सोमवार, 25 नवंबर 2013

आपराधिक तत्‍व मुक्‍त चुनाव प्रक्रिया के लिए नया कानून जरूरी

देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को धन बल और बाहुबल के प्रभाव से मुक्तन कराने के निर्वाचन आयोग के प्रयासों को काफी सफलता मिली है लेकिन अभी भी चुनाव सुधारों के लिए  बहुत कुछ करना बाकी है। चुनाव प्रक्रिया से आपराधिक तत्वोंी को पूरी तरह बाहर रखने के सवाल पर गंभीरता से विचार की आवश्यरकता है।

चुनाव प्रक्रिया को आपराधिक तत्वों की भागीदारी से मुक्त कराने के इरादे से निर्वाचन आयोग चाहता है कि कानून में ही ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने का प्रावधान किया जाये जिनके खिलाफ अदालत में उन अपराधों के लिये अभियोग निर्धारित किये जा चुके हैं, जिनमें दोषी पाये जाने पर कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है।

केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी पिछले दिनों संकेत दिया है कि संसद और विधानमंडलों से दागी व्यक्तियों को बाहर रखने के लिये एक नया कानून बनाया जायेगा।
विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल चाहते हैं कि हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे कम से कम सात साल की सजा वाले गंभीर अपराधों के आरोपियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखा जाये। माना जा रहा है कि इस संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार है और इसे शीघ्र ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष विचारार्थ रखा जायेगा। यह विचार अच्छा है लेकिन इस विषय के साथ जुडी कुछ भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है।

निर्वाचन आयोग ने भी हाल ही में उच्चतम न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में कहा है कि ऐसे व्य क्तियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने के प्रस्ताव पर विचार किया जाये जिनके मामले में अदालत ने आरोपों और साक्ष्यों की न्यायिक समीक्षा के बाद पहली नजर में अभियोग निर्धारित करके मुकदमा चलाने का निश्च य किया है और दोषी पाये जाने की सिथति में उसे कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है।

जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा आठ के अनुसार कतिपय अपराधों के लिये अदालत द्वारा दोषी ठहराए गये और कम से कम दो साल की सजा पाने वाले व्येक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं। यह अयोग्यता ऐसे व्य क्ति की रिहार्इ होने की तारीख से छह साल तक प्रभावी रहती है।
धारा आठ में पहले से ही उन अपराधों का विस्तार से उल्लेख है जिसके लिये दोषी पाये जाने और कम से कम दो साल की कैद की सजा होने पर ऐसा व्याक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य होता है। इसमें सभी गंभीर किस्म के अपराध शामिल हैं।

इस धारा के दायरे में भारतीय दंड संहिता के अतंर्गत आने वाले कर्इ अपराधों को शामिल किया गया है। मसलन इसकी धारा 153-ए के तहत धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच सौहार्द बिगाड़ने के अपराध, धारा 171-र्इ के तहत रिश्व तखोरी, धारा 171-एफ के तहत चुनाव में फर्जीवाडे़ के अपराध, धारा 376 के तहत बलात्कार और यौन शोषण संबंधी अपराध, धारा 498-ए के तहत स्त्री के प्रति पति या उसके रिश्ते दारों के क्रूरता के अपराध, धारा 505 :2: या :3:  के तहत किसी धार्मिक स्थल या धार्मिक कार्यों के लिये एकत्र समूह में विभिन्न वर्गो में कटुता, घृणा या वैमनस्य पैदा करने वाले बयान देने से संबंधी अपराध के लिये दोषी ठहराये जाने की तिथि से छह साल तक ऐसा व्यरक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य होता है।

इसी तरह, नागरिक अधिकार संरक्षण कानून के तहत अस्पृश्यनता का प्रचार और आचरण करने के कारण उत्पन्न निर्योग्यता लागू करने के लिये दंडित होने पर, सीमा शुल्क कानून धारा 11 के तहत प्रतिबंधित सामान के आयात-निर्यात के अपराध के लिये दोषी, विधि विरूद्ध क्रियाकलाप निवारण कानून की धारा 10 से 12 के अतंर्गत गैरकानूनी घोषित किसी संगठन के लिये धन संग्रह या किसी अधिसूचित क्षेत्र के बारे में किसी आदेश के उल्लंघन से जुड़े अपराध, विदेशी मुद्रा विनियमन कानून, स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ कानून, टाडा कानून, 1987 की धारा 3 से छह के प्रदत्त अपराध, धार्मिक संस्था दुरूपयोग निवारण कानून की धारा 7 या उपासना स्थल विशेष प्रावधान कानून के तहत धार्मिक स्थल का स्वरूप बदलने के अपराध, जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125 के तहत चुनाव के बारे मे विभिन्न वर्गो में वैमनस्य पैदा करने या धारा 135 के तहत मतदान केन्द्र से मतपत्र बाहर ले जाने, धारा 135-ए के तहत मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने या धारा 136 के तहत कपटपूर्ण तरीके से नामांकन पत्र खराब करने या नष्ट करने के अपराध, राष्ट्र गौरव अपमान कानून के तहत राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान या देश के संविधान के अपमान के अपराध, सती निवारण कानून, भ्रष्टाचार निवारण कानून या आतंकवाद निवारण कानून 2002 के तहत अपराध में दोषी ठहराये जाने को भी अयोग्यता के दायरे में शामिल किया गया है।

अब चूंकि उन व्यठक्तियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने पर विचार हो रहा है जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में अदालत अभियोग निर्धारित कर चुकी है और अगर सरकार ऐसे व्य क्तियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखना चाहती है तो इसके लिये जनप्रतिनिधित्व कानून में अपेक्षित संशोधन करके इसकी धारा 8 में ही प्रावधान किया जा सकता है।

