मंगलवार, 25 मार्च 2014

श्रीलंका के प्रस्ताव पर होने वाले मतदान का समर्थन करें

मार्च  संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से यह स्पष्ट करने को कहा जाएगा कि वह श्रीलंका के प्रस्ताव पर क्या रुख रखता है। वह प्रस्ताव श्रीलंका युध्द के दौरान दोनों पक्षों द्वारा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानवीय कानूनों के तथाकथित उल्लंघन की जांच के लिए एक अंतरराष्ट्रीय प्रणाली की स्थापना हेतु संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त की अपील का समर्थन करता है। इस प्रस्ताव से श्रीलंका सरकार को मानवाधिकार से जुड़े सरोकारों, एक राजनैतिक निपटारे की दिशा में प्रगति तथा सभी श्रीलंकाई नागरिकों के लिए सहायता के बारे में प्रश्न पूछे जाने की उम्मीद है।

सबसे पहले, बिना जिम्मेदारी सुनिश्चित किए श्रीलंका के लिए दीर्घकालिक शांति स्थापना कठिन होगा। सच्चाई तथा न्याय का पालन करते हुए ये देश समझौता के सही मार्ग पर बढ़ेंगे। सिएरा लिओन इसका अच्छा उदाहरण है।  स्पेशल कोर्ट के अभियोजन ने सिएरा लियोन के इतिहास में उथल-पुथल वाले दौर में एक निश्चित रेखा खींची, तथा उपचार को प्रोत्साहित करने के संदर्भ में पीड़ित की आवश्यकता के प्रत्युत्तर में दंडमुक्ति का समाधान किया। श्रीलंका के लोग यह समझना चाह रहे हैं कि रक्तपात के दौरान जो कुछ हुआ उसका उत्तर उन्हें जरूर मिलना चाहिए और दीर्घकालीन तथा दु:खद युध्द के घावों को भरने के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा मिलनी चाहिए।

दूसरे, स्वतंत्र और निष्पक्ष घरेलू जांच की दो बार की मांगों और हाई कमीशन फॉर ह्यूमन राइट के कार्यालय से तकनीकी सहायता देने के प्रस्तावों के बावजूद श्रीलंका सरकार कोई भी कार्रवाई करने में विफल रही। 2010 में स्थापित श्रीलंका का अपना घरेलू लेसंस लर्नड एंड और रिफॉन्सिलेशन कमीशन इस मामले को प्रभावी रूप से सुलझाने में नाकाम रही। यदि ऐसा होता और यदि श्रीलंका कोई ठोस प्रगति कर रहा होता तो हम वहां नहीं होते जहां आज हैं। अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की मांग के बदले, हम अतीत में नियमों के उल्लंघन के समाधान के लिए श्रीलंका के अपने प्रयासों के लिए उसे बधाई देते।

तीसरे, एक अंतरराष्ट्रीय क्रियाविधि की स्थापना के लिए ह्यूमन राइट्स के यूएन हाई कमीश्नर द्वारा अंतरराष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया जा रहा है। उन्हें समर्थन में शांति के प्रभावशाली अग्रदूत आर्कविशप डेसमंड टुटु तथा श्रीलंकाई समाज और मुख्य तमिल पार्टी, तमिल नेशनल अलायंस सहित कई सारे स्वतंत्र स्वर उठे हैं। इस मांग के समर्थन में विभिन्न एनजीओ और पत्रकारों के जरिए एकत्रित बाध्यकारी प्रमाण भी उपलब्ध हैं।

चौथे, इस बात में कोई संदेह नहीं कि युध्द के दौरान नियमों के उल्लंघन और अपराध से दंडमुक्ति की सिथति को बदलकर श्रीलंका में कानून-व्यवस्था को सबल बनाया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा यह जोरदार संदेश स्पष्ट रूप से दिया जाना चाहिए कि सुरक्षित महसूस करना हर व्यक्ति का अधिकार है और कानून से ऊपर कोई व्यक्ति नहीं।

