आज
पूरी दुनिया आतंकवाद से त्रस्त है। दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो जो आज आतंकवाद
की मार न झेल रहा हो। अमेरिका, चीन, रूस जैसे बड़े ताकतवर देश हों या फिर सूडान जैसे
तीसरी दुनिया के देश हों। सब जगह किसी न किसी रूप में आतंकवाद मौजूद है। आतंकवाद के
इतिहास और उसकी परिभाषा के बारे में आज भी कुछ साफ-साफ कह पाना संभव नहीं है। दुनिया
में आज तक आतंकवाद की परिभाषा तय नहीं हो पाई है। वैसे दुनिया में आतंकवाद का जनक इजराइल
को माना जाता है। इजराइल में हागानाह नामक एक संगठन है। इसकी स्थापना इजराइल के उदय
से पूर्व 1920 में ही हो गई थी। इस संगठन को ही आधुनिक धार्मिक आतंकवाद का जनक संगठन
माना जाता है। हागानाह का संस्थापक एक कट्टरपंथी यहूदी जिबोलिस्की था जिसने धार्मिक
आतंकवाद के पांच बुनियादी सिद्घांत स्थापित किए थे। ये सिद्धांत थे- धर्म को लोगों
की पहचान और उनके अस्तित्व की सुरक्षा से जोड़ दो, सिर्फ समान धर्मावलंबियों से ही भाईचारा
हो सकता हैं, उन्माद की हद तक इस विचार को स्थापित करो, तीसरा- लोगों में यह बात बैठा
दो कि दुनिया में सबसे प्राचीन और गौरवशाली धर्म उन्हीं का है और बाकी सब धर्म निकृष्ट
और भ्रष्ट हैं, चार- लोगों को इस सीमा तक भावुक बनाओं कि उन्हें अपने धर्म के लिए कुछ
भी करने में हिचक न हो और पांच- लोगों में यह भावना भरो कि सारी दुनिया में भिन्न धर्मावलंबी
उनके दुश्मन हैं।
आगे
चल कर इन्हीं सिद्घांतों को कमोबेश इस्लामिक आतंकवादियों ने अपनाया है। आतंकवाद जीवन,
भौतिक अखंडता व मानव स्वास्थ्य को खतरे में डालने वाला या बड़े पैमाने पर संपत्ति को
हानि पहुंचाने वाला गैरकानूनी, गैरसंवैधानिक और आपराधिक काम है। इसलिए आतंकवाद कोई
पारंपरिक विचारधारा नहीं, बल्कि वर्तमान संदर्भ में एक अनधिकृत वाद बन गया है, जिसने
राजनीतिक मकसदों की पूर्ति के लिए हिंसा को अपना हथियार बना लिया है। आतंकवाद राज्य
और समाज के विषैले चरित्र की उपज है। इसकी उत्पत्ति राज्यों में अल्पसंख्यकों, रंगभेद,
जातीयता और धर्म के नाम पर अपनाई गई दमनात्मक नीतियों से होती है। इसके अलावा कुछ देशों
ने अपने निजी हितों के लिए भी आतंकवाद को हमेशा से ही शह दी है। पूरी दुनिया में अमेरिका
और पाकिस्तान इसकी सबसे बड़ी और सबसे अच्छी मिसाल हैं।
अमेरिका
यह जानते हुए भी कि पाकिस्तान पूरी दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा स्रोत है और पूरी
दुनिया के लिए गंभीर खतरा बन चुका है, उसे हर तरह से पूरी मदद देता है। इसका कारण है
कि अमेरिका के हित बिना पाकिस्तान के पूरे नहीं होते हैं। ओसामा बिन लादेन भी आतंकवाद
की एक ऐसी मिसाल बना रहा जिसका अमेरिका और पाकिस्तान ने खूब इस्तेमाल किया। शीत शुद्घ
के दौर में अमेरिका ने ही लादेन को रूस के खिलाफ खड़ा किया था और सीआईए ने ही उसे प्राशिक्षित
किया था। बाद में वही लादेन अमेरिका के लिए आतंकवादी बना। आतंकवाद ने आज दुनिया में
मौजूद विज्ञान और तकनीकी का पूरा इस्तेमाल करते हुए अपने स्वरूप को ज्यादा भयावह बना
डाला है। आज आतंकवादी भौतिक, रासायनिक, नाभिकीय, जैविक, मानव बम जैसे सारे हथियारों
