चुनाव
पैसे से लड़े
जाते हैं। प्रधान
के चुनाव में
पांच लाख, विधायक
के चुनाव में
10 लाख और सांसद
के चुनाव में
5 करोड़ खर्च होना
सामान्य बात हो
गयी है। यह
रकम मुख्यत: काले
धन की होती
है। जब तक
अर्थव्यवस्था में काले
धन का भरपूर
प्रचलन रहेगा तब तक
चुनाव में इसका
प्रभाव भी बना
ही रहेगा। अर्थव्यवस्था
से काले धन
को समाप्त करने
के सब प्रयास
फेल हो चुके
हैं। वर्तमान में
नया प्रस्ताव आया
है कि इनकम
टैक्स, सेल्स टैक्स तथा
एक्साइज डयूटी को पूरी
तरह समाप्त करके
बैंकों के माध्यम
से होने वाले
लेन देन पर
न्यून दर से
ट्रान्सैक्शन टैक्स वसूल किया
जाए। साथ-साथ
100 रुपये तथा इससे
बड़े नोटों को
निरस्त कर दिया
जाए जिससे नगद
में लेन देन
करना कठिन हो
जाए। प्रस्ताव का
आधार है कि
वर्तमान में एक्साइज,
सेल्स टैक्स तथा
इनकम टैक्स का
सम्मिलित भार लगभग
30 प्रतिशत पड़ता है।
इसके स्थान पर
मात्र दो प्रतिशत
की दर से
ट्रान्सैक्शन टैक्स वसूल किया
जाए तो लोग
प्रसन्नतापूर्वक इसे देने
को तैयार हो
जायेंगे।
इस
प्रस्ताव के पीछे
सद्प्रेरणा है। परन्तु
अस्सी के दशक
में अफ्रीकी देश
घाना में लगभग
ऐसा ही हुआ
था। 50 सेटी के
नोट को निरस्त
कर दिया गया
था। 1000 सेटी से
ऊपर के लेनदेन
को बैंक के
माध्यम से करना
अनिवार्य बना दिया
गया था। इन
कदमों की प्रतिक्रिया
में व्यापारियों ने
अपने धन्धे को
बैंक से बाहर
नंबर 2 में करना
शुरू कर दिया
था। हमें यह
स्वीकार करना होगा
कि व्यापारी स्वभाव
से ही टैक्स
की बचत करना
चाहता है। यदि
30 प्रतिशत टैक्स लगता है
तो वह 15 प्रतिशत
देना चाहता है।
यदि 2 प्रतिशत बैंक
ट्रान्सैक्शन टैक्स लगेगा तो
वह 1 प्रतिशत ही
देना चाहेगा। यह
सोचना गलत है
कि दर के
न्यून होने से
व्यापारी टैक्स सहर्ष अदा
करना चाहेगा।
अपने
देश में पहले
हुण्डी की प्रथा
चलती थी। व्यापारी
एक पर्चे पर
लिख कर दे
देता था कि
10,000 रुपये देना स्वीकार
करता हूं। इस
पर्चे का उपयोग
10,000 रुपये के नोट
की तरह होता
था। पर्चा हाथ
बदलता रहता था
जैसे नगद पेमेंट
किया जा रहा
हो। नोट का
आविष्कार भी इसी
प्रकार हुआ था।
लंदन के सुनारों
के पास लोग
सोना चांदी जमा
कराकर हुण्डी लिखवा
लेते थे। समयक्रम
में सुनारों ने
देखा कि उनकी
हुण्डी पर लोगों
का विश्वास जम
गया है। अब
उन्होंने बिना सोना
जमा किए ही
हुण्डियां लिखना चालू कर
दिया। यही
नोट की शुरुआत
थी। ट्रान्सैक्शन
टैक्स के लागू
होने पर लोग
इस प्रकार की
हुण्डियों का सहारा
लेंगे चूंकि बैंक
के माध्यम से
लेन देन करने
पर 2 प्रतिशत टैक्स
कट जायेगा। बिड़ला,
टाटा और प्रेमजी
हुण्डियां लिखेंगे और बिना
बैंक गये लेन
देन सम्पन्न हो
जायेगा। दूसरा उपाय हवाला
का है। किसी
को 10 लाख रुपये
कोलकाता से मुम्बई
भेजना हो तो
कोलकाता के हवालादार
के पास यह
रकम जमा करा
दी जायेगी और
मुम्बई का हवालादार
इतनी ही रकम
को मुम्बई में
उपलब्ध करा देगा।
ट्रान्सैक्शन टैक्स का परिणाम
नंबर 2 के धन्धे
में वृध्दि होगी।
लोग
ट्रकों में भरकर
नगद का लेनदेन
भी कर सकते
हैं। पांच करोड़
अदा करना हो
तो 20 सूटकेसों में
50 रुपये के नोट
भरकर ले जाना
सस्ता पड़ेगा। पांच
करोड़ के लेन
देन पर दो
प्रतिशत की दर
से ट्रान्सैक्शन टैक्स
10 लाख पड़ेगा। इसके सामने
20 सूटकेस को आर्म
गार्ड की सुरक्षा
में भेजने का
खर्च 20 हजार के
लगभग पड़ेगा।
हवाला
और नगद लेन
देन गैरकानूनी होगा।
इसे रोकने के
लिए हमें भारी
भरकम पुलिस फोर्स
लगानी होगी। हर
छोटी दुकान पर
पुलिस तैनात करनी
होगी। जैसे आप
20,000 रुपये का टेलीविजन
