महिला
एवं बाल विकास मंत्रालय महिलाओं एवं बच्चों से संबंधित सभी मामलों का नोडल
मंत्रालय है। मंत्रालय सामाजिक क्षेत्र के मामलों से जुडे अपने दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण
बदलाव की दिशा में बढ रहा है जिसमें पहले कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया जाता था, लेकिन अब
विशेषकर हाशिए पर रहने वालों के संपूर्ण सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जा रहा है1
मंत्रालय की ओर से महिलाओं, किशोरियों और समाज के सभी वर्गों के बच्चों
के सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जाता रहेगा। मंत्रालय ने पिछले चार वर्षों में कई
महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं।
महत्वपूर्ण
कानून
मंत्रालय
ने कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन प्रताडना (रोकथाम, प्रतिषेध
एवं निवारण) अधिनियम 2013 को मूर्त रूप
प्रदान किया है। यह ऐतिहासिक कानून है क्योंकि देश में इससे पहले कार्यस्थल पर
होने वाले यौन उत्पीडन से निपटने के लिए कोई ऐसा कानून नहीं था। इस कानून के
दायरे में सभी महिलाएं आती हैं चाहे वह किसी भी उम्र की हों और किसी भी निजी या
सार्वजनिक कार्यस्थल में कार्यरत हों तथा घरेलू सहायक और असंगठित एवं अनौपचारिक
सहित किसी भी कार्य में संलग्न हों। इस कानून के दायरे में ग्राहक एवं उपभोक्ता
भी आते हैं। नये कानून के दायरे में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, संगठित
और असंगठित क्षेत्र के विभाग, कार्यालय, शाखा, ईकाई, तथा अस्पतालों, नर्सिंग
होम्स, शैक्षिक संस्थाओं, खेल संस्थानों, स्टेडियम्स, खेल
परिसरों, सहित ऐसे सभी स्थलों को शामिल किया गया
है, जहां अपने काम के सिलसिले में कर्मचारी को जाना पड़ता है। इसमें
परिवहन के साधन भी शामिल हैं। इस कानून को लागू करने के लिए नियमों का निर्धारण
किया जा रहा है।
बच्चों
से दुर्व्यवहार की बढती घटनाओं के मद्देनजर मंत्रालय ने एक विशेष कानून- यौन उत्पीडन से बच्चों का संरक्षण
अधिनियम, 2012 बनाया है। यह कानून 14 नवम्बर
2012 से लागू हो गया। यह कानून कडे दंड के माध्यम से बच्चों को यौन शोषण, यौन उत्पीडन
और पोर्नोग्राफी सहित कई तरह के अपराधों से संरक्षण मुहैया कराता है। यह कानून
विशेष न्यायालयों को ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई, न्यायालयों
में बच्चों के अनुरूप प्रक्रियाएं और ऐसे मामलों की पुलिस या उचित प्राधिकरण को
सूचना न देने तथा उकसाने और झूठी शिकायत झूठी सूचना देने वालों के लिए दंड का
अधिदेश देता है।
इसके
अलावा, मंत्रालय ने कुष्ठ रोग, तपेदिक, हेपेटाइटस-बी
आदि जैसी बीमारियों से पीडित बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव को मिटाने के लिए
वर्ष 2011 में किशोर न्याय (देखभाल एवं बाल
संरक्षण) अधिनियम 2000 का संशोधन किया। इस बारे में 08 सितम्बर
2011 को अधिसूचना जारी की गई। महिलाओं का अशोभनीय चित्रण (प्रतिषेध)
संशोधन विधेयक 2012 राज्य सभा में पेश किया गया है। राज्य
सभा ने इस विधेयक को विचार के लिए विभाग से संबंधित संसदीय स्थाई समिति के पास
भेज दिया है। इसके अलावा दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के लिए
कैबिनेट का नोट टिप्पणियों के लिए संबंधित मंत्रालयों को भेजा गया है।
महिलाओं
के लिए योजनाएं
मंत्रालय
ने नवम्बर 2010 में राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना
(आरजीएसईएजी)-‘सबला’ योजना
शुरू की। योजना का उद्देश्य 11 से 18 वर्ष तक
की लड़कियों के पोषण तथा स्वास्थ्य में सुधार लाना तथा स्वास्थ्य, शिक्षा, आंगनवाडी