यह स्पष्ट करना भी उचित होगा कि यदि अदालत में निर्धारित अभियोग निर्धारित निरस्त कराने के लिये किसी अन्य अदालत में अपील लंबित है तो ऐसी  सिथति में कोर्इ सांसद या विधायक या आम नागरिक चुनाव लड़ने के अयोग्य होगा या नहीं।

देश की राजनीति और संसद तथा विधान मंडलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों से मुक्त कराने के लिये कोर्इ भी कानून बनाते वक्त इसका दुरूपयोग रोकने की ओर भी ध्यान देने की आवश्यसकता है। इस समय राज्यों में अलग अलग दलों की सरकारें हैं और राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण विरोधियों को चुनावी मैदान से दूर रखने के लिये इस तरह के किसी भी कानूनी प्रावधान के दुरूपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय पहले ही दो साल या इससे अधिक की सजा पाने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों को संरक्षण प्रदान करने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8:4: को निरस्त कर चुका है। इस धारा के निरस्त होने के कारण कम से कम दो संसद सदस्यों की सदस्यता भी खत्म हो चुकी है।

दूसरी ओर, पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में कैद व्यकित को चुनाव लड़ने से वंचित करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न स्थिति का निराकरण करते हुये संसद ने पहले ही जनप्रतिनिधित्व कानून में अपेक्षित संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के बाद हिरासत के दौरान जेल में बंद व्यपक्ति को एक बार फिर चुनाव लड़ने की पात्रता मिल गयी है।

देश की राजनीति को धन बल और बाहुबल से मुक्त कराने की दिशा में निर्वाचन आयोग लंबे समय से प्रयत्नशील है और समय समय पर उच्चतम न्यायालय की महत्वपूर्ण न्यायिक व्यवस्थाओं ने चुनाव सुधारों को गति प्रदान करने में काफी हद तक अहम भूमिका निभार्इ है।


PIB

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर विश्व के छह प्रमुख देशों के साथ समझौता

ईरान के साथ उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर विश्व के छह प्रमुख देशों- अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने एक अतंरिम समझौते पर 24 नवंबर 2013 को हस्ताक्षर किए. इस समझौते पर छह देशों की मुख्य वार्ताकार कैथरीन मैरी एश्टन और ईरान के विदेशमंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ के मध्य संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय जिनेवा में हस्ताक्षर किये गए. जिनेवा में चार दिनों तक चली वार्ता के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस) व जर्मनी (पी5 प्लस 1) के प्रतिनिधि इस समझौते पर पहुंचे. इस समझौते की घोषणा यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख कैथरीन एश्टन ने की.

समझौते के  मुख्य बिंदु

समझौते के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं.

ईरान को यूरेनियम संवर्द्धन के स्तर को पॉंच फीसदी तक सीमित रखना.
अब तक (समझौता होने तक) संवर्द्धित बीस फीसदी यूरेनियम को निष्क्रिय करना.
3.5 फीसदी संवर्द्धित यूरेनियम के भंडार को आगे बढ़ाने पर रोक
नए एल्ट्रा सेंट्रीफ्यूजेस को प्राप्त करने पर रोक
अरक (गुरू जल, भारी जल) संयंत्र को ईंधन से आगे विकसित करने पर रोक.
ईरान के परमाणु संयंत्रों पर आईएईए की देखरेख में प्रतिदिन निगरानी होना. 
ईरान को कई क्षेत्रों में सात अरब अमेरिकी डॉलर के आर्थिक प्रतिबंधों से राहत.
छह महीने तक ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध नहीं लगाना.
ईरान को तेल बेचने की इजाजत.
छह महीने तक ईरान पर नया प्रतिबंध नहीं.

ई 3+3 और ईरान

परमाणु समझौते को लेकर ईरान के साथ विश्व के छह प्रमुख देशों ने काम किया. इनमें शामिल ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस यूरोपीय यूनियन का हिस्सा हैं, इसलिए उनको ई3 का नाम दिया गया. इसमें शामिल शेष तीन अमेरिका, रूस और चीन हैं. इन तीनों को +3 कहा गया.

पी5 प्लस 1


कुछ देशों ने इस समझौते को पी 5+1 की संज्ञा दी हैं. पी5, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश-अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस हैं जबकि प्लस 1 जर्मनी है 

रविवार, 24 नवंबर 2013

महिलाओं का अपना बैंक

भारतीय महिला बैंक महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह औरतों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ देश के आर्थिक विकास में उनकी भागीदारी बढ़ाएगा।

मंगलवार को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुंबई में इसकी पहली शाखा का उद्घाटन किया। गौरतलब है कि इस बार के आम बजट में वित्त मंत्री ने महिला बैंक का प्रस्ताव रखा था और इसके लिए 1000 करोड़ रुपये की पूंजी रखी गई थी। फिलहाल बैंक की 7 ब्रांचें हैं, पर अगले छह महीने में इसकी 20 शाखाएं काम करने लगेंगी।

यह बैंक खोले जाने के पीछे मूल मकसद है महिलाओं को छोटे-छोटे उद्यम के लिए आसान शर्तों पर कर्ज देना। यह एक विडंबना ही है कि एक तरफ तो कई बड़े बैंकों में टॉप लेवल पर महिलाएं बैठी हैं, पर देश की एक औसत स्त्री को किसी बैंक में खाता खुलवाने के लिए भी दस बार सोचना पड़ता है। एक तो सामाजिक परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं हैं, दूसरे व्यवस्थागत कमियां भी हैं।
विश्व बैंक की ग्लोबल फाइनेंशल इनक्लूजन डेटाबेस स्टडी के मुताबिक भारत में केवल 26 प्रतिशत महिलाओं का किसी वित्तीय संस्था में औपचारिक खाता है। यह वैश्विक औसत 47 प्रतिशत से कम है, यहां तक कि विकासशील देशों के 37 प्रतिशत के मुकाबले भी कम है। अधिकांश बैंक स्त्रियों को ऋ ण देने में आनाकानी करते हैं। इसकी एक वजह यह है कि बैंक कर्ज के बदले कुछ संपत्ति गिरवी रखना चाहते हैं, लेकिन आमतौर पर औरतों के पास संपत्ति नहीं होती। या घर की संपत्ति बंधक रखने का फैसला उनके हाथ में नहीं होता।


