शुक्रवार, 22 मार्च 2013

भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश


ऊर्जा खपत में लगातार बढ़ोतरी के चलते भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश बन गया है। इस मामले में भारत अब केवल अमेरिका, चीन और रूस से ही पीछे है। हालांकि, प्रति व्यक्ति ऊर्जा इस्तेमाल अभी भी विकसित देशों के मुकाबले काफी कम है। अमेरिकी एनर्जी इन्फॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन [ईआइए] ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।
सोमवार को जारी हुई इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2011 में भारत पेट्रोलियम उत्पादों की खपत के मामले में चौथे स्थान पर रहा। पहले तीन स्थानों पर अमेरिका, चीन और जापान रहे। भारत फिलहाल अपनी जरूरतों के लिए आयातित कच्चे तेल खासकर पश्चिम एशिया से आयातित तेल पर निर्भर है। देश में 5.5 अरब बैरल तेल के भंडार हैं। यह भंडार मुख्य रूप से देश के पश्चिमी तट पर स्थित हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक देश में बिजली उत्पादन के लिए कोयले के विकल्प के रूप में प्राकृतिक गैस का इस्तेमाल हो रहा है। प्राकृतिक गैस की घरेलू मांग पूरी करने के लिए आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है। देश में अब तक कुल 438 खरब घन फुट प्राकृतिक गैस के भंडार मिले हैं। ईआइए के मुताबिक भारत वर्ष 2011 में दुनिया का छठवां सबसे बड़ा तरल प्राकृतिक गैस [एलएनजी] आयातक देश बन गया। मांग को पूरा करने के लिए भारतीय कंपनियों ने एलएनजी को गैस में बदलने की इकाइयों पर निवेश बढ़ाना शुरू कर दिया है।
कोयले को ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दुनिया का पांचवां सबसे ज्यादा कोयले का भंडार है। कोयला क्षेत्र पर सरकार का एकाधिकार बरकरार है। इसकी सबसे ज्यादा खपत बिजली क्षेत्र में हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक अपर्याप्त बिजली आपूर्ति के कारण देश में बिजली की भारी कमी है। इससे बड़े स्तर पर ब्लैकआउट जैसी घटनाएं सामने आ रही हैं। बढ़ती ईधन सब्सिडी, आयात पर बढ़ती निर्भरता और ऊर्जा क्षेत्र में सुधारों की अनिश्चितता के कारण सरकार मांग को पूरा नहीं कर पा रही है।
रिपोर्ट में कहा गया कि कोयला उत्पादन जैसे कुछ क्षेत्र निजी और विदेशी निवेश के लिए बंद हैं। हाल ही में पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा था कि मंत्रालय देश को वर्ष 2030 तक ऊर्जा संपन्न बनाने के लिए कार्ययोजना तैयार कर रहा है। इसके तहत हाइड्रोकार्बन्स का उत्पादन बढ़ाने, कोलबेड मीथेन और शेल गैस स्त्रोतों का दोहन, विदेशों में अधिग्रहण और ईधन सब्सिडी कम करने पर जोर दिया जाएगा।
महत्वपूर्ण तथ्य:
·         भारत वर्तमान में विश्व का चौथा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता देश है। वर्ष 2035 तक एशिया में ऊर्जा की मांग में बड़ी हिस्सेदारी चीन के साथ-साथ भारत की भी होगी।
·         अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (इआईए) के मुताबिक अमेरिका, चीन और रूस के बाद चौथा बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता भारत वर्ष 2000 से सात प्रतिशत विकास दर के साथ वर्ष 2011 में विश्व की 10वीं बड़ी अर्थव्यवस्था है।
·         अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा आउटलुक 2011 में इआईए ने 2035 तक एशियाई ऊर्जा मांग में होने वाली वृद्धि में भारत और चीन को सबसे बड़े कारक के रूप में पेश किया है।
·         उच्च कर्ज दर समेत ढांचागत कमी और देश के दो राजनीतिक दलों के बीच राजनीतिक ध्रुवीकरण भारत में आर्थिक विकास की राह के रोड़ा हैं। 
·         इस बात का उल्लेख करते हुए कि भारत की ऊर्जा नीति कुल मिलाकर ऊर्जा स्रोतों को हासिल करने पर केंद्रित है। आईइए ने कहा है कि भारत में जहां प्राथमिक ऊर्जा खपत 1990 और 2011 के बीच दुगना हो गया, वहीं विकसित देशों की तुलना में देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग न्यूनतम बना हुआ है। 
·         इसमें कहा गया है कि भारत के आउटपुट में आधा से भी ज्यादा योगदान सेवा क्षेत्र का है। इसके अलावा आर्थिक विकास सापेक्षिक रूप से ऊर्जा निराश्रित बना रह सकता है। 
·         आईइए ने कहा कि है कि ईंधन रियायत, आयत पर बढ़ती निर्भरता और ऊर्जा क्षेत्र के असंगत सुधार के कारण मांग पूरी करने के लिए आपूर्ति सुनिश्चित करने में सरकार संभवत: समर्थ नहीं हो सकती है। 
·         कोयला के विपुल भंडार और पिछले दो दशकों में प्राकृतिक गैस के बेहतर उत्पादन के बावजूद भारत अभी भी आयातित कच्चे तेल पर बहुत ज्यादा निर्भर है। 
·         पेट्रोलियम मंत्रालय की 2030 तक भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भर बनाने की योजना का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत कोयला है और इसके बाद पेट्रोलियम और परंपरागत जैविक (जैसे लकड़ी और अपशिष्ट) स्रोत आता है।


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