केंद्रों में व्यवसायिक प्रशिक्षण, परामर्श और मार्गदर्शन उपलब्ध कराते हुए
शिक्षण और सार्वजनिक सेवाओं तक उनकी पहुंच सुगम बनाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना
है । ‘सबला’ इस समय
देशभर के दो सौ पांच जिलों में चलाई जा रही है। वर्ष 2012-13 के
दौरान (31-12-2012 तक) इस योजना
से 88.76 लाख किशोरियों को
फायदा पहुंचा है।
सरकार ने
‘उज्जवला’ नामक व्यापक योजना शुरू की है जो एक ओर
तस्करी की रोकथाम करती है वहीं दूसरी ओर ऐसी महिलाओं के पुनर्वास और उन्हें समाज
से दोबारा जोड़ती है। इस योजना के पांच विशिष्ट भाग हैं- इनमें रोकथाम, पीड़िताओं को शोषण के अड्डों से मुक्त
कराना, उनका पुनर्वास, समाज की
मुख्यधारा से दोबारा जोडना तथा तस्करी की शिकार महिलाओं को उनके घर वापस भेजना
शामिल हैं। यह योजना मुख्य रूप से गैर सरकारी संगठनों की ओर से लागू की जा रही
है। वर्ष 2012-13 में इसके लिए 73
परियोजनाओं को मंजूरी दी गई और 7.39 करोड रूपये जारी
किए गए।
नियमबद्ध
नकदी हस्तांतरण योजना 'इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना' के तहत
वर्ष 2012-13 के दौरान 4.69 लाख
गर्भवती महिलाओं तथा बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को लाभ पहुंचाया गया। यह
योजना प्रायोगिक आधार पर 53 चुनिंदा जिलों में आईसीडीएस मंच का इस्तेमाल
करते हुए लागू की गई थी। इस योजना के तहत
गर्भावस्था तथा बच्चों को दूध पिलाने की अवस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं तथा
बच्चों को दूध पिलाने वाली माताओं को कुछ विशिष्ट शर्ते पूरी करने पर नकदी सहायता
मुहैया कराने की परिकल्पना की गई है। यह योजना दीर्घकालिक व्यवहार एवं सोच में
बदलाव लाने के उद्देश्य के साथ लघु अवधि आमदनी सहायता उपलब्ध कराती है। इस योजना
को सरकार की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना में शामिल किया गया है।
स्वाधार
योजना के तहत, मुश्किल हालात में फंसी असहाय महिलाओं को गृह आधारित संपूर्ण एवं एकीकृत
दृष्टिकोण के माध्यम से सहायता पहुंचाई जाती है। इस योजना के तहत मुश्किल
परिस्थितियों में फंसी महिलाओं का पुनर्वास करने के लिए उन्हें आसरा, भोजन, कपड़े, परामर्श, प्रशिक्षण, चिकित्सीय
एवं कानूनी सहायता दी जाती है। वर्ष 2009-13 में इस योजना के
लिए 2363.15 लाख रूपये जारी किए गए हैं। मंत्रालय ने महिलाओं को प्रशिक्षित करने
और उनके कौशल में सुधार लाने के लिए तथा चिह्नित क्षेत्रों में परियोजना के आधार
पर रोजगार मुहैया कराने के लिए उन्हें प्रशिक्षण एवं रोजगार कार्यक्रम सहायता
(एसटीईपी) योजना शुरू की है। वर्ष 2009-13 के दौरान इस योजना
से 30,481 महिलाएं लाभान्वित हुई।
मंत्रालय
ने चालू वित्त वर्ष के दौरान ‘’वन स्टॉप क्राइसिस सेंटर फॉर वुमन’’ (ओएससीसी)
नामक नई योजना शुरू करने का प्रस्ताव पेश किया है। यह योजना संकट से घिरी महिलाओं
को फौरन राहत पहुंचाने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत पूरी करेगी। इस योजना
को प्रायोगिक आधार पर शुरूआत में 100 जिलों में लागू
करने का प्रस्ताव रखा गया है। इसके अलावा महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों और
योजनाओं के समन्वयन के लिए प्रायोगिक
परियोजनाएं पाली (राजस्थान) और कामरूप (असम) में शुरू की गई हैं। महिला संसाधन
केंद्र या पूर्ण शक्ति केंद्र (पीएसके) महिलाओं को सेवाएं प्रदान करने वाला वन स्टॉप
सेंटर है। ऐसे केंद्र 150 ग्राम पंचायतों में
खोले गये हैं। प्रत्येक पीएसके में मिशन
की ओर से दो महिला ग्राम समन्वयक नियुक्त किए गए हैं। ये महिला ग्राम समन्वयक
