रविवार, 24 मार्च 2013

सौर ऊर्जा



सौर ऊर्जा वह उर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है। सौर उर्जा ही मौसम एवं जलवायु का परिवर्तन करती है। यहीं धरती पर सभी प्रकार के जीवन (पेड़-पौधे और जीव-जन्तु) का सहारा है।
वैसे तो सौर उर्जा के विविध प्रकार से प्रयोग किया जाता है, किन्तु सूर्य की उर्जा को विदयुत उर्जा में बदलने को ही मुख्य रूप से सौर उर्जा के रूप में जाना जाता है। सूर्य की उर्जा को दो प्रकार से विदुत उर्जा में बदला जा सकता है। पहला प्रकाश-विद्युत सेल की सहायता से और दूसरा किसी तरल पदार्थ को सूर्य की उष्मा से गर्म करने के बाद इससे विद्युत जनित्र चलाकर।
सूर्य एक दिव्य शक्ति स्रोतशान्त व पर्यावरण सुहृद प्रकृति के कारण नवीकरणीय सौर ऊर्जा को लोगों ने अपनी संस्कृति व जीवन यापन के तरीके के समरूप पाया है। विज्ञान व संस्कृति के एकीकरण तथा संस्कृति व प्रौद्योगिकी के उपस्करों के प्रयोग द्वारा सौर ऊर्जा भविष्य के लिए अक्षय ऊर्जा का स्रोत साबित होने वाली है।
सूर्य से सीधे प्राप्त होने वाली ऊर्जा में कई खास विशेषताएं हैं। जो इस स्रोत को आकर्षक बनाती हैं। इनमें इसका अत्यधिक विस्तारित होना, अप्रदूषणकारी होना व अक्षुण होना प्रमुख हैं। सम्पूर्ण भारतीय भूभाग पर 5000 लाख करोड़ किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मी० के बराबर सौर ऊर्जा आती है जो कि विश्व की संपूर्ण विद्युत खपत से कई गुने अधिक है। साफ धूप वाले (बिना धुंध व बादल के) दिनों में प्रतिदिन का औसत सौर-ऊर्जा का सम्पात 4 से 7 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर तक होता है। देश में वर्ष में लगभग 250 से 300 दिन ऐसे होते हैं जब सूर्य की रोशनी पूरे दिन भर उपलब्ध रहती है।
सौर ऊर्जा, जो रोशनी व उष्मा दोनों रूपों में प्राप्त होती है, का उपयोग कई प्रकार से हो सकता है। सौर उष्मा का उपयोग अनाज को सुखाने, जल उष्मन, खाना पकाने, प्रशीतलन, जल परिष्करण तथा विद्युत ऊर्जा उत्पादन हेतु किया जा सकता है। फोटो वोल्टायिक प्रणाली द्वारा सौर प्रकाश को बिजली में रूपान्तरित करके रोशनी प्राप्त की जा सकती है, प्रशीतलन का कार्य किया जा सकता है, दूरभाष, टेलीविजन, रेडियो आदि चलाए जा सकते हैं, तथा पंखे व जल-पम्प आदि भी चलाए जा सकते हैं।
जल का उष्मन सौर-उष्मा पर आधारित प्रौद्योगिकी का उपयोग घरेलू, व्यापारिक व औद्योगिक इस्तेमाल के लिए जल को गरम करने में किया जा सकता है। देश में पिछले दो दशकों से सौर जल-उष्मक बनाए जा रहे हैं। लगभग 4,50,000 वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के सौर जल उष्मा संग्राहक संस्थापित किए जा चुके हैं जो प्रतिदिन 220 लाख लीटर जल को 60-70° से० तक गरम करते हैं। भारत सरकार का अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय इस ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहन देने हेतु प्रौद्योगिकी विकास, प्रमाणन, आर्थिक एवं वित्तीय प्रोत्साहन, जन-प्रचार आदि कार्यक्रम चला रहा है। इसके फलस्वरूप प्रौद्योगिकी अब लगभग परिपक्वता प्राप्त कर चुकी है तथा इसकी दक्षता और आर्थिक लागत में भी काफी सुधार हुआ है। वृहद् पैमाने पर क्षेत्र-परिक्षणों द्वारा यह साबित हो चुका है कि आवासीय भवनों, रेस्तराओं, होटलों, अस्पतालों व विभिन्न उद्योगों (खाद्य परिष्करण, औषधि, वस्त्र, डिब्बा बन्दी, आदि) के लिए यह एक उचित प्रौद्योगिकी है।