का इस्तेमाल कर रहे हैं। मानव बम व जैविक हथियार अत्याधुनिक हथियार है। मानव बम के
जरिए किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य को अंजाम दिया जा सकता हैं। जबकि जैविक हथियारों
के जरिए कहीं भी बैठे-बैठे एक व्यापक स्तर पर तबाही मचाई जा सकती है। इसके अलावा इंटरनेट
की मदद से आज साइबर हमले हो रहे हैं। एक-दूसरे देशों के सैन्य ठिकानों और महत्वपूर्ण
दफ्तरों में लेंध लगा कर हमले किए जा रहे हैं।
अमेरिका
पर 11 सितंबर, 2001 के आतंकवादी हमले ने यह साबित कर दिया कि आतंकवाद कहीं भी अपनी
पहुंच बना सकता है। इस घटना ने विकसित देशों के इस भ्रम को तोड़ दिया हे कि उनके पास
एक मजबूत व विकसित सुरक्षा कवच हैं। अब कोई भी देश आतंकवाद से बचा नहीं है। आतंकवाद
रूपी वृक्ष की जड़े हर देश में फैलती जा रही है। आज कई ऐसे देश है जो जाति, वर्ग, संप्रदाय,
धर्म और नस्ल के नाम पर भी अलग राज्य-राष्ट्र की मांगें उठा रहे हैं। रूस इसका सबसे
बड़ा उदाहरण है। चीन के मुस्लिम बहुल क्षेत्र पृथक राष्ट्र की मांग कर रहे हैं। फिलिस्तीन-इजराइल
के बीच गाजा पट्टी को लेकर विवाद हैं, जिसमें प्रतिशोध की आग ने आतंकवाद को कभी बुझने
नहीं दिया है। लीबिया मे इस्लामिक कट्टरता है तो अफगानिस्तान में तालिबान का अवतरण
हुआ।
भारत
तो जैसे आतंकवाद की प्रयोगाशाला बन गया है। देश को भीतर और बाहर दोनों जगह से आतंकवाद
की मार झेली पड़ रही है। पहले पंजाब, फिर कश्मीर, मुंबई में आतंकी हमले, नक्सली आतंकवाद
से भारत का हर राज्य इसकी चपेट में आता जा रहा है। अगर भारत पर हुए आतंकी हमलों पर
नजर डालें तो 13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद पर हुआ हमला सबसे बड़ा हमला था। 5 जुलाई
को 2005 को अयोध्या में राम मंदिर पर हमला हुआ। 25 अगस्त, 2007 को आंध्र प्रदेश में
बम विस्फोट की घटना, 26 नवंबर, 2008 को मुंबई में आतंकी हमला हुआ। यानी आतंकवाद की
पहुंच कभी भी, कहीं और कैसे भी हो सकती है।
हाल
ही में एक रिपोर्ट से यह बात सामने आई है कि इराक के बाद सबसे ज्यादा आतंकवाद की घटनाएं
भारत मे हुई हैं। भारत में आतंकवाद एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन चुका है। जम्मू-कमीर
में सक्रिय आतंकवादी संगठनों में हिजबुल-मुजाहिदीन, लश्करे तैयबा, अलफरान, हरकत उल
अंसार प्रमुख हैं। , इसी तरह आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नक्सलवादी आतंकवाद चरम
पर है। मणिपुर में पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी, असम में बोडो व उल्फा, और मिजोरम में
मिजो नेशनल फ्रंट ने सर उठा रखा है।
यह
किसी से छिपा नहीं है कि भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए आतंकियों को प्रशिक्षण पाकिस्तान
में ही मिल रहा है। ऐसे में सवाल उठता हे कि आतंकवाद से निपटा कैसे जाए। इसके लिए जरूरी
है कि हर देश निस्वार्थ भाव से इससे निपटने की जिम्मेदारी ले। आतंकवाद एक वैश्विक समस्या
है। इसलिए इसका निदान भी वैश्विक स्तर पर ही होना चाहिए। इस संदर्भ में त्रि-स्तरीय
रणनीति बनाई जानी बहुत जरूरी है। सबसे पहले तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र
