इराक
में इन दिनों
चल रहा हिंसक
टकराव विश्व जगत
के लिए चिंता
का विषय बना
हुआ है। अब
तक अमेरिका कहता
रहा हैकि वहां
शांति और स्थायित्व
कायम है परंतु
मौजूदा हालात उसके दावे
की हकीकत बयान
कर रहे हैं।
अब एक नए
सुन्नी चरमपंथी संगठन इस्लामिक
स्टेट ऑफ इराक
एंड लेवांत (आईएसआईएल)
ने इराक की
सरकार और शिया
समुदाय के खिलाफ
हिंसक अभियान छेड़
दिया है। इस
लड़ाईमें वहां का
कुर्द समुदाय भी
कूद गया है।
अभी हाल ही
में यह खबर
आई थी कि
इराक तीन हिस्सों
में टूट सकता
है। अब ऐसी
खबरें आ रही
हैंकि आईएसआईएल के
दस्ते बगदाद की
ओर बढ़ रहे
हैं।
इस
हमले ने इराक
सरकार की सैन्य
तैयारियों को उजागर
कर दिया है।
चरमपंथियों की ओर
से जारी की
गई इराकी सेना
के सामूहिक नरसंहार
की तस्वीर दिल
दहलाने के लिए
काफी है। इराक
अमेरिका से मदद
मांग रहा है
परंतु अमेरिकी रणनीति
देखकर लगता है
कि वह इसमें
पड़ना नहीं चाहता।
विश्लेषक कह रहे
हैं कि इराक
में आधुनिक विश्व
के इतिहास में
शिया और सुन्नी
के बीच हिंसक
टकराव के हालात
देखे जा रहे
हैं। लिहाजा कहा
जा रहा है
कि इराक भीषण
सांप्रदायिक गृहयुद्ध में घिरता
जा रहा है।
इस हालात के
लिए सबसे ज्यादा
जिम्मेदार अमेरिका की दोहरी
नीतियां रही हैं।
कथित
रासायनिक हथियारों के नाम
पर उसने इराक
पर हमला किया
और सद्दाम हुसैन
को फांसी दिलवाई।
अमेरिका ने इसे
अपनी और इराकियों
की जीत के
तौर पर पेश
किया। उसने यह
संदेश देने की
कोशिश की कि
इराक में तानाशाही
शासन का अंत
और एक आधुनिक
लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हो
गई है, लेकिन
व्यवहार में ऐसा
हुआ नहीं। खाड़ी
देशों के जानकार
मानते हैं कि
अमेरिकी कार्रवाई से शियाओं
में संदेश गया
कि सुन्नियों के
दमनकारी शासन का
अंत हो गया
है। उसके बाद
बनी शियाओं की
सरकार के कुछ
फैसलों की वजह
से सांप्रदायिक सौहार्द
अंदर ही अंदर
खराब हो गया।
सुन्नी चरमपंथी संगठन आईएसआईएल
के उभार की
यही वजह रही।
और बाकी कसर
अमेरिका का असमय
इराक छोड़ने के
फैसले ने पूरी
कर दी। देखा
जाए तो इराक
के आज के
हालात के लिए
अमेरिका ही सबसे
ज्यादा जिम्मेदार है। इराक
में लाखों डॉलर
खर्च करके भी
वह नाकाम रहा।
अब खाड़ी देशों
में अमेरिका की
नीति को लेकर
भी सवाल उठ
रहे हैं। यही
हाल सीरिया और
लीबिया का है।
नाइजीरिया,
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, यमन, पूर्वी
अफ्रीका सभी जगह
हालात खराब हैं।
ऐसे में लोग
पूछने लगे हैं
कि आखिर अमेरिका
की यह कैसी
नीति है जिससे
किसी भी जगह
स्थायित्व नहीं है।
कहा जाता है
अमेरिका तेल हड़पने
के लिए इन
देशों पर कार्रवाई
करता है। ईरान
पर अमेरिकी पाबंदी
भी अब संदेह
की नजर से
देखी जाने लगी
है। समय रहते
इस टकराव को
रोका नहीं गया
तो इसके दो
गंभीर परिणाम सामने
आएंगे। पहला, विश्व में
शिया-सुन्नी टकराव
तेज होगा। दूसरा,
इसका सीधा असर
दुनिया की तेल
आपूर्ति पर पड़
सकता है। भारत
समेत पूरी दुनिया
में तेल की
कीमतों पर इसका
असर अभी से
देखा जाने लगा
है। इसे रोकने
के लिए विश्व
समुदाय को आगे
आना चाहिए।
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