मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम


कैश ट्रांसफर
केंद्र सरकार अगले साल एक जनवरी से डायरेक्ट कैश ट्रांसफर योजना शुरू करने जा रही है। सालभर में इसे पूरे देश में लागू करने की योजना है। इससे करीब 21 करोड़ लोगों के खातों में सीधे पैसा जाने लगेगा।

 32 योजनाएं होंगी दायरे में

डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम (डीसीटीएस) के दायरे में 32 सरकारी योजनाएं शामिल की जाएंगी। इनमें पेंशन से लेकर स्कॉलरशिप और मनरेगा जैसी योजनाएं भी हैं। सरकार डीसीटीएस के दायरे में 60 करोड़ लोगों को लाने की योजना पर काम कर रही है। 

प्रधानमंत्री को मदद के लिए 20 अधिकारियों की एक एक्जीक्यूटिव कमिटी बनाई गई है। इसके नीचे तीन कमेटियां है।  टेक्नोलॉजी कमिटी, फाइनेंशियल इन्क्लूजन कमिटी और इंप्लीमेंटेशन कमिटी ऑन इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर ऑफ बेनीफिट।


गांवों पर ज्यादा जोर 

कैश ट्रांसफर के लिए बैंकों को ज्यादा से ज्यादा गांवों तक पहुंचाने की तैयारी है। अभी ग्रामीण क्षेत्र में बैंकों की 30,000 शाखाएं हैं। 5000 की आबादी वाले सभी गांवों में बैंक शाखा खोली जा रही है। 

2000 तक की आबादी वाले गांवों में बैंक प्रतिनिधि नियुक्त होगा। उन्हें बिजनेस करेस्पोंडेंस नाम दिया गया है। बड़े गांवों में ‘माइक्रो एटीएम’ लगेंगे। इन्हें आधार कार्ड के डाटाबेस से जोड़ा जा रहा है। 

ये होगा फायदा

·         सरकारी मदद में अब बिचौलियों की जगह नहीं होगी। 
·         पैसा मिलने में देरी नहीं होगी। 
·         दफ्तरों या अफसरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।  
·         सरकारी तंत्र की दखलंदाजी खत्म या कम हो जाएगी। 
·         डाटाबेस के आधार पर नियमित मॉनीटरिंग हो सकेगी। 

...और ये हैं खतरे

·         सबके लिए आधार कार्ड तैयार होने तक दलालों को रोक पाना मुश्किल। 
·         स्कीम में इंटरनेट और कंप्यूटर का बड़ा रोल, गांवों में इसकी भारी कमी। 
·         बिचौलिए इस स्कीम को विफल करने की कोशिश करेंगे। 

किसकी कितनी तैयारी


·          योजना आयोग ने 9 केंद्रीय मंत्रालयों के 7 कार्यक्रम (पेंशन सहित) और 22 स्कॉलरशिप योजनाओं की डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के लिए पहचान की है।
·          31 मार्च 2013 तक सभी बैंक कोर बैंकिंग प्लेटफॉर्म पर आ जाएंगे जिसके जरिये डायरेक्ट कैश ट्रांसफर होगा।
·          ग्रामीण विकास मंत्रालय के पास मनरेगा के साढ़े 12 करोड़ परिवारों का डिजिटल डाटाबेस तैयार।
·          पोस्ट ऑफिसों में करीब 2.7 करोड़ खाते जिनमें 1.5 करोड़ जीरो बैलेंस वाले।
·          स्कूल यूनीफॉर्म सहायता का पैसा सीध खाते में जमा करने को बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश राजी। 
·          खाद सब्सिडी सीधे कैश ट्रांसफर से देने के दो फेज चालू। तीसरा 10 जिलों में 31 दिसंबर 2012 से।
·          धनलक्ष्मी और इंदिरा गांधी मातृत्व योजना डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के लिए तैयार।
·          एलपीजी रसोई गैस सब्सिडी के डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का रोडमैप तैयार।

 अभी ये होता है

·         सब्सिडी का पैसा सरकारी मशीनरी के जरिये पहुंचता है।  
·         पैसे का बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार में खप जाता है।
·         फर्जी लाभार्थियों को भी पैस मिल जाता है फायदा।
·         पैसा किसे मिल रहा इसकी मॉनीटरिंग नहीं हो पाती। 

अब ये होगा 

·         आधार कार्ड में सभी नागरिकों का डाटाबेस होगा। 
·         सरकार के पास योजना का लाभ लेने वालों की पहचान रहेगी।  
·         इन्हें आधार कार्ड के डाटाबेस से मिलाया जाएगा। फर्जी और डुप्लीकेट नाम छंट जाएंगे। 
·         लोगों के बैंक खातों में योजना का पैसा सीधे जमा होगा।  
·         अपने गांव की बैंक शाखा से लोग पैसा निकाल सकेंगे ।
·         'डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम' के लिए फिलहाल 42 सरकारी योजनाओं की पहचान की गई है. जिनमें से 29 योजनाओं को पहली जनवरी से देश के 51 जिलों में लागू किया जाएगा.
·         कैश ट्रांसफर के तहत पहली अप्रैल, 2014 से देश भर के करीब 10 करोड़ गरीब परिवारों को 32 हज़ार रुपये सालाना का भुगतान होगा. इस मद में सरकार सालाना तीन लाख बीस हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी.
·         केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के मुताबिक 51 जिलों का चयन किसी भेदभाव पर नहीं हुआ है, बल्कि जिलों में बैंक शाखाओं की संख्या और राज्य सरकार की अनुशंसा के आधार पर इन जिलों को चुना गया है. जल्द ही यह पूरे देश में लागू होगी.
·         लाभ लेने वाले लोगों का बैंक खाता आधार कॉर्ड के जरिए खोला जाएगा. वित्त मंत्री के मुताबिक आधार कॉर्ड के इस्तेमाल से कोई शख्स एक ही योजना का लाभ दो बार नहीं ले पाएगा.
·         इस योजना को राजस्थान में अनुदानित केरोसीन तेल के भुगतान और कर्नाटक में रसोई गैस की अनुदानित भुगतान की योजनाओं में पहले ही लागू किया जा चुका है.
·         मौजूदा व्यवस्था में बाकी पैसा बिचौलियों की भेंट चढ़ जाती है. इसके अलावा विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों तक देरी से पहुंचता रहा है. पी चिदंबरम और जयराम रमेश ने उम्मीद जताई है कि इस योजना के लागू होने से दोनों समस्याओं का हल मिल जाएगा.
·         फिलहाल इस स्कीम को मानव संसाधन विकास मंत्रालय, सामाजिक न्याय, अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं में इस स्कीम को लागू किया जाएगा.
·         माना जा रहा है कि योजना की सबसे बड़ी खामी ये है कि देश की 120 करोड़ से ज़्यादा की आबादी में महज 21 करोड़ लोगों का आधार कार्ड बना हुआ है. ऐसे में यह योजना हर किसी तक कैसे पहुंचेगी. यह सवाल खड़ा होता है.

 समसामियक  प्रश्न 

डायरेक्ट सब्सिडी मौजूदा सिस्टम से कैसे अलग है? 

