बुधवार, 27 नवंबर 2013

लघु उद्योगों का संवर्धन एवं विकास

लघु उद्यमी एवं लघु व्यानपार विकास का राष्ट्रीरय संस्था न (नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर इंटरप्रेन्योरशिप एंड स्मॉल बिजनेस डवेलेपमेंट-एनआईईएसबीयूडी) सूक्ष्मा, लघु तथा मध्यसम उद्यमी विकास मंत्रालय के अंतर्गत 6 जुलाई 1983 से काम कर रहा है। इस संस्थासन का मूल उद्देश्या सूक्ष्मर, लघु एवं मध्यीम उद्यमों का संवर्धन करना है। संस्था न प्रतिस्पसर्धा बढ़ाने के अनेक उपाय करता है।
इस संस्थान के प्रमुख कार्य निम्न्लिखित हैं-
प्रशिक्षण
संस्थान जो प्रमुख कार्य करता है उनमें शामिल हैं- प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम (टीटीपी), प्रबंध विकास कार्यक्रम (एमडीपी), विभाग प्रमुखों (एचओडी) तथा वरिष्ठ् कार्यपालकों के लिए उन्मुमखता कार्यक्रम तथाउद्यम-सह--कौशल विकास कार्यक्रम (ईएसडीपी) और विभिन्नख लक्ष्यी समूहों के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई प्रायोजित गतिविधियां।
हाल ही में इस संस्थान ने विभिन्न  क्षेत्रों के कुशल कामगारों का कौशल बढ़ाने के उद्देश्य से उन वर्गों के विभिन्न् कामगारों के लिए उद्यम सह-कौशल विकास कार्यक्रम (ईएसडीपी) चलाना शुरू किया है जिन वर्गों और उद्योगों में इनकी कमी महसूस की जाती रही है। साथ ही यह समसामयिक क्षेत्रों में शुल्क-आधारित  प्रशिक्षण गतिविधियां आयोजित करता रहा है।
यह संस्थान जुलाई 1983 से मार्च 31, 2013 तक अपने 5,951 विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये अपने 1,58,700 लोगों को प्रशिक्षित कर चुका है। प्रशिक्षित लोगों में 2,453 अंतर्राष्ट्रीय भागीदार शामिल हैं जो दुनियाभर के 130 से ज्यादा देशों से आये।
2013-14 के दौरान करीब 1 लाख लोगों को ट्रेनिंग दिये जाने की संभावना है। नवम्बर 2013 तक 60,000 से ज्यादा को प्रशिक्षित किया जा चुका है।
अनुसंधान/मूल्यांकन अध्य्यन
प्रारंभिक/मूल अनुसंधान के अलावा यह संस्थांन विभिन्नो सरकारी स्कीमों/कार्यक्रमों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं का मूल्यांयकन और समीक्षा करता रहा है। औद्योगिक संभावित क्षमता का सर्वेक्षण भी यह संस्थान करता रहा है। यह सभी के प्रोजेक्ट् प्रोफाइल भी तैयार करता रहा है जो संस्थािन की बहुआयामी गतिविधियों का अभिन्न अंग है। इन गतिविधियों का उद्देश्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के क्षेत्र को बढ़ावा देना है।
वर्ष 2012-13 में इस संस्थान ने मूल्यांकन/अनुसंधान के 7 अध्ययन पूरे किए। संस्थान अनेक मूल्यांकन/अनुसंधान अध्ययनों पर वर्तमान में काम कर रहा है और ये प्रगति के विभिन्न चरणों में हैं।
पाठ्यक्रमों का विकास
इस संस्थान ने विभिन्न नौ लक्ष्य् समूहों के लिए आदर्श उद्यम विकास कार्यक्रम विकसित किए हैं। ये हैं- सामान्यक उद्यम, विज्ञान एवं टैक्नोनलॉजी उद्यम, महिला उद्यमी, शिक्षित बेरोजगार उद्यमी, पूर्व सैनिक उद्यमी, ग्रामीण उद्यमी (समाज के दुर्बल वर्गों सहित), दस्तदकार उद्यमी, आदिवासी उद्यमी और विकलांग उद्यमी।
फिलहाल यह संस्था न सूक्ष्मौ, लघु तथा मध्यउम उद्यम मंत्रालय के कोर ग्रुप की नये पाठ्यक्रमों के शुरू करने/ मानकीकरण में सहायता कर रहा है।
प्रकाशन
यह संस्थान उद्यमिता तथा इससे जुड़े हुए विषयों पर विभिन्न प्रकार के प्रकाशन एवं उद्यमिता में काम आने वाले उपकरणों का विकास एवं संचालन करता रहा है। हाल ही में इस संस्थान ने एक पुस्तिका प्रकाशित की है जिसका शीर्षक है लर्न टू अर्न (सीखो और कमाओ)- स्कूली छात्रों के लिए उद्यमिता की शुरूआत। कंप्यूटर हार्डवेयर एंड नेटवर्किंग, खाद्य प्रसंस्क्रण, डेस्कटॉप पब्लिशिंग। उद्यमिता विकास और प्रशिक्षण कार्यक्रम की पुस्तदक: नियोज्य्ता एवं उद्यमिता कौशल पर भी पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। इस संस्थातन ने एक उद्यमिता, प्रेरणा एवं प्रशिक्षण किट तैयार किया है जिसमें प्रशिक्षण प्राप्त  करने वालों के लिए 6 प्रकार के खेल और प्रशिक्षण को सुविधाजनक बनाने के तरीके दिये गये हैं।
