भारत एक विशाल देश है, जहां सदियों से
विभिन्न धर्मों के लोग मिल-जुल कर रहते आ रहे हैं। सहिष्णुता, बहु-समाजवाद
और मेल-मिलाप से रहने की समृद्ध परम्पराओं ने देश की पहचान को कायम रखा है और
सभ्यता ने तरक्की की है।
संविधान में भारत को एक धर्म निरपेक्ष देश
घोषित किया गया है और अल्पसंख्यक समुदायों के संरक्षण के लिए कई प्रावधान हैं।
राज्य प्रशासन किसी विशेष धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता। सभी के लिए समान
अवसरों के संबंध में संवैधानिक व्यवस्थाएं हैं। कोई अपने आपको अलग महसूस न करे,
इसके
लिए संविधान में सभी प्रकार के सकारात्मक और एहतियाती उपायों के बावजूद भी बार-बार
साम्प्रदायिक गड़बड़ियां होती रहती हैं। सरकार ने देश में साम्प्रदायिक सद्भाव
बनाए रखने के प्रति अकसर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है और संविधिक, कानूनी,
प्रशासनिक,
आर्थिक
और अन्य उपाय किए हैं।
साम्प्रदायिक सद्भाव पुरस्कार समारोह,
2009
में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने साम्प्रदायिक् सद्भाव और राष्ट्रीय एकता की
आवश्यकता पर जोर दिया। समारोह में उन्होंने कहा, "भारत विश्व के
सभी महान धर्मों का देश रहा है। कई धर्म भारत में शुरू हुए और कई यहां आकर पनपे।
इस उप-महाद्वीप में सदियों तक ऐसा अद्भुत सामाजिक और बौद्धिक वातावरण रहा है,
जिसमें
न केवल अलग-अलग धर्म शांतिपूर्वक साथ-साथ विकसित हुए हैं, बल्कि उन्होंने
एक-दूसरे को समृद्ध भी किया है। यह हमारा पुनीत कर्तव्य है कि हम इस महान परम्परा
को आगे बढ़ाएं। मैं समझता हूं कि सरकार और सभ्य समाज की संस्थाओं को निरंतर इस पर
नजर रखनी चाहिए और धर्म के नाम पर हिंसा करने वालों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
कोई भी धर्म हिंसा की इजाजत नहीं देता। कोई भी धर्म नफरत का प्रचार नहीं करता और न
ही दूसरों से वैरभाव रखने की बात कहता है। जो लोग धार्मिक चिन्हों और मंचों का
इस्तेमाल हिंसा, धार्मिक द्वेष और विवादों के लिए करते हैं वे
अपने धर्म के सच्चे प्रवक्ता नहीं हैं। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हमारे समाज
सहित सभी समाजों में असामन्जस्य फैलाने वाले लोग होते हैं। इसलिए यह और भी
महत्वपूर्ण है कि जो लोग आज पुरस्कार प्राप्त कर रहे हैं, हम ऐसे लोगों को
मान्यता दें और उनकी प्रशंसा करें, जो साम्प्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय
एकता के लिए नि:स्वार्थ भाव से कार्य करते हैं। यह हमारा कर्तव्य है कि हम ऐसे
विवेकशील लोगों को प्रोत्साहन दें"।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था,
"सम्प्रदायवाद हाल के दिनों में उग्र रूप लेने लगा है। अराजकता एक
दैत्य है, जिसके कई रूप हैं। अंतत: यह सभी के लिए दुखदायी है, उनके
लिए भी, जो शुरू में इसके लिए जिम्मेदार होते हैं।"
सरकार ने साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने
के लिए कई कदम उठाए हैं। इनके अंतर्गत राष्ट्रीय एकता परिषद (1960 के
