जैव
प्रौद्योगिकी की वैश्विक पहचान, त्वरित रूप से उभरती, व्यापक विस्तार वाली प्रौद्योगिकी
के रूप में हुई है। यह विज्ञान का अग्रणी क्षेत्र है जो राष्ट्र की वृद्धि और विकास
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका आशय किसी भी प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोग से है
जो जैव-विज्ञानी रूपों का उपयोग करता और प्रणालियों का प्रयोग करता है वह भी नियंत्रण
योग्य तरीके से, जिससे कि नए और उपयोगी उत्पादों और प्रक्रियाओं का उत्पादन किया
जा सके तथा विद्यमान उत्पादों को परिवर्तित किया जा सके। यह न केवल मानव जाति को लाभ
पहुंचाना चाहता है अपितु अन्य जीव रूपों को भी जैसा कि सूक्ष्म जीव। यह पर्यावरण
में हानिकारक हाइड्रोकार्बन कम करके, प्रदूषण नियंत्रण करके अनुकूल पारिस्थितिकी संतुलन
कायम रखने में सहायता करता है।
भारत
में जैव प्रौद्योगिकी ज्ञान आधारित क्षेत्रों में सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र
है। इसे शक्तिशाली समर्थकारी प्रौद्योगिकी माना गया है जो कृषि, स्वास्थ्य देखभाल,
औद्योगिक प्रक्रियान्वयन और पर्यावरणीय स्थायित्व में क्रांति ला सकता है। आज कल
इसका बढ़ता प्रयोग विभिन्न किस्म की फसलों के विकास और विशिष्ट रूप से विकसित किस्मों
केलिए किया जाता है, नए भेषजीय उत्पाद, रसायन, सौंदर्य प्रसाधनों, उर्वरक का आधिक्य,
वृद्धि वर्धक, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, स्वास्थ्य देखभाल के उपकरण और पर्यावरण
से संबंधित तत्व आदि। भारतीय जैव-प्रौद्योगिकी वर्ग ने वैश्विक मंच पर त्वरित वृद्धि
की है। काफी बड़ी संख्या में उपचारिक जैव प्रौद्योगिकीय औषध हैं और टीके हैं, जिनका
देश में उत्पादन और विपणन किया जा रहा है और मानव जाति की अपार सहायता की जा रही है।
क्षेत्रक ने 1.07 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया जिसने वर्ष 2005-06 में
36.55 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की।
भारत
की पहचान वृद्धि जैव विविधता देश के रूप में हुई है। जैव प्रौद्योगिकी देश की विविध
जैव-विज्ञानी संसाधनों को आर्थिक सम्पन्नता और रोजगार के अवसरों में परिवर्तित करने
के लिए मार्ग प्रदान करता है। अनेकानेक कारक हैं जो जैव-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में
विशिष्ट क्षमता विकसित करने के लिए प्रेरणा सृजित करते हैं। वे हैं : वैज्ञानिक मानव
संसाधन का विशाल भंडार अर्थात वैज्ञानिकों और अभियंताओं का एक मजबूत समूह, किफायती
विनिर्माण क्षमताएं, अनेक राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाएं, जिसमें हजारों वैज्ञानिकों
को रोजगार मिला हुआ है, जैव विज्ञान में अकादमी उत्कृष्टता के केन्द्र, अनेकानेक
मेडिकल कॉलेज, शैक्षिक और प्रशिक्षण संस्थान, जो जैव प्रौद्योगिकी में डिग्री और डिप्लोमा
प्रदान करते हैं, जैव-सूचना विज्ञान और जीव विज्ञानी विज्ञान, असरदार औषध और भेषज उद्योग,
तथा तेजी से विकसित होती उपचारात्मक क्षमताएं।
भारत
में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन जैव-प्रौद्योगिकी
क्षेत्रक के विकास के लिए शीर्ष प्राधिकरण है। इसकी स्थापना देश में विभिन्न जैव
प्रौद्योगिकीय कार्यक्रमों और क्रियाकलापों की योजना बनाने संवर्धन करने और समन्वयन
करने के लिए की गई है। यह राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों और विभिन्न
क्षेत्रकों में अनुसंधान बुनियादों, जो जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित है, के लिए सहायता
