शुक्रवार, 8 मार्च 2013

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस


अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को दुनिया भर में मनाया जाता है.. इस दिन विश्व की तमाम महिलाएं अपने देश, क्षेत्र, जात-पात, भेष-भाषा, और राजनीतिक, सांस्कृतिक भेदभाव की सीमा को पार कर एकजुट होकर इस दिवस को बड़े ही उत्साह के साथ मनाती है.. इस दिन स्त्री की प्रेम, स्नेह व मातृत्व की ममता के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति भी सामने आती है.. आपको मालूम हो कि इक्कीसवीं सदी की महिलाओं ने खुद की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी सीख लिया है..
 वर्तमान परिवेश में तो वे पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर देश के तमाम गतिविघियों में हिस्सा भी ले रहीं है.. अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरूआत 1900 के आरंभ में हुई थी.. वर्ष 1908 में न्यूयार्क की एक कपड़ा मिल में काम करने वाली तकरीबन 15 हजार महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन और वोट का अधिकार देने के लिए प्रदर्शन किया था.. इसी क्रम में 1909 में अमेरिका की ही सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार नेशनल वुमन-डेमनाया था... वर्ष 1910 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाने का फैसला लिया गया और 1911 में पहली बार 19 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया.. इसे सशक्तिकरण का रूप देने के लिए ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैलियां निकाली.. बाद में वर्ष 1913 में महिला दिवस की तारीख ग्रिगेरियन कैलेंडर के हिसाब से 8 मार्च कर दी गई.. तब से ये प्रत्येक साल 8 मार्च को दुनिया भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है..

महिला सशक्तिकरण की शुरुआत भी संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च ,1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से ही मानी जाती हैं.. फिर महिला सशक्तिकरण की पहल 1985 में महिला अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन नैरोबी में की गई.. महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य महिलाओ की प्रगति और उनमें आत्मविश्वास का संचार करना हैं...

भारत में भी महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए और उन्हें सशक्त करने के लिए बहुत पहले से कार्य किए जा रहे हैं. इस कार्य की शुरुआत राजा राममोहन राय, केशव चन्द्र सेन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एवं स्वामी विवेकानन्द जैसे महापुरुषों ने की थी जिनके प्रयासों से नारी में संघर्ष क्षमता का आरम्भ होना शुरू हो गया था. इसी क्रम को और आगे बढ़ाया अन्य नेताओं ने... इन सब के साथ महिला सशक्तिकरण की राह में गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों को भी नहीं नकारा जा सकता..

महिला सशक्तिकरण से जुड़े तमाम पहलुओं को देखकर ऐसा लगता है कि महिला सशक्तिकरण के लिए समाज कितना जागरुक है और इसके लिए कितने बड़े-बड़े कार्य हो रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत किसी कड़वे सच्चाई से कम नहीं है... दुनिया भर में नारी सशक्तिकरण की गूंज और समता, समानता, आजादी के नारे तथा तमाम महिला संगठनों की सक्रियता एवं प्रगतिशील प्रयास के बावजूद भी पुरुष प्रधान समाज में नारी की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं है.. और आज भी समाज में महिलाएं दोयम दर्जे की जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं.. हालांकि भारतीय संविधान ने तो नारी को पुरुष के समकक्ष माना है और इसके लिए संविधान में उपबंध भी किया है.. इसके बावजूद भारतीय राजनीति में आजादी के 65 वर्षों बाद भी महिला की भागीदारी बहुत कम है और आज भी महिलाओं को संसद और विधानसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण का इंतजार है.. हालांकि विदेशों में आज महिलाएं जरुर कुछ हद तक सशक्तिकरण की राह पर चली हैं और आगे बढ़ी हैं लेकिन वहां भी उनके साथ होने वाले यौनिक अत्याचारों में कमी नहीं आई है..

मुस्लिम बहुल इलाके के लिए तो महिला सशक्तिकरण की बात करना बिलकुल बेमानी होगा, क्योंकि आज भी महिलाओं का दुनिया में सबसे ज्यादा शोषण मुस्लिम देशों में ही होता है.. जहां पर्दा और बुरके के अंदर महिलाओं को बांध कर रखा जाता है... अगर किसी महिला की अपने अधिकार के लिए आवाज उठ गई तो यह देश उस स्त्री को सरेआम मौत दे देते हैं... तुगलकी फरमानों का सितम हमेशा महिलाओं पर ही टूटता है.. इन देशों में न जाने कब महिला सशक्तिकरण की बयार चलेगी? जो लोग महिलाओं की जागरुकता की बात करते हैं वे कभी इन देशों में जाते ही नहीं हैं और न ही इनकी बात करते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि इन देशों में महिला सशक्तिकरण एक सपना है, जिसे पूरा करने के लिए एक क्रांति की आवश्यक्ता है...

वर्तमान परिवेश में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हमारे आगे कई ऐसी चुनैतियां हैं जिनका हमें सामना करना है. हमें समझना होगा कि मुठ्ठी भर महिलाओं के उत्थान करने से पूरे नारी समाज का कल्याण नहीं हो सकता, अगर महिलाओं को सशक्त करना है तो पहले समाज को जागरुक बनाना होगा.

