आज हर राज्य में पर्यटन का अपना स्वतंत्र
मंत्रालय है, उसके
बहुत से विभाग हैं, निगम हैं, बोर्ड
हैं और बाहर निजी क्षेत्र में भी अनगिनत संस्थान और इस उद्यम से जुड़े लाखों लोग
हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन बड़े शहरों और ऐतिहासिक-धार्मिक-प्राकृतिक महत्व के
स्थलों से जुड़ा यह उद्यम अब लगातार उनके आस-पास के ग्रामीण इलाकों और वहां के
ग्रामीण जीवन को अपनी लालसा में लपेटता जा रहा है। उन ग्रामीणों का खान-पान,
पहनावा, उनके तीज-त्यौहार और लोकानुरंजन के
उत्सव अपने मूल स्वरूप से हटकर उनके आमोद-प्रमोद का हिस्सा होकर एक तरह के पर्यटक
बाजार में तब्दील होते जा रहे हैं। शायद यह उसी का परिणाम है कि आज हर बड़े शहर
में ऐसे अनोखे गांव और चौखी-अनोखी ढाणियां विकसित हो गई हैं, जो उन्हें शहर में ही गंवई खुलेपन और अपनाने का आभास देने लगी हैं और ये सैलानियों के आकर्षण
का बहुत बड़ा केन्द्र भी बनती जा रही हैं। सुदूर ग्रामीण इलाकों में बने किले,
हवेलियां और रावले, जो देखरेख के अभाव में
खंडहर होते जा रहे थे, वे अच्छी-खासी हेरिटेज होटल्स और
रेस्तराओं में तब्दील होकर कमाई का नायाब जरिया बन गये हैं।
पर्यटन एक ऐसा व्यवसाय है जो अपना आधारभूत
ढांचा भी स्वयं अपने दबाव से विकसित करवा लेता है। वह इस बात का इंतजार नहीं करता
कि कोई - सरकार या बाहरी संस्था - पहले आगे बढ़कर उसके लिए बुनियादी सुविधाएं जुटा
दे तो वहां पर्यटन की गतिविधियां शुरू की जाएं। अनुभव बताता है कि ऐसे बहुत से
स्थल हैं, जहां पर्यटक पहले पहुंचे
और सुविधाएं बाद में धीरे-धीरे जुटती चली गईं - ऐसी सुविधाएं जुटाना खुद जुटाने
वालों के लिए भी अन्तत: फायदे का सौदा ही साबित होती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों की ओर बढ़ते इस पर्यटन
या पर्यटन की लपेट में आते ग्रामीण जीवन के बीच का रिश्ता उतना सरल और सीधा नहीं
होता, जितना ऊपर से दिखाई देता
है। पहली बात तो यही कि आजादी के बाद पिछले पच्चीस-तीस सालों में ग्रामीण जीवन में
ऊपरी तौर पर बेशक कुछ बदलाव आया हो - जैसे सभी बड़े गांव आवागमन के साधनों
(रेल-सड़क यातायात) से जोड़ दिये गये हैं, ग्रामीण
विद्युतीकरण की नयी योजनाओं ने, बावजूद अपने अन्दरूनी संकट
के, उन गांवों को जमीनी बिजली से जोड़ दिया है, जहां बिजली सिर्फ बादलों के बीच ही झलक दिखाया करती थी, घर में खंभे से कनेक्शन जोड़ लेने के बाद भी वह रौशनी दे पाए या न दे पाए,
वह एक अलग मसला है, पानी की पाइप-लाइनें भी
बिछ गई हैं, गांवों के बीच चौखंभी मीनारों पर पानी की बड़ी
टंकियां भी खड़ी कर दी गई हैं, उनमें पानी की आपूर्ति हो पाए
या न हो पाए, इसकी कोई जवाबदेही अभी निश्चित नहीं है! उपग्रह
