एक
तुच्छ दिखने
वाले जीवाणु द्वारा
मामूली रूप से
काटा जाना किसी
की जिन्दगी
को भीषण खतरे
में डाल सकता
है। क्या
आप इस बात
पर विश्वास
करेंगे कि हर
वर्ष रोगाणुवाहक जीव
(वेक्टर) जन्य बीमारियों
के कारण दस
लाख से अधिक
लोगों की मौत
हो जाती है।
हां, यह सही
है, मच्छर
जैसे जीवों के
काटने से होने
वाली मौतों की
संख्या चिंताजनक ढंग से
बढ़ रही है।
अत्यधिक तापमान
और अधिक नमी
की उष्णकटिबंधीय
स्थितियों में मनुष्य को
गंभीर शारीरिक और
मानसिक परेशानियों का सामना
करना पड़ता है।
उसे बहुत अधिक
पसीना आता है,
जिससे उसकी ताकत
और ऊर्जा का
क्षय होता है
और लू लगने
तथा अन्य
बीमारियों के खतरों
आदि का सामना
करना पड़ता है।
उष्णकटिबंधीय स्थितियां
रोगाणुओं और बैक्टिरिया
के अस्तित्व
के लिए अत्यंत अनुकूल
समझी जाती है
और वे कीटों
और सूक्ष्म
जीवों के प्रसार
को बढ़ावा देती
हैं। इस बार
विश्व स्वास्थ्य दिवस
के अवसर पर
विश्व स्वास्थ्य संगठन
ऐसी बीमारियों के
समूह की ओर
ध्यान आकर्षित
कर रहा है,
जो कीटाणुओं और
अन्य रोगाणुवाहक
जीवों से फैलती
हैं। ये बीमारियां
स्वास्थ्य सेवाओं
और अर्थव्यवस्था पर
भारी बोझ डालती
हैं। ऐसे में
यह विचारणीय है
कि इस बोझ
को कम करने
के लिए क्या किया
जाए। इन रोगों
के संक्रमण के
बाद बच जाने
वाले कई लोग
स्थायी रूप
से कमजोर, विरूपित,
विकलांग या दृष्टिबाधित
हो जाते हैं।
इस
वर्ष विश्व
स्वास्थ्य दिवस
का नारा 'सूक्ष्म डंक
बड़ा खतरा' वेक्टरजन्य बीमारियों
के चिन्ताजनक
ढंग से बढ़ने
की ओर ध्यान आकृष्ट करता
है। यह नारा
सरकारों, स्थानीय
अधिकारियों, सामुदायिक संगठनों और
व्यक्तियों को
एकजुट होकर वेक्टरजन्य बीमारियों
की रोकथाम करने
का आग्रह करता
है। इसलिए इस
वर्ष के विश्व स्वास्थ्य दिवस
का संदेश है-''मच्छर,
मक्खियां, कीटाणु और खटमल
जैसे रोगाणुवाहक जीव
घर में और
सफर में आपके
और आपके परिवार
के लिए स्वास्थ्य का
बड़ा संकट बन
सकते हैं,''।
महामारी
विज्ञान के अनुसार
वेक्टर ऐसे
जीव समूह हैं
जो रोगाणुओं और
परजीवियों को किसी
संक्रमित व्यक्ति
(अथवा पशु) से
अन्य व्यक्ति तक पहुंचाते
हैं। वेक्टरजन्य रोग
ऐसी बीमारियां हैं,
जो इन रोगाणुओं और
परजीवियों द्वारा मनुष्यों
में फैलती हैं
और विश्व
में सभी संक्रामक
बीमारियों में से
लगभग 17 प्रतिशत इन्हीं
बीमारियों के कारण
हैं। हालांकि ये
बीमारियां उष्णकटिबंधीय
क्षेत्रों में सर्वाधिक
होती हैं, जहां
40 प्रतिशत आबादी इनसे प्रभावित
