केंद्रीय
समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई), कोच्चि ने हाल
ही में 19.5 मीटर लंबा मत्स्य अनुसंधान पोत एफ.वी. सिल्वर
पोमपानो खरीदा है। यह खरीद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान परिषद की परियोजना
राष्ट्रीय जलवायु अनुकूल कृषि पहल के अंग के रूप में की गई है। यह पोत भारतीय
जलक्षेत्र में मत्स्य संबंधी अनुसंधान कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पोत का
निर्माण गोवा शिपयार्ड लि. ने किया है और इस पर कीब 4.75 करोड़ रुपये की
लागत आई है।
इस
पोत पर 4 स्ट्रॉक वोल्वो पेन्टा मेक 500 एचपी / 1800
अरपीएम मरीन इंजन लगा है। जहाज की मुख्य डेक में वैज्ञानिकों और चालक दल के लिए
केबिन, वेट लेबोरेट्री, मौसम केंद्र, गैली, मेस
रूम और शौचालय बना है। हाइड्रोलिक रूप से संचालित ट्रॉल में 1000
मीटर लंबा, 12 मिमी व्यास का इस्पात का तार प्रत्येक ड्रम
में लगा है। यह 0 से 40 मीटर प्रति मिनट की गति से चलता है जो
मुख्य इंजन से हाइड्रॉलिक पॉवर खींचता है।
यह
पोत प्रायोगिक ट्रॉल फिशिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा जिसमें सागर की तली और
पानी के बीच में ट्रॉलिंग शामिल होगी। इसमें इसाक-किड मिल्ड-वाटर ट्रॉल सिस्टम का
इस्तेमाल किया जाएगा। मछली का संग्रह और नमूने लेने का कार्य समुद्र वैज्ञानिक
मानदंडों के अनुरूप किया जाएगा। इस जहाज में अंडरवे सीटीडी सैम्पलर, डॉप्लर
करंट मीटर, क्लोरोफिल मापने के लिए उपकरण, जूप्लांकटन,
टीएसएस
और सेडीमेंट सैम्पलिंग के लिए उपकरण लगे हैं। प्रारंभिक विश्लेषण और अन्य विश्लेषण
के लिए नमूने नियत करने के लिए जहाज पर ही प्रयोगशाला है। वर्षा, आर्द्रता
जैसे वायुमण्डलीय मानदंड जुटाने के लिए ऑटोमैटिक मौसम केंद्र है।
जहाज
पर जीवन रक्षक सभी उपकरण (एलएसए) लगाए गए हैं। आग बुझाने के लिए अग्निरोधी उपकरण
और होज भी उपलब्ध कराए गए हैं। जहाजरानी महानिदेशक ने जहाज पर लगे नॉटिकल, रेडियो
और मछलियों की तलाश करने के उपकरणों का अनुमोदन किया है।
दुनिया
भर के समुद्र फिलहाल जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं और समुद्र पर सागरीय धाराओं,
हवाओं
और वर्षा पर असर पड़ने की आशंका है। पिछले 45 वर्ष में
भारतीय सागर तट पर समुद्र की सतह का तापमान 0.2 से 0.3
डिग्री सेलशियस बढ़ गया है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने और उसके कारण जलवायु के प्रारूप
में परिवर्तन के मछलियों पर गंभीर असर पड़ेंगे। इससे आबादी की भोजन एवं आजीविका
सुरक्षा भी प्रभावित होगी। जलवायु परिवर्तन के समुद्री और ताजे पानी की मछलियों के
वितरण, प्रचुरता और फेनोलाजी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है।
जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने की रणनीतियां विकसित करने के लिए इस असर का
आकलन करना महत्वपूर्ण है।
राष्ट्रीय
जलवायु अनुकूल कृषि पहल परियोजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने शुरू की है। यह
फसलों, पशुधन एवं मत्स्य सहित भारतीय कृषि को जलवायु में अंतर और जलवायु
परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए प्रमुख कार्यक्रम के रूप में चलाया जा रहा है। 350
करोड़ रुपये के आवंटन के साथ 11वीं पंच वर्षीय योजना में यह परियोजना
शुरू की गई थी तथा 12वीं योजना में भी जारी है। केंद्रीय मत्स्य
अनुसंधान संस्थान इस परियोजना के रणनीतिक अनुसंधान घटक का मुख्य संस्थान है।
भारतीय मत्स्य पर जलवायु संबंधी अध्ययन के लिए यह नोडल एजेंसी भी है। पानी के गरम
होने और समुद्र का जलस्तर बढ़ने से मछली और मछुआरों पर बहुत असर पड़ने की आशंका है।
इसलिए इस क्षेत्र में व्यापक आकलन और विश्लेषण अनिवार्य है। भारतीय समुद्र क्षेत्र
में मछलियों के वितरण और भोजन की उपलब्धता पर जलवायु एवं समुद्रीजलवायु के बीच संबंध
का अध्ययन करने के लिए सीएमएफआरआई कोच्चि ने इस जहाज की खरीद की है।
इस
परियोजना के नेतृत्व मुख्य वैज्ञानिक और डेमरसल फिशरीज डिविजन के प्रमुख डॉ. पी.
यू. ज़ैचरिया कर रहे हैं। इसमें सीएमएफआरआई के विभिन्न केंद्रों पर 44
वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त परियोजना में 23 शोधार्थी भी
शामिल हैं। इस कार्य में पेलेजिक, डेमरसल, क्रस्टेसियन्स
और मॉल्युस्कन प्रजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाली 10 चुनिंदा नस्लों
के वितरण, प्रचुरता और स्पॉनिंग व्यवहार पर जलवायु परिवर्तन के असर का पता
लगाना शामिल है।
(पीआईबी
फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें