किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार है मानवाधिकार
है। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोड़ने वाले को
अदालत सजा देती है ।10 दिसंबर विश्व मानवाधिकार दिवस है ।64 साल से पहले संयुक्त
राष्ट्र ने विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी करने की 64 वीं वर्षगांठ है । 10दिसंबर
1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र जारी कर प्रथम बार
मानवाधिकार व मानव की बुनियादी मुक्ति पर घोषणा की ।वर्ष 1950 में संयुक्त राष्ट्र
ने हर साल की 10 दिसंबर को विश्व मानवाधिकार दिवस तय किया ।चालू साल विश्व मानवाधिकार
घोषणा पत्र जारी होने की 64वीं वर्षगांठ है ।
64वर्ष से पहले हुआ पारित विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र एक मील पत्थर है
,जिस ने समृद्धि ,प्रतिष्ठा व शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के प्रति मानव की आकांक्षा प्रतिबिंबित
की ।आज ही घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र संघ का एक बुनियादी भाग है । आज हम विभिन्न चुनौतियों
का सामना कर रहे हैं ,जैसे खाद्यान्न संकट ,वित्तीय संकट ,प्राकृतिक पर्यावरण की बरबादी
,राजनीतिक दमन व इत्यादि ।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार मामलात पूर्व उच्च आयुक्त सुश्री नावी पिले ने एक बयान जारी कर कहा था कि विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र का बडा महत्व है ।
190 से अधिक देशों ने इस के आधार पर संविधान व कानून बनाया ।घोषणा पत्र में पहली बार
साफ शब्दों में कहा गया कि मानवाधिकार हर व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है ,जो प्रशासकों
द्वारा जनता को दिया गया उपहार नहीं है ।उन्होंने कहा कि बडी संख्या वाले लोग विश्व
मानवाधिकार अधिकार घोषणा पत्र में निर्धारित अधिकारों का उपभोग नहीं करते हैं और कुछ
देशों की मानवाधिकार बढाने की राजनीतिक इच्छा उन के वायदों से अनुकूल नहीं है ।
विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र का मुख्य विषय शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगारी
,आवास, संस्कृति ,खाद्यान्न व मनोरंजन से जुडी मानव की बुनयादी मांगों से संबंधित है
।विश्व के बहुत क्षेत्र गरीबी से पीडित है ,जो बडी संख्या वाले लोगों के प्रति बुनियादी
मानवाधिकार प्राप्त करने की सब से बडी बाधा है।उन क्षेत्रों में बच्चे
,वरिष्ठ नागरिकों व महिलाओं के बुनियादी हितों को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता ।इस
के अलावा नस्लवाद व नस्लवाद भेद मानवाधिकार कार्य के विकास को बडी चुनौती दे रहा है
।
भारत में 28 सितंबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में आया. 12 अक्टूबर,
1993 में सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन किया.आयोग के कार्यक्षेत्र में
नागरिक और राजनीतिक के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार भी आते हैं. जैसे
बाल मजदूरी, एचआईवी/एड्स, स्वास्थ्य, भोजन, बाल विवाह, महिला अधिकार, हिरासत और मुठभेड़
में होने वाली मौत, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकार.मानवाधिकारों
के प्रति लोगों को जागरूक बनाने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग आज दिल्ली में एक
विशेष कार्यक्रम आयोजित कर रहा है।
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