आज चारो तरफ महिलाओं को लेकर अलग-अलग मुद्दों पर बहस चल रही है। मगर इन सबके बीच एक ऐसा मुद्दा है जो रहा तो हाशिए पर है लेकिन कभी बदलाव के लिये सुर्खियों में नहीं आ सका है। जी हां हम बात कर रहे हैं महिलाओं पर तेजाब फेंके जाने का मुद्दा जो शायद ही कभी अखबारों या न्‍यूज चैनलों की हेडलाइन बनी हों। अभी कुछ दिन पहले की बात करें तो चेन्‍नई में विनोदिनी ने दम तोड़ दिया। उसपर एक व्‍यक्ति ने बीते वर्ष नवबंर माह में तेजाब फेंक दिया था। तीन माह तक वो जख्‍मों से लड़ती रही और अंत में मौत ने जिंदगी पर विजय हासिल कर लिया। कुछ अखबारों और लोकल न्‍यूज चैनलों में खबरें छपी जरुर मगर कोई हल्‍ला नहीं हुआ। भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों में ऐसीड अटैक (तेजाबी हमला) बेहद गंभीर समस्या है। यह हमला सिर्फ महिला के चेहरे को ही खराब नहीं करता बल्कि उसकी आंखों की रोशनी छीन लेता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस हमले के बाद समाज उस पीडि़ता को दोयम दर्ज का नागरिक बना देता है। हो सकता है उसकी जान ना जाए मगर जिंदगी बेहद बोझिल और दर्दनाक होकर रह जाती है।

इस हमले के बाद जिस्‍म पर लगे घाव तो सबको दिखते हैं मगर पीडि़ता के ज़हन पर लगे घाव किसी को नजर नहीं आता। आत्मनिर्भर और जिंदादिली से भरपूर एक औरत देखते ही देखते असहाय, दूसरों पर आश्रित महिला बन जाती है। और हो भी क्‍यों ना? विकृत चेहरे से समझौता कर पाना आसान नहीं होता। इस पर कोई आधिकारिक आंकड़ें तो नहीं मिल पाए लेकिन भारत में भी पिछले एक दशक में तेजाब हमलों में वृद्धि हुई है। स्वयंसेवी संस्था एसिड सरवाइवल ट्रस्ट इंटरनेशनल ( एएसटीआई) के मुताबिक भारत में हर साल एसिड अटैक के करीब 500 मामले होते हैं। हालांकि इस जघन्‍य और नरकीय घटना के आधिकारिक आंकड़ें तो मौजूद नहीं है मगर भारत में पिछले एक दशक में तेजाबी हमलों में बढ़ोत्‍तरी हुई है। स्वयंसेवी संस्था एसिड सरवाइवल ट्रस्ट इंटरनेशनल (एएसटीआई) के मुताबिक भारत में हर साल एसिड अटैक के करीब 500 मामले होते हैं। बीबीसी ने पिछले कुछ दिनों में तेजाबी हमलों की शिकार हुई महिलाओं से बात कर उनकी आप बीती जानने की कोशिश की। जितनी भी पीडि़ताओं से बात की गई सबने एक ही बात कही कि तेजाब से हुआ हमला जिस्म ही नहीं ज़हन को भी अंदर तक छलनी कर जाता है। एसिड सर्वाइवर्स ट्रस्ट इंटरनेशनल के अनुसार दुनिया के करीब 23 देशों में हाल के वर्षों में एसिड हमलों की घटनाएं हुईं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के भी नाम हैं। लेकिन ये इन देशों में दूसरी जगहों की अपेक्षा हमलों की संख्या बेहद कम है। महिलाओं पर एसिड हमलों की सबसे अधिक घटनाएँ भारत, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश के अलावा कंबोडिया में दर्ज की गई हैं। आमतौर पर इस हमले की शिकार महिलाएं होती हैं। या फिर ये कहें कि इस हमले की शिकार महिलाएं ही होती हैं तो कोई अतिश्‍योक्ति नहीं होगी। घरेलू हिंसा हो या फिर टूटा प्रेम संबंध हर मामले में गाज महिला पर ही गिरती है। कई मामलों में देखा जाता है कि दोषी जमानत पर रिहा हो जाते हैं और उनकी जिंदगी आगे बढ़ जाती है। जबकि पीड़ित की जिंदगी वहीं की वहीं थम कर रह जाती है। लेकिन इस सब के बावजूद भारत जैसे देशों में एसिड अटैक के मामले सुर्खियों से दूर और सरकारी निगाह से परे कहीं भटकते रहते हैं। तेजाब हमलों की घटनाएं: नवंबर 2012- पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में बेटी पर तेजाब फेंका। मार्च 2012- इंग्लैंड में नस्लवादी हमले में एक काली महिला पर तेजाब फेंका। फरवरी 2012- इंग्लैंड में एक मॉडल पर उसके पूर्व बॉयफ्रेंड ने तेजाब फिंकवाया। 2007- कंबोडिया की 23 साल की विवियाना पर हमला। चेहरा, हाथ और छाती जली। 2004- ईरान में शादी के लिए मना करने पर 24 साल की अमेना पर लड़के ने तेजाब फेंका। फरवरी 2013- फरीदाबाद में छात्रा पर तेजाब फेंक देना दिसंबर 2012- लखनऊ में किशोरी पर तेजाबी हमला जून 2012- पाकिस्‍तान में दो महिलाओं पर तेजाब फेंका गया तेजाबी हमलों को रोकने के लिए कानून एसिड या तेजाब से हमला होने की सूरत में भारत में कोई सशक्त कानून नहीं है। यूं तो ऐसे अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 329, 322 और 325 के तहत दर्ज होते हैं। लेकिन इसके अलावा पीडि़तों के इलाज, पुनर्वास और काउंसलिंग के लिए भी सरकार की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि ऐसे हादसों में पीडि़त को अपूरणीय क्षति उठानी पड़ती है। इन हादसों का मन-मस्तिष्क पर लंबे समय तक विपरीत प्रभाव बना रहता है। लचर कानून व्यवस्था से बढ़ रहा है तेजाबी हमला दोषियों का छूट जाना। तेजाब की बिक्री में रेगोलूशन नहीं। पीड़ितों के इलाज की जिम्मेदारी किसकी। पीड़ितों के मनोवैज्ञानिक और आर्थिक पुनर्वास की समस्या। आज शुरू हुई मुहिम एसिड अटैक जैसे जघन्‍य अपराध के खिलाफ एक मुहिम आज ही महिला दिवस के मौके पर शुरू हुई है। इस मुहिम के 13 सिपाहियों को वनइंडिया सलाम करता है। इस टीम के 13 सदस्‍य हैं- 1. समाज सेविका अर्चना कुमारी, जो एक तेजाबी हमले की पीडि़ता हैं! 2. आलोक दीक्षित, पत्रकार-समाज सेवक। 3. सपना भवनानी, जिन्‍हें आपने हाल ही में बिगबॉस में देखा। 4. असीम त्रिवेदी, जाने माने काटूर्निस्‍ट हैं। 5. मनीषा पांडे, दिल्‍ली की पत्रकार हैं। 6. अनुराग द्विवेदी, इंजीनियर हैं। 7. आशीष तिवारी, पत्रकार एवं कवि हैं। 8. मनीषा कुलश्रेष्‍ठ, हिन्‍दी लेखिका हैं। 9. आशीष शुक्‍ला, पत्रकार हैं। 10. नीतेष श्रीवास्‍तव, फिल्‍म मेकर एवं टेक्निक मास्‍टर हैं। 11. श्रेया मजुमदार, दिल्‍ली की पत्रकार हैं। 12. शमीम जकारिया, टीवी पत्रकार। 13. मनोरमा सिंह, वरिष्‍ठ पत्रकार हैं। इन सभी ने मिलकर इंटरनेट पर एक वेबसाइट के माध्‍यम से मुहिम शुरू की है। वेबसाइट का नाम है http://www.stopacidattacks.org/