मौजूदा सिस्टम में किसी प्रॉडक्ट या सर्विस की कीमत लागत से कम रखकर बेनिफिशरी को सब्सिडी दी जाती है। कैश ट्रांसफर में प्रॉडक्ट की कीमत बाजार के मुताबिक होगी और बेनिफिशरी को छूट के बराबर की रकम डायरेक्ट दी जाएगी।

सब्सिडी के बजाय डायरेक्ट ट्रांसफर कैसे बेहतर है? 
वर्ल्ड बैंक के अनुमान के मुताबिक, 2004-2005 में गरीबों में बांटने के लिए सरकार की तरफ से जारी कुल अनाज का केवल 41 फीसदी ही जरूरतमंदों तक पहुंच पाया था। ठीक इसी तरह, गरीबों में बांटने के लिए जारी केरोसिन तेल का करीब 25 फीसदी ओपन मार्केट में बेचा जाता है। बाजार भाव और सब्सिडी के बाद की कीमतों के अंतर से मुनाफा बनाने के लिए सिस्टम में मौजूद लोग ऐसा काम करते हैं। वहीं, डायरेक्ट कैश ट्रांसफर में प्रॉडक्ट प्राइस के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। इससे सब्सिडी लीकेज को रोका जा सकता है। 
क्या डायरेक्ट कैश ट्रांसफर सब्सिडी का फुलप्रूफ तरीका है? 
डायरेक्ट कैश ट्रांसफर की अपनी खामियां हैं। अगर जरूरतमंदों की पहचान सही तरीके से की जाए तो यूनिवर्सल सब्सिडी प्रोग्राम का रीप्लेसमेंट कामयाब हो सकता है। इसमें इस बात की भी पूरी आशंका है कि जो लोग सब्सिडी पाने लायक नहीं हैं, वे गलत जानकारी देकर या अधिकारियों की मिलीभगत से यह लाभ लेने की कोशिश करेंगे। इसके साथ ही प्रस्तावित कैश ट्रांसफर की कामयाबी के लिए यूनीक आईडेंटिफिकेशन (यूआईडी) नंबर सही तरीके से जारी करना जरूरी है। कैश ट्रांसफर भी समस्या है, क्योंकि देश की आधी आबादी के पास बैंक अकाउंट नहीं है।

कैश ट्रांसफर के पीछे क्या इकॉनमी है? 
जरूरतमंदों को सब्सिडी के बजाय सीधे कैश देने से उनके पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा होगा। इस पैसे का इस्तेमाल वह अपनी जरूरत की दूसरी चीजें खरीदने में कर सकता है। इकॉनमिक थिअरी के मुताबिक, सरकार परिवारों का कल्याण करके कम खर्च में ज्यादा काम कर सकती है।

