पेटेंट, खोजकर्ता या पेटेंट के
आवेदक तथा राज्य के बीच एक करार होता है, जिसके द्वारा
खोजकर्ता या आवेदक राज्य से उस खोज के लिए एक निश्चित अवधि के लिए एकाधिकार
प्राप्त कर लेता है और बदले में उस खोज के पूरे विवरण का खुलासा करता है। इस
प्रकार पेटेंट प्रणाली से यह सुनिश्चित होता है कि नई खोजों के संबंध में सूचना
अंतत: सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध कराई जाए जिससे तकनीकी व आर्थिक विकास को
प्रोत्साहन मिले और गोपनीयता को निरुत्साहित किया जा सके।
यदि कोई अन्वेषक या कम्पनी ऐसी खोज करती है जिसे वे नया एवं
अन्वेषणात्मक मानती हों, तो वे पेटेंट के लिए
आवेदन कर सकती हैं। यह पेटेंट, पेटेंट कार्यालय द्वारा
विस्तृत जांच के बाद ही दिया जा सकता है। एक बार जब पेटेंट दे दिया जाता है, तो खोजकर्ता या आवेदक को एक निश्चित अवधि तक इस उत्पाद को बनाने, उपयोग करने या बेचने का एकमात्र अधिकार होता है। यह अवधि सामान्यत: 20 वर्ष की होती है।
इस संबंध में भी भ्रम हो सकता है कि पेटेंट प्रणाली द्वारा
वास्तव में किस-किस वस्तु को सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। पेटेंट केवल अन्वेषणों
पर ही लागू हो सकते हैं। सामान्यत: इनका औद्योगिक आयाम होता है। कोई खोज सामान्यत:
कोई ऐसा नया उत्पाद होता है जिसमें परिचालन के नए सिद्धांत लागू होते हैं या
पुराने सिद्धांत में कोई सुधार किया गया होता है। विकल्प के तौर पर यह किसी नई या
उन्नत औद्योगिक प्रक्रिया से भी संबंधित हो सकता है। जिन चीजों में विनिर्माण
शामिल नहीं होता है उन्हें सामान्यतया अन्वेषण नहीं माना जाता है। उदाहरण के
लिए, किसी नए वैज्ञानिक सिद्धांत या किसी नई शल्यचिकित्सा
प्रक्रिया को इस कारण से पेटेंट योग्य नहीं माना जाएगा।
नवीनता और अन्वेषणनीयता
पेटेंट कराने के लिए उपयुक्त होने के लिए, किसी खोज को नवीनता और अन्वेषणनीयता से युक्त अवश्य होना चाहिए। कोई भी खोज
तभी नवीन मानी जाती है जब पेटेंट के लिए आवेदन करते समय इसके तथ्यों का खुलासा
जन-सामान्य को न किया गया हो। जब तक पेटेंट के आवेदन की तिथि उस खोज के विवरण के
सार्वजनिक प्रकटन से पहले रहती है, तब तक उस खोज का वैध रूप
में पेटेंट किया जा सकता है। तथापि, यदि पेटेंट का आवेदन करने
से पूर्व ही जन-सामान्य को खोज के विवरण उपलब्ध करा दिए गए हों, तो उस खोज को पेटेंट कराने के मामले में नवीन नहीं माना जा सकता और पेटेंट
प्रणाली के माध्यम से उसे संरक्षण प्रदान करना संभव नहीं हो होगा।
यह आवश्यक है कि किसी खोज के विवरण का समय से पहले खुलासा
कर देने के खतरों के संबंध में जान लिया जाए। पेटेंट के लिए आवेदन दाखिल करने के
बाद भी, वाणिज्यि क दोहन के नियोजित कार्यक्रम के एक भाग के रूप में
ही खोज के विवरणों खुलासा किया जाना चाहिए।
वैध पेटेंट की एक अन्य वांछनीयता उसकी अन्वेषणनीयता है।
इसका तात्पर्य यह है कि उस खोज में कोई अन्वेषणात्मनक चरण अवश्यन शामिल होना
चाहिए। इसे दर्शाना सबसे कठिन कार्य हो सकता है। पेटेंट का जांर्चकर्ता ही यह
सुनिश्चित कर सकता है कि किसी खोज में अन्वेषणनीयता है या नहीं अर्थात संबंधित
विषय का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति ही इस संबंध में निर्णय ले सकता है कि संबंधित
