद्य प्रसंस्क्रण, डेस्कटॉप पब्लिशिंग। उद्यमिता विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम की पुस्तदक: नियोज्य्ता एवं उद्यमिता कौशल पर भी पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। इस संस्थातन ने एक उद्यमिता, प्रेरणा एवं प्रशिक्षण किट तैयार किया है जिसमें प्रशिक्षण प्राप्त  करने वालों के लिए 6 प्रकार के खेल और प्रशिक्षण को सुविधाजनक बनाने के तरीके दिये गये हैं।
यह संस्था न एक त्रैमासिक न्यूजलेटर प्रकाशित करता है जिसमें संस्थान की गतिविधियों के बारे में सूचनाएं रहती हैं। न्यूजलेटर में आगामी कार्यक्रमों/गतिविधियों तथा सूक्ष्मि, लघु और मध्य म दर्जे के उद्यमों से संबंधित मंत्रालय और इससे जुड़े क्षेत्रों के बारे में कार्यक्रमों/गतिविधियों की खबरें होती हैं।
उद्यमों का समूह बनाने का तरीका
सूक्ष्म ,लघु एवं मध्यरम क्षेणी के उद्यम के विकास में समूह बनाने का तरीका अपनाने से दुनियाभर में बहुत किफायत हुई है। यह संस्थान कई प्रकार से विकास कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है और विभिन्न  हैसियत से इसने काम किया है। अभी तक यह संस्थाथन 24 औद्योगिक समूहों के विकास में शामिल रहा है।
फिलहाल यह संस्था न मेरठ के कैंची बनाने वाले उद्योग समूह के लिए एक समान सुविधा केंद्र (सीएफसी) विकसित करने की एजेंसी के रूप में काम कर रहा है।
इस संस्था न ने  मुरादाबाद में पीतल उद्योग समूह, पिलखुआ में कपड़ा उद्योग समूह और मेरठ में कैंची उद्योग समूह विकसित करने में काम किया है और इसका तजुर्बा बहुत अच्छाे और उत्पामदक रहा है।
एडड संस्थान एमएसएमई गारर्मेंट इनक्यू्बेशन सेंटर
सूक्ष्म्, लघु एवं मध्यकम उद्यमिता मंत्रालय द्वारा प्रायोजित इनक्यूपबेटर इस संस्था न के परिसर में ही काम कर रहा है और यह लाभार्थियों को वास्तलविक फैक्ट्री और बाजार की परिस्थतियों से परिचित कराता और प्रशिक्षण देता रहा है। यह केंद्र मड़े काटने, सिलाई और जरदोज़ी की मशीनों से लैस है। इसमें एक सुई वाली लॉक स्टिच, ओवर लॉक स्टिच और इंटरलॉक स्टिच मशीनें रखी गई हैं। इनका इस्तेीमाल लाभार्थियों को व्या वहारिक प्रशिक्षण देने/माहौल बनाने में किया जाता है।
बौद्धिक संपदा सुविधा केंद्र
बौद्धिक संपदा अधिकार इस क्षेत्र में काम करने वाली यूनिटों और उनके विकास के लिए महत्वेपूर्ण पाये गए हैं। इस संस्था न के परिसर में एक बौद्धिक संपदा सुविधा केंद्र चालू हो गया है, जो एक ही छत के नीचे आसपास की यूनिटों को बौद्धिक संपदा अधिकारों की पहचान, पंजीकरण, संरक्षण एवं प्रबंधन की सुविधा देता है।
ई मॉड्यूल: ईडीपी
इस संस्थाकन ने हिंदी और अंग्रेजी में ई लर्निंग का मॉड्यूल विकसित किया है जो उद्यमी विकास कार्यक्रमों में काम आता है। इस मॉड्यूल की प्रशिक्षण सामग्री एक सीडी में तैयार कर ली गई है जिसकी कीमत किफायती रखी गई है। यह मॉड्यूल उन लोगों के लिए खासतौर से लाभप्रद है जो क्लाससरूम में पूरा समय नहीं दे पाते।
इस मॉड्यूल में एक दिन का प्रारंभिक प्रशिक्षण रखा गया है जिसके बाद 14 दिनों को ऑनलाइन प्रशिक्षण होता है। इस ऑनलाइन परीक्षा के बाद भगीदारों को ऑनलाइन प्रमाण पत्र दिये जाते हैं। यह मॉड्यूल तकनीकी और प्रबंधकीय संस्था्नों के छात्रों में बहुत लोकप्रिय हैं।
इस मॉड्यूल को अब तक पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तॉराखंड, उत्तार प्रदेश, पंजाब और राजस्थाइन में शुरू किया जा चुका है।
क्षेत्रीय केंद्र, देहरादून
इस संस्थादन का एक क्षेत्रीय केंद्र  देहरादून में खोला गया है जो खास तौर से उत्रााखंड और उत्त र प्रदेश के निवासी लाभर्थियों को परामर्श सेवाएं देने का काम करता है।
उद्यमिता सर्जन के लिए प्रशिक्षण
संस्थान द्वारा आयोजित किए जा रहे ईडीपी और ईएसडीपी के मुख्ये उद्देश्यो भागीदारों को प्रेरणा देना और उन्हें  स्वेरोजगार के लिए प्रेरित करना है। यह संस्थाजन ऐसे लोगों को हर प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है। अगर उद्यमी स्व रोजगार नहीं चाहते, तो यह संस्थान उन्हें वेतन वाला रोजगार पाने में मदद करता है।
पिछले तीन वर्षो के दौरान संस्था के द्वारा प्रशिक्षित किये गये व्यक्तियों का प्रतिशत :


