नमक
हममें से हर
किसी के जीवन
का अभिन्न
हिस्सा है।
भारतीय नमक उद्योग
ने पिछले छह
दशकों में तेजी
से विकास किया
है। आजादी के
समय जहां हम
नमक का आयात
करते थे, वहीं
आज 120 नमक उत्पादक देशों
में से सालाना
24 मिलियन टन औसतन
वार्षिक उत्पादन
के साथ भारत
तीसरे स्थान
पर है। भारतीय
नमक उद्योग घरेलू
18 मिलियन टन की
आवश्यकता को
पूरा करने के
बाद 20 देशों को 5 मिलियन
टन नमक का
निर्यात करता है।
देश
में बनने वाले
कुल नमक का
70 प्रतिशत समुद्री पानी और
28 प्रतिशत भूमिगत समुद्री पानी
से और शेष
2 प्रतिशत झीलों के जल/नमक की
चट्टानों से बनता
है। भारत में
सेंधा नमक का
एक मात्र स्रोत
हिमाचल प्रदेश में स्थिति
मंडी है। देश
के कुल नमक
उत्पादन में
गुजरात, तमिलनाडु और राजस्थान की
96 प्रतिशत भागीदारी है। गुजरात
कुल उत्पादन
में 75 प्रतिशत, तमिलनाडु 11 प्रतिशत
और राजस्थान
10 प्रतिशत का योगदान
करते है। इसके
अतिरिक्त अन्य राज्य जैसे
आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा,
कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गोवा,
हिमाचल प्रदेश और दीव
और दमन में
भी नमक का
उत्पादन होता
है। कुल उत्पादन का
62 प्रतिशत बड़े नमक
निर्माताओं, 28 प्रतिशत लघु निर्माताओं
और शेष मध्यम स्तर के
निर्माताओं द्वारा किया जाता
है। ज्यादातर
नमक का उत्पादन सिर्फ
निजी क्षेत्र द्वारा
किया जा रहा
है। भारतीय नमक
उद्योग ऑस्ट्रेलिया,
कनाडा, फ्रांस और अमेरिका
आदि के अधिक
मशीनीकरण की तुलना
में अधिक श्रमसाध्य तकनीकों
का प्रयोग करता
है। भारत आवश्यकता से
अधिक उत्पादित
औसतन 35 लाख टन
नमक का निर्यात
करता है। भारत
से जापान, बांग्लादेश,
इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, उत्तरी कोरिया,
मलेशिया, संयुक्त अरब
अमीरात, वियतनाम और कतर
आदि नमक का
आयात करते है।
कुल
नमक उत्पादन
का लगभग 30 प्रतिशत
मानव और पशुओं
द्वारा उपयोग किया जाता
है और यह
विभिन्न बीमारियों
से लड़ने के
लिए जरूरी सूक्ष्म पोषक
तत्वों का
वाहक है। नमक
कई रसायनिक उद्योगों
में मूल तत्व के
रूप में भी
आवश्यक है।
विश्व स्तर पर
कुल उत्पादित
नमक का 60 प्रतिशत
रासायनिक उद्योग द्वारा कच्चे माल
के रूप में
इस्तेमाल किया
जाता है। मुख्य तौर
पर इसका इस्तेमाल क्लोरिन,
कास्टिक सोडा और
सोडा ऐश में
किया जाता है,
जहां इसका उपयोग
विभिन्न प्रक्रियाओं
जैसे ऑग्रेनिक सिंथेसिस, पोलीमर,
पेट्रो कैमिकल्स और
पेट्रोलियम रिफाइनिंग आदि में
किया जाता है।
इसके साथ ही
इसका उपयोग डी-आईसिंग, पानी के
शुद्धिकरण और कूलेंट
जैसे प्रयोगों के
लिए भी किया
जाता है।
समुद्र
में नमक का
अंश लगभग कभी
समाप्त न होने वाला
है। इसके अतिरिक्त प्रमुख
नमक उत्पादक
देशों में भी
नमक का बड़ा
भंडार है। नमक
मुख्यत: तीन
प्रकार से सेंधा
नमक के प्रत्यक्ष खनन
से, समुद्री जल
को वाष्पित कर
और समुद्री जल
को सौर वाष्पित
कर उत्पादित
किया जा सकता
है। इनमें से
सर्वाधिक प्रयोग होने वाला
और ऊर्जा दक्षता
प्रकार तेजी से
