आत्महत्या
के प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर रखने के इरादे से सरकार ने संसद में अति महत्वपूर्ण
'मानसिक स्वास्थ्य देखरेख -2013 पेश किया है।
सरकार ने भारतीय दंड संहिता में आत्महत्या के प्रयास के अपराध को इसके दायरे से
बाहर करने के लिये पहली बार इस तरह का साहसी कदम उठाया है।
करीब
डेढ़ सदी पुरानी भारतीय दंड संहिता से आत्महत्या के प्रयास के अपराध से संबंधित
धारा 309 को हटाने के लिये प्रयास लंबे समय से हो रहे हैं। इस बारे में विधि
आयोग ने 1971 से 2008 के दौरान अपनी
कई रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश भी की। एक अवसर पर तो इस धारा को खत्म करने के
लिये 1978 में राज्यसभा में एक विधेयक पारित भी कर दिया था, लेकिन
इसी दौरान लोकसभा भंग हो जाने के कारण दूसरे सदन से इसे पारित नहीं कराया जा सका।
अब ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में यह प्रावधान कानून की किताब से हट जायेगा।
मानसिक
स्वास्थ्य देखरेख विधेयक 2013 कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है।
एक और विधेयक में आत्महत्या के कृत्य को अपराध के दायरे से अलग करके इसे आत्महत्या
का प्रयास करने वाले वयक्ति के मानसिक स्वास्थ्य से जोड़ा गया है और दूसरी ओर
इसमें ऐसी अवस्था से जूझ रहे व्यक्ति के उपचार के उपायों का प्रावधन किया गया
है। यह पहला अवसर है कि जब केन्द्र सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य कानून में निजता
के अधिकार से लेकर गरिमा से जीने के मानसिक रूप से रुग्ण व्यक्तियों के अधिकार
को रेखांकित किया है।
इस
विधेयक की धारा 124 के अनुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के
प्रावधान से इतर यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है तो यही माना
जायेगा कि वह संबंधित समय में मानसिक रुग्णता से ग्रस्त था और उसका यह कृत्य
धारा 309 के तहत दंडनीय नहीं होगा। इस विधेयक में स्पष्ट किया गया है कि
आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति का यह कृत्य और उसके मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को अलग
नहीं किया जा सकता है और दोनों को अलग अलग देखने की बजाये इन पर एक साथ ही गौर
करना होगा।
देश
में आत्महत्या और आत्महत्या के प्रयासों की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर उच्चतम
न्यायालय के फैसलों और विधि आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्वास्थ्य एवं
परिवार कल्याण मंत्रालय के मानसिक स्वास्थ्य देखरेख विधेयक में आत्महत्या के
प्रयास को अपराध के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान निश्चित ही सराहनीय है।
आत्महत्या
के प्रयास से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को लेकर लंबे
समय से चर्चा चल रही है। इसी कडी में मार्च 2011 में उच्चतम न्यायाल्य
ने भी आत्महत्या के प्रयास को अपराध के दायरे से हटाने और इसके लिये भारतीय दंड
संहिता में प्रदत्त सज़ा का प्रावधान खत्म करने का सुझाव दिया था।
न्यायमूर्ति
मार्कण्डेय काटजू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा था कि हालांकि 1996 की
एक व्यवस्था में संविधान पीठ ने धारा 309 का सांविधानिक रूप से वैध ठहराया है
लेकिन अब उनकी राय है कि इस पुरातन प्रावधान को संसद को कानून की किताब से निकाल
देना चाहिए। न्यायालय ने ससंद से इस प्रावधान को खत्म करने की भी सिफारिश की थी।
न्यायालय
का मत था कि अवसाद की स्थिति में ही कोई व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है,
इसलिए
ऐसे व्यक्ति को सज़ा देने की बजाये उसकी मदद की जरूरत है।
इस