यह संस्था न एक त्रैमासिक न्यूजलेटर प्रकाशित करता है जिसमें संस्थान की गतिविधियों के बारे में सूचनाएं रहती हैं। न्यूजलेटर में आगामी कार्यक्रमों/गतिविधियों तथा सूक्ष्मि, लघु और मध्य म दर्जे के उद्यमों से संबंधित मंत्रालय और इससे जुड़े क्षेत्रों के बारे में कार्यक्रमों/गतिविधियों की खबरें होती हैं।
उद्यमों का समूह बनाने का तरीका
सूक्ष्म ,लघु एवं मध्यरम क्षेणी के उद्यम के विकास में समूह बनाने का तरीका अपनाने से दुनियाभर में बहुत किफायत हुई है। यह संस्थान कई प्रकार से विकास कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है और विभिन्न  हैसियत से इसने काम किया है। अभी तक यह संस्थाथन 24 औद्योगिक समूहों के विकास में शामिल रहा है।
फिलहाल यह संस्था न मेरठ के कैंची बनाने वाले उद्योग समूह के लिए एक समान सुविधा केंद्र (सीएफसी) विकसित करने की एजेंसी के रूप में काम कर रहा है।
इस संस्था न ने  मुरादाबाद में पीतल उद्योग समूह, पिलखुआ में कपड़ा उद्योग समूह और मेरठ में कैंची उद्योग समूह विकसित करने में काम किया है और इसका तजुर्बा बहुत अच्छाे और उत्पामदक रहा है।
एडड संस्थान एमएसएमई गारर्मेंट इनक्यू्बेशन सेंटर
सूक्ष्म्, लघु एवं मध्यकम उद्यमिता मंत्रालय द्वारा प्रायोजित इनक्यूपबेटर इस संस्था न के परिसर में ही काम कर रहा है और यह लाभार्थियों को वास्तलविक फैक्ट्री और बाजार की परिस्थतियों से परिचित कराता और प्रशिक्षण देता रहा है। यह केंद्र मड़े काटने, सिलाई और जरदोज़ी की मशीनों से लैस है। इसमें एक सुई वाली लॉक स्टिच, ओवर लॉक स्टिच और इंटरलॉक स्टिच मशीनें रखी गई हैं। इनका इस्तेीमाल लाभार्थियों को व्या वहारिक प्रशिक्षण देने/माहौल बनाने में किया जाता है।
बौद्धिक संपदा सुविधा केंद्र
बौद्धिक संपदा अधिकार इस क्षेत्र में काम करने वाली यूनिटों और उनके विकास के लिए महत्वेपूर्ण पाये गए हैं। इस संस्था न के परिसर में एक बौद्धिक संपदा सुविधा केंद्र चालू हो गया है, जो एक ही छत के नीचे आसपास की यूनिटों को बौद्धिक संपदा अधिकारों की पहचान, पंजीकरण, संरक्षण एवं प्रबंधन की सुविधा देता है।
ई मॉड्यूल: ईडीपी
इस संस्थाकन ने हिंदी और अंग्रेजी में ई लर्निंग का मॉड्यूल विकसित किया है जो उद्यमी विकास कार्यक्रमों में काम आता है। इस मॉड्यूल की प्रशिक्षण सामग्री एक सीडी में तैयार कर ली गई है जिसकी कीमत किफायती रखी गई है। यह मॉड्यूल उन लोगों के लिए खासतौर से लाभप्रद है जो क्लाससरूम में पूरा समय नहीं दे पाते।
इस मॉड्यूल में एक दिन का प्रारंभिक प्रशिक्षण रखा गया है जिसके बाद 14 दिनों को ऑनलाइन प्रशिक्षण होता है। इस ऑनलाइन परीक्षा के बाद भगीदारों को ऑनलाइन प्रमाण पत्र दिये जाते हैं। यह मॉड्यूल तकनीकी और प्रबंधकीय संस्था्नों के छात्रों में बहुत लोकप्रिय हैं।
इस मॉड्यूल को अब तक पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तॉराखंड, उत्तार प्रदेश, पंजाब और राजस्थाइन में शुरू किया जा चुका है।
क्षेत्रीय केंद्र, देहरादून
इस संस्थादन का एक क्षेत्रीय केंद्र  देहरादून में खोला गया है जो खास तौर से उत्रााखंड और उत्त र प्रदेश के निवासी लाभर्थियों को परामर्श सेवाएं देने का काम करता है।
उद्यमिता सर्जन के लिए प्रशिक्षण
संस्थान द्वारा आयोजित किए जा रहे ईडीपी और ईएसडीपी के मुख्ये उद्देश्यो भागीदारों को प्रेरणा देना और उन्हें  स्वेरोजगार के लिए प्रेरित करना है। यह संस्थाजन ऐसे लोगों को हर प्रकार की सेवाएं प्रदान करता है। अगर उद्यमी स्व रोजगार नहीं चाहते, तो यह संस्थान उन्हें वेतन वाला रोजगार पाने में मदद करता है।
पिछले तीन वर्षो के दौरान संस्था के द्वारा प्रशिक्षित किये गये व्यक्तियों का प्रतिशत :


