शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

Euthanasia, इच्छा-मृत्यु या मर्सी किलिंग


Euthanasia मूलतः ग्रीक (यूनानी) शब्द है. जिसका अर्थ Eu=अच्छी, Thanatos= मृत्यु होता है.यूथेनेसिया, इच्छा-मृत्यु या मर्सी किलिंग (दया मृत्यु) पर दुनियाभर में बहस जारी है. इस मुद्दे से क़ानूनी के अलावा मेडिकल और सामाजिक पहलू भी जुड़े हुए हैं. यह पेचीदा और संवेदनशील मुद्दा माना जाता है. दुनियाभर में इच्छा-मृत्यु की इजाज़त देने की मांग बढ़ी है. मेडिकल साइंस में इच्छा-मृत्यु यानी किसी की मदद से आत्महत्या और सहज मृत्यु या बिना कष्ट के मरने के व्यापक अर्थ हैं. क्लिनिकल दशाओं के मुताबिक़ इसे परिभाषित किया जाता है.
voluntary (स्वैच्छिक) एक्टिव यूथेनेसिया : मरीज़ की मंज़ूरी के बाद जानबूझकर ऐसी दवाइयां देना जिससे मरीज़ की मौत हो जाए. यह केवल नीदरलैंड और बेल्जियम में वैध है.
involuntary एक्टिव यूथेनेसिया: मरीज़ मानसिक तौर पर अपनी मौत की मंज़ूरी देने में असमर्थ हो तब उसे मारने के लिए इरादतन दवाइयां देना. यह भी पूरी दुनिया में ग़ैरक़ानूनी है.
Passive यूथेनेसिया: मरीज़ की मृत्यु के लिए इलाज बंद करना या जीवनरक्षक प्रणालियों को हटाना. इसे पूरी दुनिया में क़ानूनी माना जाता है. यह तरीक़ा कम विवादास्पद है.
Active यूथेनेसिया: अफ़ीम से बनने वाली या कुछ अन्य दवाइयां देना ताक़ि मरीज़ को राहत मिले लेकिन बाद में उसकी मौत हो जाए. यह तरीक़ा भी दुनिया के कुछ देशों में वैध माना जाता है.
Assisted Suicide आत्महत्या के लिए मदद: पहले हुई सहमति के आधार पर डॉक्टर मरीज़ को ऐसी दवाइयां देता है जिन्हें खाकर आत्महत्या की जा सकती है. यह तरीक़ा नीदरलैंड, बेल्जियम, स्विट्ज़रलैंड और अमेरिका के ओरेगन राज्य में वैद्य है.
क्या कहता है भारतीय क़ानून :
भारत में इच्छा-मृत्यु और दया मृत्यु दोनों ही अवैधानिक कृत्य हैं क्योंकि मृत्यु का प्रयास, जो इच्छा के कार्यावयन के बाद ही होगा, वह भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या (suicide) का अपराध है.
इसी प्रकार दया मृत्यु, जो भले ही मानवीय भावना से प्रेरित हो एवं पीड़ित व्यक्ति की असहनीय पीड़ा को कम करने के लिए की जाना हो, वह भी भारतीय दंड विधान (आईपीसी) की धारा 304 के अंतर्गत सदोष हत्या (culpable homicide) का अपराध माना जाता है.
•जीने का अधिकार है तो मरने का क्यों नहीं?
पी. रथीनम् बनाम भारत संघ (1984) के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 की संवैधानिकता पर इस आधार पर आक्षेप किया गया था कि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण है. यानी जीने का अधिकार है तो मरने का भी अधिकार होना चाहिए. लेकिन 1996 में उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानकौर बनाम पंजाब राज्य के मामले में उक्त निर्णय को उलट दिया और साफ़ किया कि अनुच्छेद 21 के अंतर्गत 'जीवन के अधिकार' में मृत्युवरण का अधिकार शामिल नहीं है. अतः धारा 306 और 309 संवैधानिक और मान्य हैं.
