पाकिस्तान के
कराची हवाई अड्डे
पर हमलों का सिलसिला
लगातार जारी है।
तहरीके तालिबान पाकिस्तान ने हमलों
की जि़म्मेदारी ली
है। इन
हमलों के
बाद आतंकवाद की
राजनीति में एक
नया अध्याय जुड़
गया है। जब पाकिस्तान
के तत्कालीन फौजी
तानाशाह जनरल जिय़ा
उल हक़ ने
आतंकवाद को विदेशनीति
का बुनियादी आधार
बनाने का खतरनाक
खेल खेलना शुरू किया
तो दुनिया के
शान्तिप्रिय लोगों ने उनको
आगाह किया था
कि आतंकवाद को
कभी भी राजनीति
का हथियार नहीं
बनाना चाहिए। लेकिन जनरल जिया अपनी
जि़द पर अड़े
रहे। भारत
के कश्मीर और
पंजाब में उन्होंने
फ़ौज़ की मदद
से आतंकवादियों को
झोंकना शुरू कर
दिया। अफगानिस्तान
में भी अमरीकी
मदद से उन्होंने
आतंकवादियों की
बड़े पैमाने पर
तैनाती की।
इस इलाक़े की मौजूदा
तबाही का कारण
यही है कि जनरल जिया
का आतंकवाद अपनी
जड़ें जमा
चुका है।
पाकिस्तानी
आतंकवाद की सबसे
नई बात यह
है कि पहली बार
पाकिस्तानी फ़ौज़ और आई
एस आई के
खिलाफ इस बार
उनके द्वारा पैदा
किया गया आतंकवाद
ही मैदान में
है। पहली
बार पाकिस्तानी इस्टैब्लिशमेंट
के खिलाफ तालिबान
के लड़ाकू हमला
कर रहे हैं। इसलिए
जो आतंकवाद भारत
को नुकसान पंहुचाने
के लिए पाकिस्तानी
फ़ौज़ ने तैयार
किया था वह
अब उनके ही
सर की मुसीबत
बन चुका है। भारत
में भस्मासुर की
जो अवधारणा बताई
जाती है, वह
पाकिस्तान में सफल
होती नजऱ आ
रही है। अस्सी के
दशक में पाकिस्तान
अमरीका की कठपुतली
के रूप में
भारत के खिलाफ
आतंकवाद फैलाने का काम
करता था। यह
बात हमेशा से ही
मालूम थी कि अमरीका
तब से भारत
का विरोधी हो
गया था जब
से अमरीका की
मंजूरी के खिलाफ
जवाहरलाल नेहरू
ने निर्गुट आन्दोलन की
स्थापना की थी। कऱीब
तीन साल पहले
अमरीका की जे
एफ के लाइब्रेरी
में नेहरू-केनेडी
पत्रव्यवहार को सार्वजनिक
किये जाने के
बाद कुछ ऐसे
तथ्य सामने आये
हैं जिनसे पता
चलता है कि
अमरीका ने भारत
की मुसीबत के वक्त
कोई मदद नहीं
की थी। भारत के ऊपर
जब 1962 में चीन
का हमला हुआ
था तो वह
नवस्वतंत्र भारत के
लिए सबसे बड़ी
मुसीबत थी ।
उस वक्त के
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने
अमरीका से मदद
माँगी भी थी
लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति
जॉन केनेडी ने
कोई भी सहारा
नहीं दिया और नेहरू
की चिठिठयों का
जवाब तक नहीं
दिया था। इसके बाद
इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री
बनने के बाद
लिंडन जॉनसन ने भारत
का अमरीकी कूटनीति
के हित में
इस्तेमाल करने की
कोशिश की थी
लेकिन इंदिरा गाँधी
ने अपने राष्ट्रहित
को महत्व दिया
और अमरीका के
हित से ज्यादा
महत्व अपने हित
को दिया और
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की नेता
के रूप में