इकाईयां लगाने के लिए सहायता प्राप्‍त सहभागियों का प्रतिशत
मजदूरी रोजगार के लिए सहायता प्राप्‍त सहभागियों का प्रतिशत
2010-11
6.80
32.73
2011-12
4.20
19.41
2012-13
2.44
27.23

सहयोगात्मक गतिविधियां :
विभिन्ने लक्षित समूह के लिए सहायता तथा उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए संस्थाेन विभिन्नक देशी तथा विदेशी संस्थानों के साथ सहयोग कर रहा है। इनमें इंटरनेशनल फाइनेंस कोरपोरेशन (आईएफसी), विश्वा बैंक समूह का एक सदस्य; जीआईजेड; सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ सेकेण्डरी एजुकेशन(सीबीएसई); सन ऑन-लाइन लर्निंग इंडिया प्रा.लि.;  इंस्टीट्यूट इंडिया, जयपुरिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट आदि शामिल हैं।
साझेदार संस्थान :
संस्थान, इसकी प्रशिक्षण गतिविधियों की पहुंच को बढ़ाने के लिए शैक्षणिक गतिविधियों एवं उद्यमशीलता विकास से जुड़े आधार स्तर के संगठनों जिनके पास पर्याप्तत बुनियादी सुविधाएं, अनुभवी फैकल्टीं, विभिन्ऩ प्रशि‍क्षण गतिविधियों को संचालित करने के लिए वित्तीय व्यवहारिता हो, उन्हें अपने पैनल में शामिल करता है। संस्थाल के साथ ऐसे 63 साझेदार संस्थान जुड़े हुये है, जो 12 राज्यों /केन्द्र शासित प्रदेशों में हैं।
अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियां :
वि‍भि‍न्नत देशों के सहभागि‍यों के लि‍ए वि‍देश मंत्रालय:  आईटीईसी/एससीएएपी/सीओएलओएमबीओ योजना की फैलोशि‍प के तहत संस्थात आठ सप्ताह का प्रशि‍क्षण कार्यक्रम संचालि‍त करता है।
इसके अलावा, संस्था वि‍देशी एजेंसि‍यों के लि‍ए वि‍शेष प्रशि‍क्षण कार्यक्रम डि‍जाइन और संचालि‍त करता है। इसके साथ ही वि‍भि‍न्न क्षेत्रों की औद्योगि‍क क्षमताओं का आकलन करने के लि‍ए अन्य  देशों को कंसल्टेनसी के कार्य में सहायता करता है।
राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परामर्श सेवाएं देना:
इनमें उद्यमशीलता वि‍कास संस्थान का गठन करना; सूक्ष्म तथा बड़ी औद्योगि‍क क्षमताओं का सर्वेक्षण करना;वि‍भि‍न्न। लक्ष्य‍ समूहों की प्रशि‍क्षण आवश्यसकताओं का आकलन करना; वि‍भि‍न्न लाभार्थियों का चयन करना अर्थात् प्रशि‍क्षण प्रदाता, एमएसएमई आदि; प्रशि‍क्षण प्रदान करने वाले(टीटीपी), उद्यमशीलता व कौशल वि‍कास कार्यक्रम(ईएसडीपी), उद्यमशीलता वि‍कास कार्यक्रम(ईडीपी) और वि‍भि‍न्न् ओरि‍एंटेशन कार्यक्रमों के पाठ्यक्रमों का नि‍र्धारण करना; भारत तथा वि‍देश में उद्यमि‍यों तथा प्रशि‍क्षण देने वालों के लि‍ए प्रशि‍क्षण कार्यक्रम संचालि‍त करना; वि‍भि‍न्न लक्ष्य, समूहों को प्रशि‍क्षण देने के लि‍ए प्रशि‍क्षण सामग्री तैयार करना, इनमें सुधार करनावि‍भि‍न्न औद्योगि‍की क्लस्टरों की पहचान करना, इनके समेकि‍त वि‍कास को सुनि‍श्चि ‍त करना, एमएसएमई क्षेत्र को बढ़ावा देने के लि‍ए बुनि‍यादी सुवि‍धाओं की स्थापना, इनकी योजना तथा नीति‍ का नि‍र्माण करना आदि‍ शामि‍ल हैं।  
 PIB

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

P5+1 And Iran Agree Landmark Nuclear Deal At Geneva Talks

The P5+1 world powers and Iran have struck a historic deal on Tehran’s nuclear program at talks in Geneva on Sunday. Ministers overcame the last remaining hurdles to reach agreement, despite strong pressure from Israel and lobby groups.

Under the interim agreement, Tehran will be allowed access to $4.2 billion in funds frozen as part of the financial sanctions imposed on Iran over suspicions that its nuclear program is aimed at producing an atomic bomb.

As part of the deal Iran has committed to:

- Halt uranium enrichment to above 5 per cent.

- Dismantle equipment required to enrich above 5 per cent.

- Refrain from further enrichment of its 3.5 per cent stockpile.

- Dilute its store of 20 per cent-enriched uranium.

- Limit the use and installation of its centrifuges.

- Cease construction on the Arak nuclear reactor.

- Provide IAEA inspectors with daily access to the Natanz and Fordo sites.

Iran's foreign minister, Javad Zarif, called the deal a “major success” and said Tehran would expand its cooperation with the International Atomic Energy Agency (IAEA).

While Iranian President Hassan Rouhani announced that the deal reached in Geneva shows that world powers have recognized Tehran's “nuclear rights.”

“Constructive engagement [and] tireless efforts by negotiating teams are to open new horizons,” Rouhani said on Twitter shortly after the announcement.

Foreign ministers from the US, Russia, UK, France, China, Germany and the EU hailed the deal as a step toward a “comprehensive solution” to the nuclear standoff between Tehran and the West. The interim deal was reached early Sunday morning in Geneva after some 18 hours of negotiation.

“While today's announcement is just a first step, it achieves a great deal,” US President Barack Obama said in a statement at the White House. “For the first time in nearly a decade, we have halted the progress of the Iranian nuclear program, and key parts of the program will be rolled back.”

However, Obama said that if Iran fails to keep to its commitments over the next six months, the US will “ratchet up” sanctions. US Secretary of State John Kerry, a key participant in the Geneva talks, said that Iran still had to prove it is not seeking to develop atomic weapons.

Tehran has repeatedly denied that it is developing atomic weapons, however, and maintains that its nuclear program is purely for civilian purposes.

Uranium enrichment

As part of the agreement, the international community has accepted Tehran’s right to a peaceful nuclear program. But after the deal was struck, participants in the Geneva talks put different interpretations on the issue of Iran’s right to enrich uranium.

Iran's Deputy Foreign Minister Seyed Abbas Araghchi wrote on Twitter that the right to enrichment had been recognized in negotiations, and after the deal was clinched Russian Foreign Minister Sergey Lavrov said the deal accepted Tehran’s right to enrich uranium.

“This deal means that we agree with the need to recognize Iran's right for peaceful nuclear energy, including the right for enrichment, with an understanding that those questions about the [Iranian nuclear program] that still remain, and the program itself, will be placed under the strictest IAEA control,” Lavrov told journalists.
John Kerry had a different spin on the deal, however, telling the media that it did not recognize Tehran’s right to enrich nuclear fuel.

“The first step, let me be clear, does not say that Iran has a right to enrich uranium,” Kerry said.


Israel has already voiced its opposition to the deal with Iran, claiming it is based on “Iranian deception and self-delusion.” Prime Minister Benjamin Netanyahu condemned the agreement as a "historic mistake" and said the world had become a more dangerous place.

