शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

वर्ष 2013 में विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय की उपलब्‍धियां

केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वर्ष 2013 में की गई पहलकदमियों की प्रमुख विशेषताएं निम्‍नलि‍खि‍त हैं:-

भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्‍दी सत्र में प्रधानमंत्री द्वारा नई विज्ञान, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार नीति जारी। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 3 जनवरी 2013 को भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्‍दी अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में विज्ञान, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार नीति (एसटीआई) 2013 को जारी किया व इसकी पहली प्रति राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को भेंट की। एसटीआई नीति भारतीय वैज्ञानिक समुदाय को सरकारी व निजी दोनों क्षेत्रों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार द्वारा लोगों को तेज, निरंतर व समावेशी विकास पर ध्‍यान दिए जाने पर केंद्रित है। इसी के साथ ही इस नीति में जनसाधारण के लिए एसटीआई व एसटीआई के लिए जनसाधारण, दोनों पर ध्‍यान दिया जाएगा। इसका उद्देश्‍य विज्ञान, प्रौद्योगिकी वह आविष्‍कारों के संपूर्ण लाभों का प्रयोग राष्‍ट्रीय प्रगति व निरंतर और अधिक समावेशी विकास के लिए करना है इससे अनुसंधान व विकास, प्रौद्योगिकी व आविष्‍कार गतिविधियों के क्षेत्र में भागीदारों प्रोत्‍साहन देकर अनुसंधान व विकास पर सकल खर्च को तय करने का प्रावधान है।

इस नीति के अंतर्गत विभिन्‍न हि‍तधारकों के बीच भागीदारी और आविष्‍कारों में निवेश के लिए उद्यमों को प्रोत्‍साहित करके विकसित होने के लिए नवीन क्षमताओं के लिए आर्थिक प्रणाली प्रारंभ हो सकेगी। इस नीति में अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग व गठजोड़ द्वारा एसआईटी गतिविधियों में लैंगिक समानता लाने व चुनिंदा तकनीकी क्षेत्रों में वैश्‍विक प्रतिस्‍पर्धा तक पहुंचने पर भी ध्‍यान दिया गया है। इस नीति का उद्देश्‍य तेज, निरंतर व समावेशी विकास के लिए भारत के महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍यों को ध्‍यान में रखते हुए विज्ञान की प्रमुखता वाले उपायों की खोज, प्रसार और इन्‍हें पूरा करने की गति में तेजी लाना है। एसटीआई नीति का उद्देश्‍य भारत (सृष्‍टि) के लिए उच्‍च तकनीकी नेतृत्‍व वाले एक मजबूत और व्‍यावहारिक विज्ञान, अनुसंधान व आविष्‍कार प्रबंध विकसित करना है।

‘‘नई औषधियों के लिए उन्‍न्‍त रसायन-सूचना विज्ञान’’ के क्षेत्र में सीएसआईआर- ओएसडीडी की रॉयल सोसाईटी ऑफ केमिस्‍ट्री की सहभागिता

तपेदिक व मलेरिया जैसी नजरअंदाज की गई बीमारियों के लिए नए इलाज के अनुसंधान में तेजी लाने में रसायन-सूचना वि‍ज्ञान की महत्‍ता के बारे में जागरूकता पैदा करने और आम उद्देश्‍यों को पूरा करने की प्रक्रिया में भारतवासियों को मिलने वाली आर्थिक, पर्यावरण मुखी व सामाजिक लाभों में अधिकाधिक वृद्धि लाने के लिए वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिसर (सीएसआईआर) ने अपनी ओपन सोर्स ड्रग डिस्‍कवरी (ओएसडीडी) पहलकदमी व रसायन विज्ञानों के आधुनिकीकरण के लिए सबसे बड़ी यूरोपीय संस्‍था रॉयल सोसाईटी ऑफ केमि‍स्‍ट्री (आरएससी) के बीच एक समझौते पर हस्‍ताक्षर किए गए हैं।
   
तीन साल के अवधि वाले इस समझौते का उद्देश्‍य रसायन-सूचना वि‍ज्ञान के विकास के जरिए तपेदिक व मलेरिया के नए, तेजी से काम करने वाले व ज्‍यादा असरदार इलाज का पता लगाने के लक्ष्‍य को पूरा करना है। इस गठजोड़ द्वारा इस सहभागिता से आने वाले सालों में विशेषज्ञों व नेतृत्‍वकारियों के बीच संपर्क बनाने के लिए कार्यशालाओं व सम्‍मेलनों के आयोजन पर विचार किया जाएगा और दवाओं की खोज और उन्‍हें विकसित करने के लिए नि:शुल्‍क प्रयोग वाले सॉफ्वेयर उपकरण विकसित करने के साथ-साथ वास्‍तविक व वर्चुअल सूक्ष्‍म आण्‍विक संरचना के ऑनलाईन निदान का साझा तौर पर निर्माण करने पर ध्‍यान केंद्रित किया गया है। इस भागीदारी का उद्देश्‍य विद्यार्थियों के लिए ओएसडीडी के ई-लर्निंग कार्यक्रम विकसित करना भी है।

केंद्रीय बजट में विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग को 6,275 करोड़ रूपए प्रदान किए गए

आण्‍विक ऊर्जा विभाग को वित्‍त वर्ष 2013-14 के लिए 6,275 करोड़ रूपए दिए गए। इसकी घोषणा 28 फरवरी 2013 को लोकसभा में पेश किए गए केंद्रीय बजट में वित्‍त मंत्री श्री पी चिदंबरम द्वारा की गई। उन्‍होंने कहा कि विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय व प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की मदद से कुछ अद्भुत विज्ञान व प्रौद्योगिकी आविष्‍कार संभव हो सके हैं। उन्‍होंने संस्‍थाओं के लिए 200 करोड़ रूपए की रकम अलग से रखने का प्रस्‍ताव किया है जिससे इन उत्‍पादों का स्‍तर बढ़ाया जा सकेगा। उन्‍होंने अनुदान के प्रबंधन व प्रयोग के लिए राष्‍ट्रीय अभिनव परिषद से एक योजना बनाए जाने के प्रस्‍ताव के बारे में भी जानकारी दी।

विज्ञान व प्रौद्योगिकी को प्रोत्‍साहित करने के लिए उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान के लिए उठाए गए कदम

सरकार ने भारतीय विश्‍वविद्यालयों व संस्‍थानों में विज्ञान व प्रौद्योगिकी से संबंधित उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान को प्रोत्‍साहित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान में कार्यरत है व इसने एरोस्‍पेस, स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल औषधियों, खाद्य व खाद्य प्रसंस्‍करण व ऊर्जा सहित कई क्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) ने कृषि, स्‍वास्‍थ्‍य, पर्यावारण व औद्योगिक विकास के क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी को प्रयोग में लाने संबंधी कई संगठित अनुसंधान कार्यक्रम लागू किए हैं।

विज्ञान व प्रैद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने नैनोसाइंस, नैनोटेक्‍नोलॉजी, ढांचागत जैव-विज्ञान, कम्‍प्‍यूटेशनल और अणु-भौतिकी, ग्रीनकेमिस्‍ट्री, खनन व खनिज इंजिनियरिंग, मॉलीक्‍यूलर पदार्थों, सौर ऊर्जा व जल आदि सहित कई क्षेत्रों में अनुसंधान को प्रोत्‍साहित किया है। डीएसटी के आधारभूत ढांचे के सहायक कार्यक्रमों जैसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (एफआईएसटी) की आधारभूत संरचना को मजबूत बनाने के लिए पूंजी व विश्‍वविद्यालय अनुसंधान और वैज्ञानिक उत्‍कृष्‍टता (टीयूआएसई) के प्रोत्‍साहन, महिला विश्‍वविद्यालयों के लिए नवीन खोजों व उत्‍कृष्‍टता (सीयूआरआईई) और अनुसंधान इन विकास की आधारभूत संरचना (उत्‍तरपूर्व, जम्‍मू-कश्‍मीर, बिहार आदि के लिए) के क्षेत्रीय संतुलन के लिए विशेष पैकेजों ने उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान में अनुसंधान क्षमता को बढाने व इस जोड़ने में कई विश्‍वविद्यलयों व संस्‍थानों की सहायता की है। पिछले वर्षों में वैज्ञानिक प्रकाशनों में विश्‍वविद्यालय क्षेत्र का राष्‍ट्रीय भाग 15 प्रतिशत से बढ़कर 31 प्रतिशत हो गया है। भू-विज्ञान मंत्रालय ने ध्रुवीय विज्ञान, क्रायोस्‍फेयर, वातावरण में परिवर्तन और महासागरीय तकनीक आदि में उच्‍च क्षमता वाले कई अनंसुधानों को प्रोत्‍साहन दिया है।

अंतरि‍क्ष के क्षेत्र में देश में ही तैयार क्रायोजेनि‍क इंजन, हवा में सांस लेने में सहायक प्रॉपलजन, माइक्रोवेब रि‍मोट सेंसिंग, गहरे अंतरिक्ष में सहायक खोजी एंटीना प्रबंध तथा रि‍येक्‍टर प्रौद्योगि‍की जैसी महत्‍वपूर्ण तकनीकों के वि‍कसि‍त होने से वि‍श्‍ववि‍द्यालयों व संस्‍थानों में हो रहे भारतीय अनुसंधान की ध्‍येय केंद्रि‍त दि‍शाओं का प्रदर्शन होता है। उच्‍च स्‍तरीय अनुसंधान को और अधि‍क प्रोत्‍साहि‍त करने के लि‍ए सरकार की कई योजनाएं हैं। 12वीं योजना में अनुसंधान व वि‍कास में नि‍वेश के लि‍ए नि‍जी क्षेत्र को प्रोत्‍साहन देने, अनुसंधान व वि‍कास में सरकारी- नि‍जी सहभागि‍ता को प्रोत्‍साहन व साफ-सुथरी ऊर्जा और वि‍श्‍ववि‍द्यालय क्षेत्र में अनुसंधान के प्रसार को वरीयता दी गई है। उच्‍च गुणवत्‍ता के शोध की संभावना बढाने के लि‍ए सुपर कम्‍प्‍यूटिंग सुवि‍धाओं सहि‍त जैव तकनीक, स्‍वास्‍थ्‍य, खेतीबाड़ी व राष्‍ट्रीय वरीयता के अन्‍य वि‍षयों को लागू करने के लि‍ए व्‍यापक मि‍शन मोड जारी करने के लि‍ए कदम उठाए जा रहे हैं। विज्ञान व प्रौद्योगि‍की के लि‍ए बजट का आवंटन जो 10वीं योजना में 25,301 करोड़ रूपए व 11वीं योजना में 25,304 करोड़ रूपए था वह 12वीं योजना में बढ़कर 1,20,430 करोड़ रूपए हो गया।

डीबीटी द्वारा भारत में बनी रोटावायरस टीके की तीसरे स्‍तर की डॉक्‍टरी जांच के परि‍णामों की घोषणा

भारत सरकार के जैव प्रौद्योगि‍की वि‍भाग के सचि‍व डॉ. के. वि‍जयराघवन द्वारा भारत में नि‍र्मि‍त व वि‍कसि‍त रोटावायरस दवा की तीसरे स्‍तर की डॉक्‍टरी जांच के सकारात्‍मक परि‍णामों की घोषणा की गई। 14 मई 2013 को पत्रकारों को संबोधि‍त करते हुए उन्‍होंने कहा कि‍ जांच में रोटावैक के काफी सकारात्‍मक परि‍णाम सामने आए हैं।

डॉक्‍टरी जांच में यह पहली बार पाया गया है कि‍ सरकारी-नि‍जी सहभागि‍ता के अंतर्गत भारत बॉयोटेक के सहयोग से भारत में वि‍कसि‍त की गई रोटावायरस दवा रोटावैक भारत में संसाधन वि‍हीन क्षेत्रों में काफी कारगर साबि‍त हुई है। रोटावैक से जन्‍म के पहले वर्ष में गंभीर रोटावायरस हैजे से 56 प्रति‍शत बचाव प्राप्‍त हो सका जबकि‍ जन्‍म के दूसरे वर्ष में भी यह सुरक्षा प्रभावी रही है। इसके साथ ही यह दवा कि‍सी भी कारण से हुए हैजे में असरदार साबि‍त हुई है।

