अभी
कुछ दिन पहले
जब अमेरिकी प्रशासन
ने तालिबान कैद
से एक अमेरिकी
सार्जेंट बाउ बर्गडेल
की रिहाई के
बदले में पांच
तालिबान आतंकियों को ग्वांतानामो
बे से रिहा
करने का निर्णय
लिया तो एक
साथ कई सवाल
उठे। पहला, यह
क्या अमेरिका अफगानिस्तान
से एक सम्पूर्ण
युद्ध जीत कर
वापस आ रहा
है या हारकर?
करीब दो वर्ष
पहले मुल्ला उमर
के गुरु रहे
आमिर सुल्तान तरार
उर्फ कर्नल इमाम
ने कहा था
कि तालिबान कभी
नहीं थकेंगे क्योंकि
उन्हें लडऩे की
आदत है। वे
अमेरिकी सेना को
खदेड़ तो नहीं
सकते लेकिन उसे
थका सकते हैं।
क्या वास्तव में
तालिबान ने अमेरिका
को थका दिया
है? क्या अमेरिका
वार अनड्यूरिंग फ्रीडम
को वास्तव में
उसी अंजाम तक
पहुंचाकर वापस जा
रहा है, जहां
तक पहुंचाने की
प्रतिबद्धता के साथ
2001 में उसने अफगानिस्तान
में प्रवेश किया
था? क्या अमेरिका
इस बात की
गारंटी दे सकता
है कि उसके
द्वारा ग्वांतानामो बे से
छोड़े गए तालिबान
आतंकवादी अफगानिस्तान से लेकर
दक्षिण एशिया तक में
आतंक फैलाने का
कार्य नहीं करेंगे?
अमेरिकी
प्रशासन ने जिन
पांच तालिबान आतंकवादियों
को छोडऩे का
निर्णय लिया है,
उसका परिणाम क्या
होगा, इसका आकलन
अमेरिकी सेना या
खुफिया एजेंसी द्वारा दी
गई श्रेणी या
तालिबान नेताओं में इन
आतंकियों की हायरार्की
को देखकर किया
जा सकता है। अगर
मीडिया रिपोर्टों पर विश्वास
करें तो इन
पांचों तालिबान लड़ाकों की
आतंकी नेटवर्क में
पकड़ बेहद मजबूत
है और अमेरिकी नेतृत्व वाले
नाटो गठबंधन द्वारा
अफगानिस्तान छोडऩे के बाद
इस वे इस
नेटवर्क का पुन:
इस्तेमाल कर अफगानिस्तान
में आतंकी गतिविधियों
को अंजाम दे
सकते हैं। इनमें
से कुछ आतंकवादियों
को पेंटागन ने
हाई रिस्क श्रेणी
में रखा था
जिसका सीधा सा
मतलब है कि
उनके वापस जाकर
दहशत फैलाने की
संभावनाएं बहुत अधिक
हैं। हालांकि तालिबान
से शांति वार्ता
में जुटी उच्च
शांति परिषद अमेरिकी
प्रशासन द्वारा किए गए
फैसले को देश
में वार्ता का
माहौल बनाने के
लिए बेहद महत्वपूर्ण
मान रही है।
अमेरिकी सेना और
पेंटागन भी सम्भवत:
ओमाबा के इस
निर्णय से संतुष्ट
नहीं है। कुछ
सैनिक अधिकारी तो
बर्गडेल को भगोड़ा
मानते हैं जो
तालिबान से मिल
गया था। इस
स्थिति में उसका
वापस आना अमेरिका
के लिए हितकर
नहीं होगा।
वैसे
यदि तालिबान या
अन्य आतंकवादियों के
पिछले रिकार्ड को
देखें तो इस
बात पर किसी
को भी संशय
नहीं होना चाहिए
कि ओबामा ने
जिन पांच आतंकवादियों
को रिहा करने
का फैसला लिया
है वे वापस
जाकर फिर से