संबंध में यह भी महत्वपूर्ण है कि विधि आयोग ने भी 17 अक्तूबर 2008 को
सरकार को सौंपी अपनी 210वीं रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को
कानून में बनाये रखने के लिये आयोग द्वारा 1997 में पेश
रिपोर्ट से असहमति व्यक्त करते हुए इस पुराने प्रावधान को खत्म करने के लिये
उचित कदम उठाने की सिफारिश की थी।
आयोग
ने धारा 309 के बारे में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या
के प्रयास को मानसिक बीमारी के रूप में देखते हुये इसक लिये सज़ा देने की बजाये
इसके उपचार पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
विश्व
संगठन, आत्महत्या की रोकथाम के लिये अंतरराष्ट्रीय संगठन, यूरोप
और उत्तरी अमरीका के देशों में इसे अपराध के दायरे से बाहर रखने जैसे तथ्यों के
मद्देनजर ही विधि आयोग ने आत्महत्या के प्रयास से संबंधित धारा 309
खत्म करने के लिये कदम उठाने की सिफारिश की थी। आयोग के मुताबिक पाकिस्तान,
बांग्लादेश्,
मलेशिया, सिंगापुर और भारत ही ऐसे चुनिंदा देश हैं जहां एक अवांछित कानूनी
प्रावधान अभी भी है।
आत्महत्या
का प्रयास करने के अपराध में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में एक साल तक
की कैद और जुर्माने का प्रावधान है जबकि आत्महत्या के लिये प्रेरित करने या
मजबूर करने का सवाल है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 306 में इस अपराध
के लिये दस साल तक की कैद और जुर्माने की सज़ा का प्रावधान है।
आत्महत्या
की घटनाओं पर अगर नजर डालें तो पता चलता है कि 2012 में 1,10,417 व्यक्तियों
ने आत्महत्या की थी जबकि 2011 में 1,35,445 ने आत्महत्या
की थी। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश में 2002 से
ही हर साल आत्महत्या करने वालों की संख्या एक लाख से अधिक रही है। रोजाना औसतन 371 व्यक्ति
आत्महत्या करते हैं। निश्चित ही आत्महत्या का प्रयास करने वालों की संख्या भी
कुछ कम नहीं होगी।
स्वास्थ्य
एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में पेश इस विधेयक में मानसिक
रूगणता से ग्रस्त व्यक्तियो के लिये मानसिक स्वास्थ्य देखरेख और सेवाएं
प्रदान करने के साथ ही इस दौरान ऐसे व्यक्तियों को संरक्षण और उनके अधिकारों की
रक्षा करने का प्रावधान किया गया है।
चूंकि
इस विधेयक के माध्यम से भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में भी संशोधन
होगा तेा इसके लिये कानून मंत्रालय दंड कानून में अलग से संशोधन पेश करेगा। यह
विधेयक पारित होने के और राष्ट्रपति की संस्तुति मिलने के बाद मानसिक स्वास्थ्य
कानून, 1987 का स्थान लेगा। विधेयक में मानसिक रूग्णता
से ग्रस्त व्यक्तियों के उपचार, उनकी देखरेख और उनका उपचार करने वाले
केन्द्रों के बारे में भी व्यापक प्रावधान किये गये हैं।
विधेयक
में मानसिक रूग्णता के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के नियमन और उन पर नियंत्रण
के लिए केन्द्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य मानसिक स्वास्थ्य
प्राधिकरण के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा आयोग के गठन का प्रावधान है। यह
विधेयक अशक्त व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र कंवेनशन की
संपुष्टि करता है। इस कंवेनशन पर एक अक्तूबर, 2007 को हस्ताक्षर
किये गये थे और यह 3 मई, 2008 से लागू है।
उम्मीद
की जानी चाहिए कि यह विधेयक जब कानून का रूप ले लेगा तो देश में आत्महत्या का प्रयास करने वालों
की मानसिक स्थिति के उपचार के लिये बेहतर प्रयास होंगे और यह ऐसे व्यक्तियों को
इस तरह का कदम उठाने के प्रति हतोत्साहित करने में मददगार होगा।
pib
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