होती है, लेकिन
वैश्विकरण, जलवायु परिवर्तन और
शहरीकरण के असर
से ये बीमारियां
उन देशों में
भी फैलने लगी
हैं, जहां कभी
पहले उनका अस्तित्व नहीं
था।
रोग का नाम
|
रोगाणुवाहक जीव (वेक्टर)
|
कारक जीवाणु
|
निश्चित परिणाम
|
डेंगू
|
संक्रमित मादा एडिज एजिप्टी
मच्छर
|
वायरस
|
2.5 अरब से अधिक
आबादी-यानि विश्व की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी को डेंगू से खतरा
|
मलेरिया
|
संक्रमित मादा एनोफेलिस
मच्छर
|
परजीवी पलासमोडियम
|
दुनिया भर में, मलेरिया संक्रमण
97 देशों में – लगभग 3.4 अरब लोगों को खतरा
|
लिम्फेटिक फिलेरियासिस या
एलिफेंटियासिस
|
संक्रमित मच्छर – क्यूलेक्स,
एनोफेलिस, एडिस
|
फिलेरियल परजीवी
|
वर्तमान में 12 करोड़ से
अधिक संक्रमित और 4 करोड़ विरूपित और अक्षम
|
चिकनगुनिया
|
संक्रमित मादा एडिज एजिप्टी
मच्छर
|
वायरस
|
रोग का कोई निश्चित उपचार
नहीं,
उपचार लक्षण के आधार पर
|
येलो फीवर
|
संक्रमित मच्छर एडिज और
हीमागोगस
|
वायरस
|
येलो फीवर में रोकथाम के
लिए टीकाकरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण।
रोग का कोई निश्चित उपचार
नहीं
|
शिसटोसोमियासिस
|
संक्रमित जल, पानी में
जोंक के परजीवी का लारवा
|
परजीवी ट्रेमाटोड चपटे
कीडें
|
यह रोग उन गरीब समुदायों
में होता है जहां सुरक्षित पेय जल और सफाई का अभाव होता है।
|
चगास रोग (अमरीकी
ट्राईपानो सोमियासिस)
|
ट्राइटोमाइन कीड़ा
|
प्रोटोजोअन परजीवी
ट्राइपेनोसोमा क्रूजी
|
जीवन के लिए खतरनाक, दुनियाभर
में 70-80 लाख लोग, अधिकतर दक्षिण अमरीका में संक्रमित।
कोई टीका नहीं
|
कांगो – क्रीमियाई
हीमोनहेज फीवर
|
टिक्स और मवेशी
|
नायरो वायरस
|
इस रोग में मृत्युदर 40
प्रतिशत,
मनुष्यों और पशुओं के लिए कोर्इ टीका उपलब्ध नहीं
|
मानव अफ्रीकी ट्राईपानोसोमियासिस
(नींद वालीबीमारी)
|
संक्रमित त्सेत्से मक्खी
|
प्रोटोजोअन परजीवी
|
घातक, तुरंत
पहचान नहीं और उपचार भी नहीं
|
लीशमेनियासिस (काला- ज़ार)
|
संक्रमित मादा रेतीली मक्खी
|
प्रोटोजोअन लीशमेनियासिस
परजीवी
|
हर वर्ष 13 लाख नये मामले
और 20 -30 लाख तक मौतें
|
लाइमे
|
संक्रमित हिरण परजीवी
|
बोरेलिया बेक्टिरिया
|
उत्तरी गोलार्द्ध में यह
रोग सबसे अधिक पाया जाता है।
|
ओनकोसेरसियासिस
(नदी अंधता)
|
संक्रमित काली मक्खियां
सिम्यूलियम एसपीपी
|
परजीवी कीट ओनकोसेरसा वॉल्वूलस
|
वर्ष 2013 में विश्व स्वास्थ्य
संगठन ने कोलंबिया को ओनकोसेरसियासिस