भारतीय महिला बैंक की शुरुआत इस तरह की समस्याओं को दूर करने के लिए ही की गई है। इस बैंक से अब महिलाओं को मनपसंद किचन बनवाने से लेकर डे-केयर सेंटर खोलने जैसे कारोबार तक के लिए भी कर्ज मिल जाएगा। कमजोर वर्ग की महिलाओं पर बैंक खासतौर से ध्यान देगा। चूंकि बैंक की कर्मचारी भी महिलाएं ही होंगी, इसलिए कर्ज लेने या दूसरे काम के लिए आने वाली औरतें खुद को यहां सहज महसूस करेंगी। हालांकि इस बैंक की असली परीक्षा तब होगी जब गांवों में इसकी शाखाएं खुलेंगी। औरतें यहां तक पहुंच सकें, इसके लिए इसका प्रचार भी जरूरी है।   

कैनेडी की हत्या के 50 साल

महात्मा गांधी की शहादत के बाद वैश्विक राजनीति में यह संभवत: सबसे अधिक चर्चित घटना थी। आज से 50 वर्ष पूर्व 22 नवम्बर 1963 को अमरीकी राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी की हत्या ने विश्व को झकझोर कर रख दिया था। इससे 15 वर्ष पूर्व नाथूराम गोडसे द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की त्रासद घटना ने विश्व को गमगीन कर दिया था। गोडसे ने अपने अपराध को कबूल लिया था और उसके पीछे के षडयंत्र को उजागर भी कर दिया था, उसे फांसी की सजा दी गई थी। जबकि कैनेडी के हत्यारे आसवल्ड पर मुकदमा भी चलाया नहींजा सका। कैनेडी की हत्या के महज 48 घंटों के भीतर एक व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी और अमरीका में टीवी दर्शकों ने इस दृश्य को साक्षात देखा। खबरों व घटनाओं के टीवी प्रसारण की तब अमरीका में शुरुआत ही हुई थी। अमरीका के टीवी चैनलों में कैनेडी की हत्या के पचास साल पूरे होने पर तरह-तरह के कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं। ऐसे में एक चैनल सीबीएस न्यूज का मानना है कि कैनेडी की हत्या का पल अमरीकी न्यूज चैनलों के लिए परिवर्तनकारी साबित हुआ है। एक राष्ट्रपति की हत्या के साथ जीवंत प्रसारण की शुरुआत हुई। अमरीका ने एक राष्ट्रीय त्रासदी को साझा किया। टीवी के कारण अमरीकी जनता कैनेडी व उनके परिवार को थोड़ा और निकट से समझने लगी। इसके पहले के राष्ट्रपतियों के साथ ऐसी भावनात्मक निकटता नहीं थी।

कहा जाता है कि कैनेडी का हत्यारा टैक्सास स्कूल की छठवींमंजिल पर था, जब उसने कैनेडी पर गोली चलाई। लेकिन इतिहास में इस उलझे हुए प्रश्न का जवाब  नहींमिल पाया कि क्या ली हार्वे आसवल्ड ही कैनेडी का असली हत्यारा था? और अगर ऐसा है तो क्या हत्या उसने अकेले के दम पर की या वह किसी बड़े षडयंत्र का हिस्सा था? क्या उस बिल्डिंग में एक से अधिक हत्यारे मौजूद थे? इस त्रासदी की जांच करने वाले वारेन कमीशन ने सभी तथ्यों व सूबतों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि आसवल्ड ही कैनेडी का हत्यारा था। पर पुलिस द्वारा गिरफ्त में लिए जाने के बाद उससे जो पूछताछ हुई, उसमें उसने अपने गुनाह को कबूल नहींकिया। फिर डलास शहर में एक जेल से दूसरे जेल ले जाने के दौरान एक नाइट क्लब के मालिक जैक रूबी ने उसकी हत्या कर दी। इस घटना से समूचे परिदृश्य में संदेह और गहरा गया। क्या रूबी कैनडी की हत्या के षडयंत्र में सहभागी था और क्या इसी वजह से उसने आसवल्ड की हत्या कर दी, ताकि सारे सबूत नष्ट किए जा सकें। खबरों के मुताबिक गिरफ्तारी के बाद रूबी का कहना था कि ऐसा करके वह जनता की नजरों के सामने डलास शहर के प्रायश्चित में मदद करना चाहता था और साथ ही आसवल्ड की हत्या से श्रीमती कैनेडी को मुकदमे की कार्रवाई में आने की परेशानी से मुक्ति मिलती।

डलास में ज्यूरी ने जैक रूबी को आसवल्ड की हत्या का दोषी पाया और उसे मृत्युदंड दिया गया। रूबी ने इस सुनवाई व सजा के खिलाफ अपील की और उसे नए सिरे से सुनवाई की अनुमति मिली। इधर सुनवाई की तारीखें तय हुईं और उधर जैक रूबी बीमार पड़ गया। जनवरी 1967 में उसकी फेफड़े के कैंसर के कारण मौत हो गई।

