रविवार, 11 अगस्त 2013

खाद्य सुरक्षा व भंडारण की समस्या

भारत में सरकारी क्षेत्र में खाद्य भंडारण क्षमता सदैव ही जरूरत से कम रही है।  भारतीय खाद्य निगम के पास केवल 340 लाख खाद्याान्न की भंडारण क्षमता है, जिसमें केन्द्र व राय वेयर हाउसिंग निगमों तथा  निजी क्षेत्र से किराए पर लिए गए गोदामों की भंडारण क्षमता भी शामिल है । भारतीय खाद्य निगम के भंडारण क्षमता में इसके परिसरों में खुले  में  रखे जाने वाले 35 लाख टन खाद्यान्नों की भंडारण क्षमता भी सम्मिलित है। भारतीय खाद्य निगम के पास सेन्ट्रल पूल में 1 मई 2013 को गेहूं, चावल तथा अन्य खाद्यान्नों का कुल मिलाकर को 628 लाख टन स्टॉक था। इस साल अच्छी फसल तथा खरीद की सम्भावनाओं को देखते हुए 800 लाख टन स्टॉक के पहुंच जाने की सम्भावना है। भारतीय खाद्य निगम के नए गोदामों के निर्माण कार्य पूरा होने पर 47 लाख टन तथा पेग योजना के तहत निजी क्षेत्र के गोदामों में 20 लाख टन भंडारण क्षमता जुड़ने के बावजूद भंडारण क्षमता में कमी बने रहने वाली  है । 
जुलाई महीने में ही खुले परिसरों में  रखे गेहूं के भारी बरसात में भीग कर खराब होने के समाचार हैं । यह कोई नयी घटना नहीं है। हर साल लाखों टन अनाज उचित रख रखाव के अभाव में सड़ने के समाचार पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं ।  खाद्यान्न सड़ने की जानकारी सर्वोच्च न्यायालय को मिलने के बाद  सरकार को सर्वाच्च न्यायालय की फटकार मिल चुकी है । न्यायालय का कहना था कि सरकार को अनाज सड़ाने की बजाय जरूरतमन्द लोगों में बांट देना चाहिए । पिछले साल ही किए गए एक  अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार उचित सुरक्षित भंडारण के अभावपरिवहन में देरी तथा मानवीय  लापरवाही के कारण विश्व के खाद्यान्न एवं फल व सब्जी उत्पादन का 50 फ ीसदी  बेकार चला जाता है। इस अध्ययन के अनुसार भारत में हर साल 210 लाख टन गेहूं  भंडारण एवं अधोसंरचना सुविधाओं के अभाव में बेकार चला जाता है  जो आस्टे्रलिया के कुल गेहूं उत्पादन के बराबर है । यह दुख की बात है एक ओर तो गरीबों को पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिल पा रहा है तो दूसरी ओर लाखों टन अनाज सड़ जाता है या चूहों की भेंट चढ़  जाता है।              
ऐसी बात नहीं है कि सरकार इस स्थिति से चिंतित नहीं है । केन्द्र सरकार 150 लाख टन भंडारण क्षमता बढ़ाने का इरादा रखती है ।  सेन्ट्रल वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन तथा रायों के स्टेट वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन अपनी-अपनी भंडारण क्षमता बढ़ाने को प्रयासरत हैं। सरकार ने पेग के नाम से निजी उद्यमी गारंटी स्कीम के गोदाम बनाने की योजना प्रारम्भ की है। केन्द्र सरकार किराना व्यापार में विदेशी निवेश के अंतर्गत निवेशकों को ग्रामों में गोदाम बनाने सहित अधोसंरचना निर्माण की अनिवार्य शर्त रखी है। खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने को ध्यान करने में रखते हुए अगले 10 वर्षों में अनाज भंडारण क्षमता बढ़ाने हेतु एक योजना तैयार करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा  एक उच्च अधिकार समिति का गठन किया गया था। उक्त समिति का अभिमत था कि नए गोदामों के निर्माण पर भारी भरकम खर्च करने की बजाय मौजूदा भंडारण क्षमता का  नई तकनीक द्वारा बेहतर उपयोग से प्रयोजन पूरा किया जा सकता है ।