जब हम सौर उष्मक से जल गर्म करते हैं तो इससे उच्च आवश्यकता वाले समय में बिजली की बचत होती है। 100 लीटर क्षमता के 1000 घरेलू सौर जल-उष्मकों से एक मेगावाट बिजली की बचत होती है। साथ ही 100 लीटर की क्षमता के एक सौर उष्मक से कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 1.5 टन की कमी होगी। इन संयंत्रों का जीवन-काल लगभग 15-20 वर्ष का है।
सौर-पाचक (सोलर कुकर)' सौर उष्मा द्वारा खाना पकाने से विभिन्न प्रकार के परम्परागत ईंधनों की बचत होती है। बाक्स पाचक, वाष्प-पाचक व उष्मा भंडारक प्रकार के एवं भोजन पाचक, सामुदायिक पाचक आदि प्रकार के सौर-पाचक विकसित किए जा चुके हैं। ऐसे भी बाक्स पाचक विकसित किए गये हैं जो बरसात या धुंध के दिनों में बिजली से खाना पकाने हेतु प्रयोग किए जा सकते हैं। अबतक लगभग 4,60,000सौर-पाचक बिक्री किए जा चुके हैं।
सौर वायु उष्मन सूरज की गर्मी के प्रयोग द्वारा कटाई के पश्चात कृषि उत्पादों व अन्य पदार्थों को सुखाने के लिए उपकरण विकसित किए गये हैं। इन पद्धतियों के प्रयोग द्वारा खुले में अनाजों व अन्य उत्पादों को सुखाते समय होने वाले नुकसान कम किए जा सकते हैं। चाय पत्तियों, लकड़ी, मसाले आदि को सुखाने में इनका व्यापक प्रयोग किया जा रहा है।
सौर स्थापत्य किसी भी आवासीय व व्यापारिक भवन के लिए यह आवश्यक है कि उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों के लिए वह सुखकर हो। ``सौर-स्थापत्य वस्तुत: जलवायु के साथ सामन्जस्य रखने वाला स्थापत्य है। भवन के अन्तर्गत बहुत सी अभिनव विशिष्टताओं को समाहित कर जाड़े व गर्मी दोनों ऋतुओं में जलवायु के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके चलते परम्परागत ऊर्जा (बिजली व ईंधन) की बचत की जा सकती है।
आदित्य सौर कार्यशालाएँ भारत सरकार के अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय के सहयोग से देश के विभिन्न भागों में ``आदित्य सौर कार्यशालाएँ स्थापित की जा रही हैं नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों की बिक्री, रखरखाव, मरम्मत एवं तत्सम्बन्धी सूचना का प्रचार-प्रसार इनका मुख्य कार्य होगा। सरकार इस हेतु एकमुश्त धन और दो वर्षों तक कुछ आवर्ती राशि उपलब्ध कराती है। यह अपेक्षा रखी गयी है कि ये कार्यशालाएँ ग्राहक-सुहृद रूप से कार्य करेंगी एवं अपने लिए धन स्वयं जुटाएंगी।
सौर फोटो वोल्टायिक कार्यक्रम सौर फोटो वोल्टायिक तरीके से ऊर्जा, प्राप्त करने के लिए सूर्य की रोशनी को सेमीकन्डक्टर की बनी सोलार सेल पर डाल कर बिजली पैदा की जाती है। इस प्रणाली में सूर्य की रोशनी से सीधे बिजली प्राप्त कर कई प्रकार के कार्य सम्पादित किये जा सकते हैं।
भारत उन अग्रणी देशों में से एक है जहाँ फोटो वोल्टायिक प्रणाली प्रौद्योगिकी का समुचित विकास किया गया है एवं इस प्रौद्योगिकी पर आधारित विद्युत उत्पादक इकाईयों द्वारा अनेक प्रकार के कार्य सम्पन्न किये जा रहे हैं। देश में नौ कम्पनियों द्वारा सौर सेलों का निर्माण किया जा रहा है एवं बाइस द्वारा फोटोवोल्टायिक माड्यूलों का। लगभग 50 कम्पनियां फोटो वोल्टायिक प्रणालियों के अभिकल्पन, समन्वयन व आपूर्ति के कार्यक्रमों से सक्रिय रूप से जुड़ी हुयी हैं। सन् 1996-99 के दौरान देश में 9.5 मेगावाट के फोटो वोल्टायिक माड्यूल निर्मित किए गये। अबतक लगभग 600000 व्यक्तिगत फोटोवोल्टायिक प्रणालियां (कुल क्षमता 40 मेगावाट) संस्थापित की जा चुकी हैं। भारत सरकार का अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय सौर लालटेन, सौर-गृह, सौर सार्वजनिक प्रकाश प्रणाली, जल-पम्प, एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एकल फोटोवोल्टायिक ऊर्जा संयंत्रों के विकास, संस्थापना आदि को प्रोत्साहित कर रहा है।