इकाईयां लगाने के लिए सहायता प्राप्‍त सहभागियों का प्रतिशत
मजदूरी रोजगार के लिए सहायता प्राप्‍त सहभागियों का प्रतिशत
2010-11
6.80
32.73
2011-12
4.20
19.41
2012-13
2.44
27.23

सहयोगात्मक गतिविधियां :
विभिन्ने लक्षित समूह के लिए सहायता तथा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए संस्थाेन विभिन्नक देशी तथा विदेशी संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है। इनमें इंटरनेशनल फाइनेंस कोरपोरेशन (आईएफसी), विश्वा बैंक समूह का एक सदस्य; जीआईजेड; सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकेण्डरी एजुकेशन(सीबीएसई); सन ऑन-लाइन लर्निंग इंडिया प्रा.लि.;  इंस्टीट्यूट इंडिया, जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट आदि शामिल हैं।
साझेदार संस्थान :
संस्थान, इसकी प्रशिक्षण गतिविधियों की पहुंच को बढ़ाने के लिए शैक्षणिक गतिविधियों एवं उद्यमशीलता विकास से जुड़े आधार स्तर के संगठनों जिनके पास पर्याप्तत बुनियादी सुविधाएं, अनुभवी फैकल्टीं, विभिन्ऩ प्रशि‍क्षण गतिविधियों को संचालित करने के लिए वित्तीय व्यवहारिता हो, उन्हें अपने पैनल में शामिल करता है। संस्थाल के साथ ऐसे 63 साझेदार संस्थान जुड़े हुये है, जो 12 राज्यों /केन्द्र शासित प्रदेशों में हैं।
अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियां :
वि‍भि‍न्नत देशों के सहभागि‍यों के लि‍ए वि‍देश मंत्रालय:  आईटीईसी/एससीएएपी/सीओएलओएमबीओ योजना की फैलोशि‍प के तहत संस्थात आठ सप्ताह का प्रशि‍क्षण कार्यक्रम संचालि‍त करता है।
इसके अलावा, संस्था वि‍देशी एजेंसि‍यों के लि‍ए वि‍शेष प्रशि‍क्षण कार्यक्रम डि‍जाइन और संचालि‍त करता है। इसके साथ ही वि‍भि‍न्न क्षेत्रों की औद्योगि‍क क्षमताओं का आकलन करने के लि‍ए अन्य  देशों को कंसल्टेनसी के कार्य में सहायता करता है।
राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परामर्श सेवाएं देना:
इनमें उद्यमशीलता वि‍कास संस्थान का गठन करना; सूक्ष्म तथा बड़ी औद्योगि‍क क्षमताओं का सर्वेक्षण करना;वि‍भि‍न्न। लक्ष्य‍ समूहों की प्रशि‍क्षण आवश्यसकताओं का आकलन करना; वि‍भि‍न्न लाभार्थियों का चयन करना अर्थात् प्रशि‍क्षण प्रदाता, एमएसएमई आदि; प्रशि‍क्षण प्रदान करने वाले(टीटीपी), उद्यमशीलता व कौशल वि‍कास कार्यक्रम(ईएसडीपी), उद्यमशीलता वि‍कास कार्यक्रम(ईडीपी) और वि‍भि‍न्न् ओरि‍एंटेशन कार्यक्रमों के पाठ्यक्रमों का नि‍र्धारण करना; भारत तथा वि‍देश में उद्यमि‍यों तथा प्रशि‍क्षण देने वालों के लि‍ए प्रशि‍क्षण कार्यक्रम संचालि‍त करना; वि‍भि‍न्न लक्ष्य, समूहों को प्रशि‍क्षण देने के लि‍ए प्रशि‍क्षण सामग्री तैयार करना, इनमें सुधार करनावि‍भि‍न्न औद्योगि‍की क्लस्टरों की पहचान करना, इनके समेकि‍त वि‍कास को सुनि‍श्चि ‍त करना, एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देने के लि‍ए बुनि‍यादी सुवि‍धाओं की स्थापना, इनकी योजना तथा नीति‍ का नि‍र्माण करना आदि‍ शामि‍ल हैं।  
 PIB