न केवल अमेरिकियों
के खिलाफ लड़ेंगे
या उन्हें और
अधिक संख्या में
मारेंगे बल्कि अफगानिस्तान में
फिर दहशत का
वातावरण पैदा करेंगे
जिससे अफगानों की
जिंदगियां पुन: असुरक्षित
हो जाएंगी। एक
तर्क यह भी
दिया जा रहा
है कि राष्ट्रपति
बराक ओबामा द्वारा
ऐसा निर्णय लेने
से पहले 2007 में
जॉर्ज बुश प्रशासन
द्वारा लिए गए
उस निर्णय पर
ध्यान देना चाहिए
था जिसके तहत
तालिबान नेता मुल्ला
अब्दुल कयूम जाकिर
(अथवा अब्दुल्ला गुलाम
रसूल) को छोड़ा
गया था। इस
पिछले इतिहास को
देखने की इसलिए
जरूरत थी क्योंकि
मुल्ला जाकिर को मुक्त
करते समय अमेरिकी
सेना द्वारा निर्धारित
इसकी श्रेणी (मिडिल
रिस्क) को नहीं
देखा गया था।
इसे ग्वांतानामो बे
से 'लो रिस्कÓ
श्रेणी के तहत
मानकर रिहा किया
गया था साथ
ही इसने यह
वादा किया था
कि मैं कभी
भी न तो
अमेरिका का दुश्मन
बनूंगा और न
ही कभी दुश्मन
बनने का इरादा
रखूंगा। लेकिन ऐसा हुआ
नहीं था, बल्कि
जॉर्ज बुश द्वारा
छोड़े जाने और
दक्षिण अफगानिस्तान में तालिबान
के लिए ओबामा
प्रशासन द्वारा सुरक्षित पनाहगाह
देने से इन्कार
करने के पश्चात
इसे बाद तालिबान
ने तालिबान लड़ाकों
की संख्या बढ़ाने
के उद्देश्य से
कमाण्डर नियुक्त किया था।
अमेरिकी
सेना के सार्जेंट
बाउ बर्गडेल के
बदले में अमेरिकी
प्रशासन ने जिन
तालिबान आतंकवादियों को अमेरिकी
मिलिट्री डिटेंशन सेंटर ग्वांतानामो
बे से छोडऩे
का निर्णय लिया
है वे सभी
प्रभावशाली तालिबान कमाण्डरों में
से हैं। इसलिए
ऐसा लगता है
कि वे जैसे
ही अफगानिस्तान लौटेंगे,
वे अमेरिका के
सबसे खूंखार दुश्मन
बनेंगे और प्रत्यक्ष
रूप से अमेरिकी,
गठबंधन तथा अफगान
बलों की मौत
का कारण बनेंगे।
यह भी संभव
है कि ये
पांचों मुल्ला जाकिर के
काम को वहीं
से आगे बढ़ाएंगे
जहां उसने उसे
छोड़ा था। अमेरिकी
सेना मानती है
कि ये सभी
हाई रिस्क वाली
लड़ाई छेड़ सकते
हैं। अमेरिकी सेना
के मुताबिक इन
आतंकियों के ग्वांतानामो
बे से लीक
(अथवा डिकोड) हुई
जानकारियों के अनुसार
इनमें से एक
मुल्ला नरुल्ला नूरी पूर्व
तालिबान अधिकारियों में से
एक है। यह
सीधे तौर पर
तालिबान सुप्रीम लीडर मुल्ला
उमर का सहायक
था, अलकायदा के
सदस्यों से भी
इसका सीधा सम्पर्क
था और संयुक्त
राष्ट्र संघ द्वारा
युद्ध अपराध के
लिए वांछित था।
यह अमेरिकी नेतृत्व
वाली गठबंधन सेनाओं
के खिलाफ तालिबान
सैन्य बलों को
लीड करता था।
यही नहीं, इसका
भाई इस समय
तालिबान कमाण्डर है और
अमेरिका तथा गठबंधन
बलों के खिलाफ
ऑपरेशन चला रहा