अन्वेषण पहले पेटेंटों या अन्य प्रौद्योगिकियों से किस प्रकार भिन्न है और इसी के
आधार पर वह किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकता है।
खोज का व्यावसायीकरण - कुछ सामान्य बिंदु
कई अन्वेषक यह अनुभव करते हैं कि एक बार जब उनके मस्तिष्क
में कोई विचार आ जाए तो उन्हें उसके पेटेंट के लिए आवेदन तत्काल करना चाहिए और यही
सबसे महत्वपूर्ण है। किसी खोज को पेटेंट कराना ही एकमात्र कारण नहीं है और पेटेंट
का आवेदन दाखिल करने में जल्दबाजी करना उचित नहीं है क्योंकि इससे कुछ गलत कार्य
भी हो सकते हैं।
पेटेंटों का तब तक कोई मूल्य नहीं है जब तक कि उस उत्पाद या
प्रौद्योगिकी के व्यावसायिक मूल्य को प्रदर्शित न किया जा सके और उसका दोहन न किया
जा सके। अनेक पेटेंट योग्य खोजें केवल इस कारण असफल नहीं हो गई हैं कि उन्होंकने
काम किया, अथवा इस कारण भी असफल नहीं हुई हैं कि उन्हें पहले नहीं
खोजा गया था, बल्कि उनकी असफलता का कारण यह था कि खोजकर्ता व्यावसायिक
दृष्टि से उनका दोहन करने में असमर्थ था। अब खोज को एक कारोबार के रूप में देखा
जाने लगा है। यदि आप किसी कारोबार से लाभ प्राप्तक करने की अपेक्षा रखते हैं, तो आपको उस कारोबार में निवेश करना पड़ता है, तथा इसकी प्रबंधन
एवं विपणन संबंधी निपुणताएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितनी तकनीकी निपुणताएं
महत्वपूर्ण हैं। यदि अन्वेषणकर्ता में सभी वांछित निपुणताएं नहीं होती हैं, तो यह आवश्यक हो जाता है कि कई लोगों को एक दल में समूहित किया जाए या उनके
बीच साझेदारी हो ताकि परियोजना का उपयोग हो सके या किसी ऐसी विद्यमान कंपनी को खोज
के लिए लाइसेंस दिया जाए जिसके पास संबद्ध उत्पामद पहले से हों।
तथापि, यदि कोई व्यक्ति किसी खोज
को सफलतापूर्वक व्यावसायिकृत कर देता है, तो उसे इसका
पर्याप्त प्रतिदान प्राप्त हो सकता है। पूरी दुनिया में अनेक सफल कंपनियों के अपने
पेटेंट हैं, जो घरेलू या आयातित के रूप में नकल किए गए उत्पादों से उनकी
रक्षा करते हैं। वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है।
व्यापार से संबंधित अधिकांश अन्य परंपरागत बाधाएं अब हटाई जा रही हैं, ताकि उत्पादकों के बीच स्वच्छ प्रतिस्पर्धा हो सके। पेटेंट कुछ ऐसी
क्रियाविधियों में से एक है जिसे कंपनियां बाजार में अपना हिस्सा सुरक्षित रखने के
लिए कानूनी रूप से प्रयुक्त कर सकती हैं। विदेशी पेटेंट होने के कारण ही आयरिश
कंपनियां निर्यात बाजारों में अपने उत्पादों की रक्षा करने में सफल होती हैं।
जब कोई उत्पाद दूरी, लागत अथवा अन्य
कारकों के चलते निर्यात के लिए अनुपयुक्त हो जाता है, तो लाइसेंसीकरण की रणनीति का उपयोग किया जा सकता है। भारतीय कंपनियां किसी
विदेशी विनिर्माता को अपनी खोज के विनिर्माण का लाइसेंस/विपणन अधिकार देने के लिए
पेटेंटों का उपयोग कर सकती हैं। इसके बदले में उन्हें रॉयल्टी मिलती है जिससे उनके
लाभ में वृद्धि होती है। भारतीय और/या विदेशी कंपनियों को घरेलू और निर्यात दोनों
ही बाजारों के लिए लाइसेंस प्रदान करना गैर-विनिर्माता कंपनियों अथवा
विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों द्वारा की गई खोजों के लिए भी उचित रणनीति है।
