मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

विश्व स्वास्थ्य दिवस


विश्व स्वास्थ्य दिवस विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में हर साल इसके स्थापना दिवस पर 7 अप्रैल को पूरी विश्व में मनाया जाता है। इसका मकसद दुनियाभर में लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना और जनहित को ध्यान में रखते हुए सरकार को स्वास्थ्य नीतियों के निर्माण के लिए प्रेरित करना है।विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने की शुरुआत 1950 से हुई। इससे पहले 1948 में 7 अप्रैल को ही डब्ल्यूएचओ की स्थापना हुई थी। उसी साल डब्ल्यूएचओ की पहली विश्व स्वास्थ्य सभा हुई, जिसमें 7 अप्रैल से हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने का फैसला लिया गया।

सन 1948 में आज ही के दिन संयुक्त राष्ट्र संघ की एक अन्य सहयोगी और संबद्ध संस्था के रूप में दुनिया के 193 देशों ने मिल कर स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की नींव रखी थी। इसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों के स्वास्थ्य के स्तर ऊंचा को उठाना है। हर इंसान का स्वास्थ्य अच्छा हो और बीमार होने पर हर व्यक्ति को अच्छे प्रकार के इलाज की अच्छी सुविधा मिल सके। दुनिया भर में पोलियो, रक्ताल्पता, नेत्रहीनता, कुष्ठ, टी.बी., मलेरिया और एड्स जैसी भयानक बीमारियों की रोकथाम हो सके और मरीजों को समुचित इलाज की सुविधा मिल सके, और इन समाज को बीमारियों के प्रति जागरूक बनाया जाए और उनको स्वस्थ वातावरण बना कर स्वस्थ रहना सिखाया जाए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना ही मानव-स्वास्थ्य की परिभाषा है।

वर्ष 2013 में विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम है- उच्च रक्तचाप नियंत्रण एवं उत्तम स्वास्थ्य. रक्तचाप बढ़ने से दिल के दौरे, मष्तिष्क आघात और गुर्दे फेल हो जाने जैसे खतरे होते हैं. विश्व स्वास्थ्य दिवस-2013 का लक्ष्य दिल के दौरों और मस्तिष्क आघात में कमी लाना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पूरी दुनिया में हर तीन में से एक युवा उच्च रक्तचाप से प्रभावित है और हर वर्ष विश्व-भर में 90 लाख लोगों की इसी वजह से मृत्यु हो जाती है.

पूरे विश्व में आज चिकित्सा जगत अपनी अब तक की उपलब्धियों और भविष्य में एड्स , हेपाटाईटिस , और इन जैसे रोगों के लिए किए जा रहे शोधों , इनके लिए औषधियों के निर्माण आदि पर विचार विमर्श कर रहा होगा । और इन सबसे दूर बैठा भारत अब भी पोलियो के लिए पल्स पोलियो ड्रौप्स पिलाने के लिए बार बार प्रचार के सहारे लोगों की मान मनौव्वल में लगा हुआ जूझ रहा है । और वो भी उस स्थिति में जब आए दिन कोई न कोई इस बात की घोषणा कर जाता है कि बहुत जल्द भारत देश के कुछ अग्रणी देशों में शामिल हो जाएगा ।
 यदि भारत में चिकित्सा क्षेत्र में सफ़लताओं की बात करें तो जो देश आज हौस्पिटल टूरिज़्म की बातें कहता और समझता हो , जाहिर सी बात है कि उसका स्तर , कितना आगे पहुंच चुका है । आज दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो जहां भारतीय चिकित्सक अपनी काबलियत का लोहा न मनवा रहे हों । भारत भी अब चेचक, हैजा, एक हद तक पोलियो भी जैसी पुरानी बीमारियों से लगभग निजात पा ही चुका है । गली गली में बडे बडे नर्सिंग होम और अस्पताल खुले हुए है जो अत्याधुनिक चिकित्सा उपकरणों और काबिल डाक्टरों से लैस हैं । आज कोई भी ऐसी चिकित्सा पद्धति और औषधि नहीं है जो भारत में न उपलब्ध हो । औषधि निर्माण के लिए भी निरंतर शोध कार्य चलते रहते हैं । किसी भी विकासशील देश के लिए ये गर्व का विषय हो सकता है । किंतु ये मुद्दे का सिर्फ़ एक ही पहलू है ।आज भी बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं से देश का लगभग सारा क्षेत्र ही अछूता है । अच्छे अस्पताल और चिकित्सा व्यवस्था तो दूर अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में डाक्टरों की बहुत कमी है । हालात इतने बदतर हैं कि कई बार सरकार ने ये योजना तक बनाई है कि सभी डाक्टर्स को कुछ समय तक अनिवार्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देनी होगी । गांव तो गांव शहरों में भी जो अच्छी चिकित्सा सुविधा है वो आज इतनी महंगी हो चुकी है कि एक आम आदमी के लिए उसका वहन उठाना मुमकिन नहीं है । और ऐसा इसलिए है क्योंकि कभी समाजसेवा का सच्चा स्वरूप मानी जाने वाली चिकित्सा व्यवस्था आज विशुद्ध व्यवसाय बन चुकी है । सिर्फ़ और सिर्फ़ पैसा कमाने के जुगत में लगे हुए हैं सब । इसीका परिणाम है कि आज देश में डाक्टरों की संख्या से तीन गुना ज्यादा संख्या में झोला छाप डाक्टरों के भरोसे ही गरीबों का ईलाज हो पा रहा है । इस स्थिति को और भी बदतर बनाने में भरपूर सहयोग दे रही हैं नकली दवाईयां । आंकडों की मानें तो आज बाजार में उपलब्ध दवाईयों में से लगभग 30 प्रतिशत दवाईयां नकली हैं । अभी देश की चिकित्सा व्यवस्था खुद ही इतनी बीमार है कि उसे आमूल चूल परिवर्तन की जरूरत है , अन्यथा विश्व स्वास्थ्य दिवस जैसे दिवसों को मनाने का कोई औचित्य नहीं है।
 



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