एक सुरक्षा प्रहरी की भूमिका निभाए व आतंकवाद के खिलाफ उसके फैसले सख्ती से लागू हों।
हरेक राष्ट्र यह प्रतिज्ञा करे कि वह आतंकवाद से लड़ेगा और अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति
के लिए न तो आतंकवाद को बढ़ावा देगा और न ही अपने देश की जमीन को आतंकवाद का आश्रय
स्थल बनने देगा। अगर कोई देश जानबूझकर ऐसा करता है तो उसके विरूद्घ अंतरराष्ट्रीय मोर्चाबंदी
की जाए। तीसरे स्तर पर व्यक्ति की भूमिका सबसे अहम है। आतंकवाद से लड़ने में जब तक व्यक्ति
खुद शामिल नहीं होंगे, इसका समाधान संभव नहीं है। इसलिए हर व्यक्ति का यह कर्तव्य है
कि वह अपने आस-पास की संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखें।
भारत
के संदर्भ में बात करें तो हमारे लिए यह जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर न्यायिक प्रक्रिया
तेजी से काम करे और पुलिस प्रशासन के पास पर्याप्त संसाधन हों। राष्ट्रीय स्तर पर खुफिया
तंत्र की सूचनाएं आंकड़ों के विश्लेषण, जांच और आतंकवाद विरोधी आपरेशन जैसी कार्यवाही
जरूरी है। हाईटैक सूचना प्रणाली हो और मीडिया जांच एजेसिंयों का सहयोग करें। देशहित
में गुप्त सूचनाओं को सार्वजनिक न किया जाएं और आतंकवादियों का महिमा मंडन न करें।
तटीय सुरक्षा को मजबूत किया जाए और बंदरगाहों व हवाई अड्डों पर जांच प्रणाली मजबूत
बनाई जाए। पुलिस, सेना व अर्द्घसैनिक बलों के पास अत्याधुनिक हथियार हों, राष्ट्रीय
सुरक्षा के मद्देनजर अवैध प्रवासियों को रखते हुए देश से बाहर निकाला जाए और जन-प्रतिनिधि
वोट बैंक की बजाय राष्ट्रीय हित को महत्व दें।
इसके
अलावा भारत को दूसरे देशों के कानूनों से भी सीख लेनी चाहिए। जैसे अमेरिका का पैट्रियट
एक्ट, 2011 जिसमें आतंकवाद रोकने के लिए व्यापक कानूनी प्रावधान हैं। आस्ट्रेलिया का
कंट्रोल आर्डर जिसमें पुलिस को संदिग्ध को रोकने और तलाशी लेने का अधिकार है। ब्रिटेन
का काउंटर टैरेरिज्म एक्ट जिसमें यह प्रावधान है कि आरोप पत्र से पहले 20 से 42 दिन
तक संदिग्ध आतंकवादी को हिरासत में रखा जा सकता
हैं। बांग्लादेश में आतंकवाद के मामलों की छह महीने के भीतर सुनवाई कर और उन्हें निपटाने
के लिए विशेष पंचाट बनाने की व्यवस्था है।
ऐसा
नहीं है कि भारत में कानूनों की कमी है। लेकिन हमारे यहां आतंकवादियों को सजा के मुद्दे
पर भी राजनीति होती है। संसद पर हमले के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा सुना
चुका है, लेकिन राजनीतिक कारणों से दोषियों को अब तक फांसी पर लटकाया नहीं गया। हमारे
यहां समस्याओं से निपटने के लिए योजनाएं तो बनती हैं, लेकिन पूर्व तैयारी के अभाव में
उनके सकारात्मक नतीजे सामने नहीं आ पाते हैं। प्रशाासनिक व्यवस्थाएं जवाबदेह नहीं हैं।
समस्याओं के समाधान की बजाय उन्हें टालने की कोशिश की जाती है। जबकि अमेरिका ने वर्ल्ड
ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ जिस तरह से कठोर रूख अपनाया उसके बाद
वहां ऐसी कोई आतंकवादी घटना नहीं हुई।
very nice information..................
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