सफल होने के लिए, किसी खोजकर्ता के
पास व्यापार का बहुत अधिक ज्ञान होना या तकनीकी विशेषज्ञता से युक्त होना आवश्यक
नहीं है। तथापि,
उसे परियोजना के प्रति व्यापारी के समान
दृष्टिकोण अवश्य अपनाना चाहिए। सबसे पहली बात तो यह अनुभव करना है कि खोज की
प्रक्रिया में अनेक चरण होते हैं। यह आवश्यक है कि खोजकर्ता को यह पता हो कि वह
किस अवस्था में है और उसके बाद का अगला चरण क्या होगा।
सफल खोज के विकास के चरण हैं:
- उस समस्या की पहचान करना जिसे हल किया जाना है। समस्या का कोई ऐसा हल खोज निकालना जो काम करे।
- कोई ऐसा आदिप्ररूप विकसित करना या ऐसा प्रदर्शित करने में सक्षम होना जिससे साबित हो सके कि खोज किस प्रकार काम करती है।
- खोज के संरक्षण के लिए पेटेंट आवेदन दाखिल करना ताकि इसके तथ्यों का अन्य लोगों को खुलासा किया जा सके।
- अपनी कंपनी के माध्यम से या लाइसेंस के माध्यम से खोज के विनिर्माण और विपणन की व्यवस्था करना।
- प्रत्येक चरण के लिए अलग-अलग विशेषज्ञता और संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- यह आवश्यक है कि आगे बढ़ने से पूर्व शुरूआती चरण सफलतापूर्वक पूरे कर लिए जाएं।
- अनुभव से यह देखा गया है कि 'शॉर्ट कट' लेना कभी लाभदायक सिद्ध नहीं होता है।
- उदाहरण के लिए, यदि कोई आदिप्ररूप बहुत बेतुका होता है और उचित रूप से कार्य नहीं करता है, तो निवेशकों या संभावित लाइसेंसग्राहियों के लिए किसी खास खोज के लाभों का आकलन करना कठिन होता है।
- इसी प्रकार तब तक पेटेंट का आवेदन दाखिल करने का कोई मतलब नहीं है जब तक खोजकर्ता इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि उसकी खोज को कार्यशील व व्यवहारिक के रूप में दर्शाया जा सकता है।
- तथापि, आखिरी दो चरणों के बीच कुछ ओवरलैपिंग हो सकती है।
- यदि पेटेंट की अवस्था को जोखिम में डाले बगैर विनिर्माण और विपणन में कुछ प्रगति करना संभव हो, तो खोजकर्ता को ऐसा करना चाहिए।
- जैसा कि अन्यत्र बताया गया है, बेहतर यही होता यदि पेटेंट का आवेदन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किया जाए।
किसी खोज का खुलासा करना
जब तक पेटेंट के लिए आवेदन दाखिल न कर दिया जाए तब तक बाहरी
व्यक्तियों को किसी खोज का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। तथापि, कुछ लोग बहुत शीघ्र पेटेंट का आवेदन दाखिल करने की गलती करते हैं। क्योंकि
उन्हें भय होता है कि कोई अन्य व्यक्ति वही खोज कर सकता है। अत: वे बिना किसी
स्पष्ट योजना के यथाशीघ्र आवेदन दाखिल कर देते हैं और जबकि उन्हें यह ज्ञात नहीं
होता है कि आगे उन्हें क्या करना है। बाद में उन्हें यह पता चलता है कि किसी खोज
का व्यावसायिक दृष्टि से उपयोग करने की स्थिति में आने से पूर्व कई महीने गुजर गए
हैं, और तब न तो उनके पास पर्याप्त समय ही होता है और न ही
वांछित वित्तीय साधन उपलब्ध होते हैं और इस प्रकार वे अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट फाइल
नहीं कर पाते हैं। सामान्यत: बेहतर यह होता है कि खोज की विकास प्रक्रिया पूरी कर
ली जाए और पेटेंट का आवेदन तभी दाखिल किया जाए जब व्यावसायिक दृष्टि से उपयोग करने