ग्राम पंचायत में महिलाओं को प्रेरित करते हैं और विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण
देने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
बच्चों
के लिए योजनाएं
भारत
सरकार के प्रमुख कार्यक्रमों में से एक समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) योजना को
सशक्त बनाया गया है तथा इसका पुनर्गठन किया गया है। यह योजना बच्चों की शुरूआती
देखभाल और विकास से जुडे दुनिया के सबसे बड़े और अनोखे कार्यक्रम का प्रतिनिधित्व
करती है। सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 1,23,580 करोड़
रूपयों के बजट का आवंटन किया। पुनर्गठित
और सशक्त आईसीडीएस तीन चरणों में लागू की जायेगी। इसके पहले साल में (वर्ष 2012-13)
में अत्यधिक बोझ वाले 200 जिलों को शामिल
किया जायेगा। इनमें उत्तर प्रदेश के 41 जिले शामिल होंगे। दूसरे साल (वर्ष 2013-14) में 200 अतिरिक्त
जिले जोड़े जायेंगे जिनमें विशेष श्रेणी वाले राज्यों और पूर्वोत्तर क्षेत्र के
जिले शामिल होंगे। तीसरे साल (वर्ष 2014-15) के दौरान बचे हुए
जिलों को जोडा जायेगा।
पुनर्गठित
आईसीडीएस योजना के अधीन आंगनवाडी अब स्वास्थ्य, पोषण और
महिलाओं एवं बच्चों के शुरूआती शिक्षण के लिए प्रथम ग्राम आउटपोस्ट होगी, 2 लाख
आंगनवाडियों को पक्की इमारतें मिलेंगी। इन्हें बनवाने के लिए इनमें से प्रत्येक
आंगनवाडी को साढे चार लाख रूपये दिए जायेंगे और 70 हजार
आंगनवाडियों या पांच प्रतिशत मौजूदा आंगनवाडियो में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र दोनों
जगह कामकाजी माताओं के लाभ के लिए क्रेच की सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी। पूरक आहार
के लिए भी अब बच्चों के लिए (6-72 महीने) चार रूपये
की जगह छह रूपये दिए जायेंगे, बेहद कम वज़न वाले बच्चों को 6 रूपये
की जगह 9 रूपये तथा गर्भवती और दूध पिलाने वाली
माताओं को 5 रूपये की जगह 7 रूपये
दिए जायेंगे।
समेकित
बाल संरक्षण योजना (आईसीपीएस) के तहत मंत्रालय मुश्किल परिस्थितियो से घिरे तथा
अन्य असहाय बच्चों को सरकार-सामाजिक संगठनों की भागीदारी के माध्यम से सुरक्षित
वातावरण उपलब्ध कराता है। इस योजना के
तहत बच्चों की सुरक्षा के लिए पहले से मौजूद मंत्रालय की योजनाओं को एक व्यापक
योजना के दायरे में लाया गया है और इसमें बच्चों की हिफाजत करने और उन्हें
नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए कई अन्य कदम उठाये गए हैं। बाल कल्याण समिति
(सीडब्ल्यूसी) और किशारे न्याय बोर्ड (जेजेबी) जैसी वैधानिक संस्थायें क्रमश: 619 और 608 जिलों
में काम कर रही हैं और विविध प्रकार के 1195 गृह वित्तीय
सहायता उपलब्ध करा रहे हैं। आपात स्थिति में बच्चों की देखभाल और संरक्षण के लिए
‘चाइल्ड लाइन’ सेवा चलाई जा रही है। यह सेवा चौबीस घंटे
की फोन हेल्पलाइन (1098) के माध्यम से चलाई जा रही है। इसका दायरा
बढाते हुए इसमें देश के 274 शहरों/जिलों को शामिल किया गया है। आईसीपीएस के कार्यान्वयन
से पहले इसके दायरे में 83 शहर आते थे।
इस
कार्यक्रमों और योजनाओं के अलावा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय देश के बहुत से
हिस्सों में घटते बाल लिंगानुपात से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना का
निरूपण कर रहा है। इसके लिए विभिन्न हितधारकों के ज्ञान और विचार शामिल करने के
साथ-साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया है। बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए
राजीव गांधी राष्ट्रीय क्रेच योजना का भी पुनर्गठन किया जा रहा है।
(पीआईबी
फीचर)
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