सोमवार, 16 जून 2014

आतंक का नया अध्याय

दहशतगर्दी की दुनिया में बोको हराम का एक नया नाम जुड़ गया है। छात्राओं के अपहरण का घिनौना काम करके बोको हराम ने केवल नाइजीरिया के लोगों की नींद हराम नहीं की है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा पर भी सवाल उठा दिया है। तेल-उत्पादन और इसके निर्यात के मामले में नाइजीरिया दुनिया के क्त्रमश: बारहवें और दसवें स्थान पर है। इधर के दशकों में अमेरिका और पश्चिमी देशों ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए नाइजीरिया को अधिक अहमियत देनी शुरू की थी। उनका मानना था कि अरब के हिंसाग्रस्त खाड़ी देशों पर अब भरोसा करना ठीक नहीं होगा। इसी रणनीति से उन्होंने नाइजीरिया की गिनी खाड़ी को 'अगली खाड़ी' मान लिया था। अब इस नई खाड़ी यानी नाइजीरिया में भी उसी धार्मिक आतंकवाद ने अपने प्रभाव का प्रदर्शन किया है। इसके पहले एक नाइजीरियाई 'शू बॉम्बर' की वजह से पूरी दुनिया की हवाई सुरक्षा में नए और कठोर नियम जोड़े गए थे। अमानवीयता और आक्रामकता के संदर्भ में नाइजीरिया का यह नया आतंकवाद तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी असाधारण है। इस संगठन का आधार नाइजीरिया के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में है।
बोको हराम ने इस क्षेत्रीय अलगाव का लाभ उठाया। यह क्षेत्र दुर्गम है और तीन देशों की सीमाओं से सटा है। आतंकियों ने इस इलाके के भौगोलिक परिदृश्य के साथ हिजरत का धार्मिक विचार भी जोड़ दिया। 2003 में स्थापित इस संगठन ने शुरुआती एक साल में तो केवल इसी क्षेत्र में आतंकी वारदातों को अंजाम दिया। उसके बाद संघीय सरकार से उसका कुछ अनौपचारिक समझौता हुआ जिसकी वजह से उसके नेता को इस क्षेत्र के मैदुगुरी नगर में एक बहुत बड़ा मदरसा खोलकर धार्मिक परदे के पीछे अपनी बुनियाद मजबूत करने का मौका मिला। पांच साल बाद 2009 में बोको हराम की संहारक शक्ति का विस्फोट हुआ। संघीय सरकार ने लगभग उसी समय इसके संस्थापक को पकड़ा, यंत्रणा दी और उसकी वीडियो फिल्म बनवाई और उसकी हत्या करके अपनी सफलता की खुशफहमी पाल ली। बोको की आतंकी कार्रवाइयों का सिलसिला वास्तव में वहां समाप्त नहीं हुआ, बल्कि एक तरह से शुरू हुआ। सबसे पहले उसने हथियार और धन के लिए सुरक्षाकर्मियों और बैंकों को निशाना बनाया, फिर उसने विद्यालयों और होटलों जैसे आधुनिकता के प्रतीकों, सरकारी संस्थानों, चचरें और ईसाई मोहल्लों को निशाना बनाया। उसने संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन की इकाइयों तथा विदेश विभाग के पासपोर्ट कार्यालयों पर भी हमला किया। नाइजीरिया के मुस्लिम बहुल उत्तरी भाग में धार्मिक कट्टरता का असर पहले से ही रहा है। उत्तरी नाइजीरिया के मुख्य भाग, हौसालैंड में 1810 से एक स्थानीय खलीफा के वंशजों और उनके स्वजातीय समर्थकों का कट्टरपंथी शासन रहा है। इसके अलावा वहां इजाला नामक एक वहाबी संगठन का अच्छा असर रहा है। इस इलाके में 1979-84 के बीच आधुनिकता विरोधी मेहदीवादियों ने भयंकर उपद्रव किया। आजादी के बाद भी देश में शरीयत अदालतें काम कर रही थीं। 1999 में ईसाई राष्ट्रपति के निर्वाचन के बाद शरीयत की मांग ने फिर जोर पकड़ा। 2001-02 में शरीयत के इसी उन्मादी जोश की वजह से अमीना लवाल नाम की महिला को पत्थर से मारने की सजा मिली और विश्व सौंदर्य प्रतियोगिता को स्थगित करना पड़ा।