से मुक्त पहला देश घोषित
किया
|
जापानी दिमागी बुखार (एन्सेफलाइटिस)
|
क्यूलेक्स मच्छर
|
वायरस
|
टीका ही रोकथाम का उपाय,
रोग का कोई निश्चित उपचार
नहीं
|
रोकथाम और
नियंत्रण
अब
समय आ गया
है कि रोगाणुवाहक
जीव (वेक्टर)
जन्य बीमारियों
को कम करने
के लिए वेक्टर नियंत्रण
की पूरी क्षमता
का उपयोग किया
जाये। वर्ष 1940 के
दशक में सिंथेटिक
कीटनाशकों का निर्माण
बहुत बड़ी उपलब्धि
थी और 1940 तथा
50 के दशकों में
बड़े पैमाने पर
इन कीटनाशक दवाओं
के इस्तेमाल
से कई रोगाणुवाहक
जीव (वेक्टर)
जन्य बीमारियों
पर काबू पाया
गया। लेकिन पिछले
दो दशकों में
रोगाणुवाहक जीव (वेक्टर) जन्य बीमारियां
फिर से उभरी
हैं या दुनिया
के कई नये
हिस्सों में
फैल गई हैं।
रोगाणुवाहक जीव (वेक्टर) जन्य बीमारियों
के इस खतरनाक
प्रसार के साथ
कीटनाशक दवाओं की रोधात्मक शक्ति
के बारे में
भी गंभीर चिंता
पैदा हो गई
है। इसके साथ
ही दुनिया में
कीट-विज्ञानियों और
रोगाणुवाहक जीव (वेक्टर) जन्य बीमारियों
के विशेषज्ञों की
भी कमी हो
गई है, जो
इन बीमारियों के
नियंत्रण के लिए
एकीकृत प्रबंधन
का प्रभावी तरीका
अपनाते हैं। इसमें
घरों में स्प्रे करने
से लेकर कीट-भक्षी जीवों के
इस्तेमाल जैसे
उपायों का बेहतर
तरीके से उपयोग
शामिल है। यह
समन्वित प्रबंधन बहुत उपयोगी
है, क्योंकि
भौगोलिक प्रभाव के कारण
कई रोगाणुवाहक जीव
(वेक्टर) जन्य बीमारियां
एक साथ ही
पनपती हैं।
रोगाणुवाहक जीव
(वेक्टर)
जन्य
बीमारियों
की
रोकथाम
और
नियंत्रण
के
मुख्य
उपाय:-
·
मच्छरदानियों का प्रयोग
·
घरों
के अंदर स्प्रे
·
घरों
के बाहर स्प्रे
·
पानी
में रसायन डालना
·
मच्छर भगाने
वाले कॉयल्स
और वेपोराइजिंग मैट्स
का इस्तेमाल
·
रोगाणुवाहक
(वेक्टर) जीवों
के बढ़ने पर
रोक लगाना
·
परजीवियों,
कीटभक्षियों या अन्य जीवों
के इस्तेमाल
के जरिए रोगाणुवाहक
(वेक्टर) जीवों
के बढ़ने पर
नियंत्रण
·
रोगाणुवाहक
(वेक्टर) जीवों
की उत्पत्ति
पर नियंत्रण के
उपाय
·
कूड़ा
कचरा प्रबंधन
·
घरों
के डिजाइन में
सुधार
·
रोगाणुवाहक
(वेक्टर) जीवों
से व्यक्तिगत
बचाव के उपाय
·
यात्रा
के दौरान औषधियों
का प्रयोग
·
प्रोफिलैक्सिस
और रोकथाम उपचार
विधियां (थैरेपी)
·
लिम्फेटिक फिलेरियासिस, सोटिसटोसोमियासिस,
ओन्कोसेरसियासिस के लिए
बड़े पैमाने पर
उपचार
·
जापानी
दिमागी बुखार (एन्सेफलाइटिस),
टिक-बोर्न एन्सेफलाइटिस और येलो
फीवर।
·
चगास
रोग और कांगो
– क्रीमियाई हीमोनहेज फीवर में
शरीर में रक्त और
तरल पदार्थ की