यूथेनेसिया के पक्ष में तर्क:
यूथेनेसिया आज विश्व में चर्चित विषय है. यह मृत्यु के अधिकार पर केंद्रित है. यूथेनेसिया समर्थक इसके लिए 'सम्मानजनक मौत' की दलील देकर ऐसे व्यक्ति को मृत्यु का अधिकार देने के पक्ष में हैं, जो पीड़ाजनक असाध्य रोगों से पीड़ित है अथवा नाममात्र को ज़िंदा है. भारतीय विधि आयोग (Law Commission) ने पिछले साल संसद को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में दया मृत्यु (mercy killing) को क़ानूनी जामा पहनाने की सिफ़ारिश की है. हालांकि आयोग ने यह माना है कि इस पर लंबी बहस की गुंज़ाइश अभी बाक़ी है और निकट भविष्य में इसे मंज़ूरी देने की कोई संभावना नज़र नहीं आती.
•1995 ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी राज्य में यूथेनेसिया बिल को मंज़ूरी दी गई.
•1994 में अमेरिकी के ओरेगन राज्य में यूथेनेसिया को मान्यता दी गई.
•अप्रैल 2002 में नीदरलैंड (हॉलैंड) में यूथेनेसिया को विशेष दशा में वैधानिक क़रार दिया गया.
•सितम्बर 2002 में बेल्जियम ने इसे मान्यता दी.
•1937 से स्विट्ज़रलैंड में डॉक्टरी मदद से आत्महत्या को मज़ूरी है.
अन्य देशों में कानून:
आमतौर पर दया मृत्यु के दो स्वरूप नजर आते है। कुछ परिस्थितियों में रोगी की तकलीफ के मद्देनजर चिकित्सक स्वयं औषधि देकर रोगी को मृत्यु पाने में मदद करते है। वहीं एक स्थिति यह भी नजर आती है जब लाइफ सपोर्ट सिस्टम अथवा फीडिंग ट्यूब्स के सहारे जीवित रखे गए व्यक्ति से वह सपोर्ट सिस्टम हटा लिया जाता है। दया मृत्यु के पक्ष में मत व्यक्त करने वालों का तर्क है कि व्यक्ति के शरीर पर उसका अधिकार है। यदि बीमारी के कारण व्यक्ति का दर्द सहनशक्ति की सीमा से ऊपर जा चुका है, तो उस व्यक्ति को इच्छा मृत्यु के जरिए दर्द से मुक्ति पाने का अधिकार प्रदान किया जाना चाहिए। अगर व्यक्ति स्वयं मौत को गले नहीं लगा सकता, तो अन्य लोगों को उसकी मदद करनी चाहिए। उधर दया मृत्यु का विरोध करने वालों का कहना है कि जीवन ईश्वर की देन है, इसलिए इसे वापस लेने का हक भी सिर्फ उसे है। वहीं दया मृत्यु के विरोध में एक तर्कयह भी है कि दया मृत्यु को कानूनी मान्यता सुनिश्चित करने पर इसके दुरुपयोग मामले बढ़ जाएंगे। बीमार व्यक्ति को दया मृत्यु के जरिए कष्टमय जीवन से मुक्ति देने के विषय में दुनिया के अनेक देशों ने कानून सुनिश्चित किए है।
नीदरलैंड्स
वर्ष 2002 में नीदरलैंड्स चिकित्सीय संदर्भ में मृत्यु का अधिकार प्रदान करने वाला प्रथम यूरोपीय देश बना। यहां सिर्फ असहनीय दर्द से पीड़ित रोगियों को इच्छा मृत्यु प्रदान करने की अनुमति है। प्रत्येक मामले में चिकित्सकों की सेकंड ओपीनियन लेना आवश्यक है। वर्तमान में नीदरलैंड्स में देरी में गर्भपात एवं नवजात शिशुओं को चिकित्सीय कारणों से दया मृत्यु प्रदान करना गैरकानूनी है।
बेल्जियम एवं लक्जमबर्ग
नीदरलैंड्स के उपरांत बेल्जियम दया मृत्यु को कानूनी तौर पर अनुमति प्रदान करने वाला दूसरा यूरोपीय देश है। लक्जमबर्ग में रोमन कैथोलिक संप्रदाय के अनुयायियों की संख्या सर्वाधिक है। रोमन कैथोलिक चर्च दया मृत्यु प्रदान करने के विरोध में है। इसके साथ ही लक्जमबर्ग के चिकित्सकों ने भी दया मृत्यु के विरोध में मत प्रकट किया था, किन्तु व्यापक बहस के बाद लक्जमबर्ग में दया मृत्यु को कानूनी अनुमति प्रदान कर दी गई।