दशक में) की स्थापना और राष्ट्रीय साम्प्रदायिक सद्भाव फाउंडेशन (1992) की
स्थापना शामिल है तथा समय-समय पर साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने से संबंधित
दिशा निर्देश भी जारी किए गए हैं।
राष्ट्रीय एकता परिषद में कई केन्द्रीय
मंत्रियों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के अलावा समाज के विभिन्न वर्गों के
प्रतिष्ठित व्यक्ति सदस्य हैं और विवादों पर विचार करने तथा उन्हें सुलझाने के लिए
समय-समय पर परिषद की बैठकें होती रहती हैं। क्योंकि केन्द्र और राज्यों में निर्णय
लेने वाले महत्वपूर्ण लोग इस परिषद के सदस्य हैं, इसलिए समाज के
विभिन्न वर्गों की शिकायतों को धीरज से सुना जाता है।
राष्ट्रीय साम्प्रदायिक सद्भाव फाउंडेशन की सोच
है कि भारत साम्प्रदायिक और अन्य सभी प्रकार की हिंसा से मुक्त रहे, जहां
सभी नागरिक, विशेष रूप से बच्चे और युवा शांति और सद्भाव के
साथ रहें। इसके लिए फाउंडेशन साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देती है, राष्ट्रीय
एकता को सुदृढ़ करती है और सामूहिक सामाजिक कार्यों और जागरूकता कार्यक्रमों के
जरिए विविधता में एकता की भावना का मजबूत करती है तथा हिंसा के शिकार लोगों की मदद
करती है, ताकि देश की सुरक्षा, शांति और खुशहाली के लिए विभिन्न
धर्मों के लोगों के बीच आपस में विचार-विमर्श होता रहे। फाउंडेशन हिंसा के शिकार
बच्चों को उनकी देखभाल, शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए आर्थिक सहायता देती
है, ताकि उनका ठीक ढंग से पुनर्वास हो सके। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता
को बढ़ावा देने के लिए फाउंडेशन या तो स्वयं या राज्य सरकारों, गैर-सरकारी
संगठनों और अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर कई प्रकार की गतिविधियों का आयोजन करती है।
फाउंडेशन साम्प्रदायिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने में उल्लेखनीय योगदान
देने वालों को पुरस्कार देती है। फाउंडेशन देश के विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच
एकता और सद्भाव को मजबूत करने का कार्य करती है और अहिंसा तथा विवादों के निपटान
के सिद्धांतों में विश्वास बढ़ाने के कार्यों को प्रोत्साहन देती है।
यह बात सही है कि सामप्रदायिक सद्भाव को कायम
रखना और सामप्रदायिक गड़बड़ियों और उपद्रवों की रोकथाम करना तथा किसी भी ऐसी
गड़बड़ी पर नियंत्रण करने और प्रभावित लोगों को सुरक्षा और राहत पहुंचाने के उपाय
करना मुख्य रूप से राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। केन्द्र सरकार ने साम्प्रदायिक
सद्भाव कायम रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसमें रोकथाम
संबंधी उपाय, प्रशासनिक उपाय, कर्मियों से
संबंधित नीति और राहत तथा पुनर्वास से संबंधित उपाय शामिल हैं। इससे यह बात स्पष्ट
होती है कि यदि उचित सतर्कता बनाए रखी जाती है, सावधानी से
योजना बनाई जाती है और आवश्यक तैयारी के साथ सभी उपाय किए जाते हैं, तो
सामप्रदायिक हिंसा की कई संभावित घटनाओं को रोका जा सकता है। इसके बावजूद अगर कहीं
