मिस्र,
लीबिया, सीरिया आदि अरब
देशों में पिछले
कुछ वर्षों से
निरंतर अस्थिरता, अनिश्चितता की
स्थिति बनी हुई
है। सत्ता की
लड़ाई में आम
जनता का वर्तमान
बर्बाद हो चुका
है और भविष्य
अंधकारमय है। इन
देशों की भावी
पीढिय़ां किस माहौल
में पलेंगी, बढ़ेंगी,
कैसी शिक्षा प्राप्त
करेंगी, उन्हें रोजगार के
अवसर मिलेंगे या
नहींऔर काम न
होने की दशा
में क्या वे
अपराध की दुनिया
में ढकेली जाएंगी?
अगर ऐसा हुआ
तो इसका असर
शेष विश्व पर
किस तरह पड़ेगा?
ऐसे कुछ सवाल
चिंता उपजाते हैं।
इस वक्त नाइजीरिया
में जिस तरह
बोको हराम नामक
चरमपंथी संगठन ने आतंक
कायम किया है,
उसे लेकर भी
यही चिंताएं उपजती
हैं। नाइजीरिया की
हौसा भाषा में
बोको हराम का
अर्थ है- पश्चिमी
शिक्षा की मनाही।
शिक्षा को पूर्वी-पश्चिमी या देशी-विदेशी के खांचे
में बांटने की
सोच निस्संदेह धर्म
आधारित है। शिक्षा
अच्छी बातों की
सीख देने के
लिए होती है।
किंतु जब उस
पर धर्म हावी
होता है तो
उसे विकृत रूप
में पेश किया
जाता है। बोको
हराम संगठन यही
कार्य कर रहा
है। विगत 2009 से
यह संगठन नाइजीरिया
की सत्ता को
निरंतर चुनौती देता आया
है। गांवों-कस्बों
पर हमला, चर्च
पर हमला, हत्याएं
करना, बैंक लूटना
ऐसे तमाम अपराध
उसके नाम हैं।
14 अप्रैल को बोर्नो
प्रांत से इस
संगठन के लोगों
ने एक स्कूल
से 200 लड़कियों को अगवा
कर लिया। बोको
हराम के नेता
अबुबकर शेकू ने
इन लड़कियों को
बेचने की धमकी
दी। उसका कहना
है कि इन
लड़कियों को स्कूल
में नहीं होना
चाहिए बल्कि शादी
कर लेनी चाहिए।
अपनी मासूम बच्चियों
के अपहृत होने
पर रोते-कलपते
मां-बाप को
देखकर किसी का
भी कलेजा कांप
जाए। अंतरराष्ट्रीय स्तर
पर इस घटना
का विरोध हुआ।
अमरीका की प्रथम
महिला मिशेल ओबामा
भी - हमारी लड़कियों
को वापस लाओ, की
तख्ती उठाए, उनकी
रिहाई की अपील
करती नजर आईं।
पाकिस्तान में चरमपंथ
की शिकार मलाला
युसूफजेई ने दुनिया
से अपील की
कि इस मामले
में चुप नहींरहना
चाहिए। अमरीका, ब्रिटेन समेत
कई देशों के
विशेषज्ञ इन लड़कियों
की तलाश में
जुटे हैं, लेकिन
अब तक उनका
कोई पता नहींचल
पाया है। बीच
में इन लड़कियों
का एक वीडियो
जारी कर बोको
हराम ने यह
संदेश दिया कि
वे सही-सलामत
हैं और उनका
धर्म परिवर्तन कर
दिया गया है।
लेकिन इस वीडियो
की सत्यता संदिग्ध
है। बोको हराम
की मांग है
कि नाइजीरिया की
जेलों में बंद
उनके सभी लड़ाकों
को छोड़ा जाए।
इस घटना के
एक माह बाद
ही अब नाइजीरिया
के जोस शहर
में दो बम
धमाकों में 162 लोगों की
मौत हो गई
और हताहतों की
संख्या बढऩे का
अंदेशा है। ट्रक
और मिनी बस
में विस्फोटक छिपाए
गए थे और
अधिक से अधिक
लोगों को निशाना
बनाना इनका उद्देश्य
था। नाइजीरिया के
राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने
इसे क्रूर और
मानवता पर हमला
करार दिया है।
वे अपनी तमाम
कोशिश के बावजूद
बोको हराम पर
अंकुश लगाने में
असफल दिख रहे
हैं। एक साल
पहले उन्होंने बोर्नो,
अडामावा और योब
प्रांतों में आपातकाल
लगाया था, ताकि
हिंसक घटनाओं पर
रोक लग सके।
लेकिन ऐसा नहींहुआ।
इन राज्यों में
2 हजार से अधिक
नागरिक हिंसक घटनाओं में
मारे जा चुके
हैं। विशेषज्ञों का
मानना है कि
सरकार कोई प्रभावी
कार्रवाई इसलिए नहींकर पा
रही क्योंकि आम
जनता का सेना
से भरोसा उठ
चुका है। उसकी
कार्रवाइयों में कई
निर्दोष मारे गए
हैं और मानवाधिकार
हनन की शिकायतें
उसके खिलाफ हंै।
इसके अलावा सेना
के पास आधुनिक
उपकरणों, हथियारों की कमी
है। देश के
राजनीतिक ढांचे और सरकार
पर भी जनता
का भरोसा नहींबन
पा रहा है।
तेल संपदा के
धनी नाइजीरिया में
हिंसा और आतंक
की ये घटनाएं
भारत समेत विश्व
के तमाम देशों
के लिए चिंताजनक
है।
भारत
नाइजीरिया के बीच
आर्थिक संबंध मजबूत है।
अपनी तेल की
जरूरत का बड़ा
हिस्सा भारत नाइजीरिया
से पूरा करता
है। भारत की
कई नामी-गिरामी
कंपनियां नाइजीरिया में व्यापार
करती हैं। हाल
ही में वहां
विश्व आर्थिक मंच
की बैठक भी
संपन्न हुई। अर्थव्यवस्था
और व्यापार तभी
बढ़ सकते हैं,
जब स्थायित्व और
शांति हो। जानकारों
का यह भी
मानना है कि
नाइजीरिया में धर्म
के नाम पर
विगत एक दशक
से जो हिंसक
गतिविधियां बढ़ी हैं,
उसका असल मकसद
जमीन और संसाधन
पर कब्जा करना
है।
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