सरकार ने आज देश का पहला महिला डाकघर खोला। राष्ट्रीय राजधानी के शास्त्री भवन में खुले इस डाकघर में सभी कर्मचारी महिलाएं हैं। सरकार ने इस तरह की और शाखाएं खोलने की योजना की भी घोषणा की।
दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, आने वाले दिनों में मुझे विश्वास है, देशभर में महिलाओं की सुविधाओं के लिए और महिला डाकघर खोला जाएगा। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर देश में पहला महिला शाखा का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि नए डाकघर का परिचालन पूरी तरह महिला कर्मचारी करेंगी और अन्य डाकघरों में मौजूद सभी सुविधाएं यहां उपलब्ध होंगी।सिब्बल ने कहा, यह देश का पहला डाकघर है, जहां सभी कर्मचारी महिलाएं होंगी। सरकार उन समस्याओं पर गौर कर रही है, जिसका सामना महिलाओं को करना पड़ता है और उस दिशा में यह एक सांकेतिक कदम है। वित्त वर्ष 2013-14 के बजट में अक्तूबर के अंत तक महिला बैंक स्थापित करने की घोषणा की गई है।डाक विभाग की सचिव पी गोपीनाथ ने कहा कि विभाग की इस प्रकार का डाकघर हर महानगर में खोलने की योजना है और बाद में इसे उन सभी बड़े शहरों में खोला जाएगा जहां कामकाजी महिलाओं की संख्या ज्यादा है।

उन्होंने कहा, जब महिलाएं आपास में बातचीत करती हैं तो उनमें अलग संतोष का बोध होता है। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर हम उन जगहों पर डाकघर खोलेंगे जहां बड़ी संख्या में महिलाएं हैं। हमने शुरू में ऐसा डाकघर खोलने के लिये मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, लखनऊ, हैदराबाद तथा बेंगलुरु की पहचान की है। गोपीनाथ ने कहा कि विभाग पुरानी दिल्ली में एक पखवाड़े के भीतर और महिला डाकघर खोलेगा।

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