अनुदान की सहायता प्रदान करने के लिए नोडल एजेंसी है। विभाग की मुख्य जिम्मेदारियां
निम्नलिखित हैं :-
·
जैव
प्रौद्योगिकी के बड़े पैमाने पर उपयोग का संवर्धन करना
·
जैव
प्रौद्योगिकी और संबंधित विनिर्माण के क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास के लिए उत्कृष्टता
हेतु केन्द्रों की पहचान और स्थापना करना
·
अनुसंधान
और विकास तथा उत्पादन को सहायता देने के लिए मूल संरचना सुविधाओं की स्थापना
·
नए
पुन:मिश्रण डीएनए आधारित जैव प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाओं उत्पादों और प्रौद्योगिकी
के आयात के लिए सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करना
·
प्रयोगशाला
अनुसंधान, उत्पादन और अनुप्रयोगों के लिए जैव-सुरक्षा दिशानिर्देश विकसित करना
·
जैव
प्रौद्योगिकी संबंधी तकनीकी और वैज्ञानिक पहल करना
·
मानव
संसाधन विकास के लिए एकीकृत कार्यक्रम विकसित करना
·
जैव-प्रौद्योगिकी
क्षेत्र के ज्ञानाधार के विस्तार के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का संवर्धन करना
·
जैव-प्रौद्योगिकी
से संबंधित सूचनाओं के संग्रहण एवं प्रचार-प्रसार के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य
करना।
विभाग
में चिकित्सा, कृषि तथा औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी के विभिन्न पक्षों पर कार्य करने
के लिए अधिदेशित स्वायत्त संस्थान हैं। ये हैं:-
·
राष्ट्रीय
प्रतिरक्षाविज्ञान संस्थान, नई दिल्ली
·
राष्ट्रीय
कोशिका विज्ञान केन्द्र, पुने
·
डीएनए
फिंगर प्रिंटिंग और डायग्नोस्टिक, हैदराबाद
·
राष्ट्रीय
मस्तिष्क अनुसंधान केन्द्र, मानेसर, हरियाणा
·
राष्ट्रीय
पादप जीनोम अनुसंधान केन्द्र, नई दिल्ली
·
जैव-संसाधन
और स्थायी विकास संस्थान, इम्फाल
·
जीवन
विज्ञान संस्थान, भुवनेश्वर
जबकि
विभाग में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जो जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्रक के विकास के लिए
कार्य करते हैं, निम्नलिखित हैं :-
·
भारत
इम्यूनोलॉजिकल एंड बायोलॉजिकल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, भुवनेश्वर
·
इंडियन
वैक्सीन कॉर्पोरेशन लिमिटेड, गुड़गांव
इसके
अलावा, 'राष्ट्रीय जैव संसाधन विकास बोर्ड (एनबीडीबी)' की स्थापना विभाग के अंतर्गत
की गई है ताकि अनुसंधान और विकास तथा जैव संसाधनों का स्थायी उपयोगिता विशेषकर नए
उत्पादों और प्रक्रियाओं के विकास के लिए जैव-प्रौद्योगिकी और संबंधित वैज्ञानिक तरीकों
के प्रभावी अनुप्रयोग के लिए विस्तृत नीतिगत ढांचे का निर्णय किया जा सके। बोर्ड जैव
विज्ञान के आधुनिक उपकरणों का उपयोग करते हुए त्वरित अनुसंधान और विकास के माध्यम
से राष्ट्र की आर्थिक सम्पन्नता के लिए वैज्ञानिक कार्य योजना का विकास करना चाहता
है। बोर्ड के क्रियाकलापों की सहायता करने के लिए एक राष्ट्रीय संचालन समिति का गठन
किया गया है। जनवरी 2008 में आयोजित अपनी प्रथम बैठक में एनबीडीबी ने 3 प्राथमिकता
क्षेत्रों को चुना है, जो है:- (i) पौधों, जंतुओं, सूक्ष्मजीवों और समुद्री संसाधनों
की डिजिटल माल सूची तैयार करना ; (ii) अनुसंधान और विकास परियोजनाएं, कार्यक्रम समर्थन,
उत्कृष्टता केन्द्रों की स्थापना, प्रशिक्षण गतिविधियां और प्रदर्शन, जिनसे विशेष
क्षेत्रों के जैव संसाधनों का विकास किया जा सके, जैसे कि पूर्वोत्तर क्षेत्र, हिमालच
क्षेत्र, तटीय और द्वीप पारिस्थितिकी प्रणालियां, रेगिस्तान क्षेत्र, इंडो-गंगा मैदान
और प्रायद्वीप भारत; तथा (iii) ज्ञान सशक्तीकरण और मानव संसाधन विकास। बोर्ड के अन्य
