सोमवार, 10 मार्च 2014

कौन बनाएगा एक बेहतर भारत?

सोलहवें आम चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा हो गई है। इस बार के आम चुनाव, अब तक के सबसे लंबे समय में पूरे होने वाले आम चुनाव होंगे। पूर्व-प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या या कारगिल युद्ध जैसी अप्रत्याशित स्थितियों या बाधाओं से प्रभावित हुए चुनाव ही इसका अपवाद होंगे। 7 अप्रैल से शुरू होकर, 12 मई तक, पूरे पांच हफ्ते चलने वाले ये चुनाव, नौ चरणों में होने जा रहे हैं, जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है।
बेशक, इतने लंबे चुनाव कार्यक्रम पर कुछ हलकों से कुछ आपत्तियां भी सुनने को मिली हैं, फिर भी भारत का संविधान (धारा-324 से 329 तक) इस संबंध में पूरी तरह से स्पष्ट है कि, ''संसद...के सभी चुनावों के लिए मतदाता सूचियां तैयार करने की निगरानी, निर्देशन तथा नियंत्रण और चुनाव कराने'' की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की ही है। इसलिए, चुनाव आयोग की जिम्मेदारी सिर्फ चुनाव कराने की ही नहीं है बल्कि ऐसे स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराने की है, जिनमें देश के सभी वैध मतदाताओं का अपने मतदान के अधिकार का व्यवहार करना सुनिश्चित किया जाए। इस सिलसिले में देश की कानून व व्यवस्था की स्थिति, संभावित गड़बड़ी के खतरों और देश के विभिन्न हिस्सों में स्वतंत्र व निष्पक्ष तरीके से चुनाव कराने के लिए बलों की उपलब्धता से संबंधित तमाम जानकारियां अकेले चुनाव आयोग के पास ही होती हैं। इसलिए, चुनाव आयोग ही सही तरीके से यह तय कर सकता है कि चुनाव कितने चरणों में होने चाहिए और चुनाव कराने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी कारगर ढंग से पूरी करने के लिए उसे कितने समय की जरूरत होगी। याद रहे कि देश में संसदीय जनतंत्र को असरदार बनाने के लिए चुनावों का समुचित तरीके से कराया जाना बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए, चुनाव आयोग द्वारा अपने विवेक का प्रयोग कर लिए गए इन फैसलों पर विवाद की कोई जरूरत नज् ार नहीं आती है।
आने वाले आम चुनाव के रूप में हम दुनिया भर का सबसे बड़ा जनतांत्रिक उद्यम देखेंगे। आने वाले आम चुनाव पिछले आम चुनाव से भी काफी बड़े होंगे। अंतिम आंकड़ों के अनुसार पिछले आम चुनाव में लोकसभा की कुल 543 सीटों के लिए देश भर में 300 से ज्यादा राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों तथा निर्दलियों को मिलाकर, पूरे 8070 उम्मीदवार मैदान में थे। उनकी किस्मत का फैसला कुल 71 करोड़ 80 लाख मतदाताओं के हाथों में था, जिनमें से 58.4 फीसद ने वास्तव में मतदान में हिस्सा लिया था। इस चुनावी उद्यम में जुटा प्रशासनिक ताना-बाना भी अपनी विशालता में कोई कम चकराने वाला नहीं था। पिछली बार महीने भर चले चुनाव के पांच चरणों में कुल 8,28,804 मतदान केंद्रों में 13,68,430 मतदान मशीनों से वोट डाले गए थे और इस काम को संभालने में 65 लाख से ऊपर कर्मचारी लगे थे। चुनाव का स्वतंत्र व निष्पक्ष तरीके से कराया जाना सुनिश्चित करने के लिए करीब 11 लाख वर्दीधारी जवान तैनात किए गए थे।
चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार, 16 वें आम चुनाव की मतदाता सूचियों में पूरे 81 करोड़ 40 लाख मतदाताओं के नाम हैं। यह संख्या, 15 वें आम चुनाव से करीब 10 करोड़ ज्यादा है। इसी प्रकार, इस बार  देश भर में 9 लाख 30 हजार मतदान केंद्रों में वोट डाले जाएंगे यानी पिछली बार से 10 हजार ज्यादा मतदान केंद्रों में। चुनाव की तरीखों की घोषणा के साथ हमारे देश में यह विराट उद्यम शुरू हो गया है।