Food preservation by radiation processing

Food is vital for human existence. Conservation and preservation of food is essential for food security and it provides economic stability and self-reliance to a nation. The need to preserve food has been felt by mankind since time immemorial. The seasonal nature of production, long distances between production and consumption centres and rising gap between demand and supply have made this need even more relevant today. The hot and humid climate of a country like India is quite favourable for growth of numerous insects and microorganisms that destroy stored crops and cause spoilage of food every year. Spoilage can also occur due to chemical and physiological changes in stored foods. Sea-foods, meat and poultry may carry harmful microbes and parasitic organisms that cause illnesses associated with their consumption. As in other parts of the world, India has also practiced various methods of food preservation such as sun drying, pickling and fermentation which were supplemented with more energy consuming techniques such as refrigeration, freezing and canning. Each of these methods has its merits and limitations. Man has always been in the search for newer methods to preserve foods with least change in sensory qualities. Radiation processing of food is one of the latest methods developed for this purpose. Food Technology Division (FTD) of the Bhabha Atomic Research Centre (BARC) is involved in the research on food preservation through radiation.

Radiation processing of food involves exposure of food to short wave radiation energy to achieve a specific purpose such as extension of shelf-life, insect disinfestations and elimination of food borne pathogens and parasites. In comparison with heat or chemical treatment, irradiation is considered a more effective and appropriate technology to destroy food borne pathogens. It offers a number of advantages to producers, processors, retailers and consumers. Though irradiation alone cannot solve all the problems of food preservation, it can play an important role in reducing post-harvest losses and use of chemical fumigants.

Know-How and Technology Transfer

Expertise and know-how for designing, fabrication and commissioning of irradiators is available in the country with the Department of Atomic Energy (DAE) and BARC. In India commercial food irradiation could be carried out in a facility licensed by the Atomic Energy Regulatory Board (AERB). The DAE has set up two technology demonstration units in India. The Radiation Processing Plant at Vashi, Navi Mumbai, mainly meant for treatment of spices, dry vegetable seasonings like onion flakes, and pet foods, is being operated by the Board of Radiation & Isotope Technology (BRIT). KRUSHAK (Krushi Utpadan Sanrakshan Kendra), Lasalgaon, was set up in 2002 by BARC, to demonstrate low dose applications of radiation such as control of sprouting, insect disinfestations, and quarantine treatment. KRUSHAK became the first Cobalt-60 gamma irradiation facility in the world, outside US, to be certified by USDA-APHIS for phytosanitary treatment enabling export of mango from India to the US in 2007 after a gap of 18 years. The microbiological, nutritional and chemical aspects of radiation-processed foods have been studied in detail around the world. None of these studies have indicated any adverse effects of radiation on food quality.

Commercial Prospects in India

 In India radiation processing of food can be undertaken both for export and domestic markets. Food could be processed for shelf-life extension, hygienization and for overcoming quarantine barriers. Huge quantities of cereals, pulses, their products, fruits and vegetables, seafood and spices are procured, stored, and distributed throughout the length and breadth of the country. During storage and distribution grains worth of thousand of crores of rupees are wasted due to insect infestation and related problems. Radiation processing can be used for storage of bulk and consumer packed commodities for retail distribution and stocking.

(PIB Features.)

  

सोमवार, 25 नवंबर 2013

आपराधिक तत्‍व मुक्‍त चुनाव प्रक्रिया के लिए नया कानून जरूरी

देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को धन बल और बाहुबल के प्रभाव से मुक्तन कराने के निर्वाचन आयोग के प्रयासों को काफी सफलता मिली है लेकिन अभी भी चुनाव सुधारों के लिए  बहुत कुछ करना बाकी है। चुनाव प्रक्रिया से आपराधिक तत्वोंी को पूरी तरह बाहर रखने के सवाल पर गंभीरता से विचार की आवश्यरकता है।

चुनाव प्रक्रिया को आपराधिक तत्वों की भागीदारी से मुक्त कराने के इरादे से निर्वाचन आयोग चाहता है कि कानून में ही ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने का प्रावधान किया जाये जिनके खिलाफ अदालत में उन अपराधों के लिये अभियोग निर्धारित किये जा चुके हैं, जिनमें दोषी पाये जाने पर कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है।

केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल ने भी पिछले दिनों संकेत दिया है कि संसद और विधानमंडलों से दागी व्यक्तियों को बाहर रखने के लिये एक नया कानून बनाया जायेगा।
विधि एवं न्याय मंत्री कपिल सिब्बल चाहते हैं कि हत्या, बलात्कार और अपहरण जैसे कम से कम सात साल की सजा वाले गंभीर अपराधों के आरोपियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखा जाये। माना जा रहा है कि इस संशोधन विधेयक का मसौदा तैयार है और इसे शीघ्र ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष विचारार्थ रखा जायेगा। यह विचार अच्छा है लेकिन इस विषय के साथ जुडी कुछ भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है।

निर्वाचन आयोग ने भी हाल ही में उच्चतम न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में कहा है कि ऐसे व्य क्तियों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करने के प्रस्ताव पर विचार किया जाये जिनके मामले में अदालत ने आरोपों और साक्ष्यों की न्यायिक समीक्षा के बाद पहली नजर में अभियोग निर्धारित करके मुकदमा चलाने का निश्च य किया है और दोषी पाये जाने की सिथति में उसे कम से कम पांच साल की सजा हो सकती है।

जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा आठ के अनुसार कतिपय अपराधों के लिये अदालत द्वारा दोषी ठहराए गये और कम से कम दो साल की सजा पाने वाले व्येक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य हैं। यह अयोग्यता ऐसे व्य क्ति की रिहार्इ होने की तारीख से छह साल तक प्रभावी रहती है।
धारा आठ में पहले से ही उन अपराधों का विस्तार से उल्लेख है जिसके लिये दोषी पाये जाने और कम से कम दो साल की कैद की सजा होने पर ऐसा व्याक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य होता है। इसमें सभी गंभीर किस्म के अपराध शामिल हैं।

इस धारा के दायरे में भारतीय दंड संहिता के अतंर्गत आने वाले कर्इ अपराधों को शामिल किया गया है। मसलन इसकी धारा 153-ए के तहत धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच सौहार्द बिगाड़ने के अपराध, धारा 171-र्इ के तहत रिश्व तखोरी, धारा 171-एफ के तहत चुनाव में फर्जीवाडे़ के अपराध, धारा 376 के तहत बलात्कार और यौन शोषण संबंधी अपराध, धारा 498-ए के तहत स्त्री के प्रति पति या उसके रिश्ते दारों के क्रूरता के अपराध, धारा 505 :2: या :3:  के तहत किसी धार्मिक स्थल या धार्मिक कार्यों के लिये एकत्र समूह में विभिन्न वर्गो में कटुता, घृणा या वैमनस्य पैदा करने वाले बयान देने से संबंधी अपराध के लिये दोषी ठहराये जाने की तिथि से छह साल तक ऐसा व्यरक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य होता है।

इसी तरह, नागरिक अधिकार संरक्षण कानून के तहत अस्पृश्यनता का प्रचार और आचरण करने के कारण उत्पन्न निर्योग्यता लागू करने के लिये दंडित होने पर, सीमा शुल्क कानून धारा 11 के तहत प्रतिबंधित सामान के आयात-निर्यात के अपराध के लिये दोषी, विधि विरूद्ध क्रियाकलाप निवारण कानून की धारा 10 से 12 के अतंर्गत गैरकानूनी घोषित किसी संगठन के लिये धन संग्रह या किसी अधिसूचित क्षेत्र के बारे में किसी आदेश के उल्लंघन से जुड़े अपराध, विदेशी मुद्रा विनियमन कानून, स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ कानून, टाडा कानून, 1987 की धारा 3 से छह के प्रदत्त अपराध, धार्मिक संस्था दुरूपयोग निवारण कानून की धारा 7 या उपासना स्थल विशेष प्रावधान कानून के तहत धार्मिक स्थल का स्वरूप बदलने के अपराध, जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 125 के तहत चुनाव के बारे मे विभिन्न वर्गो में वैमनस्य पैदा करने या धारा 135 के तहत मतदान केन्द्र से मतपत्र बाहर ले जाने, धारा 135-ए के तहत मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने या धारा 136 के तहत कपटपूर्ण तरीके से नामांकन पत्र खराब करने या नष्ट करने के अपराध, राष्ट्र गौरव अपमान कानून के तहत राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान या देश के संविधान के अपमान के अपराध, सती निवारण कानून, भ्रष्टाचार निवारण कानून या आतंकवाद निवारण कानून 2002 के तहत अपराध में दोषी ठहराये जाने को भी अयोग्यता के दायरे में शामिल किया गया है।

अब चूंकि उन व्यठक्तियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने पर विचार हो रहा है जिनके खिलाफ गंभीर अपराधों में अदालत अभियोग निर्धारित कर चुकी है और अगर सरकार ऐसे व्य क्तियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखना चाहती है तो इसके लिये जनप्रतिनिधित्व कानून में अपेक्षित संशोधन करके इसकी धारा 8 में ही प्रावधान किया जा सकता है।

यह स्पष्ट करना भी उचित होगा कि यदि अदालत में निर्धारित अभियोग निर्धारित निरस्त कराने के लिये किसी अन्य अदालत में अपील लंबित है तो ऐसी  सिथति में कोर्इ सांसद या विधायक या आम नागरिक चुनाव लड़ने के अयोग्य होगा या नहीं।

देश की राजनीति और संसद तथा विधान मंडलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों से मुक्त कराने के लिये कोर्इ भी कानून बनाते वक्त इसका दुरूपयोग रोकने की ओर भी ध्यान देने की आवश्यसकता है। इस समय राज्यों में अलग अलग दलों की सरकारें हैं और राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के कारण विरोधियों को चुनावी मैदान से दूर रखने के लिये इस तरह के किसी भी कानूनी प्रावधान के दुरूपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय पहले ही दो साल या इससे अधिक की सजा पाने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों को संरक्षण प्रदान करने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8:4: को निरस्त कर चुका है। इस धारा के निरस्त होने के कारण कम से कम दो संसद सदस्यों की सदस्यता भी खत्म हो चुकी है।

दूसरी ओर, पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत में कैद व्यकित को चुनाव लड़ने से वंचित करने संबंधी उच्चतम न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न स्थिति का निराकरण करते हुये संसद ने पहले ही जनप्रतिनिधित्व कानून में अपेक्षित संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के बाद हिरासत के दौरान जेल में बंद व्यपक्ति को एक बार फिर चुनाव लड़ने की पात्रता मिल गयी है।

देश की राजनीति को धन बल और बाहुबल से मुक्त कराने की दिशा में निर्वाचन आयोग लंबे समय से प्रयत्नशील है और समय समय पर उच्चतम न्यायालय की महत्वपूर्ण न्यायिक व्यवस्थाओं ने चुनाव सुधारों को गति प्रदान करने में काफी हद तक अहम भूमिका निभार्इ है।


PIB

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर विश्व के छह प्रमुख देशों के साथ समझौता

ईरान के साथ उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर विश्व के छह प्रमुख देशों- अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ने एक अतंरिम समझौते पर 24 नवंबर 2013 को हस्ताक्षर किए. इस समझौते पर छह देशों की मुख्य वार्ताकार कैथरीन मैरी एश्टन और ईरान के विदेशमंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ के मध्य संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय जिनेवा में हस्ताक्षर किये गए. जिनेवा में चार दिनों तक चली वार्ता के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस) व जर्मनी (पी5 प्लस 1) के प्रतिनिधि इस समझौते पर पहुंचे. इस समझौते की घोषणा यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख कैथरीन एश्टन ने की.

समझौते के  मुख्य बिंदु

समझौते के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं.