खरीदने के लिए
गए चेक से
भुगतान करेंगे तो 400 रुपये
का ट्रान्सैक्शन टैक्स
लगेगा। अत: आप
दुकानदार को नगद
दे देंगे। इस
गैरकानूनी कृत्य को रोकने
के लिए हर
दुकान पर पुलिस
तैनात करनी होगी।
वर्तमान व्यवस्था में फैक्ट्री
से माल बाहर
निकालते समय एक
बार बिल बन
जाने पर उसपर
क्रम से वैट
वसूल होता जाता
है। हर जगह
पुलिस तैनात करने
की जरूरत नहीं
होती है। ट्रान्सैक्शन टैक्स के प्रस्ताव
में टेलीविजन उत्पादन
करने वाली कम्पनी
से एक्साइज डयूटी
हटा ली जायेगी।
कंपनी द्वारा बिी
नगद में की
जा रही है
अथवा बैंक के
माध्यम से यह
निगरानी रखने के
लिए दूसरे इंसपेक्टर
को लगाना होगा।
प्रस्ताव
में एक और
समस्या है। वर्तमान
में एक माल
कई व्यापारियों के
बीच होता हुआ
अन्तिम उपभोक्ता के पास
पहुंचता है। जैसे
कागज बनाने वाली
कम्पनी ने होलसेलर
को एक ट्रक
कागज बेच दिया।
होलसेलर ने इसे
टेम्पो में भरकर
5-6 खुदरा दुकानदारों को बेचा।
इन्होंने 10-20 रीम के
खरीदारों को बेचा।
अर्थ क्रान्ति के
प्रस्ताव में कम्पनी,
होलसेलर और खुदरा
दुकानदार- तीनों को अलग-अलग ट्रान्सैक्शन
टैक्स देना होगा।
इससे बचने के
लिये खुदरा दुकानदार
का प्रयास होगा
कि वह सीधे
कम्पनी से माल
खरीद ले। अथवा
खुदरा दुकानदार द्वारा
दिए गए चेक
को सीधे कम्पनी
के खाते में
जमा कराया जायेगा
जिससे एक बार
ही ट्रान्सैक्शन टैक्स
लगे। इस दांव-पेंच में
व्यापार प्रभावित होगा। व्यापारी
के द्वारा माल
की खरीद, भंडारण
और छंटाई सहज
रूप में नहीं
हो पायेगी और
अर्थव्यवस्था अकुशल हो जायेगी।
बड़े
नोटों को निरस्त
करने से भी
नंबर दो का
धन्धा कम नहीं
होगा। अपने देश
में 1946 एवं 1978 में 100 रुपये
से बड़े नोटों
को निरस्त कर
दिया गया था।
दोनों बार केवल
5-7 प्रतिशत नोटों को वैध
बताते हुए बैंक
में जमा कराया
गया। 95 प्रतिशत नोट धारकों
ने नोटों को
जला दिया और
घाटा खाया। लेकिन
नंबर 2 का धन्धा
बना ही रहा।
लोगों ने 100 रुपये
के नोटों का
भंडारण करना शुरु
कर दिया अथवा
सोना खरीदा। हमें
ट्रान्सैक्शन टैक्स के भटकाव
में नहीं पड़ना
चाहिए। मान कर
चलना चाहिए कि
उपभोक्ता और व्यापारी
टैक्स नहीं देना
चाहता है और
सरकारी कर्मचारी स्वभाव से
ही भ्रष्ट होता
है।
अत:
काला धन अर्थव्यवस्था
में रहेगा और
इसकी राजनीति में
दखल होगी ही।
ट्रान्सैक्शन टैक्स से इस
पर काबू नहीं
पाया जा सकता
है। इसके लिये
आर्थिक पुलिस को सुदृढ़
बनाना चाहिए। वर्तमान
कानूनों को सख्ती
से लागू करने
की जरूरत है।
ध्यान रखना चाहिए
कि काले धन
की समस्या शराब
और सिगरेट के
जैसी है। इस
पर नियंत्रण रखने
के प्रयास के
साथ-साथ सच्ची
राजनीति को प्रोत्साहन
देने की जरूरत
है। कागज पर
बनी एक लाइन
के बगल में
दूसरी लम्बी लाइन
खींच देने से
वह छोटी हो
जाती है।
आज
समस्या है कि
लोकप्रिय और ईमानदार
व्यक्ति चुनाव लड़ने का
साहस नहीं करते
हैं। 'आप' ने
इस दिशा में
नई परम्परा को
स्थापित करने का
प्रयास किया है
जो सराहनीय है।
इस प्रयास को
सहारा देने की
जरूरत है। वर्तमान
में धन से
कमजोर लेकिन ईमानदार
व्यक्ति चुनाव लड़ने का
साहस नहीं करते
हैं। इन्हें
चुनाव लड़ने के
लिए सरकारी खजाने
से धन देना
चाहिए। जैसे व्यवस्था
की जा सकती
है कि हासिल
किए गए वोटों
पर 10 रुपये प्रति
वोट की दर
से प्रत्याशी को
धन दिया जायेगा।
ऐसा करने से
स्वतंत्र प्रत्याशियों की संख्या
बढ़ेगी और और
वर्तमान धन के
बल पर चुनाव
जीतने की प्रथा
पर चोट पहुंचेगी।
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