है। स्वाभाविक है
कि रिहाई के
बाद वह अपने
भाई के साथ
काम करेगा।
दूसरा
तालिबान नेता मुल्ला
मोहम्मद फजल है
जो तालिबान का
उपरक्षा मंत्री रहा है।
उसकी ताकत का
अंदाजा इस बात
से लगाया जा
सकता है कि
वह एक बार
मुल्ला उमर को
भी धमकी दे
चुका है। यह
अलकायदा तथा अन्य
आतंकियों के साथ
मिलकर ऑपरेशनल एसोसिएशन
बनाए हुए था।
इसलिए सम्भावना यह
है कि यह
भी रिहाई के
बाद तालिबान को
फिर से ज्वाइन
करना चाहेगा तथा
एंटी कोलिशन मिलिशिया
(एसीएम) यानि गठबंधन
विरोधी लड़ाकों को संस्थापित
करने की कोशिश
करेगा। तीसरा आतंकी अब्दुल
हक वाशिक है
जो कि तालिबान
का इंटेलिजेंस उपमंत्री
था। अन्य कार्यों
के साथ-साथ
इसका कार्य अलकायदा
को सूचना मुहैया
कराना तथा उसके
सदस्यों को खुफिया
तरीकों से प्रशिक्षित
करना था। इसके
साथ ही यह
अमेरिका और गठबंधन
बलों के विरुद्ध
इस्लामी चरमपंथियों के समूहों
को तालिबान के
साथ मिलाकर युद्ध
की रणनीति बनाता
था। चौथा तालिबान
आतंकी मुल्ला खैरुल्ला
सैयद वली खैरख्वा
है जो तालिबान
का आंतरिक मंत्री
रहा है और
ओसामा बिन लादेन
तथा तालिबान सुप्रीम
लीडर मुल्ला मुहम्मद
उमर से सीधे
जुड़ा रहा है।
9/11 के हमले के
बाद यही अलकायदा,
ईरानी अधिकारियों तथा
अन्य सहयोगियों के
साथ तालिबान बैठकों
का प्रतिनिधित्व करता
था। महत्वपूर्ण बात
यह है कि
यह पश्चिमी अफगानिस्तान
में प्रीमियम अफीम
ड्रग माफियाओं में
से एक था
और हेरात के
मिलिट्री टे्रनिंग कैम्प, जो
कि अलकायदा अबू
मुसाब अल जरकावी
द्वारा ऑपरेट होता था,
से भी जुड़ा
था। पांचवां तालिबान
आतंकी मोहम्मद
नबी ओमरी है
जो कि खोश्त
में तालिबान-अलकायदा
संयुक्त एंटी कोलिशन
मिलिशिया (एसीएम) सेल का
सदस्य था। वह गठबंधन
विरोधी योजनाओं को अंजाम
देने के लिए
हथियारों को जुटाने
तथा जलालाबाद व
पेशावर के बीच
तस्करी कर धन
की व्यवस्था करने
का कार्य करता
था।
तालिबान
आतंकियों की गिरफ्तारी
से पूर्व की
गतिविधियों और तालिबान
अधिक्रम में उनके
स्थान को देखने
के बाद यह
कहने में कोई
भ्रम नहीं होना
चाहिए कि ओबामा
प्रशासन का यह
निर्णय किसी उपलब्धि
के रूप में
नहीं स्वीकार किया
जा सकता जैसा
कि उन्होंने एक
समारोह में घोषणा
की थी। अगर
ये अफगानिस्तान लौटकर
पुन: अमेरिका के
खिलाफ हथियार उठा
लेते हैं तो
उनका जिहादियों के
नायकों के रूप
में स्वागत किया
जाएगा और लगभग
एक दशक बाद
उनका पुनरोदय अमेरिका
के लिए ही
नहीं, बल्कि दक्षिण
एशिया के लिए
भारी पड़ेगा।
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