महत्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं :-
·
संभावित
वैज्ञानिक और आर्थिक मूल्य के जैव-संसाधनों के लिए प्रभावी एक्स सिटु संरक्षण का विकास
करना
·
सुस्थापित
आण्विक वंशावली के द्वारा जैविक संसाधनों का पूर्वानुमान योग्य समूहन का विकास करना
·
जैव-संसाधनों
का जीन मैप निर्माण करना जो उपयोगी जीनों के स्थान निर्धारण में प्रयोग किया जा सकता
है।
·
कृषि
संबंधी कीटों और रोग प्रजनन के प्रबंधन में जैव विज्ञानी सॉफ्टवेयर के उपयोग का संवर्धन
करना
·
जैव
संसाधन में मूल्यवर्धन संवर्धित करना और जैव सूचना विज्ञान का सुदृढ़ करना
·
ऐसे
सभी उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानव संसाधन को प्रशिक्षित करना।
विभाग
निम्नलिखित के विस्तृत क्षेत्रों में जैव-प्रौद्योगिकी के विकास और अनुप्रयोग में
महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर रहा है :- (i) कृषि, वर्धित कृषि उत्पादकता, रोगों का
विकास, सूखा और कीट रोधी किस्मों के रूप में; पारजीनी जीवों के अधिक उत्पादन किस्मों
का उत्पादन (पौध और पशु), संकर बीजों का विकास, संश्लेषित/कृत्रिम बीज और प्रजनन
के रूप में इंजीनियरी की गई फसलें, फसलों की प्रतिकूल मौसम और मृदावस्था के प्रति
सहनशीलता का वर्धन करने द्वारा खाद्य सुरक्षा में सुधार; आदि (ii) स्वास्थ्य देखभाल,
सुरक्षित और किफायती टीकों का विनिर्माण के रूप में, विभिन्न रोगों का आरंभ मे ही
पता लगाना सुनिश्चित करने के लिए जैव-नैदानिकी किट का विकास, विभिन्न उपचारात्मक
प्रोटीनों का उत्पादन, डीएनए फिंगर प्रिंट आदि का उपयोग के रूप में; (iii) उद्योग,
विभिन्न एसिड और एल्कोहल को तैयार करने के रूप में, विटामिन, एंटीबायोटिक, स्टेरोइड
असंख्य भेषजीय औषध और रसायन, खराब होने से औद्योगिक उत्पादों का बचाव आदि के रूप
में; (iv) पर्यावरण और ऊर्जा, प्रदूषण नियंत्रण, जैव अवमूल्यन अपशिष्ट का पूरी तरह
ऊर्जा में परिवर्तन जैसे बायोगैस ईंधन, अवमूल्य भूमि का पुनरुद्धार, प्रदूषक का पता
लगाने के लिए बायोसेन्सर का विकास, औद्योगिक अपशिष्ट का उपचार आदि के रूप में।
ऐसे
प्रयासों को अनुपूरित करने और जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्रक में बड़ी मात्रा में निवेश
आकर्षित करने के लिए विभाग अनेकानेक नीतिगत पहलें और उपाय समय-समय पर कर रहा है। इनमें
से सबसे अधिक महत्वपूर्ण 'राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी विकास कार्यनीति' की घोषणा
है यह समग्र नीतिगत ढांचे के रूप में है ताकि जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को बढ़ाया जा
सके। यह उन भंडारों को लेता है जो भविष्य के लिए पूरा किया जाता और ढांचा प्रदान करता
है, जिसके अंतर्गत कार्य नीतियां और विशिष्ट कार्य क्षेत्रक को संवर्धित करने के लिए
करने की आवश्यकता है। इस नीति का लक्ष्य कृषि और खाद्य जैव-प्रौद्योगिकी, औद्योगिक
जैव-प्रौद्योगिकी, उपचारात्मक और चिकित्सा जैव-प्रौद्योगिकी पुनरुत्पादक और जातिगत
दवाइयों, नैदानिक जैव-प्रौद्योगिकी जैव अभियंता, नैनो जैव प्रौद्योगिकी, विनिर्माण
और जैव प्रक्रियान्वयन, अनुसंधान सेवाओं, जैव संसाधनों, पर्यावरण और बौद्धिक सम्पदा
कानून के क्षेत्रों में उन्नति के मार्ग प्रशस्त करना है। नीतिगत ढांचे के मुख्य
उद्देश्य हैं :- (i) भारत की अकादमी और औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान क्षमताओं
को सुदृढ़ करने के लिए दिशा निर्धारित करना; (ii) व्यापारिक प्रतिष्ठानों, सरकार
