वेटलैंड्स
जटिल पारिस्थितिकी प्रणालियां
हैं, जिनमें अंतर्देशीय,
तटीय और समुद्रीय
प्राकृतिकवास की व्यापक
श्रृंखला शामिल हैं। इनमें
नम और शुष्क
दोनों वातावरण की
विशेषताएं पाई जाती
हैं और ये
अपनी उत्पत्ति, भौगोलिक
स्थिति, जल वैज्ञानिक
व्यवस्थाओं और अध:स्तर के
आधार पर व्यापक
विविधता दर्शाती हैं। इनमें
बाढ़ वाले मैदान,
दलदल, मछली के
तालाब, ज्वार की दलदल
और मानव निर्मित
आर्द्रभूमि शामिल हैं। सर्वाधिक
उत्पादक जीवन सहायता
में आर्द्रभूमि का
मानवता के लिए
सामाजिक-आर्थिक एवं पारिस्थितिकी
महत्व है। ये
प्राकृतिक जैव विविधता
के अस्तित्व के
लिए महत्वपूर्ण है।
ये पक्षियों और
जानवरों की विलुप्तप्राय:
और दुर्लभ प्रजातियों,
देशज पौधों और
कीड़ों को उपयुक्त
आवास उपलब्ध कराती
हैं। भारत विभिन्न
भौगोलिक क्षेत्रों में मौजूद
वैटलैंड्स पारिस्थितिकी सम्पदा वाला देश
है। भारत के
अधिकांश वेटलैंड्स गंगा, कावेरी,
कृष्णा, गोदावरी और ताप्ती
जैसी प्रमुख नदी
प्रणालियों से प्रत्यक्ष
या अप्रत्यक्ष रूप
से जुड़े हुए
हैं। एशियन वेटलैंड्स
कोष (1989) के अनुसार
वेटलैंड्स का देश
के क्षेत्रफल (नदियों
को छोड़कर) में
18.4 प्रतिशत हिस्सा है, जिसके
70 प्रतिशत भाग में
धान की खेती
होती है। भारत
में वेटलैंड्स का
अनुमानित क्षेत्रफल 4.1 मिलियन हेक्टेयर (सिंचित
कृषि भूमि, नदियों
और धाराओं को
छोड़कर) है, जिसमें
से 1.5 मिलियन हेक्टेयर प्राकृतिक
और 2.6 मिलियन हेक्टेयर मानव
निर्मित है। तटीय
वेटलैंड्स का अनुमानित
क्षेत्रफल 6750 वर्ग किलोमीटर
है और इनमें
मुख्यत: मैनग्रोव वनस्पति की
बहुतायत है।
वेटलैंड्स पर
रामसर
सम्मेलन
भारत
ने वेटलैंड्स और
जैव-विविधता सम्मेलनों
पर हस्ताक्षर किए
हैं। रामसर, ईरान
में 1971 में हस्ताक्षरित
वेटलैंड्स सम्मेलन अंतर-सरकारी
संधि है, जो
वेटलैंड्स और उनके
संसाधनों के संरक्षण
और बुद्धिमतापूर्ण उपयोग
के लिए राष्ट्रीय
कार्य और अंतर्राष्ट्रीय
सहयोग का ढांचा
उपलब्ध कराती है। वर्तमान
में इस सम्मेलन
में 158 करार करने
वाले दल हैं
और 1758 वेटलैंड्स स्थल हैं,
जिनका कुल क्षेत्रफल
161 मिलियन हेक्टेयर है, जिन्हें
अंतर्राष्ट्रीय महत्व की वेटलैंड्स
की रामसर सूची
में शामिल किया
गया है। रामसर
सम्मेलन विशेष पारिस्थितिकी तंत्र
के साथ काम
करने वाली पहली
वैश्विक पर्यावरण संधि है।
रामसर वेटलैंड्स सम्मेलन
को विलुप्त हो
रहे वेटलैंड्स प्राकृतिक
आवासों पर अंतर्राष्ट्रीय
ध्यान दिए जाने
का आह्वान करने
के उद्देश्य से
विकसित किया गया
था। क्योंकि इन
वेटलैंड्स के महत्वपूर्ण
कार्यों, मूल्यों, वस्तुओं और
सेवाओं के बारे
में समझ का
अभाव देखा गया
है। इस सम्मेलन
में शामिल होने
वाली सरकारें वेटलैंड्स
को पहुंची हानि
और उनके स्तर
में आई गिरावट
को दूर करने
के लिए सहायता
प्रदान करने हेतु
प्रतिबद्ध है। इसके
अलावा अनेक वेटलैंड्स
अंतर्राष्ट्रीय प्रणालियां हैं, जो
दो या अधिक
देशों की सीमाओं
पर स्थित हैं
या एक से
