मौजूदा परिवेश में मानव-समाज अनेक जटिल
समस्याओं से गुजर रहा है.. जिनमें सबसे प्रमुख समस्या है अपराध... हालांकि अपराध
जैसी समस्याएं कोई नई बात नहीं है, इसकी
आशंका तब से है जब से मानव समाज की रचना हुई है.. इन्हीं समस्याओं से निपटने के
लिए मानव ने अपने लिए नैतिक आदर्श और सामाजिक नियम बनाया, जिसका पालन करना प्रत्येक मनुष्य का 'धर्म' बताया गया है.. किंतु तब अपराध की घटनाएं यदा-कदा सुनी जाती थी और
अपराध की प्रवृति भी आज से इतर थी.. लेकिन आज भौतिकवाद की इस दुनियां में ऐसा
प्रतीत हो रहा है मानों अपराध का ही सामाजीकरण हो रहा है, लोगों में इंसानियत मर चुकी है, संस्कार नष्ट हो गये हैं, नैतिकता दम तोड़ गयी है और ईमानदारी व
वफादारी समाप्त हो गयी है.. बुद्धिजीवी और सामाजिक सरोकार रखने वाले लोगों का
दायरा सिमट गया है और वे एकदम हाशिये पर जा चुके हैं.. कुटिल, अपराधी और क्रूर लोगों को आदर एवं
सम्मान मिल रहा है.
अब सवाल उठता है कि इस विकसित सभ्य
समाज में अपराध जैसी जटिल समस्या के पीछे क्या कारण है.. क्या यदि अपराधियों को
फांसी हो जाए, पुलिस बल की संख्या पर्याप्त हो जाए और
प्रशासन सख्त हो जाए, तो क्या अपराध बंद हो जाएगा? नहीं.. लोग अपराध करने के लिए नए-नए
तरीके निकाल लेंगें... क्योंकि इनके पीछे मुख्य कारण है उनकी दूषित मानसिकता..
दूषित मानसिकता का कारण है समाज में नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का पतन और इन
मूल्यों के अभाव के पीछे कारण है जीवन से धर्म का निकल जाना..
आपको मालूम है कि धर्म एक प्रकार का
आचार संहिता है, जिसके आधार पर मानव अपने अंदर उच्च
आदर्शों को स्थापित करता है.. किंतु आज हमारे समाज का मुख्य लक्ष्य है पैसा
कमाना.. क्योंकि ये भौतिक सुख-सुविधा देने में समर्थ है.. बच्चों के माता-पिता और
उनके शिक्षक का ध्यान केवल इस बात पर है कि वे अपने परीक्षा में अच्छा नंबर लाएं, अच्छी नौकरी पाएं और ज्यादा से ज्यादा
पैसा कमाएं.. क्योंकि वर्तमान समाज उन्हें ही आदर और सम्मान देता है... जबकि यह
सर्वविदित है कि आज के बच्चे ही कल के भविष्य हैं.. इनके ही संस्कार और आदर्शों की
बुनियाद पर देश की दिशा और दशा तय होती है.. इसके बावजूद भी आज बच्चों को न तो
विद्यालय में ही नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाता है और न ही घरों में, जिससे कि वे एक अच्छे नागरिक बन सकें..
आज के बच्चों का आदर्श स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी नहीं बल्कि बहुत पैसा
कमाने वाला व्यक्ति होता है, चाहे
पैसे किसी तरीके से कमाता हो.. इन बातों पर न केवल माता-पिता को बल्कि सरकार को भी
ध्यान देने की जरुरत है...
वर्तमान में हम पश्चिमी सभ्यता का
अंधानुकरण करते हुए अपने राष्ट्र का गौरव और महिमा भूल रहे हैं.. जबकि हमारे देश
के अच्छे चरित्र में अनेक गुण समाहित हैं.. यहां पराई स्त्री को उसके आयु के आधार
पर उसे बहन, बेटी या मां के रुप में देखना धर्म
माना गया है.. किंतु आज वैज्ञानिक युग में विज्ञान के आधार पर महिला केवल महिला है, वह संभोग के लिए बनी है, वह चाहे दो वर्ष की नन्हीं सी बालिका
ही क्यों न हो... और आए दिन हमें इस तरह की दुर्घटनाओं का सामना भी करना पड़ता है, जो कि न केवल अपराध है बल्कि मानवीय
बर्बरता है.. हमें अपने समाज को इस दंश से बचाने के लिए अपने अंदर उच्च आदर्शों को
समाहित करना होगा.. इन उच्च आदर्शों में अनेक आदर्श समाहित हैं, जिनमें से एक है संभोग की सीमाएं.. यदि
ये सीमाएं बनी रहें तो समाज स्वयं ही इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बच जाएगा.. पुलिस
या प्रशासन के भय से इसे नहीं रोका जा सकता.. अत: समाज में उच्च आदर्शों की
स्थापना आवश्यक है..
हैरानी कि तो बात ये है कि जिस देश में
हर पराई स्त्री में मां, बहन, बेटी का स्वरुप देखे जाने की प्रथा है उस देश की आज सबसे ज्वलंत
समस्या है बलात्कार रूपी दुष्कर्म.. क्या इसी भारत की कल्पना भगत सिंह और गांधी ने
की थी.. क्या इसी भारत के लिए महज 19 साल की अवस्था में खुदीराम बोस फांसी पर चढ़े? नहीं.. अतः हमें अपने समाज को स्वस्थ
और सभ्य बनाने के लिए नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार और उच्च आदर्शों से समाहित करना
होगा.. अपराध को रोकने के लिए कठोरता एवं दंड आवश्यक तो है, परंतु उनके साथ-साथ दूषित मन को
परिष्कृत करना भी आवश्यक है..
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