मंगलवार, 11 मार्च 2014

सुरक्षित भंडारण की कमी से खाद्यान्न की बर्बादी

गत सप्ताह हुई बेमौसम बारिश ओलावृष्टि  से देश भर में करोड़ों रुपए की खेतों में खड़ी गेहूं, चना, तुवर, मूंग, तिवरा, सरसों आदि रबी सलों का नकुसान हुआ है। इसके अलावा मिर्ची, आलू, टमाटर, के साथ ही  पपीता तथा बौराए आम की उद्यानिकी सलों के नुकसान के समाचार हैं। चूंकि अभी तक खेतों में खड़ी पकने वाली फसलों की सुरक्षा की कोई तकनीक विकसित नहीं की जा सकी है इसलिए कृषि उत्पादन में होने वाली क्षति को रोक पाना संभव नहीं हो पाता है।  किसान के नुकसान की भरपाई राहत के रूप में केवल मुआवजा देकर की  जाती है। लोकसभा चुनावों को देखते हुए सभी राय सरकारें किसानों को राहत देने  में तत्परता दिखा रही हैं यह इसलिए भी किसान बहुत बड़ा वोट बैंक है। सबसे अधिक राजनैतिक सक्रियता मध्यप्रदेश में राय सरकार ने दिखाई है जहां  मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान केन्द्र सरकार से 5000 करोड़ की तत्काल राहत पैकेज की मांग को लेकर अपने  पूरे  मंत्रिमंडल के साथ एक दिन के लिए धरना-उपवास पर बैठे रहे   गनीमत यह रही कि अन्य रायों के मुख्यमंत्रियों ने मध्यप्रदेश के धरना उपवास का अनुसरण नहीं किया, अन्यथा सारे देश के मुख्यमंत्रीगण धरने पर बैठे रहते। 

दूसरी ओर, इस बेमौसम बारिश के कारण छत्तीसगढ़, ओडिशा कुछ अन्य धान उत्पादक रायों में किसानों से खरीद के बाद सहकारी समितियों एवं धान संग्रहण केन्द्रों में खुले आसमान बोरियों में रखा गया लाखों टन धान पानी में भीगने के कारण खराब होने का समाचार है।  छत्तीसगढ़ में 2013 में  धान की बम्पर सल हुई थी, इसलिए राय सरकार द्वारा सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों से समर्थन मूल्य पर अभी तक की सबसे अधिक 79.68 लाख टन धान खरीदी की गई थी।  हर स्तर पर लचर व्यवस्था के कारण सहकारी समितियों द्वारा खरीदा गया समस्त  धानसंग्रहण केन्द्रों तक नहीं पहुंच पाया तथा चावल मिलों द्वारा धान के उठाव में विलम्ब के कारण धान की बोरियां  बड़ी मात्रा में संग्रहण केन्द्रों में ही खुले आसमान में भीगती रही। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में आज भी 35 लाख टन धान की बोरियां उचित भंडारण के अभाव में खुले में पड़ी हैं

भारत में 2013 में गेहूं की बम्पर सल हुई थी, किन्तु अनेक रायों में गोदामों की कमी के कारण गेहूं  की बोरियां खुले  प्रांगण में  रखी गई थी तथा मानसून की बारिश समय पर होने के कारण किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदा लाखों टन गेहूं खराब हो गया था। यह केवल इसी साल की बात नहीं हैहर साल सुरक्षित भंडारण सुविधाओं के अभाव में लाखों टन खाद्यान्न मौसम तथा बेमौसम बारिश के कारण खराब हो जाता है। पिछले साल ही खाद्यान्न सड़ने की जानकारी सर्वोच्च न्यायालय को मिलने के बाद वह केन्द्र सरकार को टकार लगाते हुए कह चुका है कि अनाज सड़ाने की बजाय उसे जरूरतमन्द लोगों में बांट देना चाहिए