प्रणाली की बड़ी सफलता के बाद हर गांव में दूर-संचार की सेवाएं पहुंचा दी गई हैं -
हालत यह कि हर गली-मोहल्ले में एस.टी.डी. बूथ बुला-बुलाकर बातें करने की मनुहार कर
रहे हैं, और यों भी निजी क्षेत्र में हुए फफूंदी-विस्तार के
बाद तो अब दूर-संचार सेवाएं किसी सरकारी तंत्र की मोहताज भी नहीं रह गई हैं।
परिवहन और ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में आई नई क्रान्ति के कारण दुपहिया और चौपहिया
वाहन अब गांवों में आवागमन के आम साधनों की तरह हो गये हैं और रही-सही कसर
जन-संचार के नये माध्यमों और कंप्यूटर के विस्तार तथा 'सूचना
क्रान्ति` ने पूरी कर दी है।
विचारणीय बात यह है कि ऐसे में ग्रामीण
पर्यटन को किस नजरिये से देखा जाय! हालत यह है कि अपनी गरीबी और दीन-दशा के कारण
वह वैसे भी सैलानियों के लिए एक अवांछित आदमी की तरह है। जिस गांव में वह रहता है, वहां अब उसके लिए कोई काम
नहीं रह गया है, पैसा खर्च करके प्राप्त की जा सकने वाली
बिजली-पानी की सुविधाएं वैसे ही उसकी पहुंच से बाहर हैं। जन-संचार और दूर-संचार के
साधनों का उसके लिए कोई खास अर्थ-मतलब नहीं है, वे अब भी
उसके लिए विलासिता की चीजें हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग भी वह और
उसका परिवार कम ही कर पाता है। अपनी बढ़ती हुई संख्या और दीन-हीन दशा के कारण वह
भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक दलों और जन-संचार के व्यावसायिक माध्यमों के लिए
स्वयं किसी मनोरंजन से कम नहीं रह गया है। उनके क्राइम-वारदात के सनसनीखेज सीरियल
उसी के तो बूते पर चलते हैं, जो विज्ञापन जगत में अच्छा
बिजनस बटोरते हैं। राजनीतिक दलों के लिए भी मतदाता तो वह है ही, इसलिए उसे अनदेखा भी नहीं किया जा सकता - ऐसे में एक ही तरीका बच रहता है
कि उसके सामने देश की गरीबी और बढ़ती हुई आबादी का रोना रोया जाय, और वह भी कुछ इस अंदाज में कि इसके लिए भी वही अपने आपको कोसे! उसे बताया
जाता है कि देश लगातार तरक्की कर रहा है, लेकिन वे अभागे लोग
अपने पिछड़ेपन, अशिक्षा और अपनी सामाजिक बुराइयों के कारण उस
प्रक्रिया में भाग नहीं ले पा रहे हैं, उन्हें जल्द-से-जल्द
अपनी इन कमजोरियों पर काबू पाना चाहिए और विकास की मुख्य-धारा में शामिल हो जाना
चाहिए। वह जब तक अपनी दुरावस्था पर इस तरह के विवेचन और व्याख्यान सुनता रहेगा,
उससे बाहर निकलने के उपाय पर खुद कोई विचार या पहल नहीं करेगा और उन
लोगों को अपनी सोच पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य नहीं कर देगा, जो उसी बूते पर अपनी राजनीति और सार्वजनिक जीवन में जिन्दा हैं, तब तक इस विकट परिस्थिति का क्या हल संभव है, कहना
आसान नहीं है!
