भारत और चीन
दक्षिण एशिया खंड के दो महत्वपूर्ण देश हैं जिन पर सारी दुनिया की नजर टिकी हुई हैI आज के समय में इन दोनों देशो ने अपने जीडीपी से सारे विश्व को चौका दिया है और
वैश्विक आर्थिक मंदी के सामने भी इन दोनों देशो ने अपनी आर्थिक प्रगति की दर को
बनाये रखा है और दोनों देश २१वी सदी की आर्थिक महाशक्ति बनने की और आगे बढ़ रहे हैI यह संतोषजनक बात
है कि चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी वर्ष 2003 से दोनों देशों
की सरकारों द्वारा एक संस्थागत तंत्र को सौंप दी गई है। नई दिल्ली और
बीजिंग, दोनों ने ही आश्वासन दिया है कि आर्थिक व्यापार सीमा विवाद के कारण बाधित नहीं होंगे । दूसरे शब्दों में, बातचीत के जरिए सीमा-निर्धारण
और सहयोग दोनों समानांतर मार्ग पर साथ-साथ चल रहे हैं और दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण
रेखा पर पूर्व स्थिति को बदलने के लिए बल-प्रयोग की संभावना को नकार दिया है। हालांकि इधर चीन
व भारत के संबंधों में भारी सुधार हुआ है, तो भी दोनों के संबंधों में कुछ अनसुलझी समस्याएं रही हैं। चीन व भारत के बीच सबसे बड़ी समस्याएं सीमा विवाद और तिब्बत की हैं।
भारत और चीन के मध्य कुछ विवादित बिंदु -:
मैकमोहन लाइन - 550 मीटर की यह लाइन भूटान से हिमालय के सहारे ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक जाती है । इस लाइन को भारत अपनी स्थायी सीमा रेखा मानता है जबकि चीन इसे अस्थाई सीमा रेखा मानता है।
अरुणाचल प्रदेश - मैकमोहन लाइन के दक्षिण में स्थित इस विवादित क्षेत्र को 1937 में सर्वे ऑफ़ इंडिया ने प्रथम बार अपने नक़्शे में मैकमोहन लाइन की अधिकारिक सीमा के रूप में दर्शाया था और इस विवादित क्षेत्र को भारतीय हिस्सा माना था। 1938 में ब्रिटेन द्वारा अधिकारक तोर पर शिमला समझोते के प्रकाशन के बाद इस पर भारतीय अधिकार सिद्ध हो गया था। लेकिन 1949 की चीनी क्रांति के पश्चात साम्यवादी सरकार ने इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जताना आरम्भ कर दिया। तब से लेकर वर्तमान तक यह दोनों देशो के मध्य विवाद का बिंदु बना है।
अक्साई चिन - अक्साई चिन 19 वी शताब्दी तक लद्दाख साम्राज्य का हिस्सा था । जब कश्मीर का लद्दाख पर अधिकार हो गया तो अक्साई चिन भी कश्मीर का हिस्सा बन गया । सन 1950 में चीन ने अक्साई चिन पर अधिकार कर लिया । उसने इस क्षेत्र से होते हुए तिब्बत तक एक सड़क 'चीन राष्ट्रीय राज मार्ग-219 का निर्माण प्रारम्भ कर दिया जिसकी परिणति 1962 के भारत-चीन युद्ध में हुई।
ब्रह्मपुत्र को मोड़ने की योजना - चीन पिछले काफी वर्षो से ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेने की योजना बना रहा है। यह चीन की विशाल 'साउथ नोर्थ वाटर लिंक' योजना का हिस्सा है। चीन शुमाटन पॉइंट पर प्रस्तावित बांध के लिए ब्रह्मपुत्र नदी से पानी लेना चाहता है। यदि चीन इस योजना में सफल हो जाता है तो भारत के लिए जल-विज्ञान और भू-विज्ञान सम्बन्धी खतरे पैदा हो जायेगे।
