गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

अनुशासन की मांग करती आस्था


मौनी अमावस्या के अवसर पर इलाहाबाद में कुंभ स्नान के लिए आए श्रद्धालुओं की मौत काफी दुखद है। ऐसे हादसे उल्लास और उत्साह से भरे माहौल को पीड़ादायक स्मृतियों में बदल देते हैं। हालांकि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पूरी-पूरी व्यवस्था की जाती है। जाहिर है, कहीं न कहीं व्यवस्था या अनुशासन में कोई चूक हुई, जिससे इतना बड़ा हादसा हो गया।किसी भी बड़े आयोजन के दो पहलू होते हैं- एक, व्यवस्था और दूसरा, जनमानस का अनुशासन। यदि अनुशासन नहीं हो, तो व्यवस्था की नाकामी तय है। इलाहाबाद स्टेशन पर इतनी ज्यादा भीड़ उमड़ आई और लोग एक संकरे पुल से प्लेटफॉर्म पर पहुंचने की जल्दीबाजी में थे। यह बहुत स्वाभाविक-सी बात है कि जब किसी को खड़े होने की पर्याप्त जगह नहीं मिलती, और भीड़ पीछे से धक्के दे रही हो, तो उसमें कमजोर, बुजुर्ग व अशक्त लोग गिर जाते हैं और फिर उस मानव-वेग को थाम पाना किसी के लिए तत्काल मुमकिन नहीं रह जाता।

हमारे देश में अब जितने भी धार्मिक मेले हो रहे हैं, उसमें जबर्दस्त भीड़ उमड़ रही है, लोग बड़ी संख्या में आने लगे हैं। ऐसे में, निश्चित रूप से अधिक चौकस रहने की जरूरत है।लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर व्यवस्था अंत में जाकर एक कांस्टेबल पर निर्भर करती है। ऐसे में, मौके पर व्यवस्था संभालने में उसकी सूझबूझ और चौकसी की सबसे अहम भूमिका होती है। कुंभ प्रशासन मेले को कामयाब बनाने के लिए पिछले तीन महीने से लगा हुआ है। और यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि यह मेला अंतरराष्ट्रीय महत्व का है और दुनिया भर में इसकी चर्चा होती है। इस तरह के आयोजन की तैयारी बिल्कुल जंग की तरह की जाती है। इनके लिए पुलिस की खास ट्रेनिंग, मॉक ड्रील, प्रशासनिक अमले में तालमेल पर विशेष जोर दिया जाता है। कुंभ के लिए तो अलग से विशेष अधिकारी नियुक्त की जाती है और अलग से पुलिस बंदोबस्त भी होता है।

लेकिन यह सब प्रशासन की जिम्मेदारी है, और उसे अपनी जिम्मेदारी निभानी ही चाहिए। जहां तक हादसे के बाद मचने वाली अफरा-तफरी से निपटने की बात है, तो यहीं पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। अव्वल तो ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होनी चाहिए, मगर यदि हालात सामने आ जाएं, तो उससे कुशलतापूर्वक निपटना सबसे बड़ी चुनौती है।इसके लिए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी एक ऐसी गाइड लाइन तैयार कर रही है, जो सबको मंजूर हो और लोग उस पर चलें। प्रशासन को रिस्क वलनरेबिलिटी मैनेजमेंट के लिए तैयार करना होगा। यानी कुंभ की ही लें, तो हमें यह पहले से मालूम होना चाहिए कि लोगों के विशाल जमावड़े के बाद किस-किस तरह की स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं और उनसे हम कैसे जूझोंगे? हमें इस कवायद में किन-किन साधनों की जरूरत होगी और व्यवस्था के निचले क्रम के लोगों को तत्काल सतर्क करने के हमारे क्या तरीके होंगे?

इलाहाबाद की घटना में स्टेशन पर कई लोगों ने शिकायत की कि घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस की संख्या नाकाफी थी। लेकिन इसके लिए दूसरी व्यवस्थाएं की जा सकती हैं। घटना घटने के बाद कुछ वक्त अधिकारियों को यह समझने में लग जाता है कि वे स्थिति से कैसे निपटें? यह देरी ही कई घायलों के लिए घातक सिद्ध होती है और लोगों के असंतोष की वजह बनती है। ऐसे मौकों पर घटनास्थल पर मौजूद अधिकारी के पास बेहतर संचार, ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था पहले से होनी चाहिए। हमारे यहां के बड़े धार्मिक आयोजनों की एक बड़ी परेशानी यह होती है कि व्यवस्था संचालन में हम धर्मगुरुओं और उनके अनुयायियों का सहयोग नहीं लेते। यह उचित नहीं है।
हमारे यहां वोलंटियरशिपका अभाव है, जबकि वोलंटियरों के कुशल प्रबंधन के उदाहरणों के लिए हमें बहुत दूर नहीं जाना है।गुरुद्वारो में वोलंटियरों की भूमिका को देखा जाए तो  उनमें जबर्दस्त सेवा भाव होता है। जितनी भी संगत गुरुद्वारों में अरदास के लिए जुटती है, उनकी हर जरूरत को पूरा करने के लिए वोलंटियर तत्पर रहते हैं।

इसी तरह, व्यास पीठ वालों के सत्संग की व्यवस्था को देखा गया है। उनमें कोई पुलिस नहीं जाती, न ही अर्ध सैनिक बल जाते हैं, लेकिन वहां सब कुछ व्यवस्थित तरीके से होता है और अपार जन-समूह बिल्कुल सुरक्षित तरीके से अपनी धार्मिक परंपराओं का निर्वाह करता है।लेकिन,कोई भी फौज, या पुलिस या वोलंटियरों का समूह कुछ नहीं कर सकता, यदि करोड़ों लोग कहीं एकत्र हों और वे धीरज, आत्मसंयम का परिचय न दें।

कुंभ में जितनी बड़ी तादाद में लोग जुटे हैं। निस्संदेह, उसमें बहुत सारे ऐसे बुजुर्ग भी होंगे, जिनकी शारीरिक ताकत भीड़ के वेग को ङोल नहीं सकती। वे अपनी आस्था की डोर पकड़े वहां चले आए हैं। ऐसे तीर्थयात्रियों के साथ परिवार के किसी न किसी नौजवान सदस्य को अवश्य होना चाहिए। फिर उनके स्वच्छ खान-पान की व्यवस्था भी उन्हें अपने तईं करनी चाहिए। प्रशासन के निर्देशों को नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति भी छोड़नी पड़ेगी। कुंभ जैसे आयोजन बेहतर सामंजस्य, और जन-अनुशासन के बिना निरापद नहीं संपन्न हो सकते।
                                                             रंजीता चोधरी
   

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