साम्प्रदायिक हिंसा होती है, तो साहस और दृढ़ता के साथ तुरंत
कार्रवाई करके इस पर कारगर ढंग से काबू पाया जा सकता है और मानवीय कष्टों को बचाया
जा सकता है। जो लोग साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं के शिकार हो जाते हैं, उनकी
तकलीफों को दूर करने के लिए विभिन्न प्रकार के राहत और पुनर्वास कार्यों की समुचित
योजना बनाने और विभिन्न उपायों को लागू करने पर काफी ध्यान देने की आवश्यकता है।
दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि साम्प्रदायिक
उपद्रव पर बाद में काबू पाने की बजाए उसे पहले रोकना ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह
जिला प्रशासन का कर्तव्य है कि वह नियमित आधार पर जिले की साम्प्रदायिक स्थिति का
ध्यान से मूल्यांकन करे और इस बारे में विवरण तैयार करे तथा जिले के उन इलाकों की
पहचान करे, जो साम्प्रदायिकता की दृष्टि से अधिक संवेदनशील
और तनावपूर्ण है। ऐसे इलाकों में पुलिस अधिकारियों को स्थिति पर कड़ी नजर रखनी
चाहिए, समय-समय पर लोगों से तथा विभिन्न समुदायों के नेताओं से संपर्क करते
रहना चाहिए। इन इलाकों के लिए कितने पुलिस कर्मी तैनात करने की आवश्यकता है,
इसका
सही आकलन किया जाना चाहिए और रिक्तियां भरी जानी चाहिए। ऐसे संवेदनशील और
अति-संवेदनशील इलाकों में बिगड़ी स्थिति को संभालने के लिए विस्तृत मानक कार्यवाही
प्रक्रियाओं और आपात योजनाओं के साथ तैयारी रखी जानी चाहिए। लाउडस्पीकरों का बेरोक
टोक इस्तेमाल विभिन्न समुदायों के लोगों के समूहों में भावनाओं और हिंसक
प्रतिक्रियाओं को भड़काता है, जिसे रोकने की आवश्यकता है। आमतौर पर
विभिन्न प्रकार के धार्मिक जलूस साम्प्रदायिक टकराव और झड़पों का कारण बन जाते हैं,
क्योंकि
विभिन्न संगठन धार्मिक मौकों पर इन जलूसों के जरिए अपनी ताकत को दर्शाने की कोशिश
करते हैं। इसलिए इनको नियंत्रण में रखना जरूरी है। जलूसों के शांतिपूर्ण संचालन
में समुदायों के जाने-माने सम्मानित लोगों को शामिल किया जाना चाहिए। ऐसी घटनाओं
और जलूसों के वीडियो/ आडियो कवरेज से इन पर नियंत्रण करने में सहायता मिल सकती है।
अफवाहों की रोकथाम के लिए भी कारगर और सार्थक कार्रवाई जरूरी है। सही खबरें और
जानकारी देने के लिए किसी जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी लगाई जानी चाहिए। यह बात
सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाए जाने चाहिएं कि पूजा के स्थलों को कोई
नुकसान न पहुंचे।
मार्गदर्शक नियमों में कहा गया है कि पुलिस बल
का गठन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि वह जिस इलाके में तैनात किया जाए, उसकी
सामाजिक रचना का प्रतिनिधित्व करे ताकि उसकी विश्वजस्तमनीयता और समाज के सभी
वर्गों में आत्ममविश्वास की भावना बढ़ाने में सहायक हो सके। आम तौर पर सांप्रदायिक
रूप से किसी संवेदनशील और दंगे की आशंका वाले इलाके में पुलिस और प्रशासनिक
अधिकारियों की ईमानदारी, कुशलता और निष्पंक्षता तथा भेदभावरहित
दृष्टिकोण काम करता है। हर सार्वजनिक सेवक को अपने में निहित कानूनी प्राधिकार का