हिमालय पर चीन का खतरा - चीन सतलज तथा उसकी सहायक नदियों पर कई बिजली परियोजनाओ का निर्माण कर रहा है जिसके कारण यह नदिया हिमाचल प्रदेश में तबाही ला सकती हैं। वही दूसरी और गर्मियों में इसके कारण अकाल पड़ सकता है।
तिब्बत पर विवाद - चीन के कब्जे में आने से पूर्व तिब्बत उत्तर-पूर्वी एशियाई देशों के लिए एक बफर राज्य के रूप में था। सन 1892 से 1913 तक चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा करने के असफल प्रयास किये। सन 1913 में तिब्बत ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और 1914 में इस पर मुद्दे पर शिमला में बैठक हुई। ब्रिटन,चीन तथा तिब्बत के मध्य हुई इस बैठक में तिब्बत ने अपनी संप्रभुता की मांग रखी जिसे चीन ने मानने से इंकार कर दिया। बाद में तिब्बत ने लोचन शत्रा शत्रा के तथा ब्रिटन ने सर हेनरी मैकमिलन की अगुवाई में शिमला समझोता किया और मैकमिलन लाइन अस्तित्व में आयी। इस समझोते में तिब्बत को एक स्वतंत्र राष्ट्र माना गया नाकि चीन का एक प्रान्त। तब से चीन मैकमोहन लाइन को नकारता आ रहा है। 23 मई 1951 को चीन ने दलाईलामा से 17 सूत्रीय समझोते पर जबरदस्ती हस्ताक्षर करा लिए और तिब्बत पर चीन का अधिकारिक
कब्ज़ा हो गया। इसके पश्चात दलाईलामा ने बहुत से तिब्बतियों के साथ भारत में शरण ले रखी है।
इन सब विवादित बिन्दुओ का हल निकालने का शांतिपूर्वक प्रयास दोनों देशो को निकलना चाहिए इसके लिए दोनों देशो द्वारा समय-समय पर कदम उठाये जाते रहे हैं।
दुनिया भारत
और चीन को एक दुसरे का प्रतिस्पर्धी मानती है, लेकिन सच में यह दोनों
प्रतिस्पर्धी कम और सहयोगी ज्यादा है I दोनों देशो में राजनितिक माहोल भी अलग है चीन एक समाजवादी देश है जब की भारत लोकतान्त्रिक देश है I दोनों की औद्योगिक नीतियाँ भी
अलग है I लेकिन फिर भी हकीकत यही है की अगर इन दोनों देशो को आर्थिक सुधार एवम
प्रगति को जारी रखना है, तो एक दुसरे के साथ आर्थिक एवम राजनीतिक संबधो को और मजबूत
करना होगा जिसकी दिशा में सकारात्मक प्रयास दोनों देशो की तरफ से हो रहे है I अगर वाकई में
भारत और चीन दोनों एक साथ हो जाये तो फिर अमेरिकी और यूरोपियन संगठन को काफी पीछे
छोड़ देगे। हलाकि पिछले
कुछ वर्षो में भारत और चीन के व्यापारी रिश्तो में जो सुधार आया है और जो व्यापर
बढ़ा है वो इस बात का सबूत है की दोनों देशो को एक दुसरे की अहमियत का पता चल गया
है और इसीलिए सभी चीजो को भुलाकर एक दुसरे के साथ आर्थिक रिश्तो को मजबूत करने की
और बढ़ रहे है I वास्तव में दोनों देश एक दुसरे के पूरक हैं, जहाँ चीन में ज्यादातर मेन्युफेकचरिंग उद्योग ज्यादा है और वह सुई
से लेकर हवाईजहाज तक बनाता है वहीँ भारत की आर्थिक प्रगति में सर्विस सेक्टर की ज्यादा भागीदारी है ।
हम आशा कर सकते हैं कि दोनों देश मिल जुलकर न केवल एशिया
की आर्थिक सूरत सुधारने में आधारभूत भूमिका निभाएंगे, बल्कि 21वीं शताब्दी के मानव
इतिहास की दिशा तय करने के साथ-साथ विश्व आर्थिक परिदृश्य में संतुलन के संदर्भ में
भी श्रेयस्कर भूमिका निभाएंगे।
a very good article.........thanks
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