5 अगस्त से प्रारम्भ होने वाले संसद के वर्तमान सत्र में केन्द्र सरकार खाद्य सुरक्षा बिल जहां तक हो सके मौजूदा स्वरूप में पास करवाना चाहती है। वैसे तो इस बिल में संशोधन व एक से बढ़कर  एक नायाब सुझाव देने वालों की कमी नहीं है ।  राजनीतिक दलों में सीपीएम  90 प्रतिशत नागरिकों को  खाद्य सुरक्षा के दायरे में लाना चाहती  है । वहीं कुछ बुध्दिजीवी देश की मांसाहारी जनता की खाद्य सुरक्षा हेतु रियायती कीमतों पर पेकबन्द  मांस तथा मछली कीे भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से पूर्ति की व्यवस्था चाहते हैं ।  यदि वर्तमान खाद्य सुरक्षा बिल के दायरे को बढ़ाने की मांग को स्वीकार करके मौजूदा स्वरूप में परिवर्तन किया गया तो  पीडीएस के लिए तीन गुना अधिक राशि की  जरूरत पड़ेगी। पहले से ही बढ़े बजटीय घाटा की चिन्ताओं से घिरे वित्तमंत्री इस स्थिति से बचना चाहेंगे क्योंकि अनुपूरित बजट घाटा बढ़ने का मतलब मुद्रा स्फ ीति की रफ्तार बढ़ने से  महंगाई  बेकाबू हो जाएगी ।  
मेरा ऐसा मानना है कि देश के  निम्न आय व निम्न मध्यम आय वर्ग के समस्त परिवार  खाद्य सुरक्षा बिल के मौजूदा स्वरूप में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे में आ जाएंगें ।  उच्च आय वर्ग के 10 प्रतिशत परिवारों व 20 प्रतिशत उच्च-मध्यम वर्ग के परिवारों को सार्वजनिक प्रणाली के अंतर्गत सब्सिडी द्वारा रियायती कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाने की जरूरत नहीं है। उच्च किस्म के खाद्य पदार्थों के अभ्यस्त इन परिवारों को पीडीएस का खाद्यान्न पसन्द ही नही आएगा । भूतकाल में इन वर्गों की रुचि पीडीएस की दुकानों से चीनी खरीदने की रही है । खाद्यान्न भंडारण की समस्या को कम करने के लिए  उच्च-मध्यम वर्ग  को खरीफ व रबी की फ सलों के बाजार में आने पर उनके  परिवार की 6 माह की आवश्यकता के अनुसार  खाद्यान्न खरीद करके  आवास पर ही भंडारण हेतु प्रेरित करना होगा।  इस वर्ग के नौकरी पेशा लोगों को उनके नियोक्ताओं से  ग्रेन एडवांस का प्रावधान करवाया जा सकता है। खाद्य निगम के गोदाम में भंडारण की तुलना में आवास पर भंडारण अधिक सुरक्षित रहेगा।

संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले खाद्य सुरक्षा बिल के वर्तमान दायरे को बढ़ाने की बजाय  सार्वजनिक वितरण प्रणाली को चुस्त बनाने एवं क्रियान्वयन को मजबूत करने की जरूरत है । उसी प्रकार सरकार को भंडारण हेतु नए गोदामों के निर्माण पर भारी भरकम खर्च करने की बजाय भंडारण व्यवस्था को छिद्ररहित बनाने का प्रयास करना चाहिए। ंएक बड़ी मात्रा में अनाज भारतीय खाद्य निगम की खरीदी के पहले ही अनायास वर्षा या प्राकृतिक आपदा से खराब हो जाता है, इसके लिए किसान के खेत में फसल कटाई के समय से लेकर से मंडी के प्रांगण तक भी फसल उत्पादन की सुरक्षा भी जरूरी है।  कम कीमत पर हवारोधी  बड़े आकार के 200 टन क्षमता तक के पॉलीथीन बोरे किसानों को उपलब्ध करवा कर किसानों को नुकसान से बचाया जा सकता है तथा खाद्यान्न की राष्ट्रीय क्षति को रोका जा सकता है ।

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