भारत की इज़्ज़त
बढ़ाई। हालांकि अमरीका की
यह हमेशा से
कोशिश रही है
कि वह एशिया
की राजनीति
में भारत का
अमरीकी हित में
इस्तेमाल करे लेकिन
भारतीय विदेशनीति के नियामक
अमरीकी राष्ट्रहित के प्रोजेक्ट
में अपने आप
को पुर्जा बनाने
को तैयार नहीं
थे ।
पिछले
साठ वर्षों के
इतिहास पर नजऱ
डालें तो समझ
में आ जाएगा
कि अमरीका ने
भारत को हमेशा ही
नीचा दिखाने की
कोशिश की है।
1948 में जब कश्मीर
मामला संयुक्तराष्ट्र में
गया था तो
तेज़ी से सुपर
पावर बन रहे
अमरीका ने भारत
के खिलाफ काम
किया था। 1965 में जब
कश्मीर में घुसपैठ
हुआ उस वक्त
के पाकिस्तानी तानाशाह
जनरल अय्यूब ने भारत
पर हमला किया
था तो उनकी
सेना के पास
जो भी हथियार
थे सब अमरीका
ने ही उपलब्ध
करवाया था। उस
लड़ाई में जिन
पैटन टैंकों को
भारतीय सेना ने
रौंदा था, वे
सभी अमरीका की
खैरात के रूप
में पाकिस्तान की झोली
में आये थे।
पाकिस्तानी सेना के
हार जाने के
बाद अमरीका ने
भारत पर दबाव
बनाया था कि
वह अपने कब्जे
वाले पाकिस्तानी इलाकों
को छोड़ दे।
1971 की बंगलादेश की मुक्ति
की लड़ाई में
भी अमरीकी राष्ट्रपति
निक्सन ने
तानाशाह याहया खां के
बड़े भाई के
रूप में काम
किया था और
भारत को
धमकाने के लिए
अमरीकी सेना के
सातवें बेडे को
बंगाल की खाड़ी
में तैनात कर
दिया था ।
उस वक्त के
अमरीकी विदेशमंत्री हेनरी कीसिंजर
ने उस दौर
में पाकिस्तान की
तरफ से पूरी
दुनिया में
पैरवी की थी।
संयुक्तराष्ट्र में भी
भारत के खिलाफ
काम किया था।
जब भी भारत
ने परमाणु परीक्षण
किया अमरीका को
तकलीफ हुई ।
भारत ने बार
-बार पूरी दुनिया
से अपील की
कि बिजली पैदा
करने के लिए
उसे परमाणु शक्ति
का विकास करने
दिया जाए, लेकिन
अमरीका ने शान्तिपूर्ण
परमाणु के प्रयोग
की कोशिश के
बाद भारत के
ऊपर तरह-तरह
की पाबंदियां लगाईं।
उसकी हमेशा कोशिश
रही कि वह
भारत और पाकिस्तान
को बराबर की
हैसियत वाला मुल्क
बना कर रखे
लेकिन ऐसा करने
में वह सफल
नहीं रहा। आज
भारत के जिन
इलाकों में भी
अशांति है,वह
सब अमरीका की
कृपा से की
गयी पाकिस्तानी दखलंदाजी की वजह
से ही है।
कश्मीर में जो
कुछ भी पाकिस्तान
कर रहा है
उसके पीछे पूरी
तरह से अमरीका
का पैसा लगा
है । पंजाब
में भी आतंकवाद
पाकिस्तान की फौज
की कृपा से
ही शुरू हुआ
था ।
आज
हम देखते हैं
कि अमरीका ने
जिस पाकिस्तानी आतंकवाद
के ज़रिये भारत
की एकता पर
प्राक्सी हमला किया
था पाकिस्तान ही
मुसीबत बन गया
है। पाकिस्तानी फ़ौज़ और राजनेताओं
को चाहिए कि
वे अपने देश
की सुरक्षा को
सबसे ऊपर रखें और
भारत की मदद
से आतंकवाद के
खात्मे के लिए
योजना बनाएं वरना
एक राष्ट्र के
रूप में पाकिस्तान का
अस्तित्व खतरे में
पड़ जाएगा।
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