के नियोजित कार्यक्रम के एक भाग के रूप में उस खोज का खुलासा करना आवश्यक हो जाए।
यदि खोज के विकास की अवस्था में अन्य वांछित सहायता प्राप्त करने के लिए तकनीकी
विशेषज्ञों या अन्य संबंधित व्यक्तियों से चर्चा करना आवश्यक है, तो यह गोपनीयता के आधार पर की जानी चाहिए। लोगों को यह सूचित कर दिया जाना
चाहिए कि यह सूचना बिल्कुकल गोपनीय है तथा उन्हें ऐसे साधारण दस्तावेज पर
हस्ताक्षर करने को कहा जाना चाहिए जिसमें यह बचन दिया गया हो कि वे बिना खोजकर्ता
की अनुमति के सूचना का खुलासा नहीं करेंगे।
उचित व्यवसायीकरण की रणनीति अपनाने के लिए एक साथ कई पहलुओं
पर विचार किया जाना चाहिए, जैसे तकनीकी, वाणिज्यिक तथा वैधानिक पहलू। आरंभिक अवस्थाओं में तकनीकी पहलुओं पर उचित ध्यान
दिया जाना चाहिए,
लेकिन जब पेटेंट का आवेदन दाखिल कर दिया जाए, तो यथाशीघ्र व्यवसायीकरण की ओर बढ़ना चाहिए और इसके लिए पेटेंट प्रणाली में
निर्धारित समय-सीमा के अंतर्गत कार्रवाई की जानी चाहिए। यदि सबसे बढि़या संरक्षण
प्राप्त् करना है,
तो एक बार आयरलैंड में आवेदन दाखिल कर देने के
बाद बारह महीने के अंदर अन्य देशों में भी आवेदन दाखिल कर दिया जाना चाहिए। जैसा
कि नीचे बताया जा रहा है, अन्तर्राष्ट्रीय पेटेंट
कार्यक्रम एक अत्यंत खर्चीला व्यवसाय हो सकता है। जब तक कि किसी खोज के लिए कोई
निश्चित व्यावसायिक योजना काफी पहले तैयार न की गई हो तब तक किसी निजी या सरकारी
स्रोत से वित्तीय सहायता प्राप्त करना संभव नहीं होता है। अपनी स्वयं की विनिर्माण
कंपनी स्थापित करने या सक्षम लाइसेंसग्राहियों की पहचान करने और उनके साथ किसी
समझौते पर पहुंचने में समय लग सकता है। इन सभी कार्यों को पूरा करने में सामान्यत:
बारह महीने से अधिक समय लग जाता है। इसलिए यदि कोई खोजकर्ता पेटेंट का आवेदन जल्दी
दाखिल कर देता है,
तो अनिवार्यत: उसे अपना कार्यक्रम चालू रखने
में वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
पेटेंट का आवेदन दाखिल करने में जल्दबाजी करना क्यों गलती
हो सकती है, इसका एक अन्य कारण यह है कि यदि जल्दी आवेदन दाखिल कर दिया
जाए, तो हो सकता है कि उस खोज के विकास की प्रक्रिया पूर्ण न हुई
हो। विकास के दौरान डिजाइनों में परिवर्तन हो सकता है या उसमें कोई नई
अन्वेहषणात्मसक विशेषता जोड़ी जा सकती है। यदि पेटेंट की विशिष्टताओं का मसौदा
जल्दबाजी में तैयार कर लिया जाएगा, तो हो सकता है कि बाद में
उसकी विशेषताओं में परिवर्तन करना संभव न हो। इस प्रकार, वह पेटेंट एक तरह से अधूरा रह जाता है और उसमें उत्पाद के सभी व्यावसायिक पहलू
सम्मिलित होने से रह जाते हैं।
शैक्षणिक अनुसंधान
जो व्यक्ति शैक्षणिक अनुसंधान करते हैं उनके ऊपर अक्सर
शैक्षणिक कारणों से अपने अनुसंधान के परिणामों को प्रकाशित करने का दबाव रहता है।
अनुसंधानकर्ताओं को सदैव अपने अनुसंधान के व्यावसायिक परिणामों की संभावना का
ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई अनुसंधानकर्ता अपने अनुसंधान से व्यावसायिक लाभ या
व्यावसायिक अनुप्रयोग को व्यवहारिक समझता है या समझती है, तो बुद्धिमानी इसी में होगी कि ऐसे अनुसंधान का परिणाम तब तक न प्रकाशित किया
जाए जब तक पेटेंट के लिए आवेदन न दाखिल कर दिया.
