सोमवार, 3 मार्च 2014

नवाचार और प्रगति के लिए वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना आवश्‍यक

भारत में राष्ट्रीय विज्ञान दिवसरामन प्रभावखोज के सम्मान में प्रतिवर्ष 28 फरवरी को मनाया जाता है। प्रख्यात भारतीय भौतिकविद सर सी. वी. रामन ने 28 फरवरी, 1928 को रामन प्रभाव की खोज की थी। सी. वी. रामन ने भौतिकी के विभिन् विषयों पर 1907-1933 के दौरान कोलकाता के इंडियन एसोसिएयशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस में काम किया। इसी दौरान 1928 में उन्होंने रामन प्रभाव की खोज की। प्रकाश प्रकीर्णन(स्कैटरिंग ऑफ लाइट) संबंधी इस खोज से उन्हें अपार ख्याति मिली और बाद में 1930 में नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया।

राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद(एनसीएसटीसी) ने 1986 में भारत सरकार को  28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस घोषित करने की सलाह दी। अब यह आयोजन स्कूल, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और अन् शैक्षणिक निकायों, वैज्ञानिक, तकनीकी, चिकित्सा और अनुसंधान संस्थानों समेत संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। वर्ष 2014 के लिए इस आयोजन का विषयवैज्ञानिक सोच को बढ़ावाहै।ऊर्जा संरक्षणभी वर्ष 2014 के विज्ञान दिवस का विषय होगा।

वैज्ञानिक सोच चिंतन और उसके क्रियान्वयन का एक तरीका है। इसके लिए भौतिक वास्तविकताओं का आकलन, पूछताछ, परीक्षण, परिकल्पना और विश्लेषण जैसी विशेष पद्धतियों का सहारा लिया जाता है। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरुवैज्ञानिक सोचशब् का इस्तेमाल करने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थे। उन्होंने वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिए जाने की जोरदार वकालत की। पं. नेहरु ने अपनी किताबभारत की खोजमें लिखा है- ‘‘आज जरूरत वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए जाने की है। विज्ञान के साहसिक और आलोचनात्मक सोच, सत् और नए ज्ञान की खोज, बिना परीक्षण और प्रयोग के किसी भी चीज को स्वीकारने से इंकार, नए साक्ष्यों की रोशनी में पूर्व निष्कर्षों को परिवर्तित करने की क्षमता, आकलित तथ्यों पर निर्भरता और पूर्व नियोजित सिद्धांतों से दूर रहना, मन का कठोर अनुशासन, यह सभी केवल वैज्ञानिक अनुप्रयोग के लिए आवश्यक हैं बल्कि कई समस्याओं के हल के लिए और स्वयं जीवन के लिए भी आवश्यक है।’’

वैज्ञानिक चिंतन के विचार की उत्पत्ति और विकास डार्विन के व्यक् विचारों से संबंधित है। उन्होंने कहा है ‘‘विचारों की स्वतंत्रता को बेतर ढंग से तब मजबूती मिलेगी जब उसमें विज्ञान की समझ होगी।’’ वैज्ञानिक सोच एक रवैये को व्यक् करता है जिसमें तर्क का अनुप्रयोग भी शामिल है। चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक सोच का महत्वपूर्ण हिस्सा है। निष्पक्षता, समानता और लोकतंत्र के अवयव भी इसमें निर्मित होते हैं।

भारत बुनियादी अनुसंधान के क्षेत्र में शीर्ष देशों में शुमार है। विशेषकर उभरते परिदृश् और प्रतिस्पर्द्धा के दौर में इंडियन साइंस, वृद्धि और विकास के सबसे महत्वपूर्ण उपकरणों में गिना जाने लगा है। हाल के घटनाक्रम और नई मांगों के बीच कुछ प्रमुख विज्ञान परियोजनाएं शुरू किया जाना आवश्यक है। ये परियोजनाएं राष्ट्र की जरूरतों के लिए प्रासंगिक और भविष् की प्रौद्योगिकी के अनुरूप होनी चाहिए। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। यह विभाग उच् शोध को बढ़ावा देने से लेकर आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास तक विभिन् व्यापक गतिविधियों में संलग् है। उपयुक् कौशल और प्रौद्योगिकी के विकास के जरिए यह विभाग आम आदमी की तकनीकी जरूरतों को पूरा कर रहा है।

विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (एसटीआई) विकास के नए प्रमुख संवाहक बनकर उभरे है। भारत की तेज, स्थाई और समावेशी विकास में भारतीय एसटीआई व्यवस्था प्रतिभा के विशाल भंडार के साथ राष्ट्रीय लक्ष्यों को हासिल करने में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। भारतीय संविधान के अनुसार वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना भारतीय नागरिक के मूल कर्तव्यों में से एक है।

वर्ष 1958 के भारत के विज्ञान नीति प्रस्ताव(एसपीआर) का उद्देश् विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधानों को बढ़ावा देना है। 2003 की विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति(एसटीपी) में राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली के सृजन के लिए और राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास व्यवस्था के जरिए सामाजिक आर्थिक क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात कही गई है। वैज्ञानिक अनुसंधान धन का इस्तेमाल कर ज्ञान का सृजन करता है और इससे प्राप् नवाचार, ज्ञान को धन में बदल देता है। इस तरह यह राष्ट्र के विकास लक्ष्यों में अहम स्थान हासिल कर चुका है।

भारत ने 2010-20 के दशक कोनवाचार का दशकघोषित किया है। सरकार ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के बीच तालमेल कायम करने की आवश्यकता पर बल दिया है। साथ ही राष्ट्रीय नवाचार परिषद भी स्थापित किया है। इन घोषणाओं को आगे बढ़ाने में एसटीआई नीति 2013 भारतीय संदर्भ में नवाचार को नया आयाम प्रदान करती है। भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा उस स्तर पर तय होगी जहां तक एसटीआई सामाजिक और आर्थिक आयामों में योगदान करेगी। ऊर्जा और पर्यावरण, खाद्य और पोषण, जल और स्वच्छता, आवास, किफायती स्वास्थ् प्रणाली, कौशल निर्माण और बेरोजगारी की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए संरचनात्मक तंत्र और सिद्धांतों की आवश्यकता है।
समावेशी विकास में नवाचार आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंच और उपलब्धता सुनिश्चित करता है। एसटीआई नीति सामाजिक, आर्थिक महत् के चुनिंदा क्षेत्रों में विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार में निवेश को बढ़ावा देगा। साथ ही आर्थिक और अन् नीतियों के बीच सामंजस् कायम करके सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों और एसटीआई प्रणाली के बीच की कमी को दूर किया जा सकेगा।
एसटीआई नीति के मुख् अवयव इस प्रकार हैं:

·         समाज के सभी समुदायों के बीच वैज्ञानिक सेाच के प्रसार को बढ़ावा देना।
·         समाज के सभी स्तर पर युवाओं के बीच विज्ञान के अनुप्रयोग, कौशल को बढ़ावा देना।
·         प्रतिभावान लोगों के लिए विज्ञान, शोध और नवाचार में करियर के लिहाज से पर्याप् आकर्षण।
·   विज्ञान के कुछ अहम क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत् हासिल करने के लिए शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना की स्थापना।
·         शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने के लिए एक अनुकूल वातावरण का निर्माण।
·         एक ठोस राष्ट्रीय नवाचार प्रणाली का सृजन आदि।


समाज के सभी समुदायों के बीच वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के साथ शोध और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उपयुक् वातावरण के निर्माण की आवश्यकता है। भारत में अनुसंधान और विकास में निवेश सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत से भी कम है। इस क्षेत्र में निवेश को सकल घरेलू उत्पाद का 2 प्रतिशत किया जाना राष्ट्रीय लक्ष् रहा है। अगले पांच वर्षों में इस लक्ष् को हासिल करने के लिए निजी क्षेत्र का सहयोग जरूरी है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए सकल बजटीय सहायता पिछले दशक के दौरान पर्याप् रूप से बढ़ा है।

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