शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

राष्ट्रीय विज्ञान संचार तथा सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर)


राष्ट्रीय विज्ञान संचार तथा सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर), राष्ट्रीय विज्ञान संचार संस्थान तथा भारतीय राष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रलेखन केन्द्र (इंसडॉक) के दिनांक 30 सितम्बर, 2002 को हुए विलय के पश्चात अस्तित्व में आया। निस्कॉम तथा इंसडॉक दोनों ही वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद(सीएसआईआर) के प्रमुख संस्थान थे जो वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक सूचना (एस एंड टी) के प्रलेखन तथा प्रचार-प्रसार के लिये समर्पित थे।
निस्कॉम पिछले छह दशकों से अस्तित्व में था (पहले वैज्ञानिक औद्योगिक अनुसंधान परिषद की दो प्रकाशन इकाइयों, जिनका विलय कर प्रकाशन विभाग बना दिया गया तथा बाद में जिसका पुनर्नाम प्रकाशन एवं सूचना निदेशालय किया गया तथा वर्ष 1996 में निस्कॉम रखा गया) पिछले कुछ वर्षों से निस्कॉम ने अपने कार्यकलापों में व्यापक परिवर्तन किये है तथा अपने सूचना उत्पादों जैसे अनुसंधान तथा लोकप्रिय विज्ञान पत्रिकाओं, विश्वकोश प्रकाशनों, मोनाग्राफों, पुस्तकों तथा सूचना सेवाओं के द्वारा यह अनुसंधानकर्ताओं, विद्यार्थियों, उद्यमियों, उद्योगपतियों, कृषकों, नीति निर्धारकों तथा जनसामान्य तक पहुंचने में सफल रहा है।
इंसडॉक 1952 में अस्तित्व में आया तथा अपनी असंख्य गतिविधियों जैसे सारांश तथा इंडेक्सीकरण, डेटाबेसों का अभिकल्पन तथा विकास, अनुवाद,पुस्तकालय स्वचलन, अन्तरररष्ट्रीय सूचना स्रोतों पर सुलभता प्रदान करना, मानव संसाधन विकास, आधुनिक पुस्तकालय सह सूचना केन्द्रों को बनाने के लिए परामर्शी सेवाएं प्रदान करना इत्यादि द्वारा विज्ञान तथा प्रौद्योगिक सेवाएं प्रदान करने में संलग्न था। इंसडॉक में राष्ट्रीय विज्ञान पुस्तकालय तथा सार्क प्रलेखन केन्द्र भी समाहित थे।
अब, निस्केयर के निर्माण के साथ ही, उपर्युक्त सभी बहुमुखी गतिविधियों का समागम हो गया है, जिससे निस्केयर के रूप में एक ऐसे संस्थान का उद्भव हुआ है, जो आधुनिकतम आईटी अवसंरचना का प्रयोग कर अधिक प्रभावशाली रूप से समाज की सेवा करने तथा विज्ञान संचार, प्रचार-प्रसार तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिक सूचना प्रबन्धन प्रणाली एवं सेवाओं के क्षेत्र में नये आयामों को स्थापित करने में सक्षम है। मुख्य रूप से निस्केयर की केन्द्रीय गतिविधि पारम्परिक तथा आधुनिक तरीकों के सामंजस्य द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिक (एस एंड टी) सूचना के एकत्रण संग्रहण प्रकाशन तथा प्रचार-प्रसार की होगी,जो समाज के विभिन्न वर्गों के लिये लाभदायक होगी।
उद्देश्य
देश में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की सामयिक तथा पारम्परिक ज्ञान प्रणाली पर उपलब्ध सभी सूचना स्रोतों का मुख्य संरक्षक बनना तथा सर्वाधिक उपयुक्त प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके सभी स्तर के विविध संघटकों में विज्ञान संचार को प्रोत्साहित करना बढ़ावा देना।
निस्केयरअधिदेश
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान पत्रिकाओं के रूप में वैज्ञानिक समुदाय में औपचारिक संचार संपर्क प्रदान करना
  • जनमानस, विशेषकर स्कूल के विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि जाग्रत करने के लिए विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी सूचना का प्रचार-प्रसार करना
  •  देश की पादप एवं खनिज सम्पदा तथा औद्योगिक अवसंरचना पर सूचना का संग्रहण, परितुलन/सम्पादन/समवलोकन तथा प्रचार-प्रसार करना
  •  सूचना प्रबन्धन में विशेषकर विज्ञान संचार तथा पुस्तकालयों के आधुनिकीकरण के संदर्भ में सूचना प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों को सक्रिय रूप से बढ़ाना
  • समय पर संबंधित तथा सही सूचना की सुलभता प्रदान कर आर्थिक, सामाजिक, औद्योगिक, वैज्ञानिक तथा वाणिज्यक विकास को आगे बढ़ाने के लिए एक सुविधा प्रदाता के रूप में कार्य करना
  • निस्केयर के समूप लक्ष्यों तथा उद्देश्य वाले अन्तरराष्ट्रीय संस्थानों तथा संगठनों के साथ सहयोग करना
  • निस्केयर के उद्देश्य के साथ सामंजस्य वाली अन्य गतिविधियां