होने वाला वाष्पीकरण
और समुद्र का
सांद्रण, विभिन्न संघनित
में भूमिगत और
झील का समुद्री
पानी और सौर
ऊर्जा का प्रयोग
करते हुए क्रिस्टल बनाना
है।
नमक
जितना अधिक शुद्ध
होता है उसका
उतना ही अधिक
मूल्य होता
है। नमक में
मैग्निशियम सॉल्ट की
अशुद्धियों के कारण
नमी के चलते
नमक के टुकड़े
बनने के साथ-साथ इसके
परिवहन में यह
अनचाहा बोझ भी
बन जाता है।
उदाहरण के लिए:
यदि सड़क द्वारा
10 मिलियन टन नमक
को भी कहीं
भेजा जाएं और
इसमें नमी 4 प्रतिशत
के स्तर
पर हो, तो
हमें 40 हजार अतिरिक्त फेरे
लगाने होगे। इस
प्रकार सूखे नमक
से कार्बन फूट
प्रिंट को कम
करने में भी
मदद मिलती है।
पिछले
कई वर्षों में
नमक के क्षेत्र
में कई आविष्कार हुए
है। वैज्ञानिक एवं
उद्योगिक अनुसंधान परिषद के
अंर्तगत केंद्रीय नमक एवं
समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान नमक
के अनुसंधान में
कार्यरत एक प्रमुख
संस्थान है,
जिसने उच्च
शुद्धता के नमक
उत्पादन में
कम खर्च वाली
तकनीकों के विकास
में सराहनीय योगदान
दिया है।
भारतीय
नमक उद्योग नमक
उत्पादन के
लिए अन्य
देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और मैक्सिको
की तुलना में
नवीन प्रयोगों का
इस्तेमाल नहीं
करता है, जिससे
निम्न श्रेणी
का नमक उत्पादन होता
है। इस प्रकार
के अशुद्ध नमक
की गुणवत्ता
में सुधार के
लिए यांत्रिक सफाई
और अन्य
रासायनिक उपचारों की आवश्यकता होता
है। केंद्रीय नमक
एवं समुद्री रसायन
अनुसंधान संस्थान
विभिन्न राज्य सरकारों
और नमक विभाग
के साथ नमक
की गुणवत्ता
सुधारने के लिए
विभिन्न कार्यक्रम
चला रहा है,
जिसमें आदर्श नमक फार्म
की स्थापना
भी की जाती
है, जो नमक
निर्माताओं के लिए
प्रदर्शन इकाई के
रूप में प्रयोग
होते है।
नमक
निर्माण में यंत्रीकरण/
आधुनिकीकरण और विभिन्न उद्योगों
के लवणीय अवशेषों
के प्रयोग से
नमक उत्पादकता
में बढ़ोत्तरी
होती है। इससे
न सिर्फ उत्पादन में
बढ़ोत्तरी बल्कि
अवशेषों को समुद्र
और अन्य
स्थानों पर
गिराने के दौरान
पर्यावरणीय खतरों
में भी कमी
आती है। भारी
वर्षा आदि के
कारण नमक उत्पादन में
भारी कमी आ
सकती है। इस
समस्या को
यंत्रीकरण और नमक
उत्पादन और
स्वचलीकरण से
दूर किया जा
सकता है। नमक
उत्पादन में
यंत्रीकरण के द्वारा
आवश्यक मानव
संसाधन की कमी
को दूर करने
के साथ-साथ
नमक की गुणवत्ता और
उत्पादन सुधार
में मदद मिलती
है।
भारतीय
नमक उद्योग वर्ष
2020 तक घरेलू 25 मिलियन टन
की आवश्यकता
और 10 मिलियन टन
निर्यात करने के
उद्देश्य के
मद्देनजर 40 मिलियन टन उत्पादन का
लक्ष्य प्राप्त करने
का प्रयास कर
रहा है। यह
6.1 लाख एकड़ भूमि
के प्रभावी उपयोग
और आधुनिक तकनीकों
के द्वारा उत्पादन बढ़ाकर
प्राप्त किया
जा सकता है।
इस उद्योग का
यंत्रीकरण, कार्य का क्षेत्र
बढ़ाने के लिए
श्रमिकों का तालमेल
और पारंपरिक बिजली/
डीज़ल के स्थान पर
सौर ऊर्जा के
प्रयोग को प्रोत्साहन दिया
जाना चाहिए।
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