अधिक देशों की
नदियों की घाटियों
का हिस्सा हैं।
इन वेटलैंड्स की
स्थिति नदियों, धाराओं, झीलों
या भूमिगत जल
भंडारों से प्राप्त
होने वाले पानी
की गुणवत्ता और
मात्रा पर निर्भर
करती है। आपसी
हितों के लिए
अंतर्राष्ट्रीय विचार-विमर्श और
सहयोग के ढांचे
की जरूरत है।
रामसर सम्मेलन की
मुख्य विशेषताओं में
जैव-विविधता और
मानवीय प्रभाव की निगरानी
करना वेटलैंड्स के
संरक्षण के लिए
कानून बनाने में
सुधार, प्राकृतिक प्रबंधन में
जैव-विविधता संरक्षण
के लिए आर्थिक
तंत्र का विस्तार,
कमचटका क्षेत्र में नये
संरक्षित क्षेत्रों (रामसर स्थलों)
का संगठन, स्थानीय
जनता के साथ
कार्य करना और
धन के श्रोतों
की खोज करने
जैसी सिफारिशें शामिल
हैं।
प्राकृतिक संसाधनों
का
संरक्षण
प्रकृति
ने हमें बेहतर
जीवन जीने के
लिए हमारे आस-पास बड़ी
संख्या में संसाधन
उपलब्ध कराए हैं।
इस प्रकार पानी,
भूमि, वायु, खनिज,
वन, चारागाह, वन्यजीवन,
मछली और यहां
तक की मानव
जनसंख्या जिसे मनुष्य
अपने कल्याण के
लिए उपयोग कर
सकता है, उसे
प्राकृतिक संसाधन के रूप
में माना जा
सकता है। ये
संसाधन मानव संसाधनों
और पूंजी के
साथ राष्ट्रीय उत्पादन
का विस्तार करने
में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं, जो
अंतत: आर्थिक विकास
की ओर ले
जाते हैं। इसलिए
सतत् विकास के
लिए समाप्त
हो रहे संसाधनों
का सावधानीपूर्वक उपयोग
और नवीकरणीय संसाधनों
की गुणवत्ता के
रख-रखाव की
आवश्यकता है तथा
इसके लिए विशेष
उद्देश्य अपनाए जाने चाहिए।
पारिस्थितिकी संतुलन को इस
प्रकार परिभाषित किया गया
है 'प्राणियों के
समुदाय के अंतर्गत
गतिशील संतुलन की ऐसी
स्थिति जिसमें आनुवंशिकी, प्रजाति
और पारिस्थितिकी विविधता
धीरे-धीरे प्राकृतिक
बदलावों के माध्यम से
अपेक्षाकृत रूप से
स्थिर बनी रहे
और इस पारिस्थितिकी
में प्रत्येक प्रजाति
की संख्या में
स्थिर संतुलन बना
रहे'। मुख्य
बात यह है
कि पारिस्थितिकी तंत्र
में प्राकृतिक संतुलन
बना रहे। यह
संतुलन नई प्रजातियों
के आगमन, कुछ
प्रजातियों की अचानक
मौत, प्राकृतिक आपदाओं
और मानव निर्मित
कारणों से बिगड़
सकता है।
सामान्य
सम्पत्ति संसाधन (सीपीआर) में
ऐसे सभी संसाधन
शामिल हैं, जो
ग्रामीणों के सामान्य
उपयोग के लिए
हैं। अंग्रेजों से
पूर्व भारत में
देश के प्राकृतिक
संसाधनों का बड़ा
हिस्सा ग्रामीण आबादी के
लिए आसानी से
उपलब्ध था। यह
संसाधन मुख्य रूप से
स्थानीय समुदायों के नियंत्रण
में थे। धीरे-धीरे इन
संसाधनों पर राज्य
का नियंत्रण बढ़ने
से समुदाय प्रबंधन
प्रणाली में गिरावट
हुई और कुछ
वर्षों में ग्रामीणों
के लिए उपलब्ध
सीपीआर में भारी
कमी आई। यह
माना जाता है
कि ये सीपीआर
ग्रामीण जनता के
जीवन और आर्थिक
स्थिति में अब
भी महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं। भारत
में सीपीआर के
अध्ययन की शुरूआत
1980 में हुई। इनमें
से कुछ अध्ययन
देश के विस्तृत
क्षेत्र में फैले
अनेक गांव में
किए गए, जो केवल
