भारत
का संविधान निष्क्रीय
नहीं बल्कि जीवंत
एवं सक्रिय दस्तावेज
है जो समय
के साथ विकसित
होता रहा है।पर्यावरण
संरक्षण को लेकर
संविधान में विशेष
प्रावधान संविधान की सदा
विकसित होने वाली
प्रवृति और जमीन
संबंधी मौलिक कानून के
बढ़ने की संभावनाओं
का ही परिणाम
है। हमारे संविधान
की प्रस्तावना समाज
के सामाजवादी तरीके
और प्रत्येक व्यक्ति
की गरिमा सुनिश्चि
करती है।जीने के
बेहतर मानक और
प्रदूषणरहित वातावरण संविधान के
भीतर अंतर्निहित है।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के
अनुसार पर्यावरण में जल,
हवा और जमीन
और अंतरसंबंध जिसमें
हवा समाहित हो,
जल-जमीन और
मानव, अन्य जीवित
चीजें, पेड़-पौधे,
सूक्ष्म जीवजंतु और संपत्ति
आदि समाहित हैं।
भारतीय
संविधान में मौलिक
कर्तव्यों के तहत
हर नागरिक से
अपेक्षा की जाती
है कि वे
पर्यावरण को सुरक्षित
रखने में योगदान
देंगे। अनुच्छेद 51 A (g) कहता है
कि जंगल, तालाब,
नदियां, वन्यजीव सहित सभी
तरह की प्राकृतिक
पर्यावरण संबंधित चीजों की
रक्षा करना व
उनको बढ़ावा देना
हर भारतीय का
कर्तव्य होगा। साथ ही
प्रत्येक नागरिक को सभी
सजीवों के प्रित
करुणा रखनी होगी।
भारतीय
संविधान के अंतर्गत
मूल सिद्धांतों एक
कल्याणकारी राज्य निर्माण के
लिए काम करते
हैं। स्वस्थ पर्यावरण
भी कल्याणकारी राज्य
का ही एक
तत्व है। अनुच्छेद
47 कहता है कि
लोगों के जीवन
स्तर को सुधारना,
उन्हें भरपूर पोषण मुहैया
कराना और सार्वजनिक
स्वास्थ्य की वृद्धि
के लिए काम
करना राज्य के
प्राथमिक कर्तव्यों में शामिल
हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य
में सुधार के
तहत पर्यावरण संरक्षण
और उसमें सुधार
भी शामिल हैं
क्योंकि इसके बगैर
सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित
नहीं किया जा
सकता है। अनुच्छेद
48 कृषि एवं जीव
संगठनों के संरक्षण
की बात करता
है। यह अनुच्छेद
राज्यों को निर्देश
देता है कि
वे कृषि व
जीवों से जुड़ों
धंधों को आधुनिक
व वैज्ञानिक तरीके
से संगठित करने
के लिए जरूरी
कदम उठाएं। विशेषतौर
पर, राज्यों को
जीव-जन्तुओं की
प्रजातियों को संरक्षित
करना चाहिए और
गाय, बछड़ों, भेड़-बकरी व
अन्य जानवरों की
हत्या पर रोक
लगानी चाहिए। संविधान
का अनुच्छेद 48-A कहता
है कि राज्य
पर्यावरण संरक्षण व उसको
बढ़ावा देने का
काम करेंगे और
देशभर में जंगलों
व वन्य जीवों
को को की
सुरक्षा के लिए
काम करेंगे।
प्रत्येक
व्यक्ति के विकास
के लिए सबसे
जरूरी मौलिक अधिकारों
की गारंटी भारत
का संविधान भाग-3
के तहत देता
है। पर्यावरण के
अधिकार के बिना
व्यक्ति का विकास
भी संभव नहीं
है। अनुच्छेद 21, 14 और
19 को पर्यावरण संरक्षण
के लिए प्रयोग
में लाया जा
चुका है।
संविधान
के अनुच्छेद 21 के
अनुसार कानून द्वारा स्थापित
बाध्यताओं को छोड़कर
किसी भी व्यक्ति
को जीवन जीने
और व्यक्तिगत आजादी
से वंचित नहीं
रखा जाएगा। मेनका
गांधी बनाम भारत
सरकार (AIR 1978 SC 597) संबंधी मुकद्दमें में
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय
के बाद अनुच्छेद
21 की समय समय
पर उदारवादी तरीके
से व्याख्या की
जा चुकी है।
अनुच्छेद 21 जीवन जीने
का मौलिक अधिकार
भी देता है,
इसमें पर्यावरण का
अधिकार, बीमारियों व संक्रमण
के खतरे से
मुक्ति का अधिकार
अंतर्निहित हैं। स्वस्थ
वातावरण का अधिकार
प्रतिष्ठा से मानव
जीवन जीने के
अधिकार की महत्वपूर्ण
विशेषता है। संविधान
के अनुच्छेद 21 के
तहत स्वस्थ वातावरण
में जीवन जीने
के अधिकार को
पहली बार उस
समय मान्यता दी
गई थी, जब
रूरल लिटिगेसन एंड
एंटाइटलमेंट केंद्र बनाम राज्य,
AIR 1988 SC 2187 (देहरादून खदान केस
के रूप में
प्रसिद्ध) केस सामने
आया था। यह भारत
में अपनी तरह
का पहला मामला
था, जिसमें सर्वोच्च
न्यायालय ने पर्यावरण
(संरक्षण) अधिनियम 1986 के तहत
पर्यावरण व पर्यावरण