फोटो वोल्टायिक प्रणाली माड्यूलर प्रकार की होती है। इनमें किसी प्रकार के जीवाष्म उर्जा की खपत नहीं होती है तथा इनका रख रखाव व परिचालन सुगम है। साथ ही ये पर्यावरण सुहृद हैं। दूरस्थ स्थानों, रेगिस्तानी इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों, द्वीपों, जंगली इलाकों आदि, जहाँ प्रचलित ग्रिड प्रणाली द्वारा बिजली आसानी से नहीं पहुँच सकती है, के लिए यह प्रणाली आदर्श है। अतएव फोटो वोल्टायिक प्रणाली दूरस्थ दुर्गम स्थानों की दशा सुधारने में अत्यन्त उपयोगी है।
सौर लालटेन सौर लालटेन एक हल्का ढोया जा सकने वाली फोटो वोल्टायिक तंत्र है। इसके अन्तर्गत लालटेन, रख रखाव रहित बैटरी, इलेक्ट्रानिक नियंत्रक प्रणाली, 7 वाट का छोटा फ्लुओरेसेन्ट लैम्प युक्त माड्यूल तथा एक 10 वाट का फोटो वोल्टायिक माड्यूल आता है। यह घर के अन्दर व घर के बाहर प्रतिदिन 3 से 4 घंटे तक प्रकाश दे सकने में सक्षम है। किरासिन आधारित लालटेन, ढ़िबरी, पेट्रोमैक्स आदि का यह एक आदर्श विकल्प है। इनकी तरह न तो इससे धुआँ निकलता है, न आग लगने का खतरा है, और न स्वास्थ्य का। अबतक लगभग 2.50,000 के उपर सौर लालटेने देश के ग्रामीण इलाकों में कार्यरत हैं।
सौर जल-पम्प फोटो वोल्टायिक प्रणाली द्वारा पीने व सिंचाई के लिए कुओं आदि से जल का पम्प किया जाना भारत के लिए एक अत्यन्त उपयोगी प्रणाली है। सामान्य जल पम्प प्रणाली में 900 वाट का फोटो वाल्टायिक माड्यूल, एक मोटर युक्त पम्प एवं अन्य आवश्यक उपकरण होते हैं। अबतक 4,500 से उपर सौर जल पम्प संस्थापित किये जा चुके हैं।
ग्रामीण विद्युतीकरण (एकल बिजली घर) फोटोवोल्टायिक सेलों पर आधारित इन बिजली घरों से ग्रिड स्तर की बिजली ग्रामवासियों को प्रदान की जा सकती है। इन बिजली घरों में अनेकों सौर सेलों के समूह, स्टोरेज बैटरी एवं अन्य आवश्यक नियंत्रक उपकरण होते हैं। बिजली को घरों में वितरित करने के लिए स्थानीय सौर ग्रिड की आवश्यकता होती है। इन संयंत्रों से ग्रिड स्तर की बिजली व्यक्तिगत आवासों, सामुदायिक भवनों व व्यापारिक केन्द्रों को प्रदान की जा सकती है। इनकी क्षमता 1.25 किलोवाट तक होती है। अबतक लगभग एक मेगावाट की कुल क्षमता के ऐसे संयंत्र देश के विभिन्न हिस्सों में लगाए जा चुके हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, देश का उत्तर पूर्वी क्षेत्र, लक्षद्वीप, बंगाल का सागर द्वीप, व अन्डमान निकोबार द्वीप समूह प्रमुख हैं।
सार्वजनिक सौर प्रकाश प्रणाली ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्थानों एवं गलियों, सड़कों आदि पर प्रकाश करने के लिए ये उत्तम प्रकाश स्रोत है। इसमें 74 वाट का एक फोटो वोल्टायिक माड्यूल, एक 75 अम्पीयर-घंटा की कम रख-रखाव वाली बैटरी तथा ११ वाट का एक फ्लुओरेसेन्ट लैम्प होता है। शाम होते ही यह अपने आप जल जाता है और प्रात:काल बुझ जाता है। देश के विभिन्न भागों में अबतक 40,000 से अधिक इकाईयां लगायी जा चुकी है।
घरेलू सौर प्रणाली घरेलू सौर प्रणाली के अन्तर्गत 2 से 4 बल्ब (या ट्यूब लाइट) जलाए जा सकते हैं, साथ ही इससे छोटा डीसी पंखा और एक छोटा टेलीविजन 2 से 3 घंटे तक चलाए जा सकते हैं। इस प्रणाली में 37 वाट का फोटो वोल्टायिक पैनेल व 40 अंपियर-घंटा की अल्प रख-रखाव वाली बैटरी होती है। ग्रामीण उपयोग के लिए इस प्रकार की बिजली का स्रोत ग्रिड स्तर की बिजली के मुकाबले काफी अच्छा है। अबतक पहाड़ी, जंगली व रेगिस्तानी इलाकों के लगभग 1,00,000 घरों में यह प्रणाली लगायी जा चुकी है।
