इन
दिनों तेल कीमतों में उफान जारी और जल्दी ही सार्वकालिक उचाईयो पर पहुचने की
संभावना हैं, तेल की ये कीमतें हमारे घरेलू और बाहरी दोनों
मोर्चो को बुरी तरह से प्रभावित करेंगी। तेल के बाद कोयला हमारे उर्जा भण्डार की
महत्तवपूर्ण इकाई है। तेल और कोयला दोनों जीवाष्म ईंधन हैं जो हमारे देश की उर्जा
की जरूरतों को पूरा करतें हैं लेकिन इनके भण्डार अब खत्म होने की ओर हैं जिससे ये
महॅगें हो रहें हैं। इन जीवाष्म ईधनों के दहन से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन
होता है जिससे उत्पन्न हो रही ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से दुनिया भर में त्राहि
त्राहि मचने वाली है। जीवाष्म ईधनों की दुर्लभता तथा ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ती
समस्या ने विश्व का ध्यान उर्जा के अपारंपरिक स्त्रोंतो की ओर आकृष्ट किया है। अब
कच्चे तेल की जगह बायोडीजल जैसे विकल्पों पर जोर दिया जा रहा है जिसमें खाद्य और
अख्द्य तेलों का उपयोग किया जा रहा है, कोयले के स्थान पर परमाणु उर्जा और जल
विद्युत परियोंजनाओं पर जोर दिया जा रहा है। परन्तु इनमें खाद्य तेलों की बढ़ती
कीमतें, परमाण्वीय रिसाव के खतरें और बड़ बॉधों से अनेक समस्याए सामने आ रहीं
है।
ऊर्जा
के इन स्त्रोंतो मे मौजूद अच्छाईयों और बुराईयों के बीच हमारे पास एक ऐसा संसाधान
भी उपलब्ध है जो पूर्णत: निरापद है वह संसाधन है-गौवंश ! हमारे देश में उपलब्ध 22
करोड़ गौवंश हमारी उर्जा की तमाम जरूरतें पूरी करने में सक्षम है। वैसे भी हमारे
देश में गौवंश प्राचीनकाल से ही ईधन और परिवहन में उर्जा का एक महत्वपूर्ण संसाधन
रहा है। आज भी देश की लगभग 18 फीसदी आबादी गोबर के उपलों से अपनी ईधन की जरूरतें
पूरा करती है तथा देश में उपलब्ध लगभग 1.5 करोड़ बैल गाड़ियॉ ग्रामीण परिवहन
व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वर्तमान में वैज्ञानिक तकनीकों के प्रयोग से
गौवंश ऊर्जा अक्षय स्त्रोत बन गया है। बायौगैस उर्जा की आवश्यकता पूर्ति का एक सहज
और पर्यावरण सम्मत संसाधन है इसमें पशुओं के मल,मूत्र और कृषि
अवशिष्ट का उपयोग किया जाता है जो कि गॉव में सहजता से उपल्ब्ध है। बायौगैस की मदद
से सम्पूर्ण ग्रामीण भारत के लिए ईधन और प्रकाश के लिए आवश्यक उर्जा की आपूर्ति की
जा सकती है। बायौगैस में 60-65 फीसदी मीथेन, 35-40 फीसदी
कार्बन डाय आक्साइडड, 0.5-1.0 फीसदी हाइड्रोजनसल्फाइड तथा सूक्ष्म
मात्रा में जलवाष्प मौजूद रहती है। बायोगैस में किण्वन प्रयिा के जरिए गोबर तथा
अवशिष्टों मे मौजूद जटिल कार्बनिक अणु मीथेन गैस में परिवर्तित हो जाते हैं जो कि
एक वलनशील गैस है तथा जिसका कैलोरीमान 4800किलो कैलोरी प्रति घनमीटर है। हमारे देश
में प्रतिवर्ष लगभग 150 करोड़ टन गोबर उपलब्ध है जिससे लगभग 7 अरब घनमीटर बायौगैस
उत्पन्न की जा सकती है। वर्तमान बायोगैस का उपयोग भोजन पकाने,रोशनी
करने तथा जनरेटर के जरिए इंजनों को चलाने में किया जाता है। उल्लेखनीय है कि देश
भर में काम कर रहे छोटे बायोगैस संयत्रों के कारण प्रतिवर्ष लगभग 40 लाख टन जलाऊ
लकड़ी की बचत होती है। ईधन और प्रकाश के साथ छोटे,दोहरे ईंधन वाले
इंजनों को भी चलाने के लिए भी बायोगैस का प्रयोग किया जा रहा है,इन
इंजनों में 80 फीसदी डीजल को बायोगैस द्वारा प्रतिस्थापित किया जा रहा है, इस
तरह डीजल की 80फीसदी तक बचत संभव हो गई है। आई आई टी दिल्ली द्वारा विकसित की गई
तकनीक से कार,तिपहिया वाहनों का बायोगैस से चालन संभव हो गया
है। इस तकनीक के जरिए बायोगैस में मौजूद कार्बन डाय आक्साइडड, हाइड्रोजनसल्फाइड
तथा जलवाष्प को हटा दिया जाता है तथा शेष मीथेन गैस को गैस कम्प्रेशर द्वारा
सम्पीड़ित किया जाता है। इस सम्पीड़ित गैस को उच्च दाब वाले स्टील सिलेंडरों में
भण्डारित कर लिया जाता है फिर इन सिलेंण्डरों का उपयोग वाहनों,सिंचाई
पम्पों और उद्योगों में आसानी से किया जा सकता है। एक ऑकलन के अनुसार 120 घनमीटर
क्षमता के एक बायोगैस संयंत्र से प्रतिदिन 6 कि.ग्रा. के 8 सिलेण्डर भरे जा सकते
हैं जिससे करीब 50 लीटर डीजल की बचत संभव है अर्थात एक वर्ष में 18000 लीटर डीजल
की बचत है। मीथेन गैस की बॉटलिंग प्रयिा में 5 रूपये प्रतिकिलोग्राम की दर से व्यय
आता है, इस क्षेत्र में कार्यरत विशेषज्ञों का ऑकलन है कि एक गाय एक वर्ष में
इतना गोबर देती है कि उससे तैयार होने वाली मीथेन गैस 225 लीटर डीजल के बराबर
उर्जा दे सकती है। इस प्रकार हमारे देश में उपलब्ध 22 करोड़ गौवंश के जरिए उत्पन्न
मीथेन गैस से कच्चे तेल की समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। कार्बनडायआक्साइड के
अनेक औद्योगिक उपयोग है जो कि वायोगैस के पृथक्कीकरण में प्राप्त होती है इसका
व्यवसाय भी संभव है। रासायनिक उर्वरकों में भी कच्चे तेल का उपयोग होता है जबकि
बायोगैस की स्लरी एक श्रेष्ठ उर्वरक है जो कि सस्ता और सहज उपलब्ध है। देश में
उपलब्ध गोबरयुक्त बायोमास से लगभग 50 हजार मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है। वास्तव
में देश उपलब्ध गौवंश उर्जा संबंधी आवश्यकताओं को पूर्ण करने में सक्षम है। बस
गौवंश के संरक्षण, शोध और योजनाओं के क्रियान्वयन की जरूरत है।
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