अध्ययन स्वरुप के ही
थे। जैव-विविधता
या जैविक विविधता
ऐसे शब्द हैं
जो इस ग्रह
पर जीवन की
अनेक किस्मों और
बहुलता का बखान
करते हैं। जैव-विविधता में मौजूद
अनेक प्रजातियां ही
शामिल नहीं हैं,
बल्कि जनसंख्या की
विविधता भी शामिल
है, जो प्रजातियों
और किसी एक
जीवधारी के जीवन
की अनुवांशिक विविधता,
अनेक किस्म के
आवासों और विश्व
में पारिस्थितिकी का
निर्माण भी करती
हैं। जैव-विविधता
विश्व के प्राणियों
की वह किस्म
है, जिसमें उनकी
अनुवांशिक विविधता और उनके
द्वारा निर्मित जमघट भी
शामिल है। जैव-विविधता को सबसे
सामान्य रूप में
प्रजाति विविधता तथा प्रजाति
समृद्धि और जीन
प्रजातियों और किसी
क्षेत्र के पारिस्थितिकी
तंत्र की समग्रता
के रुप में
प्रयुक्त किया जाता
है। जैविक विविधता
को प्रजाति विविधता,
पारिस्थितिकी विविधता और अनुवांशिकी
विविधता के रूप
में चिन्हित
किया गया है।
भारत में
वेटलैंड्स
की
सूची
भारत
में स्थित वेटलैंड्स
में हिमालयन वेटलैंड्स,
जिसमें लद्दाख एवं जंसकार
पेंगांग सो, सो
मोराड, चांटऊ, नूरीचान, चूशुल
और हैनले मार्सेज,
कश्मीर घाटी जिसमें
डल, ऐंचर, बूलर,
हेगाम, मालगाम, होकेसर और
क्रांचू झीलें शामिल हैं,
केन्द्रीय हिमालय में नैनीताल,
भीमताल, नौकुचीताल और पूर्वी
हिमालय में सिक्किम,
असम, अरूणाचल प्रदेश,
मेघालय, नगालैंड और मणिपुर
के अनेक वेटलैंड्स
ब्रह्मपुत्र और बराकघाटी
के बील्स शामिल
हैं। इंडो-गंगेटिक
वेटलैंड्स देश के
सबसे बड़ी वेटलैंड्स
प्रणाली है, जो
पश्चिम में सिंधु
नदी से लेकर
पूर्व में ब्रह्मपुत्र
तक फैले हैं।
इनमें हिमालय तराई
और इंडो-गंगेटिक
मैदान के वेटलैंड्स
शामिल हैं। तटीय
वेटलैंड्स में पश्चिम
बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश,
तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, गोवा,
महाराष्ट्र और गुजरात
के 7500 किलोमीटर लंबे तट
के साथ अंत:ज्वारीय क्षेत्र, वनस्पत्तियां
और लैगून आते
हैं। सुंदरबन, पश्चिम
बंगाल, अंडमान निकोबार द्वीप समूह
के मैंग्रोवन कच्छ
की खाड़ी, मन्नार
की खाड़ी, लक्षदीप
और अंडमान निकोबार
द्वीप समूह के
अप-तटीय प्रवाल,
भित्तियां भी इसमें
आती हैं। दक्षिणी
वेटलैंड्स में कुछ
प्राकृतिक वेटलैंड्स आती हैं।
लेकिन असम के
छोटे और बड़े
जलाशय तथा हर
गांव में मौजूद
अनेक जल भंडारण
टैंक भी इसमें
शामिल हैं।
राष्ट्रीय वेटलैंड
नीति
राष्ट्रीय
वेटलैंड नीति में
संरक्षण और सहयोग
प्रबंधन, हानि रोकना,
बहाली को प्रोत्साहन
देना, टिकाऊ प्रबंधन
शामिल हैं। भारत
में मौजूद वेटलैंड्स
में से केवल
68 संरक्षित हैं, लेकिन
ऐसे हजारों वेटलैंड्स
हैं, जो जैविक
और आर्थिक रुप
से महत्वपूर्ण हैं,
लेकिन उनकी कोई
कानूनी स्थिति नहीं है।
वेटलैंड्स योजना प्रबंध और
निगरानी संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क
के अंतर्गत आती
है। अनेक कानून
वेटलैंड को संरक्षित
करते हैं, लेकिन
इनकी पारिस्थितिकी के
लिए विशेष रूप
से कोई कानून
नहीं है। इनके