कुल मिलाकर बारिश के पानी से खाद्यान्न खराब होने की समस्या सुरक्षित भंडारण तथा उचित रख रखाव की समस्या है 2012 में किए गए एक अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार भारत में उचित सुरक्षित भंडारण तथा अन्य अधोसंरचना के अभाव में हर साल 210 लाख टन गेहूं बेकार चला जाता है जो आस्ट्रलिया के कुल गेहूं उत्पादन के बराबर है यह दु: की बात है कि  एक ओर तो क्रयशक्ति के अभाव में गरीबों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाता है, तो दूसरी ओर लाखों टन अनाज सड़ जाता है या चूहों की भेंट चढ़ जाता है   भारत में सरकारी क्षेत्र में खाद्य भंडारण क्षमता सदैव ही जरूरत से कम रही है भारतीय खाद्य निगम के पास केवल 340 लाख टन की भंडारण क्षमता है जिसमें इसके प्रांगणों में खुले रखे जाने वाले 35 लाख टन खाद्याान्नों की भंडारण क्षमता भी सम्मिलित है। इस प्रकार इस खुले में रखे जाने वाले 35 लाख टन खाद्यान्न पर सदैव ही ओले बरसाती पानी का खतरा मंडराता रहता है। भारतीय खाद्य निगम के नए गोदामों में 47 लाख टन भंडारण क्षमता तथा पेग योजना के तहत निजी क्षेत्र के गोदामों में 20 लाख टन जुड़ने के बावजूद भंडारण क्षमता में कमी बनी रहने वाली है   

केन्द्र सरकार सुरक्षित खाद्यान्न भंडारण क्षमता की समस्या से भलीभांति परिचित है तथा वह 12वीं योजना में  भंडारण क्षमता में 150 लाख टन वृध्दि का इरादा रखती है। केन्द्र सरकार चाहती है कि भारतीय उद्यमी गोदाम, वेयरहाउस तथा कोल्ड स्टोरेज निर्माण क्षेत्र आगे आने के साथ-साथ इस क्षेत्र में  प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी बढ़े। अभी तक  भंडारण क्षमता के विस्तार क्षेत्र में और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सफ लता हासिल नहीं हो पाई है।  इसके अलावा सरकार ने खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वालों के लिए भी  ग्रामों में  गोदाम निर्माण सहित ग्रामीण अधोसंरचना में अनिवार्य निवेश की शर्त भी रखी है। सरकार चाहती तो बहुत कुछ है, किन्तु उसे अभी तक अपेक्षित सफ लता नहीं मिली है। बड़ी भंडारण क्षमतावाले पक्के गोदामों का निर्माण एक लम्बी प्रयिा है। जबकि अभी तो खरीफ  और रबी दोनो मौसम में बरसात में खुले में भंडारित खाद्यान्न को नुकसान हो रहा है


इस संबंध में एक सुझाव यह भी दिया जाता है कि किसानों खासकर बड़े किसानों को उनके ही परिसर में गोदाम बनाने हेतु प्रोत्साहित करने हेतु उदारता से साख सुविधाएं उपलब्ध करवाना चाहिए। समस्या यह है कि किसान अपने पास कटी सल भंडारण करने की जोखिम उठाने की बजाय  सरकार द्वारा पूर्वघोषित  समर्थन मूल्य पर बेचकर नकदी पाना चाहता है किसान चाहता है कि खेत से खलिहान होते हुए मंडी परिसर तक उसकी उपज सुरक्षित रहे तथा उसे उसकी उपज का उचित मूल्य मिले। भंडारण में यह भी ध्यान रखना जरूरी होता है कि भंडारण अवधि में खाद्यान्न, सब्जियों एवं लों के पोषक तत्वों में कमी आए। इस संबंध में सभी दृष्टि से अल्पकालिक उपाय के रूप में यह बेहतर होगा कि सरकार कम कीमत पर हवारोधी सुरक्षित बड़े आकार के 100 एवं 200 टन क्षमता के पॉलीथीन बोरे किसानों एवं सहकारी समितियों को उपलब्ध करवाए। इससे केवल किसानों को ही नहीं बल्कि सहकारी समितियों को भी नुकसान से बचाया जा सकता है। इससे खाद्य पदार्थो की बर्बादी के रूप में होने वाली राष्ट्रीय क्षति को भी रोका जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुल पेज दृश्य