पेटेंट के लिए आवेदन करना
पहला कार्य जो सामान्यत: आवेदन दाखिल करने के लिए लोग करते
हैं, वह है एक देश में प्रारंभिक आवेदन दाखिल करना। जब आवेदन
दाखिल किया जाता है, तो आवेदन की तिथि दर्ज की जाती है और यह 'प्राथमिकता तिथि' कहलाती है। प्रथम आवेदन बिल्कुिल बुनियादी
किस्म का हो सकता है और इसमें दावों के सेट को सम्मिलित नहीं करना होता जाता है
(कृपया नीचे देखें)। इस सब के बावजूद यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता है और इसे
तैयार करने के लिए पेटेंट के किसी एजेंट की विशेषज्ञ सलाह ली जानी चाहिए।
अधिकांश देश एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के
हस्ताक्षरकर्ता हैं जिसमें यह गारंटी दी गई है कि एक देश में दाखिल की गई खोज की
प्राथमिकता तिथि अन्य देशों के लिए भी मान्य होगी, बशर्ते कि प्रथम
आवेदन दाखिल करने की तिथि के बारह महीने के अंदर अन्य देशों में भी आवेदन दाखिल कर
दिया जाए। यही कारण है कि दाखिल किया गया प्रथम दस्तावेज बाद में चलकर बहुत
महत्वपूर्ण हो सकता है।
आरंभ में किसी एक देश में आवेदन दाखिल करने की प्रणाली
खोजकर्ताओं के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो सकती है, बशर्ते कि इसके
लिए उन्होंने सही समय चुना हो। इससे किसी बाहरी देश में आवेदन दाखिल करने के लिए
बारह महीने का समय मिल जाता है। इस अवधि के दौरान खोजकर्ता अपनी खोज की व्यावसायिक
संभावनाओं का मूल्यांकन कर सकता है, खोज में सुधार कर सकता है, और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट पाने तथा विनिर्माण और बिक्री के माध्यम से
उसका व्यावसायिक उपयोग करने के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन जुटा सकता है। इस अवधि
का उपयोग विभिन्न देशों में उस खोज की विपणन संभावनाओं के मूल्यांकन के लिए भी
किया जा सकता है और इस आधार पर यह निर्णय लिया जा सकता है कि किन-किन देशों में उस
खोज को पेटेंट कराने में किया जाने वाला व्यय लाभदायक सिद्ध हो सकता है। यह ध्यान
रखें कि ऐसे कार्य करते समय जो समय लगता है यदि उसका सही अनुमान न लगाया जाए तो
इसमें बहुत जोखिम हो सकता है और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बहुत जल्दी आवेदन दाखिल
करना भी खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
पेटेंट की विशिष्टताएं
पेटेंट प्रणाली एक जटिल प्रणाली है, और किसी खोज के सिद्धांत को शब्दों में व्यक्त करने के लिए बहुत निपुणता की
आवश्यकता होती है,
अत: इसके लिए यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि
इसका क्या वैधानिक प्रभाव होगा। पेटेंट के एजेंटों को विभिन्न विदेशी पेटेंट
प्रणालियों की जटिल प्रक्रियाओं की गहन जानकारी होती है और वे किसी खोज को पेटेंट
के माध्यम से विभिन्न देशों में सुरक्षा प्रदान करने के लिए पूरे विश्व के पेटेंट
एजेंटों के साथ काम करते हैं।
पेटेंट की विशिष्टताएं किसी ऐसे स्वरूप में लिखी जाती हैं