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

P5+1 And Iran Agree Landmark Nuclear Deal At Geneva Talks

The P5+1 world powers and Iran have struck a historic deal on Tehran’s nuclear program at talks in Geneva on Sunday. Ministers overcame the last remaining hurdles to reach agreement, despite strong pressure from Israel and lobby groups.

Under the interim agreement, Tehran will be allowed access to $4.2 billion in funds frozen as part of the financial sanctions imposed on Iran over suspicions that its nuclear program is aimed at producing an atomic bomb.

As part of the deal Iran has committed to:

- Halt uranium enrichment to above 5 per cent.

- Dismantle equipment required to enrich above 5 per cent.

- Refrain from further enrichment of its 3.5 per cent stockpile.

- Dilute its store of 20 per cent-enriched uranium.

- Limit the use and installation of its centrifuges.

- Cease construction on the Arak nuclear reactor.

- Provide IAEA inspectors with daily access to the Natanz and Fordo sites.

Iran's foreign minister, Javad Zarif, called the deal a “major success” and said Tehran would expand its cooperation with the International Atomic Energy Agency (IAEA).

While Iranian President Hassan Rouhani announced that the deal reached in Geneva shows that world powers have recognized Tehran's “nuclear rights.”

“Constructive engagement [and] tireless efforts by negotiating teams are to open new horizons,” Rouhani said on Twitter shortly after the announcement.

Foreign ministers from the US, Russia, UK, France, China, Germany and the EU hailed the deal as a step toward a “comprehensive solution” to the nuclear standoff between Tehran and the West. The interim deal was reached early Sunday morning in Geneva after some 18 hours of negotiation.

“While today's announcement is just a first step, it achieves a great deal,” US President Barack Obama said in a statement at the White House. “For the first time in nearly a decade, we have halted the progress of the Iranian nuclear program, and key parts of the program will be rolled back.”

However, Obama said that if Iran fails to keep to its commitments over the next six months, the US will “ratchet up” sanctions. US Secretary of State John Kerry, a key participant in the Geneva talks, said that Iran still had to prove it is not seeking to develop atomic weapons.

Tehran has repeatedly denied that it is developing atomic weapons, however, and maintains that its nuclear program is purely for civilian purposes.

Uranium enrichment

As part of the agreement, the international community has accepted Tehran’s right to a peaceful nuclear program. But after the deal was struck, participants in the Geneva talks put different interpretations on the issue of Iran’s right to enrich uranium.