इस्तेमाल करना चाहिए ताकि किसी प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा का निवारण किया जा
सके और लोगों को निष्पक्ष तरीके से सांप्रदायिक हिंसा से छुटकारा दिलाया जा सके
और उनपर किसी प्रकार की बुरी भावना से प्रेरित कार्रवाई न की जाये। जिला प्रशासन
ने दंगा निवारण और सांप्रदायिक गडबड़ी रोकने में जो सेवा की हो, उसे
समुचित मान्यसता दी जानी चाहिए।
किसी सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में
अगर स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है और इसके परिणामस्विरूप आगजनी या हिंसा
होती है तो उस क्षेत्र के छोटे दुकानदार, उद्यमी और दिहाडी वाले श्रमिकों को
जान-माल के नुकसान की सबसे ज्यादा आशंका होती है। अधिकांशत: आर्थिक नुकसान भी
उन्हें ही झेलना पड़ता है और इनमें से ज्याकदातर किसी बीमा कंपनी द्वारा लाभान्वित
भी नहीं होते। यही कारण है कि ये लोग उस इलाके में शांति और सद्भाव बनाये रखना चाहेंगे।
इसी प्रकार से, महिलाएं ऐसी स्थिति में सबसे ज्याउदा तकलीफ
उठाती हैं अत: वे भी उस इलाके में शांति और सद्भाव बनाये रखना चाहेंगी। जिला
प्रशासन इन लोगों/ग्रुपों की ऊर्जा से लाभ उठा सकता है और शांति सुनिश्चित कर सकता
है।
देश के अधिकांश स्वैाच्छिक संगठन शांति,
राष्ट्रीय
अखंडता और सांप्रदायिक सद्भाव बनाये रखने के लिए काम कर रहे हैं। अधिकांशत: इन
संगठनों के पास ऐसे उत्साकही और समर्पित कार्यकर्ता होते हैं जिनकी नीयत सही होती
है। जिला प्रशासन को इन लोगों का समर्थन जुटाना चाहिए और सांप्रदायिक सद्भाव बनाये
रखने के लिए उनका सहयोग लेना चाहिए। अगर जरूरी हो तो स्थिति को नियंत्रित करने में
भी उनका सहयोग लेना चाहिए। अगर किसी तरह की सांप्रदायिक गडबड़ी की आशंका हो या
गडबडी हो जाये, तो तुरंत निवारक कदम उठाये जाने चाहिए जिनमें
निषेधाज्ञा/ कर्फ्यू लागू करना और उसपर तटस्थ होकर अमल कराना जरूरी है।
सांप्रदायिक हिंसा/दंगे से जुडे सभी अपराधों के मामलों पर नजर रखी जानी चाहिए और
जब भी जरूरी हो निष्प्क्ष और तटस्थं छानबीन सुनिश्चित करने के लिए विशेष अन्वेतषण
टीम बनाई जानी चाहिए।
दंगा पीडितों को अगर ठीक समय पर राहत/अनुग्रह
राशि नहीं मिलती तो इसके चलते काफी गुस्सान किया जाता है। अंतरिम राशि सांप्रदायिक
हिंसा के शिकार लोगों को तुरंत दी जानी चाहिए और ऐसी राशि देते समय यह सुनिश्चित
किया जाना चाहिए कि लिंग, जाति, समुदाय अथवा
धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न होने पाये। जिला प्रशासन को यह सुनिश्चित
करना चाहिए कि ठीक समय पर खाने पीने की चीजें/सेवाएं उपलब्धप कराई जायें और दूघ,
दवाएं,
पानी
और बिजली आदि दंगा पीडित इलाके में उपलब्धर रहें। जब भी जरूरत हो, राहत
शिविर खोले जाने चाहिए जिनमें चिकित्सा जांच/सहायता की सुविधा उपलब्घक हो। जब भी जरूरी
हो और अगर आवासीय या वाणिज्यिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा हो, तो
बीमा संबंधी मामले निपटाने के लिए उपयुक्तआ व्यावस्था् उपलब्धह होनी चाहिए। अगर