जो लोग इस प्रस्ताव के विरोध में तर्क देते हैं वे कहते हैं कि- श्रीलंका की घरेलू प्रक्रियाओं को समय चाहिए, कि सर्वोत्तम समाधान श्रीलंका के अंदर ही ढूंढा जाना चाहिए, कि हमें श्रीलंका की आलोचना करने की बजाय उसे वार्ता में शामिल करना चाहिए और यह कि श्रीलंकाई सरकार को तमिल टाइगर (लिट्टे) के आतंकवाद को वापस आने से रोकने के लिए कदम उठाने का पूरा-पूरा अधिकार है।
     
बेशक, इन बातों में यादातर सही हैं। युध्द के घावों को भरने के लिए पर्याप्त समय चाहिए। समग्र, स्वतंत्र और पारदर्शी घरेलू समाधान अत्यंत प्रभावी हो सकते हैं। ह्यूमन राइट काउंसिल के जरिए की जाने वाली रचनात्मक वार्ता जरूरी है। और कोई नहीं चाहता कि आतंकवाद दुबारा सिर उठाए।    लेकिन इसके लिए अधिक समय की जरूरत नहीं है, बल्कि यह श्रीलंकाई सरकार है जो सत्य जानने को इच्छुक लोगों को एक पारदर्शी, समग्र और विश्वसनीय प्रक्रिया के जरिए सत्य प्रस्तुत करने को लेकर राजनैतिक इच्छाशक्ति नहीं दर्शाती। श्रीलंका जिम्मेदारी तय करने के अपने उस वायदे को पूरा करने में असफल रहा है जो उसके 2009 में सं.रा. महासचिव के साथ एक संयुक्त बयान में किया था।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी है कि वह श्रीलंका को एक राष्ट्र के रूप में मजबूत करने वाले मुद्दों को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करे। पुनर्निर्माण महत्वपूर्ण है लेकिन श्रीलंका के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए केवल यही काफी नहीं। आवश्यकता है राजनैतिक समाधान, जवाबदेही, मानव अधिकार और सुलह की दिशा में सार्थक प्रयास करने की।
  
आतंकवाद के खिलाफ होने वाली लड़ाई में एक सजग संतुलन की जरूरत होती है ब्रिटेन में हम इस बात को समझते हैं और श्रीलंका के उन सभी लोगों के प्रति सहानुभूति रखते हैं जिन्होंने निर्दयी तमिल टाइगर्स के अत्याचारों को झेला है। उनकी हार का किसी को खेद नहीं। किंतु, किसी भी यकीनी आतंकवादी खतरे के प्रति अनुक्रिया को अतिवाद की वाला को भड़काने से रोकने के प्रयासों का समानुपाती होनी चाहिए। इसका अर्थ है समावेशी सरकार, अल्पसंख्यक अधिकारों, यौन एवं अन्य दर्ुव्यवहारों पर प्रतिबंध का सुनिश्चयन तथा सबसे लिए न्याय सुनिश्चित करना और यही कारण है कि हमें श्रीलंका को इस हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह सभी श्रीलंकाई नागरिकों में इन मूल्यों का समावेश करे।
    
ब्रिटिश सरकार ने इनमें से कई मुद्दे पिछले साल श्रीलंका में आयोजित राष्ट्रमंडल देशों के प्रमुखों की बैठक में श्रीलंका सरकार के साथ वार्ता में उठाए हैं जिसमें राष्ट्रपति राजपक्षे भी शामिल थे।
  

मानवाधिकार (ह्यूमन राइट) काउंसिल के देशों के लिए अब वह समय गया है कि वे एकजुट हों और इस महीने जिनेवा में श्रीलंका प्रस्ताव पर होने वाले मतदान का मजबूती से समर्थन करें। इससे केवल अंतरराष्ट्रीय नियमों के अतीत में हुए उल्लंघन पर कार्रवाई करने के एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था कायम की जा सकेगी, बल्कि श्रीलंका के सभी निवासियों के बेहतर भविष्य के लिए भी प्रयास किया जाएगा।  हमें श्रीलंका के लिए हर संभव सही प्रयास करने होंगे।

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