गुरुवार, 27 मार्च 2014

सबसे बड़ा लोकतंत्र

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। लगभग 70 करोड़ लोग अपने नेता को शीघ्र चुनेंगे। हमें जतन करके अपनी इस श्रेष्ठ स्थिति को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए। जनसंख्या को नियंत्रित करने का प्रयास के स्थान पर सादगी से जीवनयापन करने करने वाले मनुष्यों को पैदा करना चाहिए। मधुमक्खी की बढ़ती संख्या को जानकर हम उद्वेलित नहीं होते हैं। मनुष्य भी यदि मधुमक्खी की तरह हो जाए तो धरती उसकी बढ़ती संख्या का स्वागत करेगी। 

आर्थिक विकास की दृष्टि से भी बढ़ती जनसंख्या लाभदायक दिखती है। युनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड के प्रोफेसर जुलियन साइमन बताते हैं कि हांगकांग, सिंगापुर, हालैंड एवं जापान जैसे जनसंख्या-सघन देशों की आर्थिक विकास दर अधिक है जबकि जनसंख्या न्यून अफ्रीका में विकास दर धीमी है। पापुलेशन रिसर्च इंस्टीटयूट के अनुसार 1900 एवं 2000 के बीच अमेरिका की जनसंख्या 7.6 करोड़ से बढ़कर 27 करोड़ हो गई है। इस अवधि में शेयर बाजार का स्टैंडर्ड एण्ड पूर इंडेक्स 6.2 से बढ़ कर 1430 हो गया है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री के अनुसार देश की जनता को अधिक संख्या में संतान उत्पन्न करने को प्रेरित करना देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।  इस आशय से उनकी सरकार ने फर्टिलिटी ट्रीटमेंट, हाउसिंग अलाउन्स तथा मैटर्निटी लीव में सुविधाएं बढ़ाई हैं। दक्षिणी कोरिया ने दूसरे देशों से इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया है। इंग्लैड के सांसद केविन रुड ने कहा है कि द्वितीय विश्वयुध्द के बाद यदि इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया होता तो इंग्लैंड की विकास दर न्यून रहती।  स्पष्ट होता है कि जनसंख्या का आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बात सीधी सी है। उत्पादन मनुष्य द्वारा किया जाता है। जितने मनुष्य होंगे उतना उत्पादन हो सकेगा और आर्थिक विकास दर बढ़ेगी। 
उपरोक्त तर्क के विरुध्द संयुक्त राष्ट्र पापुलेशन फंड का कहना है कि जनसंख्या अधिक होने से बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाती है और उनकी उत्पादन करने की क्षमता का विकास नहीं होता है। मेरी समझ से यह तर्क सही नहीं है। शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए जनसंख्या घटाने के स्थान पर दूसरी अनावश्यक खपत पर नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे राजा साहब के महल में स्कूल चलाया जा सकता है। यह भी याद रखना चाहिए कि अर्थव्यस्था में शिक्षित लोगों की संख्या की जरूरत तकनीकों द्वारा निर्धारित हो जाती है। टै्रक्टर चलाने के लिए पांच ड्राइवर नहीं चाहिए होते हैं। ड्राइवर का एमए होना जरूरी नहीं होता है। देश में शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा मात्र से उत्पादन में वृध्दि नहीं होती है। संयुक्त राष्ट्र का दूसरा तर्क है कि बढ़ती जनसंख्या से जीवन स्तर गिरता है। मैं इससे सहमत नही हूं। बढ़ती जनसंख्या यदि उत्पादन में रत रहे तो जीवन स्तर में सुधार होता है। अत: समस्या लोगों को रोजगार दिलाने की है कि जनसंख्या की अधिकता की। 
चीन के अनुभव से भी सिध्द होता है कि बढ़ती जनसंख्या लाभदायक होती है। यहां 1979 में एक संतान की नीति लागू की गई थी। एक से अधिक संतान उत्पन्न करने पर दम्पति को भारी फाइन अदा करना पड़ता था। फाइन चुका पाने की स्थिति में जबरन गर्भपात करा दिया जाता था। इस कठोर पालिसी के कारण चीन की जनसंख्या वृध्दि नियंत्रण में गई। वर्तमान में चीन में दम्पतियों के औसत 1.8 संतान हो रही है। दो व्यक्तियों-माँ एवं पिता द्वारा 2 से कम संतान उत्पन्न करने के कारण जनसंख्या का पुर्ननवीनीकरण नहीं हो रहा है और जनसंख्या कम हो रही है।