बोको हराम के नामकरण का भाव भी यही है यानी पश्चिमी सभ्यता और शिक्षा 'हराम' है। इसका संस्थापक धार्मिक कारणों से शुद्ध अरबी में ही बात करता था। मेहदीवादियों की तरह वह भी पूरी आधुनिक सभ्यता और प्रौद्योगिकी को शैतान की खोज मानना था। वह खुद तो महंगी गाड़ियों में घूमता था और कंप्यूटर का प्रयोग करता था, लेकिन अपने समर्थकों को केवल पानी और खजूर पर जिंदा रहने के लिए कहता था। इसी धार्मिक मतांधता की वजह से बोको के कई हमले धार्मिक दृष्टि से पवित्र दिनों में हुए हैं। दक्षिणी नाइजीरिया के ईसाइयों को शिकायत है कि उनके ऊर्जा संसाधनों के सहारे उत्तरी क्षेत्र के मुस्लिम वैभवपूर्ण जीवन जी रहे हैं। दक्षिण के पास सीधा समुद्री रास्ता है इसलिए देश से अलग होकर भी उनको समस्या नहीं होगी। इसके अलावा उत्तर के मिडिल बेल्ट में भी ईसाइयों की घनी आबादी है। पूरे उत्तरी क्षेत्र में उनकी आबादी एक-तिहाई है। इस ईसाई जनसंख्या के कारण देश की संघीय सरकार इस्लामी उग्रवाद का दमन करने के लिए विवश है। संयोग से 1999 में देश के तीसरे गणतंत्र की शुरुआत से अब तक दो ईसाई नेता राष्ट्रपति निर्वाचित हो चुके हैं। उत्तरी भाग के मुस्लिमों के लिए यह स्वीकार करना कठिन है कि वास्तव में उनका देश मुस्लिम नहीं, बल्कि बहुधर्मी है। इसी समस्या को टालने के लिए देश की जनगणना से धर्म का विवरण हटा दिया गया है। यदि देश में मुस्लिमों का बहुमत है तो भी वह बहुत मामूली बहुमत होगा। इसी कारण से देश की संघीय सरकार ने शरीयत को दृढ़तापूर्वक लागू करवाने वाले कट्टरपंथी हिज्बा संगठनों का दमन किया है। बोको के आतंकवाद का दमन संभव है, लेकिन इसकी जड़ों को उखाड़ना कठिन है। आजादी के बाद भी उत्तरी और दो दक्षिणी यानी तीन क्षेत्रों के अलग प्रधानमंत्री होते थे। ये क्षेत्रीय प्रधानमंत्री संघीय प्रधानमंत्री से अधिक सशक्त होते थे। उत्तरी भाग के मुस्लिमों ने मजबूरी में भले ही बहुधर्मिता को मान लिया है, लेकिन उनकी धर्माग्रही मूलवादी मानसिकता में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसी कट्टरपंथी मतवाद से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है।

वहां बोको के अतिरिक्त हिंसा के दो और बड़े संदर्भ हैं। उत्तरी भाग के मिडिल बेल्ट में होने वाले हिंसक सांप्रदायिक दंगों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। इस क्षेत्र के ईसाई धार्मिक संगठनों को अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन से सहायता मिलती है। इसके अलावा डेल्टा क्षेत्र के स्थानीय समुदायों ने तेल के संसाधन की लूट के विरुद्ध कई बार बड़े आतंकी हमले और अपहरण किए हैं। उनकी इन कार्रवाइयों से कई बार दुनिया में तेल की कीमतों पर असर पड़ा है। हिंसा के इन तीनों बड़े प्रसंगों से साफ है कि सहिष्णुता से ही इस देश को अपने संसाधनों का लाभ मिल सकता है।

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