चुनाव आयोग ने स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए उठाए जाने वाले अपने अनेकानेक कदमों की भी घोषणा की है। मुख्य चुनाव आयुक्त ने ऐलान किया: ''हमने यह सुनिश्चित करने का खासतौर पर ध्यान रखा है कि (सामाजिक रूप से) कमजोर इलाकों में रहने वाले तथा कमजोर मतदाताओं का चुनावी मशीनरी से निरंतर संपर्क बना रहे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके मताधिकार का प्रयोग करने में कोई भी बाधा न डालने पाए।'' हालांकि, मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह एलान भी किया है कि यह सुनिश्चित करने के लिए, ''विभिन्न श्रेणियों में पर्याप्त संख्या में प्रेक्षक तैनात किए जाएंगे,'' फिर भी इस निर्णय का पूरी मुस्तैदी से पालन करने की जरूरत होगी ताकि मतदाताओं के उस प्रकार बडे पैमाने पर डराए-धमकाए जाने को रोका जा सके, जो सब प. बंगाल में पिछले ही दिनों हुए स्थानीय निकायों के चुनाव में देखने को मिला था। बेशक, स्थानीय निकायों के चुनाव सीधे-सीधे केंद्रीय चुनाव आयोग के दायरे में नहीं आते हैं, फिर भी इस अनुभव से सावधान होकर चुनाव आयोग से अतिरिक्ति सतर्कता बरतने की उम्मीद तो की ही जानी चाहिए। पुन: यह सुनिश्चित करने के लिए भी चुनाव आयोग को कदम उठाने होंगे कि चुनाव प्रचार के दौर में आतंक फैलाने का सहारा लेकर कोई मतदाताओं को इस तरह डरा भी न पाए कि वे भय के कारण अपने मताधिकार का प्रयोग करने से ही हिचकने लगें।
पुन: मुख्य चुनाव आयुक्त ने यह भी कहा है कि, ''चुनाव के दौरान धन के प्रवाह पर अंकुश लगाने पर खास जोर दिया जा रहा है।'' चुनाव में धनबल के बढ़ते इस्तेमाल पर पर्याप्त तथा खास ध्यान दिए जाने की जरूरत होगी। हालांकि, अपेक्षाकृत बड़े राज्यों में संसदीय चुनाव के लिए खर्च की सीमा बढ़ाकर अब 70 लाख रुपए कर दी गई है, वास्तव में इस सीमा का ज्यादातर उल्लंघन ही किया जाता है। पुन: इसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए कि जिन पार्टियों या उम्मीदवारों के पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं हैं, वे चुनावी पहलू से पीछे छूट जाएं और इस तरह बुनियादी तौर पर उनके जनतांत्रिक अधिकारों को नकार ही दिया जाए। पहले ही दीवारों पर लिखने, पोस्टर लगाने आदि पर लगाई गई तरह-तरह की पाबंदियों का नतीजा यह हुआ है कि अपेक्षाकृत कम साधनसंपन्न पार्टियों व उम्मीदवार प्रचार के मामले में ज्यादा घाटे में रह गए हैं जबकि जिन पार्टियों व उम्मीदवारों के पास ज्यादा संसाधन हैं, वे मीडिया में विज्ञापनों से लेकर, एक साथ कई-कई जगह कराए जाने वाले लैसर-शो जैसे महंगे साधनों का उपयोग कर प्रचार में आगे निकल जाते हैं। ''पेड न्यूज'' तथा फर्जी जनमत सर्वेक्षणों जैसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने के लिए और कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। चुनाव में सभी के लिए बराबरी का मौका सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
बेशक, चुनावी समर में सभी सेनाएं जीतने की नीयत से उतरती हैं। इस राजनीतिक लड़ाई में भी ऐसा ही होगा और सभी पार्टियां तथा उम्मीदवार, जनता का समर्थन हासिल करने के लिए एक-दूसरे से होड़ कर रहे होंगे। बहरहाल, अंतिम विश्लेषण में चुनाव का फैसला तो जनता की सेना तय करने वाली है न कि तरह-तरह के संसाधनों से तथा प्रतिस्पर्द्धी पार्टियां के तरकशों से चलने वाले तीरों से तय होने जा रही है।
इस तरह, 16 वें आम चुनाव में भारत की जनता इस आधार पर चुनाव की दिशा तय करने जा रही है कि उस पर जो लगातार बढ़ते बोझ लादे जा रहे हैं, उनसे उसे राहत कौन दिला सकता है? कौन सी ताकत या ताकतें हैं जो उसके लिए बेहतर आजीविका तथा उसके बच्चों के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकती हैं? दूसरे शब्दों में, कौन एक बेहतर भारत बनाएगा? साफ है कि जनता की ये आकांक्षाएं तो तभी पूरी हो सकती हैं जब देश विकास के एक वैकल्पिक रास्ते पर चलेगा, एक ऐसा रास्ता जो कांग्रेस या भाजपा के रास्ते से अलग होगा। याद रहे कि चाहे आर्थिक नीतियों का मामला हो या महाघोटालों का, कांग्रेस और भाजपा में कोई अंतर ही नहीं है। उसके ऊपर से कांग्रेस-भाजपा का खांटी हिंदुत्ववादी एजेंडा, सांप्रदायिक ध्र्रुवीकरण बढ़ाने और सांप्रदायिक जहर फैलाने पर ही केंद्रित है और यह सामाजिक सौहार्द्र को तथा इसलिए भारत की एकता व अखंडता को भी, भारी चोट पहुंचाता है।

भारत की जनता को आगे बढ़कर इन चुनौतियों को स्वीकार करना होगा और आने वाले चुनाव में ऐसा जनादेश सुनिश्चित करना होगा जिससे देश एक वैकल्पिक नीतिगत रास्ते पर बढ़ सके, जो एक बेहतर भारत का निर्माण करेगा तथा हमारी जनता की जिंदगी बेहतर बनाएगा।

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