यह संयोग है कि भारत में आगामी लोकसभा चुनावों की घोषणा वाले दिन ही
चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस यानी एनपीसी की वार्षिक बैठक शुरू हुई। यह संस्था
हमारी संसद के निचले सदन लोकसभा के समकक्ष है। इस सदन के समक्ष प्रधानमंत्री ली
कछ्यांग और चीन के अन्य कैबिनेट मंत्रियों ने अपनी सरकार की प्रथम कार्य रिपोर्ट
प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट का ठीक वही महत्व है जो भारत में आम बजट का है। रिपोर्ट
में वर्ष 2014 के लिए सकल घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी का लक्ष्य 7.5 फीसद रखा गया।
यह इस बात का संकेत है कि इस वर्ष के अंत तक चीन की कुल जीडीपी में 10 खरब अमेरिकी
डॉलर का इजाफा होगा। इसकी तुलना में दो फीसद की दर से अमेरिकी जीडीपी में कुल
वृद्धि 17 खरब अमेरिकी डॉलर की होगी, जबकि 5.5 फीसद की दर से भारत की जीडीपी में
कुल इजाफा महज दो खरब अमेरिकी डॉलर होगा। हालांकि भारत ने अपने हालिया अंतरिम बजट
में घोषणा की है कि वह अपने बजट घाटे को कुल जीडीपी के 4.6 फीसद पर सीमित करने की
कोशिश करेगा। इसके लिए सरकार को योजनागत खचरें में कटौती करनी होगी, जबकि दूसरी ओर
गैर योजनागत खर्च लगातार बढ़ता रहेगा। इसके विपरीत चीन में स्थानीय सरकारों द्वारा
इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में हो रहे खचरें में कटौती करने की बड़ी चुनौती है।
चीन में 218 अरब अमेरिकी डॉलर बजटीय घाटे का अनुमान है। देश की कुल जीडीपी का 2.1
फीसद तक घाटा सहा जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही चीन में बढ़ रहा घरेलू कर्ज चिंता
का एक और विषय है। हालांकि यह एक सच्चाई है कि बड़े ऋण संकट को भी हल करने में
बीजिंग समर्थ है।
चीन में निचले स्तर पर स्थानीय सरकारें
बड़े सामाजिक खचरें के लिए जिम्मेदार हैं। अपर्याप्त कर राजस्व के कारण बीजिंग
स्थानीय सरकारों को पर्याप्त धन मुहैया करा पाने में असमर्थ है। इस कारण राच्य
सरकारें प्राय: अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने में विफल होती हैं।
इस सबका परिणाम यह हुआ है कि तमाम विरोध प्रदर्शन उभर रहे हैं और देश के भीतर
लोगों में असंतोष बढ़ रहा है। चीन में बैंक आमतौर पर स्थानीय सरकारों के अधीन हैं।
बढ़ते सामाजिक असंतोष को रोकने के लिए उन्हें स्थानीय सरकारों को कर्ज देने के लिए
विवश होना पड़ता है, लेकिन सच्चाई यह है कि इसका एक बड़ा हिस्सा रियल इस्टेट क्षेत्र
में चला जाता है। इसका नतीजा औद्योगिक अधिकता के रूप में देखने को मिलता है। एक
तथ्य यह है कि चीन की बहुत बड़ी राशि स्थानीय सरकारों के कर्ज के तौर पर फंसी हुई
है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ली कछ्यांग को स्थानीय प्रशासन के लिए वित्तीय
सुधार योजना की घोषणा करनी पड़ी। इसके लिए स्थानीय प्रशासन को बांड जारी करने की
अनुमति दी गई है और व्यापक नियंत्रण नीति ढांचे में सुधार की बात कही गई है।
इसके अतिरिक्त चीन के प्रधानमंत्री ने
यह भी घोषणा की है कि शहरी ढांचे में सुधार के साथ-साथ उसी तरह की सुविधाएं
ग्रामीण लोगों को भी दी जाएंगी। वास्तव में चीन की यह एक महत्वाकांक्षी योजना है
कि गांवों से निकल करके शहरों में आए तकरीबन 10 करोड़ लोगों को शहरी आवास और
सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। इसके लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों का नए सिरे से
निर्माण किया जाना है। इसके विपरीत भारत में ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन करके
शहरों में पहुंचे लोगों की स्थिति बिल्कुल अलग है। व्यावाहारिक तौर पर यहां
सामाजिक कल्याण की कोई भी योजना नहीं है। औद्योगिक विकास और नौकरी के अभाव में लोग
वापस अपने गांवों में लौटने को विवश हो रहे हैं। चीन में आर्थिक नीति बनाते समय
शहरों में रिहायशी सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा गया है। आर्थिक विकास और बेहतर
शासन के लिए चीन सरकार अपने स्तर पर नीतिगत प्रोत्साहन देती है। भारत में शहरी
परिदृश्य इस मायने में अलग है कि यहां चुने हुए लोगों के हाथ में इस तरह की स्थिति
से निपटने के लिए बहुत कम शक्ति होती है और यहां पर प्रशासन भी शहरी लोगों की
जरूरतों को पूरा करने के लिहाज से अलग व्यवहार करता है।
चीन के प्रधानमंत्री ली ने पिछले नवंबर
में निवेश और निर्यात आधारित विकास के आर्थिक ढांचे को बदलकर उसे घरेलू मांग पर
आधारित करने की घोषणा की थी। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पहली बार चीन की कुल
जीडीपी में औद्योगिक क्षेत्र के बजाय सेवा क्षेत्र का योगदान 46.1 प्रतिशत के स्तर
पर पहुंच गया है। सरकार ने यह भी घोषणा की है कि निजी क्षेत्र को सार्वजनिक पूंजी
तक पहुंच बनाने के च्यादा अवसर मिलेंगे। इसका एक अर्थ यह है कि उन्हें वित्तीय
संस्थान खोलने की भी अनुमति मिलेगी और उन्हें वार्षिक सरकारी समीक्षाओं का सामना
भी नहीं करना होगा। अभी तक इस व्यवस्था के चलते सरकारी भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता
रहा है। हालांकि सरकार द्वारा संचालित उपक्त्रमों में सुधारों को अभी भी लंबी राह
तय करनी है। इस प्रक्त्रिया को भी रफ्तार मिल सकती है। चीन के एक पूर्व शीर्ष
सुरक्षा अधिकारी झाऊ योंगकांग और पिछले पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के एक सदस्य
को जल्द ही भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाएगा। झाऊ के राच्य
संचालित उपक्त्रमों से गहरे संबंध रहे हैं। स्पष्ट है कि झाऊ के परिदृश्य से बाहर
होने के बाद चीन के मौजूदा नेताओं को इस क्षेत्र में अहम सुधारों के लिए अधिक खुला
हाथ मिल जाएगा। यह गौर करने लायक है कि एक ओर भारत की 15वीं लोकसभा के नाम सबसे कम
कामकाज का रिकार्ड बना और दूसरी ओर उसके एक पड़ोसी देश जहां लोकतंत्र नहीं, बल्कि
एक दल का शासन है वहां की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ने अपेक्षाकृत अधिक सक्त्रियता
का परिचय दिया। कम्युनिस्ट पार्टी भले ही सर्वोच्च हो, लेकिन एनपीसी में कार्यवाही
से अनुपस्थिति और नकारात्मक मतदान की प्रवृत्ति बढ़ रही है। निश्चित ही चीन की
बढ़ती समस्याओं के साथ अब यह अपरिहार्य होता जा रहा है कि एनपीसी को चीन की
प्रतिनिधि सभा के रूप में अपनी भूमिका बढ़ानी होगी तथा और अधिक मुद्दों पर बहस के
लिए तैयार होना होगा। हो सकता है कि इससे सत्ताधारी पार्टी और सरकार को कुछ अधिक
जवाबदेही के दायरे में लाया जा सके।
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