ग्रामीण पर्यटन योजना विशेष रूप से गांवों
में ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थी जिससे ग्रामीण पर्यटन को
बढ़ावा मिल सके। बाद में प्रायोगिक आधार पर संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम
(यूएनडीपी) के साथ मिलकर इंडोजिनस टूरिज़म प्रोजेक्ट (ईटीपी) को इसके साथ जोड़ा
गया। इस परियोजना का उद्देश्य भी टिकाऊ आजीविका, पुरूष और महिला में समानता, महिलाओं,
युवा और समुदाय के अन्य वंचित वर्गों का सशक्तिकरण और सांस्कृतिक
संवेदनशीलता तथा पर्यावरणीय स्थिरता पर कार्य करने जैसे मुद्दों पर ध्यान देना
है।
पर्यटन मंत्रालय की क्षमता निर्माण योजना
के तहत क्षमता निर्माण गतिविधियों के लिए 2006 से वित्तीय सहायता भी दी जा रही है। पंडुरंगा
ग्रामीण पर्यटन का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में ग्रामीण पर्यटन
की 2004 में बारामती जिले में एक प्रायोगिक परियोजना के रूप
में शुरूआत हुई थी। यहां 65 एकड़ के क्षेत्र में बागबानी
होती है। उन्होंने कहा कि जब शहर से लोग घूमने आते हैं तो रेशम प्रसंस्करण
इकाइयों, दूध की डेयरी और फलों के बाग भी देखते हैं। ग्रामीण
पर्यटन को प्रोत्साहित करने का एक उद्देश्य यह भी था कि गांव के लोगों का शहरों
में पलायन रोका जा सके। 2004 से महाराष्ट्र में ग्रामीण और
कृषि पर्यटन के 200 से अधिक केंद्र विकसित हुए हैं और एक लाख
से ज्यादा पर्यटक यहां घूमने आए हैं। इसके अतिरिक्त किसान, गांव के बेरोज़गार युवक भी ग्रामीण पर्यटन की गतिविधियों से जुड़ गए हैं।
राजस्थान एक अन्य राज्य है जहां ग्रामीण
पर्यटन पिछले कुछ समय में तेजी से विकसित हुआ है। राजस्थान न केवल अपने ऐतिहासिक
स्मारकों और धर्मस्थलों के लिए प्रसिद्ध है बल्कि अपने शिल्प, नृत्य और संगीत जैसी ललित
कलाओं की समृद्धि संस्कृति के लिए भी मशहूर है। मुरारका फाउंडेशन के विजयदीप सिंह
के अनुसार उन्होंने न केवल भारतीय पर्यटकों बल्कि अमरीका, फ्रांस,
इंग्लैंड और यहां तक कि स्विट्जरलैंड के पर्यटकों के लिए अनेक पैकेज
तैयार किए हैं। उन्होंने बताया कि कई पर्यटक स्थानीय जीवन, खानपान
और संस्कृति का सीधे तौर पर आनंद लेने के लिए गांव वालों के साथ उनके घर पर ही
रुकना चाहते हैं। इस तरह के पैकेज के अंतर्गत पर्यटकों से एक दिन के लिए 1200 रुपए लिए जाते हैं, जिसमें से 850 रुपए किसानों के परिवारों को दे दिए जाते हैं। पर्यटकों के लिए यह कोई
महंगा शौक नहीं है और किसान को भी इससे अतिरिक्त आमदनी हो जाती है।
पंजाब में कृषि पर्यटन लोकप्रिय हो चुका
है। कोई भी व्यक्ति पीली सरसों के खेतों में घूमफिर सकता है, ट्रैक्टर पर घूम सकता है,
मवेशियों को चराने के लिए ले जा सकता है या उन्हें खाना खिला सकता
है, हरे भरे खेतों में मक्के की रोटी और साग के साथ छांछ का
लुत्फ उठा सकता है, लोकनृत्य भांगड़ा का मजा लेने के साथ
स्थानीय शिल्प फुलकारी बनते हुए देखने के अलावा ग्रामीण समुदाय और पंचायत से मिल
सकता है। पर्यटक कुश्ती, गिल्ली-डंडा, पतंगबाजी
जैसे स्थानीय खेलों में भाग ले सकते हैं या उन्हें देख सकते हैं। बच्चे घास पर
उछलकूद करने के साथ-साथ ट्यूबल में नहा सकते हैं। अनेक अन्य राज्य भी ग्रामीण
पर्यटन को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
12वीं योजना में ग्रामीण
पर्यटन को बढ़ावा देने की रणनीति
12वीं योजना के लिए पर्यटन
के बारे में कार्यदल का मानना है कि अनेक कारणों से ग्रामीण पर्यटन से जुड़ी