संतुलन संबंधी मुद्दों को
ध्यान में रखते
हुए इस मामले
में खनन (गैरकानूनी
खनन ) को रोकने
के निर्देश दिए
थे। वहीं एमसी
मेहता बनाम भारतीय
संघ, AIR 1987 SC 1086 के मामले
में सर्वोच्च न्यायालय
ने प्रदूषण रहित
वातावरण में जीवन
जीने के अधिकार
को भारतीय संविधान
के अनु्छेद 21 के
अंतर्गत जीवन जीने
के मौलिक अधिकार
के अंग के
रूप में माना
था।
बहुत
अधिक शोर-शराबा
भी समाज में
प्रदूषण पैदा करता
है। भारतीय संविधान
का अनुच्छेद 19 (1) a व
अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को
बेहतर वातावरण और
शांतिपूर्ण जीवन जीने
का अधिकार देता
है। पीए जैकब
बनाम कोट्टायम पुलिस
अधीक्षक, AIR 1993 ker 1, के मामले
में केरला उच्च
न्यायालय ने स्पष्ट
किया था कि
भारतीय संविधान में अनु्च्छेद
19 (1) (a) के तहत दी
गई अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता किसी भी
नागरिक को तेज
आवाज में लाउड
स्पीकर व अन्य
शोर-शराबा करने
वाले उपकरण आदि
बजाने की इजाजत
नहीं देता है।
इस प्रकार अब
शोर-शराबे, लाउड
स्पीकर आदि से
होने वाले ध्वनि
प्रदूषण को अनु्च्छेद
19 (1) (a) के तहत नियंत्रित
किया जा सकता
है।
भारतीय
संविधान का अनुच्छेद
19 (1) (g) प्रत्येक नागरिक को अपनी
पसंद के अनुसार
किसी भी तरह
का व्यवसाय, काम-धंधा आदि
करने का अधिकार
देता है। लेकिन
इसमें कुछ प्रतिबंध
भी हैं। अर्थात्
कोई भी नागरिक
ऐसा कोई भी
काम नहीं कर
सकता, जिससे समाज
व लोगों के
स्वास्थ्य पर कोई
प्रतिकूल प्रभाव पड़े। पर्यावरण
संरक्षण संविधान के इस
अनुच्छेद में अंतर्निहित
है। कोवरजी बी
भरुचा बनाम आबकारी
आयुक्त, अजमेर (1954, SC 220) के मामले
में सुप्रीम कोर्ट
ने स्पष्ट किया
था कि जहां
कहीं भी पर्यावरण
संरक्षण व व्यवसाय
करने के अधिकार
के बीच कोई
विरोध होगा तो
कोर्ट को पर्यावरण
संबंधी हितों और व्यवसाय
व काम धंधा
चुनने संबंधी अधिकार
के बीच संतुलन
बनाकर किसी निर्णय
पर पहुंचना होगा।
भारत
के संविधान के
अनुच्छेद 32 और
226 के अंतर्गत जनहित याचिका
पर्यावरण संबंधी याचिकाओं की
धारा का ही
परिणाम है ।
देहरादून में लाइमस्टोन
खदान को बंद
कराना (देहरादून खदान केस
AIR 1985 SC 652), दिल्ली में क्लोरिन
प्लांट में रक्षकों
को लगवाना (एमसी
मेहता बनाम भारतीय
संघ, AIR 1988 SC 1037) आदि वो
प्रमुख पर्यावरण संबंधी मामले
हैं, जिनमें सर्वोच्च
न्यायालय ने अभूतपूर्व
और जनहित में
निर्णय सुनाएं हैं। वेल्लोर
नागरिक कल्याण फोरम बनाम
भारतीय संघ (1996) 5 एससीसी 647 के मामले
में सुप्रीम कोर्ट
ने कहा था
कि पर्यावरण संरक्षण
व वातावरण को
शुद्ध रखने के
लिए पूर्व सावधानियां
रखकर ही विकास
की राह पर
आगे बढ़ पाना
संभव है।
स्थानीय
व ग्रामीण स्तर
पर मृदा संरक्षण,
जल प्रबंधन, जंगलों
की सुरक्षा और
पर्यावरण की रक्षा
व इसको बढ़ावा
देने के लिए
पंचायतों को भी
मजबूत बनाया जा
चुका है।
पर्यावरण
की रक्षा हमारे
सांस्कृतिक मूल्यों व परंपराओं
का ही अंग
है। अथर्ववेद में
कहा भी गया
है कि मनुष्य
का स्वर्ग यहीं
पृथ्वी पर है।
यह जीवित संसार
ही सभी मनुष्यों
के लिए सबसे
प्यारा स्थान है। यह
प्रकृति की उदारता
का ही आशीर्वाद
है कि हम
पृथ्वी पर बेहतर
सोच और जज्बे के
साथ जी रहे
हैं। पृथ्वी ही
हमारा स्वर्ग है
और इसकी रक्षा
करना हमारा कर्तव्य
है। भारत के
संविधान में भी
प्रकृति के संरक्षण
और रक्षा का
ढांचा समाहित है,
जिसके बिना जीवन
का आनंद नहीं
उठाया जा सकता
है। पर्यावरण संरक्षण
के प्रति लोगों
की सहभागिता बढ़ाने,
पर्यावरण जागरूकता, पर्यावरण संबंधी
शिक्षा का विकास
करने व लोगों
को पर्यावरण के
प्रति संवेदनशील बनाने
के लिए पर्यावरण
की रक्षा से
जुड़े संवैधानिक प्रावधानों
का ज्ञान लोगों
को होना बेहद
जरूरी है। यह
आज की जरूरत
भी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें