जनता
को प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने आश्वस्त
किया है कि
वे बाहर देशों
में जमा काले
धन को वापस
लायेंगे। देश के
धन को गैर
कानूनी ढंग से
दो रास्तों से
बाहर भेजा जा
रहा है। एक
रास्ता है हवाला
के माध्यम से
देशवासियों ने धन
को स्विट्जरलैण्ड भेजा
और वहां के
बैंकों में गुप्त
खातों में जमा
करा दिया। दूसरा
रास्ता बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा माल
का ऊंचे दाम
पर आयात अथवा
नीचे दाम पर
निर्यात करना है।
अध्ययनों के अनुसार
भारतीयों द्वारा विदेशों में
जमा राशि की
तुलना में बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों द्वारा भेजी जा
रही राशि लगभग
दस गुणा है।
पहले इन कम्पनियों
पर नकेल कसनी
चाहिये।
सामान्य
रूप से काले
धन को नंबर
2 के धन्धे से
जोड़ा जाता है।
जैसे प्रापर्टी बेचकर
रकम नगद में
प्राप्त करना अथवा
माल को नम्बर
2 में बिना एक्साइज
ड्यूटी और सेल
टैक्स अदा किये
बेच देने से।
लेकिन वैश्विक अध्ययनों
के अनुसार गैर
कानूनी ढंग से
धन को बाहर
भेजने में इस
काले धन का
हिस्सा छोटा है।
ज्यादा बड़ा हिस्सा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा रकम
को बाहर भेजने
का है। ये
कम्पनियां माल के
दाम में उलटफेर
करके हमारी आय
को बाहर ले
जाती हैं। जैसे
किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी
ने 10,000 रुपये के केमिकल
का इम्पोर्ट किया
लेकिन बिल 20,000 रुपये
का बनवा लिया
और 20,000 भारत से
भेज दिये। केमिकल
के सप्लायर को
20,000 रुपये मिल गये।
उसने 10,000 रुपये नगद में
अथवा कमीशन के
नाम पर बहुराष्ट्रीय
कम्पनी के मुख्यालय
को अदा कर
दिये। भारत से
10,000 रुपये नाजायज ढंग से
बाहर चले गये।
इसी प्रकार एक्सपोर्ट
के बिल को
कम कर दिया
जाता है। 10,000 रुपये
का माल एक्सपोर्ट
किया गया लेकिन
बिल 5,000 का बनाया
गया। शेष 5,000 रुपये
बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने खरीददार
से नकद ले
लिये।
रकम
को गैर कानूनी
ढंग से भेजने
का एक और
उपाय प्रचलन में
है। विदेशों में
जाकर आप किसी
कम्पनी को रजिस्टर
करा सकते हैं
और बैंक खाता
खुलवा सकते हैं।
कई देशों में
कम्पनियों की मिल्कियत
की जानकारी सार्वजनिक
करना जरूरी नहीं
होता है। ऐसे
में आपकी पहचान
गुप्त रहती है।
भारत सरकार को
कम्पनी का नाम
पता लग सकता
है परन्तु उसके
मालिक आप हैं,
यह पता नहीं
लग सकता। इस
कम्पनी में कोई
कारोबार होना जरूरी
नहीं है। इसे
खोखली कम्पनी कहा
जाता है। ऐसी
कम्पनी को कमीशन
अथवा साफ्टवेयर खरीदने
जैसी सेवाओं के
लिये भारत से
पेमेंट किया जा
सकता है। इस
खोखली कम्पनी से
रकम मनमर्जी से
निकाली जा सकती
है।
ग्लोबल
फाइनेंशियल इंटेग्रिटी नामक संस्था
का अनुमान है
कि 2011 में भारत
से 424,000 करोड़ रुपये बाहर
भेजे गये। यह
संस्था वैश्विक स्तर पर
काले धन को
टै्रक करती है।
यह रकम केन्द्र
सरकार द्वारा कृषि,
शिक्षा, स्वास्थ्य,बिजली, सड़क
तथा रेल पर
किये जा रहे
कुल खर्च के
बराबर बैठती है।
यदि इस रकम
का प्रेषण बन्द
हो जाये तो
ये सरकारी खर्च
दोगुना किये जा
सकते हंै। संयुक्त
राष्ट्र ने अफ्रीका
से बाहर जा
रही गैर कानूनी
रकम पर नियंत्रण
को एक पैनल
बनाया है जिसके
अध्यक्ष दक्षिण अफ्रीका के
पूर्व राष्ट्रपति थाबो
बेकी हैं। उन्होंने
कहा है कि
इस पे्रषण का
दो तिहाई हिस्सा
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा भेजा
जा रहा है;
एक चौथाई हिस्सा
आपराधिक गतिविधियों जैसे ड्रग्स
और स्मगलिंग से
जा रहा है
और भ्रष्टाचार और
घूसखोरी का हिस्सा
मात्र 5 प्रतिशत है। ग्लोबल
फाइनेन्शियल इंटेग्रिटी के अनुसार
60 प्रतिशत बिल के
उलटफेर के माध्यम
से भेजा जा
रहा है। आपराधिक
स्रोतों द्वारा 35 प्रतिशत और
भ्रष्टाचार का हिस्सा
मात्र 3 प्रतिशत है। बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों के प्रवेश
के साथ-साथ
भारत से गैर
कानूनी पे्रषण में हुई
वृद्धि से इन
अनुमानों की पुष्टि
होती है। ग्लोबल
फाइनेन्शियल इंटेग्रिटी के अनुसार
2003 में भारत से
कुल गैर कानूनी
प्रेषण 31,000 करोड़ रुपये था
जो कि 2011 में
बढ़कर 424,000 करोड़ रुपये हो
गया। 8 साल की
अवधि में इसमें
12 गुणा वृद्धि हुई है।
संस्था ने यह
भी कहा है
कि इस बात
के पुख्ता प्रमाण
उपलब्ध हैं कि
भारत में आर्थिक
सुधारों के साथ-साथ पूंजी
का गैर कानूनी
प्रेषण बढ़ा है।
इसके विपरीत मैक्सिको
में विकास दर
बढऩे के साथ-साथ पूंजी
का पलायन घटा
है। दोनों देशों
में अन्तर गवर्नेंस
का है। बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों ने भारत
में व्याप्त कुशासन
का लाभ उठाकर
गैर कानूनी ढंग
से रकम का
प्रेषण किया।
इस
दिशा में कई
सुझाव विभिन्न संस्थाओं
द्वारा दिये गये
हैंं। पहला सुझाव
है कि बहुराष्ट्रीय
कम्पनियों को विभिन्न
देशों में किये
गये कारोबार की
बैलेंस शीट को
सार्वजनिक करने को
बाध्य किया जाये।
दूसरे, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और भारतीय
व्यापारियों द्वारा खरीद और
बिक्री के मूल्यों
की तुलना विश्व
बाजार में प्रचलित
मूल्यों से की
जा सकती है।
इससे पता लग
जायेगा कि बिल
में कहां उलटफेर
किया गया है।
तीसरे, विभिन्न देशों द्वारा
एक-दूसरे को
सूचना उपलब्ध कराने
को भारत सरकार
द्वारा पहल की
जाये। जी-20 देशों
ने बहुराष्ट्रीय कम्पनियों
द्वारा अदा की
गयी टैक्स की
रकम की जानकारी
एक दूसरे को
देना स्वीकार किया
है। चौथे, दूसरे
देशों के द्वारा
कम्पनियों के मालिकों
की पहचान को
सार्वजनिक करने को
भारत द्वारा वैश्विक
दबाव बनाया जाये।
पांचवें, एक सीमा
से अधिक विदेशी
रकम के लेन
देन को इनकम
टैक्स डिपार्टमेंट को
सूचित करना अनिवार्य
बना दिया जाये।
चुनाव
में भ्रष्टाचार मुख्य
मुद्दा है जो
स्वागत योग्य है। परन्तु
विदेशों को भारत
से गैरकानूनी ढंग
से भेजी जा
रही रकम में
इसका हिस्सा छोटा
है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों
और खोखली कम्पनियों
पर नकेल कसी
जाये तो अधिक
सुधार होगा।
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