गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

दक्षिण चीन सागर विवाद




दक्षिण चीन सागर के क्षेत्रों को लेकर कई प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच दशकों से विवाद है। यह विवाद समुद्री क्षेत्र पर अधिकार और संप्रभुता को लेकर है। इसमें पारासेल द्वीप और स्प्रैटली द्वीप शामिल हैं। पारासेल और स्प्रैटली द्वीप पर कई देशों ने अपना पूरा अधिकार बताया है तथा कई देशों ने आंशिक रूप से इसे अपने नियंत्रण क्षेत्र का हिस्सा बताया है। ऐसा माना जाता है कि दक्षिण चीन सागर के समुद्र में तेल और गैस के कई विशाल भंडार दबे हुए हैं। यही भंडार इस क्षेत्र के कई देशों के बीच विवाद का कारण बन गए हैं। इसके अलावा यहां दर्जनों निर्जन चट्टानी इलाके, रेतीले तट, प्रवाल द्वीप आदि हैं, जो विवाद का कारण हैं। यहां का समुद्री रास्ता भी व्यापार के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है।

 समुद्र के रास्ते होने वाले भारत के कुल व्यापार का करीब 55 प्रतिशत इसी क्षेत्र से होता है, इसलिए दक्षिण चीन सागर भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यहां पर उपजे तनाव से भारत के समुद्री व्यापार पर असर पड़ सकता है। यदि चीन पूरे क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाने में कामयाब हो गया तो भारत के व्यापारिक जहाजों के खुले आवागमन पर असर पड़ेगा। वियतनाम सरकार ने भारत सरकार की तेल और गैस कंपनी ओएनजीसी के साथ एक समझौता किया। इसके अनुसार ओएनजीसी वियतनाम के छोटे द्वीपों में तेल और गैस की खोज करेगी। चीन ने इस पर कड़ा विरोध जताया था, जबकि भारत ने कहा था कि दक्षिण चीन सागर पूरी दुनिया की संपत्ति है। अमेरिका भी इस मामले में चीन की खुली आलोचना करता है। अमेरिका का कहना है कि कई देशों के पास ऐसे मानचित्र हैं, जिनसे पता चलता है कि पिछले कई सौ सालों से भारत, अरब और मलय के व्यापारी दक्षिण चीन सागर में अपने समुद्री जहाजों को ले जाते थे और इसी समुद्र के माध्यम से व्यापार करते थे।

 1970 में वियतनाम और कई देशों ने यह पता लगाया कि यहां पर तेल और गैस के अपार भंडार हैं। इसके बाद इन देशों ने इस क्षेत्र में तेल और गैस की खोज शुरू कर दी। इसके बाद से चीन ने इसे अपनी बपौती बताना शुरू कर दिया और यहां मौजूद संसाधनों के दोहन पर रोक लगाने के प्रयास तेज कर दिए।

213 अरब बैरल से अधिक तेल भंडार मौजूद है यहां। यह आंकड़ा यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन ने चीनी अनुमान के मुताबिक दिया है, जबकि अमेरिकी वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां पर 28 अरब बैरेल तेल मौजूद है।


900 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार मौजूद हैं यहां। यह आंकड़ा कतर में मौजूद भंडार के बराबर है। यूएस एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक क्षेत्र की असली सम्पति यहां मौजूद प्राकृतिक गैस के भंडार हैं। शिपिंग लेन्स के कारण भी यह इलाका काफी महत्वपूर्ण है।

चीन ने विवादास्पद दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में एक पूरा का पूरा नया शहर बसा डाला है। इसके बाद उसका अपने पड़ोसी देशों के साथ तनाव और अधिक गहरा सकता है।चीन ने दक्षिणी प्रांत हाइनान के योंगशिंग द्वीप पर सांशा शहर बसाया है। यह इलाका दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में पड़ता है। इस शहर में एक पोस्ट ऑफिस, बैंक और सुपरमार्केट है लेकिन पीने का पानी चीनी मुख्य भूमि क्षेत्र से 13 घंटे की यात्रा के जरिए लाया जाता है। जनसंख्या महज 1000 है।सांशा की स्थापना दक्षिण चीन सागर के शिशा, झोंगशा और नान्शा द्वीपसमूहों की निगरानी करने के लिए की गई है। सरकार शहर का विकास एक सैन्य अड्डे के रूप में करेगी।


दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों के संगठन यानी आसियान के क्षेत्रीय फोरम में कई देशों ने चीन के बढ़ते वर्चस्व के बावजूद दक्षिण चीन सागर मार्ग पर एकमत बनाने की कोशिशें कीं. हालांकि इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिल सकी मगर वियतनाम जैसे देशों ने जो दबाव बनाना शुरू किया है उसके मद्देनजर भारत की भूमिका बेहद अहम हो गई है. हालांकि मेजबान देश कंबोडिया पर चीन का पक्ष लेने के आरोप लगते रहे हैं भारत और अमेरिका ने एक स्वर में यह बात कही कि चीन को अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। 


अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ मानते हैं कि 'लुक ईस्ट' नीति के तहत भारत कई महीनों से दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व को रोकने का प्रयास कर रहा है. विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस दिशा में भारत ने कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं. पिछले साल दिसंबर में भारतीय जल सेना की ओर से कहा गया था कि दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए वह सभी प्रकार के कुल 500 वायुयान और 150 समुद्री जहाज रखेगी. इसके अलावा आज से पांच साल बाद प्रति वर्ष पांच समुद्री जहाजों का निर्माण भी किया जाएगा।


चूंकि चीन और वियतनाम, फिलिपींस, मलेशिया और ब्रूनोर्ई जैसे उसके दक्षिण पूर्वी एशियाई पड़ोसी देशों में एकमत बनता नजर नहीं आता इसलिए आने वाले कुछ महीनों में दक्षिण चीन सागर को लेकर सभी निगाहें भारत पर टिकी रहेंगी. इस विवाद में भारत का रणनीतिक योगदान भी बेहद महत्वपूर्ण रहेगा. हालांकि अमेरिका पर यह शक भी किया जाता रहेगा कि वह भारत की हिमायत में बोलकर दक्षिण पूर्वी एशिया में दरार डालने की कोशिश कर रहा है. इन हालात में देखना होगा कि विदेश मंत्रालय किस तरह का रुख अपनाता है. क्या आने वाले दिनों में जल सेना कंप्यूटर सिस्टम की सुरक्षा को लेकर और गंभीर होगी? इतना ही नहीं, दुनियाभर के विशेषज्ञों की राय इस मुद्दे पर किस ओर मुड़ेगी. क्या शांतिप्रिय राष्ट्र होने के साथ-साथ भारत मजबूत रणनीतिक कदम उठाने वाले राष्ट्र की पहचान भी बना पाएगा?








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