जरूरी हो तो वित्ती य संस्थााओं से ऋण सुविधाएं भी उपलब्धु होनी चाहिए।
केंद्र सरकार ने आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा
के शिकार लोगों की मदद के लिए एक केंद्रीय योजना शुरू की है। इसके अंतर्गत पीडित
परिवारों को तीन लाख रूपये की एकबारगी अदा की जाने वाली राशि दी जाती है। इसके
अलावा भी अनुग्रह राशि आदि उपलब्धक कराई जा सकती है।
सरकार ने एक कानून बनाया है जिसका उद्देश्यी
धार्मिक स्थागनों की गरिमा बनाये रखना और राजनीतिक, आपराधिक,
षडयंत्रकारी
अथवा सांप्रदायिक उद्देश्यों के लिए इनका इस्तेरमाल रोकना है। कानून के अनुसार
इसके बारे में पुलिस को सूचना देना प्रबंधक की जिम्मेथदारी है। इस कानून के अनुसार
किसी पूजा स्थसल के अंदर हथियार जमा करना भी मना है।
पूजा स्थदल (विशेष प्रावधान) अधिनियम-1991
ऐसा कानून है जो किसी पूजा स्थनल को अन्यि रूप में बदलने पर रोक लगाता है और पूजा
स्थ ल का वही धार्मिक स्व रूप बनाये रखना सुनिश्चित करता है जो 15
अगस्त 1947 को था। तदनुसार, न तो किसी धार्मिक संस्थाखन का प्रबंधक
उसे राजनीतिक गतिविधियां चलाने के लिए उपलब्ध करा सकता है, और न ही किसी
ऐसे व्यीक्ति को जिस पर किसी आपराधिक गतिविधि का आरोप है, अथवा उसे
आपराधिक गतिविधि में सजा मिल चुकी है, को वहां छिपने दे सकता है। इसी तरह से
किसी उपासना स्थाल के अंदर न तो कोई हथियार जमा किया जा सकता है और न ही उसकी
किलेबंदी की जा सकती है। किलेबंदी करने में बिना इजाजत या लाइसेंस लिये तहखाने
बनाना, टॉवर या ऊंची दीवारें खडा करना शामिल है। ऐसे परिसरों को कानून के
अंतर्गत मना की गई गतिविधियां चलाने के लिए इस्तेामाल नहीं किया जा सकता। वहां से
ऐसी गतिविधियां भी नहीं चलाई जा सकती जिनसे सांप्रदायिक सद्भाव बिगडता हो, या
किसी धार्मिक, जातीय, भाषा संबंधी अथवा क्षेत्रीय समूह,
जाति
अथवा समुदाय के प्रति दुर्भाव फैलता हो।
सभी धर्म मूल रूप से प्यार और भाईचारे की भावना
बढाते हैं। अगर किसी भी धर्म का मूल सिद्धांत इस प्रकार का है तो दुर्भाव, नफरत
अथवा हिंसा की गुंजाइश कहां बचती है? स्पष्ट है कि कुछ लोग धार्मिक शिक्षाओं
का अपने स्वारर्थ, निजी महत्वाकांक्षाओं और लाभ के लिए गलत
व्या्ख्या् करते हैं। यह सर्वविदित है कि आम तौर पर सांप्रदायिक गडपबडी छोटी और
मामूली घटना को लेकर शुरू होती है और निहित स्वायर्थ वाले लोग इसे बडा रूप दे देते
हैं।
भारत एक विकासशील देश और उभरती अर्थव्यवस्था
है। हमारे नेताओं ने इसे एक विकसित देश और आर्थिक महाशक्ति बनाने का सपना देखा था।
यह सपना तब तक साकार नहीं हो सकता जब तक देश की आंतरिक शांति व्यवस्था और खास तौर
से सांप्रदायिक सद्भाव बना न रहे। सांप्रदायिक शांति और सद्भाव बनाये रखने पर
सरकार को काफी ऊर्जा खर्च करनी पडती है और अगर शांति व्यावस्थाभ बनी रहती है तभी
विभिन्नख सांप्रदायिक वर्गों के बीच विश्वास बढेगा। ऐसा होने पर ही देश विकास और
आर्थिक प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ पायेगा।
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