लिए समन्वित पहुंच
आवश्यक है, क्योंकि
ये बहु-उद्देश्य
उपयोगिता की आम
संपत्ति हैं और
इनका संरक्षण और
प्रबंधन करना आम
जिम्मेदारी है। वेटलैंड
मामलों को सुलझाने
के लिए उचित
फोरम की स्थापना
की जानी है।
इसके लिए संबंधित
मंत्रालयों को पर्याप्त
निधि का आवंटन
करने की आवश्यकता
है। वैज्ञानिक जानकारी
योजनाकारों को आर्थिक
महत्व और लाभ
समझाने में मदद
करेगी। जागरूकता पैदा करने
की भी आवश्यकता
है। आम जनता
शैक्षिक और नैगमिक
संस्थानों में इन
वेटलैंड्स के संरक्षण
में सतत् सफलता
प्राप्त करने के
लिए जागरूकता जरूरी
है।
राष्ट्रीय वेटलैंड
संरक्षण
कार्यक्रम
सरकार
ने वर्ष 1986 के
दौरान संबंधित राज्य
सरकारों के साथ
सहयोग से राष्ट्रीय
वेटलैंड संरक्षण कार्यक्रम शुरू
किया था। इस
कार्यक्रम के अंतर्गत
अभी तक पर्यावरण
एवं वन मंत्रालय
ने 115 वेटलैंड्स की पहचान
की गई है,
जहां संरक्षण और
प्रबंधन पहल की
जरूरत है। इस
योजना का उद्देश्य
देश में वेटलैंड्स
के संरक्षण और
उऩका बुद्धिमतापूर्ण उपयोग
करना है, ताकि
उनमें और गिरावट
आऩे से रोका
जा सके।
कानून
भारत
में वेटलैंड्स संरक्षण
के लिए अप्रत्यक्ष
रूप से नीति
और कानूनी उपायों
से प्रभावित है।
कुछ मुख्य कानून
हैं- भारतीय मत्स्य
अधिनियम 1857, भारतीय वन अधिनियम
1927, वन्य जीवन संरक्षण
अधिनियम 1972, जल (संरक्षण
एवं प्रदूषण नियंत्रण)
अधिनियम 1974, समुद्रीय क्षेत्र अधिनियम
1976, जल (संरक्षण एवं प्रदूषण
नियंत्रण) अधिनियम 1977, वन्य (संरक्षण) अधिनियम
1980, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, तटीय
क्षेत्र विनियमन अधिसूचना 1991, वन्य
जीवन संरक्षण संशोधन
अधिनियम 1991, जैविक विविधता अधिनियम
2002 का निर्माण, वातावरण एवं
विकास 1992 पर राष्ट्रीय
संरक्षण नीति और
नीति वक्तव्य पर
किया गया था।
जैव विविधता पर
1999 में राष्ट्रीय नीति और
वृहद स्तर कार्रवाई
नीति का गठन
किया गया था।
वेटलैंड प्रबंधन
एवं
सतत्
विकास
वेटलैंड्स
किसी विशिष्ट प्रशासनिक
अधिकार क्षेत्र के तहत
अंकित नहीं है।
इन पारिस्थितिकी तंत्र
के प्रबंधन की
प्राथमिक जिम्मेदारी पर्यावरण एवं
वन मंत्रालय के
हाथ में है।
यद्पि कुछ वेटलैंड्स
वन्य जीवन संरक्षण
अधिनियम के गठन
के बाद संरक्षित
हैं। लेकिन इनके
संरक्षण के लिए
ऊर्जा, उद्योग, मत्स्य पालन,
राजस्व, कृषि, परिवहन और
जल संसाधन मंत्रालयों
में प्रभावी समन्वय
आवश्यक है। सतत्
उपयोग के लिए
पर्यावरण प्रबंधन समय की
विशेष आवश्यकता है।
देश में विभिन्न
कारणों से ऑटोमोबाइल,
रसायनों, उर्वरकों, कीटनाशकों के
औद्योगिक विकास को पर्यावरण
हानि के लिए
अकसर जिम्मेदार ठहराया
जाता है। पर्यावरण
शिक्षित समाज की
कमी, अपर्याप्त प्रबंधन,
कानून लागू करने
में कमजोरी और
कम निवेश करके
अधिक लाभ अर्जित
करने का कॉर्पोरेट
जगत का लोभ
रासायनिक दुर्घटनाओं को बढ़ावा
देकर सतत् विकास
में असंतुलन पैदा
कर सकता है।
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