सौर ऊर्जा का उद्योग एक नया लेकिन तेज़ गति से विकास कर रहा उद्योग है। पिछले 10 वर्षों के दौरान दुनिया में उन प्रौद्योगिकियों का त्वरित विकास हो रहा है जिनकी सहायता से सौर ऊर्जा को बिजली में बदला जा रहा है। केवल आर्थिक कारणों से ही यह बिजली घर-घर में नहीं पहुँचाई जा रही है। सौर ऊर्जा से बिजली का उत्पादन बहुत महंगा पड़ता है।
सौर ऊर्जा को बिजली में परिवर्तित करने के औद्योगिक पैमाने के प्रयोग लगभग 30 साल पहले शुरू हो गए थे। लेकिन पिछले दशक में ही सौर ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण का काम बड़े पैमाने पर हुआ है। सौर ऊर्जा पर आधारित पहले बिजलीघर का निर्माण स्पेन में किया गया है। आजकल वहाँ सन् 2008 से दुनिया का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा बिजलीघर चल रहा है। दुनिया भर में सैकड़ों सौर ऊर्जा बिजली संयंत्र काम कर रहे हैं। ऐसे बिजलीघर न केवल यूरोप और अमरीका में मौजूद हैं बल्कि जापान, थाईलैंड, भारत, चीन में भी काम कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, सौर पैनलों और उनसे संबंधित उपकरणों के उत्पादन की दृष्टि से चीन दुनिया में पहले स्थान पर है। उसका कुछ ही सालों में नए सौर एवं तापीय विद्युत संयंत्रों का निर्माण करने का इरादा है। चीन को ऊर्जा संसाधनों की सख्त ज़रूरत है। इसलिए वह इन परियोजनाओं के लिए पैसा खर्च करने से भी कोई संकोच नहीं कर रहा है। बेशक, कोई भी उत्पादन उसके प्रारंभिक चरण में महंगा ही पड़ता है, लेकिन समय बीतने के साथ साथ वह सस्ता हो जाता है। इस सिलसिले में कारगर ऊर्जा उपयोग केंद्र के कार्यकारी निदेशक ईगर बश्मकोव ने कहा-
सौर ऊर्जा से बनी बिजली को अधिक सस्ती और सुलभ बनाने के लिए वैज्ञानिक खोजों का काम लगातार जारी है। किसी भी ऊर्जा संसाधन के साथ ऐसा ही होता है। आप को याद होगा कि शुरूआत में तेल कैसे पैदा किया गया था और वह कितना महंगा था। परमाणु ऊर्जा के विकास के संबंध में भी ऐसा ही हुआ था। सौर ऊर्जा के संबंध में हमें पहले ही काफ़ी अनुभव हो चुका है। इसलिए हमारे पास सौर ऊर्जा पर आधारित बिजली की उत्पादन-लागत कम करने के बहुत अच्छे अवसर मौजूद हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी पदार्थ की मात्रा यकीनन उसकी गुणवत्ता में बदल जाती है। दुनिया भर में कई निजी कंपनियां सरकारी एजेंसियों के समर्थन से ठोस परियोजनाएं बना रही हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त अरब अमीरात के मसदार शहर में "भविष्य के शहर" का निर्माण किया जा रहा है। वहाँ बिजली का उत्पादन "हरित प्रौद्योगिकियों" की सहायता से किया जाएगा। सौर ऊर्जा बिजलीघर सीधे इमारतों की छतों पर बनाए जाएंगे। सहारा में बड़े पैमाने की डेज़र्टेक परियोजना को पूरे ज़ोरों से अमली जामा पहनाया जा रहा है। एक योजना के अनुसार, 40 साल में वहाँ इतनी ज़्यादा बिजली पैदा की जाएगी कि वह पूरे यूरोप में उपभोक्ताओं की 20 प्रतिशत आवश्यकताओं को पूरा कर सकेगी।
विशेषज्ञों की आम राय यह है कि अर्थव्यवस्था ही सौर ऊर्जा के भविष्य को निर्धारित करेगी। अगर सौर ऊर्जा की लागत कम करने में हमें सफलता मिलेगी तो पूरी दुनिया में सौर ऊर्जा-बिजलीघरों का निर्माण होने लगेगा। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि उपभोक्ता स्वच्छ ऊर्जा के लिए पैसा नहीं दे सकेंगे तो मानव-जाति आगे भी तेल, प्राकृतिक गैस और लकड़ी का उपयोग तब तक करती रहेगी जब तक कि हमारी पृथ्वी इन संसाधनों से पूरी तरह वंचित नहीं हो जाएगी, या फिर वैज्ञानिक जब तक किसी बिलकुल सस्ती प्रौद्योगिकी की खोज नहीं कर लेंगे

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