सरकार हर साल के लिए जो बजट बनाती है, वह हमारे मंथली बजट से
किसी भी तरह अलग नहीं होता। लेकिन फाइनैंस मिनिस्टर बजट भाषण में जिन शब्दों का
इस्तेमाल करते हैं और जिन मदों के बारे में बताते हैं, वे
काफी भारी-भरकम होते हैं।हमने कुछ अहम कॉन्सेप्ट और जटिल शब्दों को सरल बनाने की
कोशिश की है
सकल घरेलू उत्पाद
देश की अर्थव्यवस्था के सभी उत्पादक
सेक्टरों के उत्पादन का मूल्य
राजकोषीय घाटा
आय और खर्च के अंतर को पाटने के लिए हर
साल सरकार की ओर से लिया जाने वाला अतिरिक्त कर्ज। देखा जाए तो राजकोषीय घाटा
घरेलू कर्ज पर बढऩे वाला अतिरिक्त बोझ ही है।
सब्सिडी
आर्थिक असमानता दूर करने के लिए सरकार की
ओर से आम लोगों को दिया जाने वाला आर्थिक
लाभ। यह नकद भी हो सकता है। कंपनियों को सब्सिडी टैक्स छूट के तौर पर दी जाती है
ताकि औद्योगिक गतिविधियां बढ़ें और रोजगार पैदा हो।
पूंजीगत और राजस्व खर्च
सब्सिडी और कर्ज पर ब्याज का भुगतान जैसे
परिसंपत्ति का निर्माण न करने वाले खर्च राजस्व खर्च कहलाते हैं। जबकि राजमार्गों
और डैम के निर्माण या राज्यों को केंद्र की ओर से दिया जाने वाला कर्ज पूंजीगत
खर्च कहलाता है।
आयोजना और गैर आयोजना व्यय
आयोजना खर्च में एक वार्षिक फंड शामिल
होता है, जो योजना आयोग की ओर से
पांच साल के दौरान विकास योजना पर होने वाले खर्च को देखते हुए आवंटित किया जाता
है। जबकि गैर आयोजना व्यय में रक्षा, सब्सिडी, ब्याज भुगतान, पेंशन और योजनागत परियोजनाओं को किए
जाने वाले सारे खर्च शामिल होते हैं।
कर राजस्व
सरकार अपने खर्च चलाने के लिए लोगों और
कंपनियों पर सीधे टैक्स लगाती है। वह लोगों की ओर से इस्तेमाल वस्तुओं और सेवाओं
पर भी टैक्स लगाती है। यह सरकार की आय का प्राथमिक और प्रमुख स्रोंत है।
गैर कर राजस्व
प्रत्यक्ष (डायरेक्ट टैक्स) और अप्रत्यक्ष
कर (इनडायरेक्ट टैक्स) के अलावा सरकार के राजस्व का स्रोंत। इसमें सरकार को हासिल होने वाला ब्याज, स्पेक्ट्रम नीलामी से
हासिल पैसा और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी से हासिल रकम
शामिल है।
कर्ज अदायगी
जिस तरह कोई उपभोक्ता अपने कर्ज को मूलधन
और ब्याज के तौर पर एक निश्चित अंतराल में चुकाता है उसी तरह सरकार भी अपने बाहरी
कर्ज को कई तरह की एजेंसियों और आतंरिक कर्ज लेकर जुटाती है। अमूमन बांड बेच कर
जुटाए गए पैसे का इसमें इस्तेमाल होता है।
सरकारी राजस्व और व्यय (गवर्नमेंट
रेवेन्यू और स्पेंडिंग)
सरकारी बजट में कुल मिलाकर कमाई और खर्च
का हिसाब-किताब होता है। इनको दो हिस्सों - रेवेन्यू (राजस्व) और कैपिटल (पूंजी)
में बांटा जाता है। खर्च को भी दो हिस्सों प्लान (योजना) और नॉन-प्लान (गैरयोजना)
में बांटा जाता है।
रेवेन्यूग्रॉस टैक्स रेवेन्यू (सकल राजस्व):