कैसे पहुंचेगा 'आपका पैसा आपके हाथ'
वित्त मंत्री पी चिदंबरम के मुताबिक पहली जनवरी 2013 से 'कैश सब्सिडी योजना' लागू की जाएगी यानी विभिन्न मंत्रालयों द्वारा चलाई जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित कर दिया जायेगा.
कैश सब्सिडी योजना को ‘गेम चेंजर’ क़रार देते हुए कहा कि इससे सरकारी सहायता के दुरुपयोग और गलत हाथों में पड़ने का डर नहीं होगा और मदद आसानी से सीधे लाभार्थी तक पहुंचेगी.
 कैश ट्रांसफर के रास्ते की रुकावटें
सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को खत्म करके नकद सब्सिडी योजना को लागू करना चाहती है। इस योजना के तहत सरकार गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वाले परिवारों के सदस्य के खातों में सीधे पैसा जमा करवाने की व्यवस्था करेगी। फिलहाल इस योजना को देश के 18 राज्यों के 51 जिलों में 1 जनवरी, 2013 से लागू करने का प्रस्ताव है। तदुपरांत दिसम्बर, 2013 तक पूरे देश में इसे लागू कर दिया जाएगा।
इस योजना का लाभ कमजोर तबके तक पहुँचाने के लिए सभी संबंधित विभाग को इलेक्ट्रॉनिक डायरेक्ट कैश ट्रांसफर सिस्टम से जोड़ा जाएगा। ‘आधार’ को इस योजना का आधार बनाये जाने की योजना है अर्थात ‘आधार’ कार्ड के आधार पर प्रस्तावित योजना का लाभ बीपीएल परिवार के सदस्यों को दिया जाएगा। प्रारंभिक दौर में तकरीबन 21 करोड़ बीपीएल परिवार के सदस्य, इस योजना से लाभान्वित होंगे। आकलन के मुताबिक देश में 40 से 50 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं।
पीडीएस के तहत अनाज, खाद, केरोसीन, रसोई गैस इत्यादि सरकार उनके बाजार मूल्य से कम दाम पर बीपीएल परिवार को उपलब्ध करवाती है। इस नई योजना के कार्यान्वित हो जाने के बाद सारा सामान उन्हें बाजार मूल्य पर मिलेगा और इसके बदले उनके बैंक खातों में हर साल तकरीबन 30 से 40 हजार रुपया सब्सिडी के रुप में डाल दिया जाएगा। रसोई गैस के मामले में गरीबी रेखा के ऊपर रहने वालों  को भी नकद सब्सिडी दिया जाएगा। सप्रंग के इस महत्वाकांक्षी योजना पर प्रत्येक साल 4 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
सवाल है कि क्या बैंक इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए तैयार है? अधिकांश बीपीएल परिवार के सदस्यों का बैंकों में खाता नहीं है। अशिक्षा व गरीबी के कारण वे बैंकों में अपना खाता खुलवाने की स्थिति में नहीं हैं। बैंक के पास प्रर्याप्त संसाधन भी नहीं है कि वह उनका खाता खोल सके। फिलवक्त बैंकों के पास मानव संसाधन की कमी है। लाभार्थियों का ब्यौरा तैयार करना बैंकों के लिए मुष्किल काम है। शाखाओं के व्यापक पैमाने पर विस्तार की जरुरत है। इसके बरक्स उल्लेखनीय है कि सालों से चल रहे मनरेगा योजना के सभी लाभार्थियों का अभी तक बैंकों में खाता नहीं खुल सका है।
ऋण राहत एवं माफी योजना, 2008 को लागू करने में जिस तरह से बैंक स्तर पर अनियमिताएं बरती गई, सरकार इससे अच्छी तरह से वाकिफ है। ज्ञातव्य है कि इस योजना का लाभ बहुत सारे योग्य ऋणियों को नहीं मिल सका था, वहीं कुछ अपात्र ऋणी योजना का लाभ लेने में सफल रहे थे। आज भी इस योजना के लाभ से वंचित ऋणी या तो सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत या शिकायत कोषांग के मंच पर अपनी फरियाद कर रहे हैं।
समग्र रुप में देखा जाए तो ऐसी गड़बड़ी के लिए मूलतः सरकार जिम्मेदार थी। ज्ञातव्य है कि रिजर्व बैंक अंतिम समय तक इस योजना की शर्तों को तय करने में लगा रहा। कई एक बार संषोधित परिपत्र निकाले गये। ऊहाफोह एवं घालमेल की अवस्था में बैंककर्मियों से अपेक्षा की गई कि वे आनन-फानन में इस योजना को सफलता पूर्वक अमलीजामा पहना देंगे, जबकि लाभार्थियों की सूची तैयार करने के लिए अतिरिक्त प्रषिक्षित मानव संसाधन की जरुरत थी। बैंक के रुटीन कार्यों को करते हुए बैंककर्मियों के लिए लाभार्थियों की सूची तैयार करना संभव नहीं था। फिर भी सरकार ने इस महत्वपूर्ण पहलू पर ध्यान नहीं दिया और न ही स्वतंत्र ऐजेंसी से बैंकों के द्वारा किये गये कार्यों का अंकेक्षण करवाया गया। इस खामी का फायदा भ्रष्ट बैंककर्मियों ने जमकर उठाया और लाभार्थियों की सूची में हेर-फेर कर खूब माल कमाया।