एक संतान पालिसी का चीन को लाभ मिला है। 1950 से 1980 के बीच चीन के लोगो ने अधिक संख्या में संतान उत्पन्न की थी। माओ जेडांग ने लोगों को अधिक संख्या में संतान पैदा करने को प्रेरित किया था। 1990 के लगभग ये संतान कार्य करने लायक हो गई। परन्तु ये लोग कम संख्या में संतान उत्पन्न कर रहे थे चूँकि एक संतान की पालिसी लागू कर दी गई थी। इनकी ऊर्जा संतानोत्पत्ति के स्थान पर धनोपार्जन करने में लग गई। इस कारण 1990 से 2010 के बीच चीन को आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत की अप्रत्याशित दर पर रही।
2010 के बाद परिस्थिति ने पलटा खाया। 1950 से 1980 के बीच भारी संख्या में जो संतान उत्पन्न हुई थी वे अब वृध्दि होने लगीं। परन्तु 1980 के बाद संतान कम उत्पन्न होने के कारण 2010 के बाद कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने वाले वयस्कों की संख्या घटने लगी। उत्पादन में पूर्व में हो रही वृध्दि में ठहराव गया चूंकि उत्पादन करने वाले लोगों की संख्या घटने लगी। साथ-साथ वृध्दों की सम्हाल का बोझ बढ़ता गया जबकि उस बोझ को वहन करने वाले लोगों की संख्या घटने लगी। वर्तमान में चीन में वृध्दों की संख्या की तुलना में पाँच गुणा कार्यरत वयस्क हैं। अनुमान है कि इस दशक के अंत तक कार्यरत वयस्कों की संख्या केवल दो गुणा रह जाएगी। कई ऐसे परिवार होंगे जिसमें एक कार्यरत व्यक्ति को दो पेरेंट्स और चार ग्रेन्डपेरेन्ट्स की सम्हाल करनी होगी। कई विश्लेषकों का आकलन है कि 2010 के बाद चीन की विकास दर में रही गिरावट का कारण कार्यरत वयस्कों की यह घटती जनसंख्या है। 

स्पष्ट होता है कि जनसंख्या नियंत्रण का लाभ अल्पकालिक होता है। संतान कम उत्पन्न होने पर कुछ दशक तक संतानोत्पत्ति का बोझ घटता है और विकास दर बढ़ती है। परन्तु कुछ समय बाद कार्यरत श्रमिकों की संख्या में गिरावट आती है और उत्पादन घटता है। साथ-साथ वृध्दों का बोझ बढ़ता है और आर्थिक विकास दर घटती है। बहरहाल स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास की कुंजी कार्यरत वयस्कों की संख्या है। इनकी संख्या अधिक होने से आर्थिक विकास में गति आती है। 

जनसंख्या के आर्थिक विकास पर उपरोक्त सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए चीन की सरकार ने एक संतान पालिसी में परिवर्तन किया है। अब तक केवल वे दम्पति दूसरी संतान उत्पन्न कर सकते थे जिनमें पति और पत्नि दोनों ही अपने पेरेन्ट्स के अकेली संतान थे। अब इसमें छूट दी गई है। वे दम्पति भी दूसरी संतान पैदा कर सकेंगे जिनमें पति अथवा पत्नि में कोई एक अपने पेरेन्ट्स की अकेली संतान थी। यह सही दिशा में कदम है। लेकिन बहुत आगे जाने की जरूरत है। चीन समेत भारत को समझना चाहिए कि जनसंख्या सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा। जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों को लागू करने की है जिससे लोगो को रोजगार मिले और वे उत्पादन कर सकें। पर्यावरण पर बढ़ते बोझ को सादा जीवन अपना कर मैनेज करना चाहिए कि जनसंख्या में कटौती करके। 


पुर्नजन्म में विश्वास रखने वालों के लिये जनसंख्या में वृध्दि का विशेष महत्व है। मान लीजिये आप धरती पर जन्म लेना चाहते हैं। यहां गर्भधारण करने वाली महिलाओं की कमी है। तब आपको कुत्ते या सूअर की योनि में जन्म लेना पड़ेगा। जो पुर्नजन्म नहीं मानते हैं उन्हें भी सोचना चाहिए कि गॉड की मर्जी यदि जनसंख्या न्यून रखने की थी तो इतने मनुष्यों को क्यों पैदा किया। हमें बढ़ती जनसंख्या को अभिशाप समझकर अपना सौभाग्य समझना चाहिए और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बने रहना चाहिए।

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