डॉ. गंगन प्रताप ने दिनांक 23 फरवरी 2009 को निदेशक, निस्केयर का कार्यभार संभाला, इससे पहले वे कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एण्ड टैक्नोलॉजी में उपकुलपति थे।
नवीन उपलब्धिया
निस्केयर की प्राथमिक अनुसंधान पत्रिकाओं की ऑनलाइन सुलभता का क्रियान्वयन
एक समाधान जिसका नाम निस्केयर ऑनलाइन पीरियोडिकल्स रिपोजिटरी (एनओपीआर)है,का क्रियान्वयन ओपन सोर्स डिजीटल रिपोजिटरी सिस्टम सॉफ्टवेयर के आधार पर किया गया है। इसके द्वारा निस्केयर अपनी अनुसंधान पत्रिकाओं को ऑनलाइन सुलभ बनाने में समर्थ हो गया है। सभी 17अनुसंधान पत्रिकाओं के पूर्ण पाठ पर सुलभता प्रदान करने के लिए इन्हें ओपन एक्सेस माध्यम के अन्तर्गत http://nopr.niscair.res.inसे जोड़ा गया है। केवल भारत अपितु विश्वभर के विद्यार्थी तथा अनुसंधान समुदाय निस्केयर की अनुसंधान पत्रिकाओं के ओपन एक्सेस द्वारा लाभान्वित हो रहे हैं। इससे राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर निस्केयर की अनुसंधान पत्रिकाओं पर सुलभता,दृश्यता तथा सदस्यता आधार को बढ़ाने में सहायता मिलेगी। सभी अनुसंधान पत्रिकाओं के सामयिक अंक एनओपीआर में पूर्ण सुलभता के लिए पत्रिकाओं के प्रकाशित अंक से बहुत पहले ही उपलब्ध करा दिये जाते हैं। इस संग्रहण में वर्ष2007से लेकर नवीनतम अंक तक तथा कुछ अनुसंधान पत्रिकाओं के वर्ष 2002से आगे के अंकों का डेटा समाहित है। इस संग्रहण में लगभग 6400शोधपत्र समाहित है।
निस्केयर अनुसंधान पत्रिकाओं की दृश्यता को बढ़ाने के लिए सभी अनुसंधान पत्रिकाओं को डायरेक्टरी ऑफ ओपन एक्सेस जर्नल्स (डीओएजे), रजिस्टरी ऑफ ओपन एक्सेस रिपोजिटरीज (डीओएआर), गूगल एनालिटिक्स तथा अन्य प्रमुख सर्च इंजनों के साथ पंजीकृत किया गया है।