जाहिर है नकद सब्सिडी योजना की सफलता के लिए ग्रामीण इलाकों में बैंक की शाखाओं का होना जरुरी है, जबकि अभी भी ग्रामीण इलाकों में प्रर्याप्त संख्या में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। जहाँ बैंक की शाखा है, वहाँ भी सभी ग्रामीण बैंक से जुड़ नहीं पाये हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत की कुल आबादी के अनुपात में 68 प्रतिशत के पास बैंक खाते नहीं है। बीपीएल वर्ग में सिर्फ 18 प्रतिशत के पास ही बैंक खाता है। जागरुकता के अभाव में स्थिति में सुधार आने के आसार कम हैं। भले ही वितीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने के लिए बैंकों में कारोबारी प्रतिनिधियों की नियुक्ति की गई थी, लेकिन विगत वर्षों में उनकी भूमिका प्रभावशाली नहीं रही है। 2008 तक बैंकों में मात्र 1.39 करोड़ नो फ्रिल्स खाते खोले जा सके थे। ‘नो फ्रिल्स खाता’ का तात्पर्य षून्य राषि से खाता खोलना है।
इस तरह के खाते खोलने में केवाईसी हेतु लिए जाने वाले दस्तावेजों में रियायत दी जाती है। इस नवोन्मेषी प्रोडक्ट को ग्रामीणों को बैंक से जोड़ने का सबसे महत्वपूर्ण हथियार माना जा रहा है। बावजूद इसके विगत दो-तीन सालों से रिजर्व बैंक के द्वारा लगातार कोषिश करने के बाद भी वितीय संकल्पना को साकार करने के मामले में कोई खास प्रगति नहीं हुई है।
सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों को 15 दिसम्बर तक 51 जिलों में बीपीएल परिवार के कम से कम एक सदस्य की बैंक में खाते खुलवाने के लिए निर्देश दिया है। सूत्रों के अनुसार बैंकों को मतदाता सूची उपलब्ध करवा दी गई है, लेकिन प्राप्त सूचना के अनुसार निर्धारित अवधि में इस काम को अंजाम नहीं दिया जा सका है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री मोंटेक सिंह आहलूवालिया जल्द ही इस मुद्दे पर 51 जिलों के जिलाधिकारियों के साथ बैठक करने वाले हैं, जिसमें यह विमर्श किया जाएगा कि क्या इस योजना को 1 जनवरी, 2013 से 51 जिलों में षुरु किया जा सकता है ? विमर्श के फलितार्थ के आधार पर ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, उक्त 51 जिलों में ‘आधार कार्ड’ कम बने हैं। इन जिलों के बहुत से हिस्सों में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। हालातनुसार योजना को लागू करने की तिथि को आगे बढ़ाये जाने की प्रबल संभावना है।
पड़ताल से स्पष्ट है कि बैंकों को बुनियादी आवष्यकताओं से लैस किये बिना यह योजना व्यावहारिक नहीं है। व्यावहारिकता पर सवाल उठना इसलिए भी लाजिमी है कि मौजूदा बैंकिंग प्रणाली में अनेकानेक खामियां हैं, जिन्हें दूर किये बिना बहुतेरे समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। बैंक शाखाओं, मानव संसाधन और अन्यान्य संसाधनों की कमी के अलावा बीते सालों में केवाईसी के अनुपालन में लापरवाही बरतने के कारण बैंकों में धोखाधड़ी की वारदातों में इजाफा हुआ है। हवाला के मामले भी बढ़े हैं। आतंकवादियों ने भी बैंकों की इस कमजोरी का फायदा उठाया है। लिहाजा केवाईसी के मुद्दे पर बैंक पूरी तरह से दरियादिली चाहते हुए भी नहीं दिखा सकता है, क्योंकि किसी के माथे पर यह नहीं लिखा होता है कि वह अपराधी है या आंतकवादी। ऐसे में देश में इस तरह की योजना को लागू करने से पहले मजबूत बैंकिंग व्यवस्था बनाने के लिए पहल करना चाहिए।


Prashant Dwivedi






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