ईरान को यूरेनियम संवर्द्धन के स्तर को पॉंच फीसदी तक सीमित रखना.
अब तक (समझौता होने तक) संवर्द्धित बीस फीसदी यूरेनियम को निष्क्रिय करना.
3.5 फीसदी संवर्द्धित यूरेनियम के भंडार को आगे बढ़ाने पर रोक
नए एल्ट्रा सेंट्रीफ्यूजेस को प्राप्त करने पर रोक
अरक (गुरू जल, भारी जल) संयंत्र को ईंधन से आगे विकसित करने पर रोक.
ईरान के परमाणु संयंत्रों पर आईएईए की देखरेख में प्रतिदिन निगरानी होना. 
ईरान को कई क्षेत्रों में सात अरब अमेरिकी डॉलर के आर्थिक प्रतिबंधों से राहत.
छह महीने तक ईरान के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध नहीं लगाना.
ईरान को तेल बेचने की इजाजत.
छह महीने तक ईरान पर नया प्रतिबंध नहीं.

ई 3+3 और ईरान

परमाणु समझौते को लेकर ईरान के साथ विश्व के छह प्रमुख देशों ने काम किया. इनमें शामिल ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस यूरोपीय यूनियन का हिस्सा हैं, इसलिए उनको ई3 का नाम दिया गया. इसमें शामिल शेष तीन अमेरिका, रूस और चीन हैं. इन तीनों को +3 कहा गया.

पी5 प्लस 1


कुछ देशों ने इस समझौते को पी 5+1 की संज्ञा दी हैं. पी5, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देश-अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस हैं जबकि प्लस 1 जर्मनी है 

रविवार, 24 नवंबर 2013

महिलाओं का अपना बैंक

भारतीय महिला बैंक महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह औरतों को आत्मनिर्भर बनाने के साथ देश के आर्थिक विकास में उनकी भागीदारी बढ़ाएगा।

मंगलवार को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुंबई में इसकी पहली शाखा का उद्घाटन किया। गौरतलब है कि इस बार के आम बजट में वित्त मंत्री ने महिला बैंक का प्रस्ताव रखा था और इसके लिए 1000 करोड़ रुपये की पूंजी रखी गई थी। फिलहाल बैंक की 7 ब्रांचें हैं, पर अगले छह महीने में इसकी 20 शाखाएं काम करने लगेंगी।

यह बैंक खोले जाने के पीछे मूल मकसद है महिलाओं को छोटे-छोटे उद्यम के लिए आसान शर्तों पर कर्ज देना। यह एक विडंबना ही है कि एक तरफ तो कई बड़े बैंकों में टॉप लेवल पर महिलाएं बैठी हैं, पर देश की एक औसत स्त्री को किसी बैंक में खाता खुलवाने के लिए भी दस बार सोचना पड़ता है। एक तो सामाजिक परिस्थितियां उनके अनुकूल नहीं हैं, दूसरे व्यवस्थागत कमियां भी हैं।
विश्व बैंक की ग्लोबल फाइनेंशल इनक्लूजन डेटाबेस स्टडी के मुताबिक भारत में केवल 26 प्रतिशत महिलाओं का किसी वित्तीय संस्था में औपचारिक खाता है। यह वैश्विक औसत 47 प्रतिशत से कम है, यहां तक कि विकासशील देशों के 37 प्रतिशत के मुकाबले भी कम है। अधिकांश बैंक स्त्रियों को ऋ ण देने में आनाकानी करते हैं। इसकी एक वजह यह है कि बैंक कर्ज के बदले कुछ संपत्ति गिरवी रखना चाहते हैं, लेकिन आमतौर पर औरतों के पास संपत्ति नहीं होती। या घर की संपत्ति बंधक रखने का फैसला उनके हाथ में नहीं होता।


भारतीय महिला बैंक की शुरुआत इस तरह की समस्याओं को दूर करने के लिए ही की गई है। इस बैंक से अब महिलाओं को मनपसंद किचन बनवाने से लेकर डे-केयर सेंटर खोलने जैसे कारोबार तक के लिए भी कर्ज मिल जाएगा। कमजोर वर्ग की महिलाओं पर बैंक खासतौर से ध्यान देगा। चूंकि बैंक की कर्मचारी भी महिलाएं ही होंगी, इसलिए कर्ज लेने या दूसरे काम के लिए आने वाली औरतें खुद को यहां सहज महसूस करेंगी। हालांकि इस बैंक की असली परीक्षा तब होगी जब गांवों में इसकी शाखाएं खुलेंगी। औरतें यहां तक पहुंच सकें, इसके लिए इसका प्रचार भी जरूरी है।   

कैनेडी की हत्या के 50 साल

महात्मा गांधी की शहादत के बाद वैश्विक राजनीति में यह संभवत: सबसे अधिक चर्चित घटना थी। आज से 50 वर्ष पूर्व 22 नवम्बर 1963 को अमरीकी राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी की हत्या ने विश्व को झकझोर कर रख दिया था। इससे 15 वर्ष पूर्व नाथूराम गोडसे द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की त्रासद घटना ने विश्व को गमगीन कर दिया था। गोडसे ने अपने अपराध को कबूल लिया था और उसके पीछे के षडयंत्र को उजागर भी कर दिया था, उसे फांसी की सजा दी गई थी। जबकि कैनेडी के हत्यारे आसवल्ड पर मुकदमा भी चलाया नहींजा सका। कैनेडी की हत्या के महज 48 घंटों के भीतर एक व्यक्ति ने उसकी हत्या कर दी और अमरीका में टीवी दर्शकों ने इस दृश्य को साक्षात देखा। खबरों व घटनाओं के टीवी प्रसारण की तब अमरीका में शुरुआत ही हुई थी। अमरीका के टीवी चैनलों में कैनेडी की हत्या के पचास साल पूरे होने पर तरह-तरह के कार्यक्रम प्रसारित हो रहे हैं। ऐसे में एक चैनल सीबीएस न्यूज का मानना है कि कैनेडी की हत्या का पल अमरीकी न्यूज चैनलों के लिए परिवर्तनकारी साबित हुआ है। एक राष्ट्रपति की हत्या के साथ जीवंत प्रसारण की शुरुआत हुई। अमरीका ने एक राष्ट्रीय त्रासदी को साझा किया। टीवी के कारण अमरीकी जनता कैनेडी व उनके परिवार को थोड़ा और निकट से समझने लगी। इसके पहले के राष्ट्रपतियों के साथ ऐसी भावनात्मक निकटता नहीं थी।