राष्ट्रीय ज्ञान संसाधन कन्सोर्शियम (पूर्व में सीएसआईआर -जर्नल कन्सोर्शियम)
निस्केयर सीएसआईआर प्रयोगशालाओं द्वारा -जर्नलों पर सुलभता प्राप्त करने के लिए कर्न्सोशियम का विकास करने के लिए नोडल संगठन का कार्य करता है। इस गतिविधि में प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा प्रकाशित वैज्ञानिक अनुसंधान पत्रिकाओं के सृजन से लेकर सुलभता सुविधा पर मॉनीटरिंग सम्मिलित है। इस योजना के अन्तर्गत सीएसआईआर के वैज्ञानिक इन अनुसंधान पत्रिकाओं पर सुलभता प्राप्त कर अपने प्रयोग के लिए सामग्री डाउनलोड कर सकते हैं। विश्वभर की अनुसंधान पत्रिकाओं पर ऐसी सुलभता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करेगी तथा सीएसआईआर प्रयोगशालाओं में अनुसंधान तथा विकास को सशक्त बना देश के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए उपयोगी ज्ञान उत्सर्जन को बढ़ाएगी। इसके उद्देश्य निम्नांकित हैं-
  • सीएसआईआर पुस्तकालय संसाधनों को पूलिंग, शेयरिंग तथा इलेक्ट्रोनिकल रूप में सुलभता प्राप्त कर  सशक्त बनाना
  •  सीएसआईआर प्रयोगशालाओं को विश्वभर के वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिक साहित्य पर सुलभता प्रदान करना
  •  इलेक्ट्रोनिक रूप में सुलभता की संस्कृति को बढ़ाकर डिजीटल पुस्तकालयों के उत्सर्जन हेतु कार्य करना। ऐसे सदस्य संसाधनों में मैसर्स ब्लैकवेल, मैसर्स जॉनविले, मैसर्स स्प्रिंगर, मैसर्स एआईपी, मैसर्स एएससीई तथा अन्य प्रकाशक तथा अनुसंधान पत्रिकाएं/साइंस, जेसीसीसी तथा एसीआई-फाइन्डर जैसे डेटाबेस सम्मिलित हैं। 

टीकेडीएल परियोजना
इन्टरनेशनल पेटेण्ट क्लासीफिकेशन (आईपीसी) पर टीकेडीएल परियोजना के आधार पर भारत द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव - ट्रेडिशनल नॉलेज रिसोर्स क्लासीफिकेशन (टीकेआरसी)A61K36/100 के नये मुख्य समूह के लिए तैयार की गयी सूची को विशेषज्ञों की समिति ने 34वें सत्र में स्वीकार किया तथा 25-29अक्टूबर 2004 को आयोजित आईपीसी यूनियन बैठक के 35वें सत्र में प्रस्तुत किया गया। यह सूची इन अनुसंधानकर्ताओं को जो भारत में प्रकाशित पारम्परिक औषधि प्रलेखन के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं, के लिये यह इंगित करती है कि कैसे एक आईपीसी प्रतीक, जोकि टीकेआरसी प्रतीक जो समान अथवा समानान्तर विषय सामग्री से सम्बन्धित हैं, के विशिष्ट विषय सामग्री के अनुरूप होते हैं। पारम्परिक ज्ञान के क्षेत्र में पेटेण्ट प्रदान करते समय इसका अनुसंधान तथा निरीक्षण प्रणाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, इससे गलत टीके पेटेण्ट प्रदान करने की सम्भावनाएं महत्वपूर्ण रूप से कम हो जाएगी। यह सूचना भारत द्वारा सृजित पारम्परिक ज्ञान अंकीय पुस्तकालय (टीकेडीएल) जो कि एक टीकेआरसी आधारित डेटाबेस है, में खोज को भी सरल बनाएगी। आईपीसी-टीकेआरसी सहमति का अन्तिम रुपान्तर टास्कफोर्स सदस्यों के द्वारा निरीक्षण करने के पश्चात वाइपो वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाएगा।
 आईजेटीके तथा मापा को पीसीटी मिनीमम लिस्ट में शामिल
संस्थान द्वारा प्रकाशित दो अनुसंधान पत्रिकाओं यथा इंडियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नॉलेज तथा मेडिसिनल एण्ड एरोमैटिक प्लान्ट्स एब्सट्रैक्ट्स को पीसीटी मिनिमम लिस्ट में सम्मिलित किया गया है।
अन्तरराष्ट्रीय सहभागिता
निस्केयर, विश्व के 44 देशों के 150 से भी अधिक संस्थानों में प्रकाशनों का आदान-प्रदान करता है। प्रतिवर्ष कई देशों के विशिष्ट विशेषज्ञ संस्थान का दौरा/निरीक्षण करते हैं। निस्केयर के वैज्ञानिक भी अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों, संगोष्ठयों, कार्यशालाओं तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सम्मिलित होते हैं।


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