सरकार को टैक्स से होने वाली कमाई से
राज्यों को फाइनैंस कमिशन के बताए हिसाब से उनका हिस्सा देना होता है। बाकी रकम
केंद्र सरकार के पास रह जाती है।
नॉन टैक्स रेवेन्यू (गैर कर आय):
इस मद में जो अहम आमदनी आती है, वह है सरकार की तरफ से
दिए गए लोन पर मिलने वाला ब्याज और पब्लिक सेक्टर यूनिट में हिस्सेदारी पर उनसे
मिलने वाला डिविडेंड और लाभ। सरकार को अलग-अलग सेवाओं से भी आमदनी होती है,
जिनमें उसकी तरफ से मुहैया कराई जाने वाली पब्लिक सर्विसेज भी शामिल
हैं। इसमें से सिर्फ रेलवे अलग डिपार्टमेंट है लेकिन इसकी समूची आमदनी और खर्च
कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया में जमा होता है और निकलता है।
कैपिटल रिसीट्स (पूंजी प्राप्तियां):
इनमें लोन और अडवांसेज की रिकवरी
(प्राप्ति) शामिल है।
मिसलेनियस कैपिटल रिसीट्सः
इसमें मुख्य रूप से पीएसयू
डिसइन्वेस्टमेंट से मिलने वाली आय शामिल होती है।
सकल बजट समर्थनः पंचवर्षीय योजना को पांच
सालाना
योजना में बांटा गया है। प्लान फंडिंग को
सरकारी सपोर्ट (बजट से) और सरकारी कंपनियों के इंटरनल और एक्सट्रा बजटरी रिसोर्सेज
में बांटा गया है। प्लान के सरकारी सपोर्ट, जिसमें राज्यों का प्लान शामिल होता है, को ग्रॉस बजटरी सपोर्ट कहा जाता है।
एक्सपेंडिचर (व्यय):
सरकारी खर्च के बारे में जानने से पहले
हमारे लिए प्लान और नॉन प्लान स्पेंडिंग और सेंट्रल प्लान के बारे में जानना जरूरी
होगा।
प्लान एक्सपेंडिचर (योजना व्यय):
यह मुख्य रूप से सालाना योजना को मिलने
वाला बजट समर्थन होता है। इसमें मुख्य रूप से विकास (हेल्थ, एजुकेशन, इंफ्रा और सोशल) पर होने वाला खर्च शामिल होता है। सभी बजट मदों की तरह ही
इसको भी राजस्व और पूंजी घटक में बांटा जाता है।
पब्लिक डेट (लोक ऋण):
सरकार जो कर्ज लेती है, उसका बोझ आखिरकार देश की
जनता को उठाना पड़ता है इसलिए इसे पब्लिक डेट कहा जाता है। इसे दो मदों में बांटा
जाता है इंटरनल डेट (देश में जुटाया गया कर्ज) और एक्सटर्नल डेट (गैरभारतीय
स्रोतों से जुटाया गया कर्ज)।
नॉन प्लान एक्सपेंडिचर (गैर-योजना):
इसमें उपभोग वाले व्यय, खासतौर पर रेवेन्यू
एक्सपेंडिचर आते हैं। इसमें इंटरेस्ट भुगतान, सब्सिडी,
सैलरी, डिफेंस और पेंशन शामिल होता है। इसका
कैपिटल घटक बहुत छोटा होता है,जिसका बड़ा हिस्सा रक्षा को
जाता है। आमदनी और खर्च के बीच का अंतर जब सरकारी व्यय प्राप्तियों से ज्यादा हो
जाता है तो उस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है। इस घाटे का
देश की इकनॉमी पर गहरा असर पड़ता है क्योंकि इसमें कमी करने की कोशिश में पब्लिक
डेट बढ़ता है और ज्यादा इंटरेस्ट पेमेंट पर रेवेन्यू में सेंध लगती है।
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