और अकादमियों के साथ प्रौद्योगिकी को अनुंधान से वाणिज्यिकरा की ओर ले जाने के लिए
कार्य करना; (iii) भारत का समग्र औद्योगिक विकास बढ़ाना; (iv) लोगों को विज्ञान, अनुप्रयोग,
जैव-प्रौद्योगिकी के लाभों और मुद्दों के बारे में सूचना देना; (v) जैव प्रौद्योगिकी
की वृद्धि के लिए शिक्षण और कार्य शक्ति प्रशिक्षण क्षमताओं को बढ़ाना; (vi) भारत को
जैव-प्रौद्योगिकी के लिए उत्कृष्ट अंतरराष्ट्रीय स्थान के रूप में स्थापित करना।
दूसरे शब्दों में यह मानव संसाधन विकास, अकादमी और उद्योग अन्तरा पृष्ठ, मूल संरचना
विकास, प्रयोगशाला और विनिर्माण, उद्योग व्यापार का संवर्धन, जैव प्रौद्योगिकी पार्क
और ऊष्मायित्र, विनियामक प्रक्रम, सार्वजनिक शिक्षा और जागरूकता निर्माण जैसे मुद्दों
पर बल देता है।
बायोटेक
पार्क और बायोटेक इंक्यूबेटर केन्द्रों की स्थापना तथा विभिन्न राज्यों और संगठनों
में प्रशिक्षण एवं पायलट परियोनजाओं की स्थापना जैव प्रौद्योगिकी शुरू करने वाली कम्पनियों
के लिए उत्कृष्ट माहौल प्रदान करती है। इसके तहत युवा उद्यमियों को वित्तीय/युक्तिगत
सहायता प्रदान करने की योजनाएं हैं, जो जैव प्रौद्योगिकी उद्योग में अधिक पूंजी कम
करने की स्थिति में नहीं हैं परन्तु उनके पास विकास, डिजाइन और नए जैव प्रौद्योगिकी
उत्पाद और प्रक्रियन्वयनों की जैव प्रौद्योगिकीय ऊष्मायित्र और पायलट स्तर की सुविधाओं
का उपयोग करके पूर्ण बनाने की क्षमताएं हैं। कुछ मौजूदा जैव प्रौद्योगिकी पार्क/ऊष्मायित्र
केन्द्रों और पायलट परियोजनाएं निम्नलिखित हैं :-
·
लखनऊ,
उत्तर प्रदेश में जैव प्रौद्योगिकी पार्क
·
जैव-प्रौद्योगिकी
ऊष्मायित्र केन्द्र, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
·
जैव
प्रौद्योगिकी ऊष्मायित्र केन्द्र/पायलट संयंत्र सुविधाएं, केरल में
·
जैव
प्रौद्योगिकी ऊष्मायित्र केन्द्र/हिमाचल प्रदेश में पायलट संयंत्र सुविधाएं
·
बैंगलोर
में जैव प्रौद्योगिकी पार्क/ऊष्मायित्र केन्द्र और सार्वजनिक इंन्ट्रूमेन्टेशन
सुविधा
इसके
अलावा स्तंभ कोशिका अनुसंधान और उपचार के लिए मार्गदर्शी सिद्धांत तैयार किए गए हैं,
ताकि यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया प्रदान की जा सके कि मानव स्तंभ कोशिकाओं के
साथ अनुसंधान एक उत्तरदायी तथा नैतिक दृष्टि से संवेदनशील रूप में किए जाते हैं और
इनमें सामान्य रूप से जैव चिकित्सा अनुसंधान एवं विशेष रूप से समकोशिका अनुसंधान
से संबंधित सभी विनियामक आवश्यकताओं का पालन किया जाता है। इन मार्गदर्शी सिद्धांतों
का लक्ष्य है :- (i) नैतिकता के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए स्तंभ कोशिका अनुसंधान
और उपचार के लिए सामान्य सिद्धांतों का बनाना। (ii) अनुसंधान और उपचार के लिए मानव
स्तंभ कोशिकाओं के उद्भव, प्रवर्धन, अवकलन, लाक्षणीकरण, भण्डारण तथा उपयोग के लिए
विशिष्ट मार्गदर्शी सिद्धांतों का निर्धारण।
पुन:
भारत दुनिया का पहला देश है जहां 1987, में जैव प्रौद्योगिकी सूचना प्रणाली (बीटीआईएस)
नेटवर्क बनाया गया है ताकि एक ऐसी मूल संरचना का सृजन किया जा सके जहां यह जैव सूचना
विज्ञान के अनुप्रयोग के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को समर्थन देता है। यह
जैव सूचना विज्ञान में मानव संसाधन के सृजन में सहायता देता है और विभिन्न क्षेत्रों
में अनुसंधान करता है। कार्यक्रम के निम्नलिखित प्रमुख प्रबलन क्षेत्र हैं :-
·
जैव
सूचना विज्ञान और अभिकलन जीव विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान करना।