कहा जाता है कि कैनेडी का हत्यारा टैक्सास स्कूल की छठवींमंजिल पर था, जब उसने कैनेडी पर गोली चलाई। लेकिन इतिहास में इस उलझे हुए प्रश्न का जवाब  नहींमिल पाया कि क्या ली हार्वे आसवल्ड ही कैनेडी का असली हत्यारा था? और अगर ऐसा है तो क्या हत्या उसने अकेले के दम पर की या वह किसी बड़े षडयंत्र का हिस्सा था? क्या उस बिल्डिंग में एक से अधिक हत्यारे मौजूद थे? इस त्रासदी की जांच करने वाले वारेन कमीशन ने सभी तथ्यों व सूबतों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि आसवल्ड ही कैनेडी का हत्यारा था। पर पुलिस द्वारा गिरफ्त में लिए जाने के बाद उससे जो पूछताछ हुई, उसमें उसने अपने गुनाह को कबूल नहींकिया। फिर डलास शहर में एक जेल से दूसरे जेल ले जाने के दौरान एक नाइट क्लब के मालिक जैक रूबी ने उसकी हत्या कर दी। इस घटना से समूचे परिदृश्य में संदेह और गहरा गया। क्या रूबी कैनडी की हत्या के षडयंत्र में सहभागी था और क्या इसी वजह से उसने आसवल्ड की हत्या कर दी, ताकि सारे सबूत नष्ट किए जा सकें। खबरों के मुताबिक गिरफ्तारी के बाद रूबी का कहना था कि ऐसा करके वह जनता की नजरों के सामने डलास शहर के प्रायश्चित में मदद करना चाहता था और साथ ही आसवल्ड की हत्या से श्रीमती कैनेडी को मुकदमे की कार्रवाई में आने की परेशानी से मुक्ति मिलती।

डलास में ज्यूरी ने जैक रूबी को आसवल्ड की हत्या का दोषी पाया और उसे मृत्युदंड दिया गया। रूबी ने इस सुनवाई व सजा के खिलाफ अपील की और उसे नए सिरे से सुनवाई की अनुमति मिली। इधर सुनवाई की तारीखें तय हुईं और उधर जैक रूबी बीमार पड़ गया। जनवरी 1967 में उसकी फेफड़े के कैंसर के कारण मौत हो गई।

खबरों के मुताबिक 24 वर्षीय आसवल्ड वामपंथी विचारों का था। फेयर प्ले फॉर क्यूबा कमेटी का वह सक्रिय सदस्य था। सोवियत संघ व क्यूबा के फिदेल कास्त्रो का वह प्रशंसक था और कुछ समय रूस में रह चुका था। इन सबसे यह संदेह भी होता है कि कहींइस हत्या के पीछे शीतयुध्द की बढ़ती कड़वाहट तो जिम्मेदार नहींथी। सीबीएस न्यूज द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक 61 प्रतिशत अमरीकी यह मानते हैं कि आसवल्ड ने अकेले इस हत्या को अंजाम नहीं दिया।

भारत में इस हत्या से शोक की लहर दौड़ गई थी। 46 वर्षीय युवा, आकर्षक राष्ट्रपति कैनेडी, उनकी पत्नी जैकलीन, दो सुंदर बच्चे 3 साल का जान व 6 साल की कैरोलीन से भारत के पाठक परिचित थे। मार्च 1962 में ही जैकलीन भारत यात्रा पर आयी थींऔर नेताओं व आम जनता के बीच खूब लोकप्रिय हुई थीं। कैरोलीन अब 56 साल की हैं और हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें जापान में राजदूत नियुक्त किया है।

भारत के युवा कैनेडी से खासे प्रभावित थे। उनका प्रसिध्द कथन कि- ये मत पूछो कि देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है, पूछो कि तुम देश के लिए क्या कर सकते हो। आज भी कक्षाओं में, भाषणों में उध्दृत किया जाता है। भारत के नेता भी कैनेडी का सम्मान करते थे। राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू व सी.राजगोपालाचारी (राजाजी) आदि ने उनकी हत्या के बाद मार्मिक शोक संदेश वाशिंगटन भेजे। पं.नेहरू की बहन और संरा में राजदूत विजयलक्ष्मी पंडित ने कैनेडी के अंतिम संस्कार में भारतीय दल का प्रतिनिधित्व किया था।

कैनेडी के मन में भारत, यहां की परंपरा व संस्कृति के प्रति बेहद सम्मान था। वे खुद यहां कभी नहींआए, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी को कुछ दिनों के लिए यहां भेजा था। 1962 में गांधी शांति प्रतिष्ठान के एक दल के मुखिया के रूप में राजाजी अमरीका गए और उन्होंने व्हाइट हाउस में जान एफ कैनेडी से मुलाकात की। उन्होंने परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाने के लिए कैनेडी को राजी करवा लिया था। उन्होंने कहा कि अमरीका को परमाणु परीक्षण बंद करने चाहिए या कम करने चाहिए क्योंकि इससे पर्यावरण पर खतरा बढ़ रहा है। यह मुलाकात महज 25 मिनट की तय थी, किंतु कैनेडी ने अपने बाकी कार्यक्रम स्थगित कर दिए और बैठक लगभग एक घंटे तक होती रही। बैठक की समाप्ति पर कैनेडी ने राजाजी से कहा कि वे जल्द ही कोई शुभ समाचार उन्हें सुनाएंगे। अर्थात अमरीका परमाणु परीक्षण कम करने और इस संबंध में सोवियत संघ से करार की संभावनाओं पर विचार करेगा।







देशबन्धु

शनिवार, 23 नवंबर 2013

22nd Commonwealth Heads Of Government Meeting (CHOGM) began in Colombo, Sri Lanka

The 22nd Commonwealth Heads of Government Meeting, CHOGM began in Colombo, Sri Lanka on 15 November 2013. The Summit was inaugurated by Prince Charles of England, who is representing Queen Elizabeth at the Commonwealth Summit. The theme for CHOGM 2013 is Growth with Equity; Inclusive Development.