परियोजनाओं के सीमित सफलता मिली है। इस कार्यदल ने एक योजना का सुझाव दिया है
जिसके अंतर्गत ग्रामीण पर्यटन की पूरी संभावनाओं का पता लगाया जा सकता है। ग्रामीण
पर्यटन को विकसित करने की रणनीति एक गांव को विकसित करने की बजाय गांवों के समूहों
को अलग-अलग चरणों में विकसित करने पर केंद्रित है। इसमें कहा गया है कि भौगोलिक
दृष्टि से आसपास मौजूद गांवों के समूहों में पर्यटन सुविधाओं या अवसरों पर विशेष
ध्यान देने से पर्यटकों को बेहतर तरीके से आकर्षित किया जा सकता है। शिल्प बाजार
या हाट लगाकर स्थानीय उत्पादों की मार्केटिंग की जा सकती है। टूर ऑपरेटर ऐसे सस्ते
और व्यावहारिक यात्रा पर बड़ी संख्या में पर्यटन के इलाकों में ले जा सकते हैं
जहां उनके लिए जीवन शैली, स्थानीय कला और शिल्पियों/कलाकारों
और ललित कला सहित विविधता से भरे शॉपिंग के अवसर उपलब्ध हों।
इस साल में केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय का
ग्रामीण पर्यटन पर विशेष जोर रहेगा। देश के 32 गांवों को पर्यटन का केंद्र बनाने के लिए मंत्रालय
ने 50-50 लाख रुपये देने की घोषणा की है। राज्य सरकारों से
कहा गया है कि वे चुने गए गांवों को पर्यटन का केंद्र बनाने की योजना को गंभीरता
से लेते हुए उनके इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की जरूरतें पूरी करें।
इन 32 गांवों के विकास के लिए केंद्र की ओर से ग्रामीण
विकास के कोटे से दी जाने वाली राशि भी प्राथमिकता के साथ जारी की जाएगी। इस काम
में पंचायतों को विशेष रूप से भागीदार बनाया जा रहा है। इन पंचायतों को जिम्मेदारी
सौंपी गई है कि वे खुद इन प्रोजेक्ट पर नजर रखें और निगरानी रखें कि गांवों में
सड़क बनाने , पानी की निकासी और इन्फ्रास्ट्रक्चर के दूसरे
काम वक्त पर पूरे हो रहे हैं या नहीं।
इन प्रोजेक्ट को सही ढंग से अंजाम देने के
लिए राज्यस्तरीय मॉनिटरिंग कमेटियों का भी गठन किया जा रहा है। ये कमेटियां पर्यटन
मंत्रालय को प्रोजेक्ट डिवेलपमेंट की तिमाही रिपोर्ट भेजेंगी। यही नहीं , मंत्रालय ने अपने फील्ड
अफसरों को भी प्रोजेक्ट की लगातार समीक्षा रिपोर्ट देने को कहा है , ताकि वे तय वक्त पर पूरी हो सकें।
पर्यटन राज्य मंत्री रेणुका चौधरी का कहना
है कि भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण पर्यटन नए डेस्टिनेशन उपलब्ध
कराने में काफी कारगर साबित होगा। ग्रामीण पर्यटन के प्रति विदेशी पर्यटकों में
काफी उत्साह देखा जा रहा है। इससे भारतीय पर्यटन को एक नई दिशा मिलेगी। यह सिर्फ
गांवों के भ्रमण तक ही सीमित नहीं है। पहले स्टेज में जिन गांवों का चयन किया गया
है , वे भारतीय कल्चर और
इतिहास की झलक हैं। विदेशी पर्यटक यहां की कला , रहन-सहन ,
खान-पान और रीति-रिवाज को न केवल जानेंगे , बल्कि
वे इन गांवों में रहकर सही माने में वहां की मिट्टी और माहौल की खुशबू से भी
तरोताजा हो सकेंगे।
चौधरी ने बताया कि गांवों के युवाओं और
महिलाओं को पर्यटन के व्यवसायिक पहलुओं से जोड़ा जाएगा। उन्हें ट्रेनिंग देकर सही
मायने में भागीदार बनाया जाएगा। इसके लिए मंत्रालय संबंधित एजेंसियों से बातचीत कर
रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रोजेक्ट की सफलता राज्य सरकारों के सक्रिय सहयोग पर
ही निर्भर है , इसलिए
प्रोजेक्ट से जुड़े राज्यों के जिला प्रशासनों के साथ बराबर संपर्क रखा जाएगा।
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