·
जैव
सूचना विज्ञान में विश्व स्तरीय मानव संसाधन का विकास।
·
प्रभावी
शिक्षा जगत - उद्योग अंतरापृष्ठ की स्थापना।
·
प्रमुख
संस्थानों, संगठनों और विश्व के देशों के साथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग का प्रयास और
प्रोत्साहन।
·
प्रौद्योगिकी
विज्ञान, अंतरण और वाणिज्यीकरण के लिए विश्व स्तरीय मंचों का सृजन।
जैव
सूचना विज्ञान (बीटीबीआई) के माध्यम से जीव विज्ञान शिक्षण में नवाचार आरंभिक करते
हुए 52 जैव सूचना विज्ञान सुविधाओं (बीआईएफ) की स्थापना की गई है। ये सुविधाएं जैव
सूचना विज्ञान साधनों को सहायता देने के लिए वैयक्तिक संस्थानों के केन्द्रीय संसाधनों
के रूप में कार्य करती हैं।
जैव
प्रौद्योगिकी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैव प्रौद्योगिकी विभाग की प्रमुख शक्ति रहा
है जिसमें भारत के साथ सहयोग करने वाले देशों की संख्या बढ़ गई है। इनका अनुशीलन ज्ञानाधार
का विस्तार करने और विशेषज्ञता विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में
किया जा रहा है, जो देश में अनुसंधान और विकास में गति को तेज करेगा। हालिया समय में
जैव-प्रौद्योगिकी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग में स्थायी प्रगति हुई है जिसके परिणाम
स्वरूप अनेकानेक महत्वपूर्ण अनुसंधान परियोजनाएं, उत्पाद और प्रौद्योगिकी आए हैं।
इनमें से कुछ इस प्रकार हैं : डेनमार्क और फिनलैंड के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर
किए गए हैं और प्रस्तावों के लिए संयुक्त आमंत्रण जारी किए गए हैं; जैव प्रौद्योगिकी
और जैविक विज्ञान अनुसंधान परिषद (बीबीएसआरसी), यूके के साथ संयुक्त परियोजनाओं का
निधिकरण भी किया गया है; विभाग ने कृषि खाद्य, कनाडा और राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र,
कनाडा के साथ क्रमश: दो समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं; एनआईएच, यूएसए के साथ
संकल्पना अनुसंधान पर नए करारनामे और गर्भ निरोधक अनुसंधान और विकास कार्यक्रम (कॉन्रेड)
यूएसए के साथ करारनामें में संशोधन पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं; आदि
इन
सबके परिणामस्वरूप भारत विश्व के नक्शे पर जैव प्रौद्योगिकी केन्द्र के रूप में
उभर कर सामने आया है और इसे मनपसंद निवेश स्थान के रूप में देखा जा रहा है। आण्विक
जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी में विकास के कारण समाज की आर्थिक खुशहाली पर सराहनीय
प्रभाव पड़ा है। भारतीय जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रक उभरते व्यापार अवसरों के लिए वैश्विक
परिदृश्य में आ रहा है, और नवपरिवर्तनीय दवाइयों, कृषि में अधिक उत्पादकता और पोषक
वृद्धि एवं पर्यावरण रक्षा सहित मूल्यवर्धन के लिए बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं
को पूरा करने की अपार क्षमत रखता है। तथापि, अनेकानेक सामाजिक चिंताएं हैं, जिनका समाधान
करना देश की जैव प्रौद्योगिकी नवपरिवर्तन को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है, जैसाकि
जैव संसाधनों का संरक्षण करना और उत्पादों और प्रक्रियाओं की सुरक्षा आदि सुनिश्चित
करना। तदनुसार सरकार और निजी क्षेत्रक दोनों को जन समुदाय को शिक्षित करने और हितों
की रक्षा करने में तथा उनके लिए आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के लाभों को विकसित करने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाना है।
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