खबरों के मुताबिक 24 वर्षीय आसवल्ड वामपंथी विचारों का था। फेयर प्ले फॉर क्यूबा कमेटी का वह सक्रिय सदस्य था। सोवियत संघ व क्यूबा के फिदेल कास्त्रो का वह प्रशंसक था और कुछ समय रूस में रह चुका था। इन सबसे यह संदेह भी होता है कि कहींइस हत्या के पीछे शीतयुध्द की बढ़ती कड़वाहट तो जिम्मेदार नहींथी। सीबीएस न्यूज द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक 61 प्रतिशत अमरीकी यह मानते हैं कि आसवल्ड ने अकेले इस हत्या को अंजाम नहीं दिया।

भारत में इस हत्या से शोक की लहर दौड़ गई थी। 46 वर्षीय युवा, आकर्षक राष्ट्रपति कैनेडी, उनकी पत्नी जैकलीन, दो सुंदर बच्चे 3 साल का जान व 6 साल की कैरोलीन से भारत के पाठक परिचित थे। मार्च 1962 में ही जैकलीन भारत यात्रा पर आयी थींऔर नेताओं व आम जनता के बीच खूब लोकप्रिय हुई थीं। कैरोलीन अब 56 साल की हैं और हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें जापान में राजदूत नियुक्त किया है।

भारत के युवा कैनेडी से खासे प्रभावित थे। उनका प्रसिध्द कथन कि- ये मत पूछो कि देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है, पूछो कि तुम देश के लिए क्या कर सकते हो। आज भी कक्षाओं में, भाषणों में उध्दृत किया जाता है। भारत के नेता भी कैनेडी का सम्मान करते थे। राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू व सी.राजगोपालाचारी (राजाजी) आदि ने उनकी हत्या के बाद मार्मिक शोक संदेश वाशिंगटन भेजे। पं.नेहरू की बहन और संरा में राजदूत विजयलक्ष्मी पंडित ने कैनेडी के अंतिम संस्कार में भारतीय दल का प्रतिनिधित्व किया था।

कैनेडी के मन में भारत, यहां की परंपरा व संस्कृति के प्रति बेहद सम्मान था। वे खुद यहां कभी नहींआए, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी को कुछ दिनों के लिए यहां भेजा था। 1962 में गांधी शांति प्रतिष्ठान के एक दल के मुखिया के रूप में राजाजी अमरीका गए और उन्होंने व्हाइट हाउस में जान एफ कैनेडी से मुलाकात की। उन्होंने परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कैनेडी को राजी करवा लिया था। उन्होंने कहा कि अमरीका को परमाणु परीक्षण बंद करने चाहिए या कम करने चाहिए क्योंकि इससे पर्यावरण पर खतरा बढ़ रहा है। यह मुलाकात महज 25 मिनट की तय थी, किंतु कैनेडी ने अपने बाकी कार्यक्रम स्थगित कर दिए और बैठक लगभग एक घंटे तक होती रही। बैठक की समाप्ति पर कैनेडी ने राजाजी से कहा कि वे जल्द ही कोई शुभ समाचार उन्हें सुनाएंगे। अर्थात अमरीका परमाणु परीक्षण कम करने और इस संबंध में सोवियत संघ से करार की संभावनाओं पर विचार करेगा।







देशबन्धु

शनिवार, 23 नवंबर 2013

22nd Commonwealth Heads Of Government Meeting (CHOGM) began in Colombo, Sri Lanka

The 22nd Commonwealth Heads of Government Meeting, CHOGM began in Colombo, Sri Lanka on 15 November 2013. The Summit was inaugurated by Prince Charles of England, who is representing Queen Elizabeth at the Commonwealth Summit. The theme for CHOGM 2013 is Growth with Equity; Inclusive Development.

The official symbol for CHOGM is Water lily flower. The logo symbolises the blue water lily (Nil Manel), the national flower of Sri Lanka. The multi coloured petals represent the diversity, liveliness and unity among different Commonwealth countries within a global perspective.

External Affairs Minister Salman Khurshid is represented the India in the 22nd Commonwealth Heads of Government Meeting (CHOGM). This year, CHOGM in Sri Lanka, the first time an Asian country is hosting the summit in 24 years. The last CHOGM Summit (in 2011) was held at Perth, Australia.

About CHOGAM
The Commonwealth Heads of Government Meeting (CHOGM) is held every two years to enable leaders of Commonwealth countries to come together to discuss global and Commonwealth issues, and to decide on collective policies and initiatives.

Every CHOGM is jointly organized by the host country and the Commonwealth Secretariat. These biennial meetings serve as the principal policy and decision-making forum to guide the strategic direction of the association.

Commonwealth leaders have been coming together for discussions since 1949, but the title Commonwealth Heads of Government Meeting was adopted during a session in Singapore in 1971. This specific classification was used to depict the gathering of both presidents and prime ministers in the event.

One unique aspect of the meeting is that the formal opening ceremony and the formal Executive Session are followed by a where leaders meet privately for discussions. With an informal atmosphere, this session allows heads of state to freely and frankly exchange their views on important issues and come to a consensus.

Previous CHOGMs have focused on a range of global issues, including international peace and security, democracy, climate change, multilateral trade issues, good governance, sustainable development, small states, debt management, education, environment, gender equality, health, human rights, information and communication technology, and youth affairs.

The theme of the 2011 CHOGM in Perth, Australia, was Building National Resilience, Building Global Resilience.

About the Commonwealth of Nations

The Commonwealth of Nations is a voluntary association of 53 countries, many of them former territories of the British Empire. It was established in 1949. The head of the Commonwealth is Her Majesty Queen Elizabeth II.

Member countries
Fifty-three countries are members of the Commonwealth. These Countries are from Africa, Asia, the Americas, Europe and the Pacific and are diverse – they are amongst the world’s largest, smallest, richest and poorest countries. Thirty-two of our members are classified as small states – countries with a population size of 1.5million people or less and larger member states that share similar characteristics with them.
Leaders of member countries shape Commonwealth policies and priorities. Every two years, they meet to discuss issues affecting the Commonwealth and the wider world at the Commonwealth Heads of Government Meeting (CHOGM).

All members have an equal say regardless of size or economic stature. This ensures even the smallest member countries have a voice in shaping the Commonwealth.

The last two countries to join The Commonwealth - Rwanda and Mozambique - have no historical ties to the British Empire. Four countries - Nigeria, Zimbabwe, Fiji and Pakistan - have been suspended from the Commonwealth in the past.


The Gambian Government on 2 October 2013 announced that it is pulling out of the Commonwealth with immediate effect.  Gambian, a West African country joined the Commonwealth of Nations in 1965.

भारत और मॉरिशस के बीच समझौते

भारत एवं मॉरिशस के उच्च शिक्षण संस्थानों के आपसी समन्वय को प्रगाढ़ बनाने एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आपसी संबंधो को अधिक मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से भारत एवं मॉरिशस ने दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये. ये दोनो समझौते केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री की 19-20 नवंबर, 2013 के मध्य मॉरीशस की दो दिवसीय यात्रा के दौरान किये गये. अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने मॉरिशस की ओर से प्रधानमंत्री डॉ. नवीनचंद्र रामगुलामतृतीय शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान मंत्री डॉ. आर. जेठा और शिक्षा तथा मानव संसाधन मंत्री डॉ. वसंत कुमार बनवारी से आधिकारिक वार्ता की.

भारत एवं मॉरिशस के मध्य हुए समझौते

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दोनो देशों के मध्य पहले समझौते के तहत आईआईटी दिल्ली और मॉरीशस अनुसंधान परिषद् दोनो मिलकर मॉरीशस में अंतर्राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अनुसंधान अकादमी संस्थान (आईआईटीआरए) की स्थापना करेंगे.

इसी प्रकार, दूसरे समझौते के तहत भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) और मॉरीशस के तृतीय शिक्षा परिषद् (टीईसी) के बीच शैक्षिक योग्यता को आपस में मान्यता प्रदान किया जाना है. दोनों पक्ष उच्च शिक्षा में मॉरीशस और भारत में दी गई उपाधियों को मान्यता प्रदान करेंगे.

दोनो देशों के मध्य हुए अन्य समझौते

1. मॉरिशस में समुद्र-विज्ञान की शिक्षा एवं शोध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) समुद्र-विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा प्रदान करने वाले भारतीय सस्थानों से मॉरिशस के सस्थानों को संबधित स्थापित करने में सहयोग करेगा. संयुक्त शोध कार्यक्रम जैसे कि संसाधन मैपिंग तथा कार्यशालाओं का आयोजन आपसी सहयोग से किया जा सकेगा.

2. पेट्रोलियम इंजीनियरिंग तथा केमिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के विकास हेतु शोधकर्ताओं, अकादमिकों तथा शिक्षकों आदान-प्रदान में सहयोग स्थापित करना.

3. भारत में विकसित ई-लर्निंग तथा मुक्त शिक्षा संसाधनों हेतु मानव संसाधन विकास मत्रालय द्वारा सहयोग प्रदान किया जाना है.


4. साइबर सुरक्षा तथा साइबर प्रणाली के विकास हेतु मॉरिशस विश्वविद्यालय को आईआईटी दिल्ली द्वारा सहयोग दिया जाना है.

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

गोवा में आयोजित 44 वां भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (आईएफएफआई) एशिया में प्रति वर्ष आयोजित होने वाले सबसे महत्वपूर्ण फिल्म समारोहों में से एक है। इसका उद्देश्य विभिन्न देशों के सामाजिक, सांस्कृतिक लोकाचार के संदर्भ में समझ और फिल्म संस्कृति की सराहना करने, दुनिया के लोगों के मध्य मैत्री और सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए विश्व सिनेमा को फिल्म कला की उत्कृष्टता दर्शाने के लिए साझा मंच उपलब्ध कराना है।

इतिहास

आईएफएफआई  का पहला संस्करण फिल्म प्रभाग, भारत सरकार द्वारा 1952 में मुंबई में आयोजित किया गया था। इसमें चालीस फीचर और सौ लघु फिल्में शामिल की गई थी। इसके बाद यह समारोह चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता में ले जाया गया। इस समारोह का स्वरूप गैर-प्रतिस्पर्धात्मक था और इसमें चौबीस देशों ने भाग लिया। मुख्य समारोह का आरंभ मुंबई में हुआ था जिसका उद्घाटन सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री श्री के.के. दिवाकर ने किया था। दिल्ली सत्र का उद्घाटन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने 21 फरवरी, 1952 को किया था।

1952 में शुरूआत के बाद आईएफएफआई भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा आयोजन है। बाद में आईएफएफआई नई दिल्ली में आयोजित किए गए। जनवरी, 1965 में आयोजित तीसरे संस्करण से यह प्रतिस्पर्धी बन गया। इसके बाद इसे केरल की राजधानी त्रिवेन्द्रम ले जाया गया था। 1975 में फिल्मोत्सव की गैर-प्रतिस्पर्धी तथा एक साल के अंतराल के बाद अन्य फिल्म निर्माण करने वाले शहरों में आयोजित करने की शुरूआत की गई। बाद में फिल्म महोत्सवों का आईएफएफआई में विलय कर दिया गया। 2004 में इसे त्रिवेन्द्रम से गोवा लाया गया, तब से आईएफएफआई वार्षिक और प्रतिस्पर्धी आयोजन बन गया है।

आईएफएफआई, 2013

आईएफएफआई का 44वां संस्करण 20 नवंबर, 2013 से शुरू होकर 30 नवंबर को समाप्त हो जाएगा। आईएफएफआई सचिवालय द्वारा सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तत्वाधान में गोवा सरकार के सहयोग से आयोजित समारोह में पूरे विश्व से आई फिल्में दिखाई जाएंगी। इसमें भारत से लेकर पूरी दुनिया से आई समकालीन एवं कला फिल्में एक गुलदस्ते के रूप में पेश की जाएंगी। इसमें विभिन्न फिल्म स्क्रीनिंग कार्यक्रम, शैक्षिक सत्र और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इस संस्करण में विभिन्न श्रेणियों में लगभग 160 फिल्में दिखाई जाएंगी।

आईएफएफआई का 44वां संस्करण कई मामलों में विशिष्ट है। पहली बार दो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म हस्तियां, हॉलीवुड की अभिनेत्री सुसान सारांडोन और जानेमाने ईरानी फिल्म निर्माता माज़िद मजीदी उद्घाटन समारोह में मंच साझा किया। पहली बार नोबेल पुरस्कार विजेता नेल्सन मंडेला और लेक वालेसा पर फिल्में दिखाई जाएगीं। पहली बार भारत के महान स्वतंत्रता-संग्राम नेता बाशा खान पर आधारित अफगान निदेशक द्वारा निर्मित और निर्देशित फिल्म दिखाई जाएगी। हॉलीवुड अभिनेत्री सुश्री मिशेल योह, इस उत्सव के समापन समारोह की मुख्य अतिथि होंगी। इस समारोह में पहली बार भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के सिनेमा पर प्रकाश डाला जाएगा। पूर्वोत्तर राज्यों की 19 फिल्मों के पैकेज में आठ पूर्वोत्तर राज्यों की जातीय, परम्परागत और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाया जाएगा।

प्रतिष्ठित लाइफ टाइम एचीवमेंट पुरस्कार जानेमाने चेक फिल्म निदेशक श्री जिरी मेंजेल को दिया जा रहा है जिनकी फिल्में चेक न्यू वेब सिनेमा के रूप में मानी गई हैं। 44वें आईएफएफआई में फोकस खंड में जापान की फिल्में दिखाई जाएगी। जिरी मेंजेल द्वारा निर्मित चेक हास्य फिल्म द डॉन जोआंस से इस समारोह की शुरूआत हुई। समापन फिल्म मंडेला : लांग वॉक टू फ्रीडमजिसे जस्टिन चाणविक ने निर्देशित किया है, रंगभेद विरोधी क्रांतिकारी और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला की जीवनी पर आधारित है।

भारतीय पैनोरमा

भारतीय पैनोरमा श्रेणी में समकालीन भारतीय सिनेमा की 26 फीचर फिल्में और 16 गैर-फीचर फिल्में शामिल हैं। महान अभिनेता मनोज कुमार ने उद्घाटन समारोह के दौरान भारतीय पैनोरमा-2013 की आधिकारिक रूप से झंडी दिखाकर शुरूआत की। प्रसिद्ध फिल्म निर्माता और संपादक श्री बी लेनिन की अध्यक्षता में फीचर फिल्मों की जूरी ने कुल 210 योग्य प्रविष्टियों में से 25 फिल्मों का चयन किया है। हिन्दी फिल्म पान सिंह तोमर, जिसने अभी हाल में 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता है, भारतीय पैनोरमा में 26वीं फिल्म है, जिसे सीधा प्रवेश मिला है। फीचर फिल्म जूरी ने कान्याका टाकीज (मलयालम निदेशक के आर मनोज ) को भारतीय पैनोरमा-2013 की उद्घाटन फिल्म के रूप में चुना है। फीचर फिल्म श्रेणी में जिन फिल्मों को चुना गया है, उनमें छह मलयालम, पांच बांगला, पांच हिन्दी, तीन मराठी और दो अंग्रेजी में हैं। कोंकणी, कन्नड, मिसिंग, उड़िया और तमिल में एक-एक फिल्म का चयन किया गया है।

जानेमाने निदेशक श्री राजा सेन की अध्यक्षता में गैर-फीचर फिल्म जूरी ने 130 योग्य प्रविष्टियों में से 15 फिल्मों का चयन किया है। कश्मीरी फिल्म शैफर्ड्स ऑफ पैराडाइज (निदेशक- श्री राजा शब्बीर खान) ने हाल में आयोजित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता है। इसे सीधे प्रवेश मिला है और यह भारतीय पैनोरमा की 16वीं फिल्म है। गैर-फीचर फिल्म श्रेणी में रंगभूमि (हिन्दी, निदेशक कमल स्वरूप) उद्घाटन फिल्म है। गैर-फीचर फिल्म श्रेणी में हिन्दी की पांच, मलयालम की तीन, अंग्रेजी की तीन, मराठी की दो, कश्मीरी की दो और कुदुख की एक फिल्म शामिल है।

आईएफएफआई-2013 युग फिल्म निर्माताओं मनोज कुमार, बुद्धदेब दासगुप्ता और एस. शंकर को नमन करता है और इन तीन हस्तियों की पसंद की तीन फिल्में इनके प्रशंसकों के लिए दिखाई जाएंगी।

पुरस्कार

44वें आईएफएफआई में विश्व की 16 फिल्मों को प्रतिष्ठित मयूर पुरस्कारों के लिए मुकाबला करना होगा। सर्वश्रेष्ठ फिल्म को 40 लाख रूपए नकद पुरस्कार प्रदान किया जाएगा, जिसे फिल्म के निर्माता और निर्देशक में बराबर-बराबर बांटा जाएगा। फिल्म के निदेशक को नकद पुरस्कार के अलावा गोल्डन मयूर और प्रमाण-पत्र भी दिया जाएगा। रजत मयूर, प्रमाण-पत्र और नकद पुरस्कार 15 लाख रूपए का होगा, जो श्रेष्ठ निदेशक को दिया जाएगा, जबकि सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं (पुरूष) और (महिला) को रजत मयूर, प्रमाण-पत्र और 10 लाख रूपए का नकद ईनाम दिया जाएगा। किसी फिल्म (फिल्म के किसी भी पहलू के लिए जिसे जूरी पुरस्कार या मान्यता देना चाहती है) या व्यक्ति (फिल्म के लिए उसके कलात्मक योगदान के लिए) को रजत मयूर, प्रमाण-पत्र और 15 लाख रूपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा।

प्रतिष्ठित लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार में 10 लाख रूपए का नकद पुरस्कार, प्रमाण-पत्र, एक शॉल और दुपट्टा सिनेमा के लिए विशिष्ट योगदान देने वाले मास्टर फिल्म निर्माता को प्रदान किया जाएगा। प्रतिष्ठित चेक फिल्म निर्माता श्री जिरी मेंजेल इस वर्ष का यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले व्यक्ति हैं। शताब्दी पुरस्कार रजत मयूर, प्रमाण-पत्र और 10 लाख रूपए का नकद पुरस्कार उस फीचर फिल्म को दिया जाएगा, जो सौंदर्य, तकनीक या प्रौद्योगिकी नवाचार के रूप में मोशन फिक्चरों में नये प्रतिमान को दर्शाती हों।

भारतीय सिनेमा का शताब्दी वर्ष

यह वर्ष भारतीय सिनेमा का 100वां वर्ष है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस अवसर पर फिल्म उद्योग को बढ़ाना देने के लिए विशेष कदम उठाए हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं- सिनेमैटोग्राफ अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा के लिए मुदगल समिति का गठन किया गया है और समिति की सिफारिशें विचाराधीन है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि फिल्म निर्माताओं को देश में अनुमति लेने के लिए किसी कठिनाई का सामना न करना पड़े, मंत्रालय ने एकल खिड़की क्लीयरेंस प्रणाली स्थापित करने के लिए सक्रिय कदम उठाया है। इसका उद्देश्य मानक संचालन प्रक्रिया को सुचारू रूप से लागू करना था। सिनेमा को प्रोत्साहन देने की पहल के रूप में राष्ट्रीय फिल्म विरासत मिशन को उद्योग की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने के लिए कहा गया है। इसने अभी हाल में घोषणा की है कि प्रत्येक वर्ष आईएफएफआई में प्रतिष्ठित भारतीय फिल्म हस्ती को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए शताब्दी पुरस्कार दिया जाएगा।

समापन

फिल्म समारोह व्यक्तियों और उन देशों की एक सभा है जहां दुनिया के बड़े फिल्म कलाकार उभरती हुई प्रतिभाओं को समान स्तर का समझते हैं। यह सारी दुनिया के फिल्म प्रेमियों के साथ आमने-सामने बातचीत करने के लिए पेशेवरों का एक फोरम भी है। आईएफएफआई का उद्देश्य भारतीय सिनेमा को पोषित, प्रोत्साहित करना तथा बाहर की दुनिया के साथ-साथ अनेक दर्शकों से परिचित कराना है जो इस विशाल और विविधतापूर्ण देश में सह-अस्तित्व से रहते हैं। त्वरित प्रौद्योगिकी परिवर्तनों के साथ इस उत्सव की महत्ता बढ़ेगी, क्योंकि यह दर्शकों और फिल्म निर्माताओं को एक साथ लाने के साथ-साथ उभरती प्रौद्योगिकियों और नये उभरते मीडिया की चुनौतियों से परिचित कराएगा। नई बातचीत की परिकल्पना की गई है। नई नीतियां गठित की जाएंगी, ताकि आईएफएफआई के प्रत्येक संस्करण के साथ देखने के अनुभव में वृद्धि हो और वह समृद्ध हो।


(पसूका लेख)

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

Pioneering Spices Research

Life has changed for good for Mr. George Thomas Panackavayal, a 65 year old progressive farmer from Koorachundu in Kozhikode district of Kerala. George Thomas’s story is an inspiration for those who lament agriculture is no more a profitable business. From a novice farmer to an award winning visionary figure, his triumph is a living testimony to the significant work done by the Indian Institute of Spices Research (IISR), Kozhikode, through its Krishi Vigyan Kendra(KVK).

Being a traditional black pepper grower, George was cultivating local varieties. Yield from these vines was not so promising and most of the vines died because of quick wilt. Like any other traditional farmer, his life was also full of ups and downs.

The Beginning of a New Innings

It was in the year 2007, a training programme on mushroom cultivation at IISR’s Krishi Vigyan Kendra located at Peruvannamuzhi in Kozhikode district changed his life forever. It was the beginning of a winning partnership in agriculture. With the guidance and support of the KVK, he started a mushroom cultivation unit investing around one lakh rupees.

Later George Panackavayal turned into cultivation of ginger and turmeric by procuring five kilograms of IISR Prabha variety of turmeric and Varada variety of ginger. He followed the scientific crop management practices; took the advice of experts from KVK and IISR at each and every stage of cultivation and it worked well. In 2010, he sold 1000 kg of turmeric and 500 kg of ginger rhizomes to other farmers through the Participatory Seed Production programme of KVK. Next year also, he harvested a bumper yield of 500 kg of turmeric and 400 kg of ginger from a mere 15 cents of land.

In the year 2007, he planted around 300 vines of high yielding varieties of black pepper such as Sreekara, Subhakara, Panchami and Pournami released by IISR. From the third year of planting, the vines started yielding and in year he got a yield of 200 kg fetching him a net income of 75000 rupees. He is also growing coconut, areca nut, nutmeg, rubber, tapioca and other tuber crops. He was one of the four farmers mentioned in the Harvesters of Hope, a compilation of the success stories of 101 farmers in the country, published by the Ministry of Agriculture in 2009. He credits all his success to the support he got from IISR.

George’s success story is not an isolated one. Thanks to remarkable work done by IISR; many farmers have scripted success stories by cultivating different spices across the country.

IISR Genesis

Spices research in the country had a modest beginning with the establishment of a regional centre of Central Plantation Crops Research Institute at Calicut- the city of spices in the year 1975 by the Indian Council of Agricultural Research (ICAR). Further in 1995 the research on spices gained full momentum with the establishment of Indian Institute of Spices Research, the one and only ICAR centre for research on spice crops. The institute is located in a serene campus of 14.3 hectors at Chelavoor, 11 kilometers from Calicut city.

The experimental farm of IISR is located at Peruvannamuzhi, a picturesque setting about 51 kilometers north east from the city of Calicut. The research farm, set up in a leased land of 94.8 hectares, focuses on intensive production of nucleus planting materials and conservation of biodiversity in spices. IISR is also the headquarters of All India Coordinated Research Projects on Spices which is the largest spices research network in the country. The mandate crops of the institute are black pepper, cardamom, ginger, turmeric, cinnamon, clove, nutmeg, allspice, garcinia, vanilla and paprika.

IISR maintains the world’s largest germplasm repository of spices with a total of 2575 black pepper accessions, 435 cardamom accessions, 685 ginger and 1040 turmeric accessions. Apart from this, the institute has gene repositories of Vanilla, Paprika and other tree spices such as Cinnamon, Clove, Nutmeg and Cassia.

A significant contribution of the institute in the field of spices research is the breeding of high yielding spice varieties that are tolerant to drought, pests and diseases. The institute has developed various technologies for sustainable production of spices.

Spices Varieties Released by IISR

A significant contribution of the institute in the field of spices research is the breeding of high yielding spice varieties that are tolerant to drought, pests and diseases.

Eight varieties of black pepper were released by the institute. Varieties such as Sreekara, Subhakara, Panchami and Pournami are already in the farmers’ field. Latest varieties include IISR Thevam, IISR Malabar Excel, IISR Girimunda and IISR Shakthi.

IISR Vijetha 1, IISR Avinash and IISR Kodagu Suvasini are the cardamom varieties developed by the Cardamom Research Centre (CRC) of IISR functioning at Appangala in Kodagu district of Karnataka.

The ginger varieties of the institute, IISR Varada, IISR Rejatha and IISR Mahima are suitable for cultivation in all major ginger growing tracts of the country.

Eight high quality turmeric varieties have been released so far by the institute. Suguna, Sudarshana, Parbha, Prathibha and IISR Alleppy Supreme are known for their high curcumin content and other quality attributes.

IISR Vishwasree, a high yielding nutmeg variety with a bushy and compact canopy, is suitable for all tracts in South India. Kerala Shree another nutmeg variety released recently. Navasree and Nithyasree are the leading cinnamon varieties of IISR well known for their bark oil and oleoresin.

White Pepper Production Technology

White pepper is one of the value added forms of black pepper that fetches high revenue for farmers. Owing to its charming creamy white colour, mild flavor, attractive odor, good taste and suitability to use in any food item, it has become a hot choice in the international market especially in the European countries. It also fetches almost fifty percent higher price in the market.

Traditionally, white pepper is produced by the de-cortication of ripened or dried berries. But this conventional method and other mechanical decortications were inadequate for bulk production of white pepper at industrial or farm level. The hygienic aspects and quality of white pepper are also a matter of concern. Scientists at IISR have developed a bacterial technology for converting mature green pepper to white pepper through bacterial fermentation.

Mature green pepper obtained after harvest is washed in sterilized water containing a mid log phase culture of Bacillus bacteria and it is incubated at room temperature for five days. Then the pepper berries are trampled and washed thoroughly with running water to remove degraded pericarp and bacterial metabolites. Creamy white pepper berries obtained through fermentation is dried to get high quality white pepper.

Broiler Goat Rearing

‘Broiler Goat Rearing’, fine-tuned by the scientists of the Peruvannamuzhi Krishi Vigyan Kendra of IISR is a boon to the farming community especially in the areas where green fodder is in scarce. Under this method, 15 to 30 days old kids with a higher birth weight are selected before they start eating green leaves. These kids, once identified, are kept away from their mothers and are housed separately in sheds made of bamboo or wooden poles. Proper ventilation, sunlight and cleanliness are ensured at all the times.

Initially, the kids are given small quantities of concentrated feed. And the quantity is increased gradually depending upon the intake. Additional supplements such as liver tonic mixed with fish oil are also given twice a week. Young kids are also provided with mother’s milk for one month (twice or thrice a day) for their proper growth. Various women self help groups like Kaveri Kudumbashree and Nidhi and several other individual farmers in Peruvannamuzhi of Kozhikode district of Kerala have been rearing goats in this method for the past five years. According to the members of the group the method is highly suitable for those who don’t have enough land for grazing animals.

Less cost, more profit, ease in cattle management and a good demand for the goat meat are some of the many favourable factors encouraging the farming community to adopt broiler goat rearing more passionately. Kids bred under broiler technology gain about 25-33 kilograms in 120-140 days, whereas in traditional system of green feeding, the goats acquire only a maximum weight of 10 kilos, that too in 6 months. The expenditure towards feeding a kid under this method comes to about Rs. 1200. A net income of Rs. 5050 to 7050 (at Rs. 250 per kg on live weight basis) can be easily realized in this method.

IISR is continuing its journey. By changing the lives of generations positively this institute is presenting science with a human touch.


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