The official symbol for CHOGM is Water lily flower. The logo symbolises the blue water lily (Nil Manel), the national flower of Sri Lanka. The multi coloured petals represent the diversity, liveliness and unity among different Commonwealth countries within a global perspective.

External Affairs Minister Salman Khurshid is represented the India in the 22nd Commonwealth Heads of Government Meeting (CHOGM). This year, CHOGM in Sri Lanka, the first time an Asian country is hosting the summit in 24 years. The last CHOGM Summit (in 2011) was held at Perth, Australia.

About CHOGAM
The Commonwealth Heads of Government Meeting (CHOGM) is held every two years to enable leaders of Commonwealth countries to come together to discuss global and Commonwealth issues, and to decide on collective policies and initiatives.

Every CHOGM is jointly organized by the host country and the Commonwealth Secretariat. These biennial meetings serve as the principal policy and decision-making forum to guide the strategic direction of the association.

Commonwealth leaders have been coming together for discussions since 1949, but the title Commonwealth Heads of Government Meeting was adopted during a session in Singapore in 1971. This specific classification was used to depict the gathering of both presidents and prime ministers in the event.

One unique aspect of the meeting is that the formal opening ceremony and the formal Executive Session are followed by a where leaders meet privately for discussions. With an informal atmosphere, this session allows heads of state to freely and frankly exchange their views on important issues and come to a consensus.

Previous CHOGMs have focused on a range of global issues, including international peace and security, democracy, climate change, multilateral trade issues, good governance, sustainable development, small states, debt management, education, environment, gender equality, health, human rights, information and communication technology, and youth affairs.

The theme of the 2011 CHOGM in Perth, Australia, was Building National Resilience, Building Global Resilience.

About the Commonwealth of Nations

The Commonwealth of Nations is a voluntary association of 53 countries, many of them former territories of the British Empire. It was established in 1949. The head of the Commonwealth is Her Majesty Queen Elizabeth II.

Member countries
Fifty-three countries are members of the Commonwealth. These Countries are from Africa, Asia, the Americas, Europe and the Pacific and are diverse – they are amongst the world’s largest, smallest, richest and poorest countries. Thirty-two of our members are classified as small states – countries with a population size of 1.5million people or less and larger member states that share similar characteristics with them.
Leaders of member countries shape Commonwealth policies and priorities. Every two years, they meet to discuss issues affecting the Commonwealth and the wider world at the Commonwealth Heads of Government Meeting (CHOGM).

All members have an equal say regardless of size or economic stature. This ensures even the smallest member countries have a voice in shaping the Commonwealth.

The last two countries to join The Commonwealth - Rwanda and Mozambique - have no historical ties to the British Empire. Four countries - Nigeria, Zimbabwe, Fiji and Pakistan - have been suspended from the Commonwealth in the past.


The Gambian Government on 2 October 2013 announced that it is pulling out of the Commonwealth with immediate effect.  Gambian, a West African country joined the Commonwealth of Nations in 1965.

भारत और मॉरिशस के बीच समझौते

भारत एवं मॉरिशस के उच्च शिक्षण संस्थानों के आपसी समन्वय को प्रगाढ़ बनाने एवं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में आपसी संबंधो को अधिक मजबूती प्रदान करने के उद्देश्य से भारत एवं मॉरिशस ने दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये. ये दोनो समझौते केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री की 19-20 नवंबर, 2013 के मध्य मॉरीशस की दो दिवसीय यात्रा के दौरान किये गये. अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने मॉरिशस की ओर से प्रधानमंत्री डॉ. नवीनचंद्र रामगुलामतृतीय शिक्षा, विज्ञान और अनुसंधान मंत्री डॉ. आर. जेठा और शिक्षा तथा मानव संसाधन मंत्री डॉ. वसंत कुमार बनवारी से आधिकारिक वार्ता की.

भारत एवं मॉरिशस के मध्य हुए समझौते

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दोनो देशों के मध्य पहले समझौते के तहत आईआईटी दिल्ली और मॉरीशस अनुसंधान परिषद् दोनो मिलकर मॉरीशस में अंतर्राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अनुसंधान अकादमी संस्थान (आईआईटीआरए) की स्थापना करेंगे.

इसी प्रकार, दूसरे समझौते के तहत भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एआईयू) और मॉरीशस के तृतीय शिक्षा परिषद् (टीईसी) के बीच शैक्षिक योग्यता को आपस में मान्यता प्रदान किया जाना है. दोनों पक्ष उच्च शिक्षा में मॉरीशस और भारत में दी गई उपाधियों को मान्यता प्रदान करेंगे.

दोनो देशों के मध्य हुए अन्य समझौते

1. मॉरिशस में समुद्र-विज्ञान की शिक्षा एवं शोध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) समुद्र-विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा प्रदान करने वाले भारतीय सस्थानों से मॉरिशस के सस्थानों को संबधित स्थापित करने में सहयोग करेगा. संयुक्त शोध कार्यक्रम जैसे कि संसाधन मैपिंग तथा कार्यशालाओं का आयोजन आपसी सहयोग से किया जा सकेगा.

2. पेट्रोलियम इंजीनियरिंग तथा केमिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के विकास हेतु शोधकर्ताओं, अकादमिकों तथा शिक्षकों आदान-प्रदान में सहयोग स्थापित करना.

3. भारत में विकसित ई-लर्निंग तथा मुक्त शिक्षा संसाधनों हेतु मानव संसाधन विकास मत्रालय द्वारा सहयोग प्रदान किया जाना है.


4. साइबर सुरक्षा तथा साइबर प्रणाली के विकास हेतु मॉरिशस विश्वविद्यालय को आईआईटी दिल्ली द्वारा सहयोग दिया जाना है.

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