जो किसी सामान्य पाठक को तत्काल समझ में नहीं आ सकती हैं। इन विशिष्टताओं में
सामान्यत: एक प्रस्तावना होती है जिसमें खोज की पृष्ठभूमि का वर्णन किया जाता है।
इसके बाद खोज से संबंधित विवरण होता है जो एकाधिकार प्राप्त करने की दृष्टि से
कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया विवरण होता है। इसके पश्चात खोज
का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया जाता है जिसमें सामान्यत: ड्राइंगे होती हैं या
ऐसे उदाहरण होते हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि खोज किस प्रकार की गई।
विशिष्टताओं के अंतिम भाग में दावे प्रस्तुत किए जाते हैं। प्राथमिक आवेदन करते
समय सामान्यत: इनकी आवश्यकता नहीं होती है लेकिन ये अंतिम दस्तावेज का महत्वपूर्ण
और अभिन्न अंग होते हैं। इस अर्थ में दावे का इस शब्द के परंपरागत प्रयोग से कोई
लेना-देना नहीं है, और इसका संबंधित खोज के लाभों या निष्पादन से
कोई संबंध नहीं होता है। पेटेंट का दावा वह है जहां पेटेंट एजेंट एकाधिकार का
दायरा या सीमा प्रतिपादित करता है, जिसका वह खोजकर्ता की ओर
से दावा करता है। दूसरे शब्दों में, यदि कोई व्यक्ति
प्रौद्योगिकी के किसी क्षेत्र का दावा कर रहा है, तो अन्यद लोग
पेटेंट का उल्लंवघन किए बिना उसके अंदर भ्रमण नहीं कर सकते। पेटेंट का कार्य
क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह कल्पना की जा सकती है कि बिल्कुल नए प्रकार
के किसी इंजन के लिए पेटेंट का कार्य क्षेत्र बहुत व्यापक होगा जबकि उस इंजन के एक
घटक में सुधार के लिए पेटेंट का कार्य क्षेत्र बहुत सीमित हो सकता है।
जांच
जब विभिन्न देशों में पेटेंट संबंधी विशिष्टताएं दाखिल कर
दी जाती हैं तब उन देशों में पेटेंट के जांचकर्ता उनकी जांच करते हैं। ये जांचकर्ता
पूर्व पेटेंट विशिष्टताओं और अन्य साहित्य के माध्यम से खोज करके यह निर्धारित
करते हैं कि उस खोज या अन्वेषण में कोई नवीनता है या नहीं। वे 'पूर्व कला' के संदर्भ में अन्वेषणीयता के पहलू की भी जांच करते हैं।
पेटेंट खोज के परिणामस्वरूप कोई जांचकर्ता यह अनुभव कर सकता है कि उस खोज की कुछ
विशेषताएं पूर्व के अन्वेषणों की विशिष्टताओं में भी सम्मिलित हैं। ऐसी स्थिति में
पेटेंट के जांचकर्ता और पेटेंट के एजेंट के बीच तब तक पत्राचार चलता रहता है जब तक
जांचकर्ता संतुष्टं नहीं हो जाता है कि पेटेंट के लिए दावे स्वीकार करने के योग्यी
हैं। अक्सर इसका अर्थ यह हो सकता है कि पेटेंट के दावे के दायरे में तब तक कोई
सुधार किया जाए या कमी लाई जाए जब तक संबंधित पेटेंट कार्यालय इस बात से संतुष्ट न
हो जाए कि संबंधित पेटेंट के 'प्रौद्योगिकी के अधिकार
क्षेत्र' का पिछले अन्वेषकों द्वारा किए गए दावों से कोई मेल नहीं
है। पेटेंट कराने की यह अवस्था 'प्रॉसीक्यूशन' कहलाती है और इसमें खोजकर्ता या आवेदक को काफी धन खर्च करना पड़ सकता है जो इस
