शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

नक्सलवाद


नक्सलवाद जो आज 14 राज्यों के 2500 से अधिक थानों में फैल चुका है अथवा ऐसा भी कह सकते हैं कि भारत के 626 जिलों में से 231 जिले इस आंदोलन की गिरफ्त में हैं। नक्सली आंदोलन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार और झारखण्ड में भी सक्रिय है जहां हिंसा की छोटी बड़ी घटनाएं होती ही रहती हैं। नक्सलवादी मारने, अगवा करने अपहरण करने, पैसा ऐठने, बम व विस्फोटक सामग्री इस्तेमाल करने और सम्पत्ति नष्ट करने के कार्यक्रमों में तल्लीन हैं। पीपल्स वार गु्रप और माओइस्ट कम्युनिस्ट सेन्टर ही 700 करोड़ रूपया इस तरह इकट्ठा कर लेते हैं।
दलितों और आदिवासियों में असंतोष फैलाना तथा उनकी मार्फत सत्ता पर कब्जा करना इनका मुख्य उद्देश्य रहा है और है। इस तरह के कुछ 39-40 गु्रप हैं। अनुमान है कि इनके पास 1000 एके॰ 14 राइफल, 200 से अधिक हल्की मशीनगनें, 100 ग्रेनेड फायरिंग राइफल्स, हजारों 303 राइफल्स और अनेक आधुनिक हथियारों के साथ ही टनों विस्फोटक सामग्री है। जनता में इनके बारे में विस्तृत जानकारी देने में सरकार तथा मीडिया दोनों ही असफल रहे हैं। वैसे इनके बारे में शोध बहुत कम हुआ है। शोध से इनके प्रति नीति-निर्धारण में दिशा मिलती है।
सरकार (केन्द्र सरकार और राज्य सरकार) द्वारा समुचित ध्यान न देने के कारण तथा मीडिया द्वारा मामले को न समझने के कारण झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में हालात बहुत बिगड़ गये। आंध्र प्रदेश में कुछ सुधार हुआ तो पश्चिमी बंगाल भी इनकी चपेट में आ गया। अर्द्ध सैनिक बल हों या पुलिस या निर्दोष रेल यात्राी, नक्सलवादियों के हौसले खूब बुलन्द हो गये कि उन्होंने देश के एक बड़े भू-भाग पर अपना वास्तविक कब्जा कर लिया।
तथ्य चैंकाने वाले थे और मौतें दिल दहलाने वाली। तब जाकर भारत सरकार कुछ जागी और समन्वय के लिए कमान्ड बनाने का तय किया गया। इस समन्वय करने वाली कमान्ड पर भी राजनीति चल रही है और इसके सफल होने के अवसरों को कम कर रही है।
नक्सली लोकतंत्रा पर विश्वास नहीं करते। हिंसा के द्वारा वे सत्ता पर आधिपत्य करना चाहते हैं। उनके हौंसले बुलन्द हैं, खासतौर पर आंध्र प्रदेश में जहां वे एक समानान्तर सरकार चला रहे हैं। समानान्तर सरकार चलाना उनकी उद्देश्य पूर्ति का एक अभिन्न अंग है। इसके लिए वे कोई हत्या करने या कोई गठबन्धन करने से पहरेज नहीं रखते। उनके भाषणों या प्रस्तावों में धोखे छिपे रहते हैं। उन्हें बातचीत के लिए केवल मजबूर ही किया जा सकता है।
प्रधानमंत्राी डा॰ मनमोहन सिंह ने आंध्र प्रदेश में जाकर नक्सलियों को चुनाव में भाग लेने की सलाह दी थी। सलाह प्रासंगिक थी जिसे नक्सली नहीं माने, न कभी मानेंगे और यदि मानेंगे तो यह अपना प्रभाव बढ़ाकर किसी विशेष भू-भाग या क्षेत्रा पर अपना कब्जा करने की रणनीति ा एक भाग होगा। इतिहास साक्षी है कि उन्होंने इस समय का प्रयोग अपनी स्थिति सुधारने, अपनी जड़ें गहरी करने के लिए ही किया है। हिंसा और शान्ति दो परस्पर विरोधी धारणायें और विश्वास हैं।
सही बात यह है कि इस समस्या पर गंभीर विचार-विमर्श और चिन्तन किया ही नहीं गया है इसीलिए भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए यह एक बड़ा खतरा बन गया है। इन नक्सलियों के नेपाल के माओवादियों, लिट्टे और उल्फा जैसे संगठनों से रिश्ते हैं। भारत में भी नक्सलवादी कई नामों से अलग-अलग क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
भारत बाहरी तत्वों से पोषित राज्य प्रतिरोध और आतंकवाद का पिछले 41 वर्षों से शिकारगाह रहा है। इस समस्या की वजह से भारत में करीब 15,000 सैनिक व 55,000 नागरिक मारे गये हैं। पड़ोसी देश अपने वायदों पर अमल नहीं कर रहे हैं और भारत का सैनिक, अर्धसैनिक खर्चा इन्हें दबाने में बढ़ता ही जा रहा है पर समस्या सुलझने के आस-पास भी नहीं है।
स्वतंत्राता के तुरन्त बाद से ही हमारी सीमाओं में पड़ोस के देशों ने अवैध घुसपैठ की है और सीमा पार का आतंकवाद फैलाया है, हथियारों की तस्करी की है, विस्फोटक सामग्री भेजी है, जाली नोट भेजे हैं और नारकोटिक व्यापार को बढ़ाया है। इनका सर अभी नहीं कुचला गया तो ये भारतीय लोकतंत्रा के लिए सबसे बड़ा खबरा साबित होंगे। चीन से खदेड़े जाने के बाद भारत ही इनका प्रमुख केन्द्र बन गया है।

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