Iran's Deputy Foreign Minister Seyed Abbas Araghchi wrote on Twitter that the right to enrichment had been recognized in negotiations, and after the deal was clinched Russian Foreign Minister Sergey Lavrov said the deal accepted Tehran’s right to enrich uranium.

“This deal means that we agree with the need to recognize Iran's right for peaceful nuclear energy, including the right for enrichment, with an understanding that those questions about the [Iranian nuclear program] that still remain, and the program itself, will be placed under the strictest IAEA control,” Lavrov told journalists.
John Kerry had a different spin on the deal, however, telling the media that it did not recognize Tehran’s right to enrich nuclear fuel.

“The first step, let me be clear, does not say that Iran has a right to enrich uranium,” Kerry said.


Israel has already voiced its opposition to the deal with Iran, claiming it is based on “Iranian deception and self-delusion.” Prime Minister Benjamin Netanyahu condemned the agreement as a "historic mistake" and said the world had become a more dangerous place.

Food preservation by radiation processing

Food is vital for human existence. Conservation and preservation of food is essential for food security and it provides economic stability and self-reliance to a nation. The need to preserve food has been felt by mankind since time immemorial. The seasonal nature of production, long distances between production and consumption centres and rising gap between demand and supply have made this need even more relevant today. The hot and humid climate of a country like India is quite favourable for growth of numerous insects and microorganisms that destroy stored crops and cause spoilage of food every year. Spoilage can also occur due to chemical and physiological changes in stored foods. Sea-foods, meat and poultry may carry harmful microbes and parasitic organisms that cause illnesses associated with their consumption. As in other parts of the world, India has also practiced various methods of food preservation such as sun drying, pickling and fermentation which were supplemented with more energy consuming techniques such as refrigeration, freezing and canning. Each of these methods has its merits and limitations. Man has always been in the search for newer methods to preserve foods with least change in sensory qualities. Radiation processing of food is one of the latest methods developed for this purpose. Food Technology Division (FTD) of the Bhabha Atomic Research Centre (BARC) is involved in the research on food preservation through radiation.

Radiation processing of food involves exposure of food to short wave radiation energy to achieve a specific purpose such as extension of shelf-life, insect disinfestations and elimination of food borne pathogens and parasites. In comparison with heat or chemical treatment, irradiation is considered a more effective and appropriate technology to destroy food borne pathogens. It offers a number of advantages to producers, processors, retailers and consumers. Though irradiation alone cannot solve all the problems of food preservation, it can play an important role in reducing post-harvest losses and use of chemical fumigants.

Know-How and Technology Transfer

Expertise and know-how for designing, fabrication and commissioning of irradiators is available in the country with the Department of Atomic Energy (DAE) and BARC. In India commercial food irradiation could be carried out in a facility licensed by the Atomic Energy Regulatory Board (AERB). The DAE has set up two technology demonstration units in India. The Radiation Processing Plant at Vashi, Navi Mumbai, mainly meant for treatment of spices, dry vegetable seasonings like onion flakes, and pet foods, is being operated by the Board of Radiation & Isotope Technology (BRIT). KRUSHAK (Krushi Utpadan Sanrakshan Kendra), Lasalgaon, was set up in 2002 by BARC, to demonstrate low dose applications of radiation such as control of sprouting, insect disinfestations, and quarantine treatment. KRUSHAK became the first Cobalt-60 gamma irradiation facility in the world, outside US, to be certified by USDA-APHIS for phytosanitary treatment enabling export of mango from India to the US in 2007 after a gap of 18 years. The microbiological, nutritional and chemical aspects of radiation-processed foods have been studied in detail around the world. None of these studies have indicated any adverse effects of radiation on food quality.

Commercial Prospects in India

 In India radiation processing of food can be undertaken both for export and domestic markets. Food could be processed for shelf-life extension, hygienization and for overcoming quarantine barriers. Huge quantities of cereals, pulses, their products, fruits and vegetables, seafood and spices are procured, stored, and distributed throughout the length and breadth of the country. During storage and distribution grains worth of thousand of crores of rupees are wasted due to insect infestation and related problems. Radiation processing can be used for storage of bulk and consumer packed commodities for retail distribution and stocking.

(PIB Features.)

  

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