बात पर निर्भर होगा कि इस पूरी प्रक्रिया में पेटेंट एजेंट द्वारा कितना कार्य
किया गया है।
पेटेंट जांच की क्रियाविधि के एक अंग के रूप में, आवेदक द्वारा दाखिल की गई विशिष्टताएं सामान्यत: प्राथमिकता तिथि के 18 महीने बाद प्रकाशित की जाती हैं। पेटेंट कार्यालय ऐसे पिछले पेटेंटों की एक
सूची भी प्रकाशित करता है जो संबंधित पेटेंट खोज से मिलते-जुलते होते हैं। इस
प्रकार, भले ही इस बिंदु तक खोजकर्ता ने अपनी खोज का खुलासा किसी से
न किया हो, परंतु पेटेंट प्रणाली स्वयं ही कुछ समय बाद ऐसा खुलासा कर
देती है और इस प्रकार उस खोज की नवीनता समाप्त हो जाती है। यही कारण है कि जिन
खोजों का एक बार खुलासा हो जाता है उन्हें खोजकर्ता द्वारा या किसी अन्यी व्ययक्ति
द्वारा पेटेंट के परवर्ती आवेदनों के अधीन नहीं जाया जा सकता।
जब पेटेंट कार्यालय मंजूर किए जाने वाले दावों के दायरे से
संतुष्ट हो जाता है, तो पेटेंट के स्वीेकार्यता की नोटिस जारी की
जाएगी और पेटेंट मंजूर किया जाएगा। तथापि, कुछ देशों में
(आयरलैण्डा में नहीं) एक अवधि निर्धारित की गई है जिसके दौरान सम्बद्ध पक्ष पेटेंट
दिए जाने का विरोध कर सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें पेटेंट कार्यालय में आपत्ति
के आधार बताने होते हैं। यदि कोई भी व्यक्ति पेटेंट की मंजूरी का विरोध करने में
सफल नहीं होता है तो पेटेंट स्वीकार किए जाने के पत्र जारी कर दिए जाते हैं और
पेटेंट लागू हो जाता है।
उल्लंघन
यदि कोई भी व्यक्ति किसी ऐसी खोज का विनिर्माण करने, उपयोग करने,
या उसे बेचने का प्रयास करता है जो किसी देश
में पेटेंट कराई जा चुकी है, तो पेटेंटग्राही द्वारा उस
पर उस देश के कानून के अनुसार पेटेंट के उल्लंघन का मुकदमा चलाया जा सकता है। यदि
उल्लंघन सिद्ध हो जाता है, तो पेटेंट के स्वामी को
क्षतिपूर्ति की जाती है। पेटेंट संबंधी मुकदमे बहुत खर्चीले होते हैं, और ऐसे मुकदमे हल्के-फुल्के कारणों पर नहीं चलाए जाते हैं। किसी खोज की
व्यावसायिक उपयोगिता जितनी अधिक होती है उस पर मुकदमा चलाए जाने या उसके पेटेंट का
उल्लंघन होने की उतनी ही अधिक संभावना होती है। केवल इसी तथ्य से खोजकर्ता को
पूर्ण सुरक्षा नहीं मिल जाती कि उसे पेटेंट प्रदान कर दिया गया है। कुछ मामलों में
दिया गया पेटेंट अवैध भी हो सकता है क्योंकि हो सकता है कि पेटेंट की जांच के
दौरान पेटेंट के जांचकर्ता के ध्यान में कोई ऐसी सूचना न आई हो जिससे पेटेंट की
वैधता सिद्ध होती हो। इससे यह स्पष्ट हो सकता है कि उस खोज में कोई ऐसी नवीनता
नहीं थी जिसके लिए उसे पेटेंट दिया जा सके। कोई खोजकर्ता यह ज्ञात कर सके कि उसकी
खोज पेटेंट द्वारा सुरक्षित है या नहीं इसके लिए न्यायालय ही अंतिम प्राधिकरण हो
सकता है।
पेटेंट खोजें
कोई पेटेंट कराने पर पर्याप्त धनराशि व्यय करने के पूर्व
सामान्य्तया यह आवश्यक होता है कि किसी खोज की नवीनता या अन्वेषणनीयता की जांच के
लिए पहले दर्ज कराए पेटेंटों की खोज कर ली जाए। यह तथ्य कि कोई खास उत्पाद बाजार