सुरक्षा
·
चगास
रोग और टिक-बोर्न एन्सेफलाइटिस
के मामले में
खाद्य सुरक्षा
रोगाणुवाहक जीव
(वेक्टर)
जन्य
बीमारियों
के
नियंत्रण
में
मुख्य
चुनौतियां:-
·
कीटनाशक
दवाओं की प्रतिरोधक
शक्ति में कमी
·
वेक्टर बीमारियों
के नियंत्रण के
लिए विशेषज्ञों की
कमी
·
रोगाणुवाहक
(वेक्टर) जीवों
और अन्य
बीमारियों की निगरानी
की व्यवस्था
·
स्वच्छता
और सुरक्षित पेय
जल की उपलब्धता
·
कीटनाशक
दवाओं की सुरक्षा
और विष का
उपयोग
·
जलवायु
और पर्यावरण परिवर्तन
समाज
के सबसे गरीब
वर्ग और सबसे
कम विकसित देश
रोगाणुवाहक जीव (वेक्टर) जन्य बीमारियों
से अधिक प्रभावित
होते हैं। बीमारी
और अक्षमता के
कारण लोग काम
नहीं कर पाते
हैं और अपने
तथा अपने परिवार
के लिए रोज़ी-रोटी नहीं
जुटा पाते हैं,
जिससे और कठिनाई
बढ़ती है तथा
आर्थिक उन्नति
में अड़चन आती
है।
विश्व स्वास्थ्य दिवस
हर वर्ष 7 अप्रैल
को विश्व
स्वास्थ्य संगठन
की वर्षगांठ पर
मनाया जाता है,
जिसकी स्थापना
1948 में हुई थी।
हर वर्ष एक
विषय को चुना
जाता है, जो
जन स्वास्थ्य
की दृष्टि से
प्राथमिकता वाला क्षेत्र
होता है। इस
दिन हर समुदाय
के लोगों को
अवसर मिलता है
कि वे उन
गतिविधियों में भाग
लें, जिनसे स्वास्थ्य की
बेहतरी होती है।
हाल के वर्षों
में स्वास्थ्य
मंत्रालय की ओर
से तथा गैर-
सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र
और वैज्ञानिक समुदाय
के सहयोग से
क्षेत्रीय और वैश्विक
स्तर पर
स्वास्थ्य सेवाओं
में सुधार के
लिए दर्शायी गई
प्रतिबद्धता के परिणाम
स्वरूप रोगाणुवाहक
जीव (वेक्टर)
जन्य बीमारियों
से प्रभावित लोगों
की संख्या
में और इन
बीमारियों से होने
वाली मौतों में
कमी आई है।
ये
रोगाणुवाहक जीव (वेक्टर) जन्य बीमारियां
क्योंकि अपने
परम्परागत प्रभाव
क्षेत्रों से दूर-दूर तक
फैलने लगी हैं,
इसलिए जहां ये
बीमारियां फिलहाल पनप रही
हैं, उन देशों
के अलावा अन्य देशों
में भी इनकी
रोकथाम के लिए
आवश्यक कदम
उठाए जाने की
जरूरत है। इसलिए
विश्व स्वास्थ्य संगठन
ने विभिन्न
समुदायों को रोगाणुवाहक
(वेक्टर) जीवों
और रोगाणुवाहक जीव
(वेक्टर) जन्य बीमारियों
के बारे में
जानकारी देने तथा
इनसे पैदा होने
वाले खतरों के
प्रति जागरूकता बढ़ाने
और परिवारों तथा
समुदायों को इस
बात के लिए
प्रोत्साहित करने का
बीड़ा उठाया है
कि वे हमेशा
चलने वाली इन
बीमारियों से अपने
आपको बचाने के
उपाय करें।
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