स्विट्जरलैंड
किसी की सहायता से आत्महत्या स्विट्जरलैंड में गैरकानूनी नहीं है। इसके लिए चिकित्सक की मौजूदगी भी अनिवार्य नहीं है। यही वजह है कि दर्द एवं तकलीफ से पीड़ित हजारों लोग आत्महत्या के लिए स्विट्जरलैंड पहुंचते है। यहां असहनीय दर्द से पीड़ित आत्महत्या के इच्छुक व्यक्ति को बारबेट्युरि अम्ल की खुराक दी जाती है। स्विट्जरलैंड के कानून के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति निजी स्वार्थ के कारण किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या करने में मदद करता है, तो उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है।
स्वीडन
यहां कृत्रिम रूप से जीवित रखे गए रोगी के अनुरोध पर चिकित्सक उसका लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटा सकते है। स्वीडिश सोसाइटी ऑफ मेडिसिन के अनुसार यदि रोगी सभी परिस्थितियों को जानते हुए निर्णय लेने की क्षमता रखता है, तो चिकित्सकों को रोगी की इच्छा का सम्मान करना चाहिए।
अमेरिका
यहां दया मृत्यु गैरकानूनी है, किन्तु रोगी को अपनी इच्छा से मेडिकल ट्रीटमेंट समाप्त करने का अधिकार है। रोगी दर्द से छुटकारा पाने के लिए चिकित्सक से ऐसी दवाएं देने की भी गुजारिश कर सकता है, जिससे उसकी जल्द मौत होने की आशंका उत्पन्न होती हो।
फ्रांस
फ्रांसीसी कानून के अंतर्गत डाक्टरों को यह सलाह दी गई है कि वे ब्रेन डेड रोगियों को कृत्रिम रूप से जीवत रखने का प्रयास न करे। इसके बावजूद दया मृत्यु गैरकानूनी है। रोगी के अनुरोध पर भी डाक्टरों को उसे दया मृत्यु देने का अधिकार नहीं है।
इटली
यहां दया मृत्यु प्रदान करने की कानूनी तौर पर अनुमति नहीं है, किन्तु रोगी मेडिकल ट्रीटमेंट अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है। इसके अतिरिक्त रोगी को इस बाबत अग्रिम निर्देश देने का अधिकार नहीं है, कि बीमारी के कारण अचेतन अवस्था में पहुंचने पर उसे किस प्रकार का ट्रीटमेंट दिया जाना चाहिए।

भारत
विशेष परिस्थितियों में लंबे समय से दर्द से पीड़ित रोगियों को उनके अनुरोध पर दया मृत्यु देने के संबंध में कानून बनाने पर भारत में विचार किया जा रहा है।
भारत मे इच्छा-मृत्यु, समाधि और संथारा:
यूथेनेज़िया, आत्महत्या और संथारे में भेद को समझने के लिए हमें पहले मृत्यु के भेद को वर्गीकृत कर समझना होगा. मनुष्य की मृत्यु के चार मार्ग हैं:
1.प्रकृति द्वारा मारा जाना (दुर्घटना, बीमारी)
2.दूसरों द्वारा मारा जाना और (हत्या या हत्या का दुष्प्रेरण)
3.अपने आप को मार देना. (आत्महत्या, इच्छा मृत्यु)
4.यूथेनेसिया –पाश्चात्य प्रक्रिया (असाध्य बीमारी की दशा मे चिकित्सकों द्वारा दी गई मौत या दया मृत्यु)
भारत में इच्छा-मृत्यु के कई उदाहरण हैं – महाभारत के दौरान महान योद्धा भीष्म पितामह को इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था. वे शर-शैया पर तब तक लेटे रहे. जब तक सूर्य उत्तरायण नहीं हो गया.