में नहीं है, इस बात का स्पष्ट संकेत नहीं देता है कि उस उत्पाद की पहले
खोज नहीं हुई है। कई ऐसे अन्वेषण होते हैं जिनके लिए पेटेंट आवेदन दाखिल किए जाते
हैं लेकिन उनका व्यावसायिक उत्पादन नहीं हो पाता है। तथापि, वे पेटेंट साहित्य में बने रहते हैं और बाद के खोजकर्ताओं के लिए बाधक सिद्ध
होते हैं क्योंकि वे उसी उत्पाद या वस्तु की खोज का दावा नहीं कर सकते।
सूचना प्रौद्योगिकी विभाग का बौद्धिक सम्पदा अधिकार
प्रकोष्ठ कम्प्यूटरीकृत अंतर्राष्ट्रीय डेटाबेसों पर पेटेंटों की सीमित खोज कर
सकता है। यद्यपि ये किसी भी हाल में व्या्पक नहीं होती हैं, तथापि इनसे किसी परियोजना की आरंभिक अवस्था में साहित्य पर एक सरसरी दृष्टि
डालना संभव होता है। अधिकांश पेटेंट एजेंट इस प्रकार की सेवा उपलब्ध करा सकते हैं
और वास्तव में इस संबंध में विशेष परामर्श दे सकते हैं कि संबंधित खोज से
मिलता-जुलता या प्रासंगिक उत्पाद पेटेंट कराया गया है या नहीं।
जैसे-जैसे परियोजना आगे बढ़ती है और विशेषकर यदि किसी
प्रमुख विदेशी पेटेंट कार्यक्रम पर कार्य किया जाना हो, तो सामान्यत: पेटेंट एजेंट के माध्यम से पूर्व पेटेंटों की गहन खोज की जानी
चाहिए और यदि संभव हो तो इसके लिए किसी विशेषज्ञ पेटेंट खोज एजेंसी की सहायता लेनी
चाहिए। यह सटीक दावों पर केंद्रित होगा जो पेटेंट आवेदन के लिए नियोजित किए गए
हैं।
व्यावसायिक सलाह
पेटेंटीकरण का क्षेत्र और अन्वेषणों का व्यावसायिक उपयोग
अत्यंत जटिल प्रक्रिया है और यदि इनके लिए उचित परमार्श न लिया जाए तो ऐसी संभावना
रहती है कि कोई ऐसी भूल या त्रुटि हो जाए जो बाद में बहुत महंगी पड़े। अत: ऐसे
दस्तावेज को बहुत सरल और सामान्य होना चाहिए ताकि संबंधित विषय का विवरण कुछ
पृष्ठों में ही दिया जा सके। इस बात पर पुन: बल दिया जाता है कि पेटेंटीकरण और
विनिर्माण या लाइसेंसिग के माध्यम से किसी अन्वेषण के व्यावसायिक उपयोग के लिए
अत्यंत निपुणता की आवश्यकता होती है और इसके लिए पर्याप्त प्रशिक्षण भी वांछित है।
यही कारण है कि निजी खोजकर्ता किसी व्यवसायिक परामर्श के बिना अपनी खोज से अधिकतम
लाभ नहीं प्राप्त कर सकता है। पेटेंट एजेंट पेटेंटीकरण पर विशेषज्ञ परामर्श दे
सकते हैं और पेटेंट संबंधी विशिष्टताओं को उचित प्रकार से दाखिल कर सकते हैं। वे
पूरे विश्व में विदेशी पेटेंट एजेंटों के नेटवर्क के माध्यम से विदेशी पेटेंट
आवेदन भी दाखिल कर सकते हैं। कुछ पेटेंट एजेंट और कुछ बड़ी वैधानिक फर्मों के पास
लाइसेंस दिलवाने की विशेषज्ञता व अनुभव होता है और वे इस क्षेत्र में कानूनी
सेवाएं उपलब्ध करा सकते हैं। लाइसेंसिंग परामर्शदाता भी होते हैं। पेटेंटीकरण और
अन्वेषणों के उपयोग पर सामान्य सलाह सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के बौद्धिक सम्पदा
अधिकार प्रकोष्ठ से प्राप्त की जा सकती है।
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