सीता जी ने धरती की दरार में कूदकर अपनी जान दे दी थी, श्री राम और लक्ष्मण जी ने सरयू नदी में जलसमाधि ली थी, स्वामी विवेकानन्द ने स्वेच्छा से योगसमाधि की विधि से प्राण त्यागे थे। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ने भी अपनी मृत्यु की तारीख और समय कई वर्ष पूर्व ही निश्चित कर लिया था।
आचार्य विनोबा भावे ने अपने अंतिम दिनों में इच्छा-मृत्यु का वरण किया जब उन्होंने स्वयं पानी लेने तक का त्याग कर दिया था. इंदिरा गांधी उन्हें देखने के लिए गईं थीं. तब वहां मौजूद पत्रकारों की यह मांग ठुकरा दी गई थी कि भावे जी को अस्पताल में दाख़िला किया जाए.
जैन मुनियों और जैन धर्मावलंबियों में संथारा की प्रथा भी इच्छा मृत्यु का ही एक प्रकार है. जो बरसों से प्रचलित है. हाल ही मे जयपुर की महिला विमला देवी जी के संथारे लेने पर समाज में इस पर लंबी बहस खिंची थी.
यूथनेसिया का प्रतिरोध:
•अमेरिका में एक डॉक्टर जेक क्रनोरनियन को तक़रीबन 130 व्यक्तियों को कई बरसों के अंतराल में ज़हर देकर मौत देने के आरोप में दोषी पाया गया और दूसरे दर्ज़े की हत्या की सज़ा दी गई.
•अमेरिका में ही डोनाल्ड हरबर्ट नामक एक फ़ायर-फ़ाइटर का प्रकरण सामने आया है जो पिछले दस साल तक कोमा में था लेकिन अचानक ही उसे होश आ गया.
•फ्रांस के एक 22 वर्षीय फ़ायर-फ़ाइटर विन्सेंट हम्बर्ट को उसकी मां ने जानबूझकर नींद का इंजेक्शन ओवरडोज़ दे दिया था. जिससे उसकी मौत हो गई थी. बाद में डॉक्टरों की टीम ने मामले में यह कहकर मोड़ ला दिया कि काउंसिल की मंज़ूरी के बाद उन्होंने ही हम्बर्ट की जीवनरक्षक प्रणाली हटा ली थी.
•इस तरह के प्रकरणों से इस संभावना को बल मिलता है कि ऐसे व्यक्ति ज़िंदा भी हो सकते हैं. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत में किडनी आदि के प्रत्यारोपण को लेकर जिस तरह क़ानून की आड़ में अवैध धंधा किया जाता है, उसी तरह यूथेनेसिया और मृत्यु के अधिकार का भी बेजा इस्तेमाल हो सकता है.
•चिकित्सकीय नीतिशास्त्र (medical ethics) में अपेक्षित है डॉक्टर मरीज़ को तब तक जीवित रखने की कोशिश करें जब तक संभव है.
•'जीवेम् शरदः शतम्' के ध्येय वाली भारतीय मनीषा तथा संस्कृति मे प्रत्येक दशा में जीवन रक्षा करने का आदेश समाहित है. जिंदगी से पलायन वर्जित माना जाता है.

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