श्रीनगर में सीएसआईआर- आईआईआईएम की प्रयोगशाला की शाखा राष्‍ट्र को पुन: समर्पि‍त

केंद्रीय वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की और पृथ्‍वी-वि‍ज्ञान मंत्री श्री एस. जयपाल रेड्डी ने 29 जुलाई 2013 को इंडि‍यन इंस्‍टी‍ट्यूट ऑफ इंटरग्रेटि‍व मेडि‍सीन (सीएसआईआर-आईआईआईएम)सीआईएसआर की प्रयोगशाला को राष्‍ट्र को पुन: समर्पि‍त कि‍या। इस अवसर पर जम्‍मू-कश्‍मीर के मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला, जम्‍मू-कश्‍मीर के वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की राज्‍य मंत्री तथा वि‍ज्ञान व औद्योगि‍क अनुसंधान परि‍षद (सीएसआईआर) और आईआईआईएम के वरि‍ष्‍ठ अधि‍कारी उपस्‍थि‍त थे।

उद्योग जगत और सरकार की संयुक्‍त समि‍ति‍ द्वारा अनुसंधान और वि‍कास के क्षेत्र में नि‍जी क्षेत्र के नि‍वेश को प्रोत्‍साहि‍त करने के बारे में डीएसटी-सीआईआई श्‍वेत पत्र

वि‍ज्ञान एवं प्रौद्योगि‍की वि‍भाग डीएसटी और भारतीय उद्योग संघ (सीआईआई) द्वारा अनुसंधान व वि‍कास में नि‍वेश में नि‍जी क्षेत्र को प्रोत्‍साहि‍त करने के लि‍ए एक श्‍वेत पत्र जारी कि‍या गया है। केंद्रीय वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की तथा पृथ्‍वी वि‍ज्ञान मंत्री श्री एस. जयपाल रेड्डी इस अवसर पर उपस्‍थि‍त थे।

इस अवसर पर उन्‍होंने कहा कि‍ व्‍यापार उमक्रम आवि‍ष्‍कारों का मुख्‍य स्रोत है। यह ज्‍यादातर देशों में अनुसंधान व वि‍कास गति‍वि‍धि‍यों व इन्‍हें पूंजी प्रदान करने में महत्‍वपूर्ण भूमि‍का नि‍भाते हैं। वैश्‍वि‍क स्‍तर पर प्रति‍स्‍पर्धा में व्‍यापार क्षेत्र को नवीन आवि‍ष्‍कारों की क्षमता को बढाने के लि‍ए इन्‍हें अग्रणी बनाया जा रहा है।

मंत्री महोदय ने कहा कि‍ 12वीं पंचवर्षीय योजना के समाप्‍त होने से पहले अनुसंधान व वि‍कास में सरकारी नि‍वेश (जो कि‍ सरकार व उद्योग प्रत्‍येक का एक प्रति‍शत है) के बराबर नि‍जी क्षेत्र से नि‍वेश को आकर्षि‍त करने पर भारत सरकार काफी जोर दे रही है। मंत्री महोदय ने अनुसंधान व वि‍कास में नि‍जी क्षेत्र को नि‍वेश करने व इस संबंध में इसे सरकारी पूंजी नि‍वेश के बराबर लाने के लि‍ए प्रधानमंत्री द्वारा की गई अपील का उल्‍लेख कि‍या। उन्‍होंने कहा कि‍ इस साल भारतीय वि‍ज्ञान कांग्रेस के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा जारी की गई वि‍ज्ञान, प्रौद्योगि‍की व आवि‍ष्‍कार नीति‍ 2013 अनुसंधान व वि‍कास में नि‍जी क्षेत्र से नि‍वेश आकर्षि‍त करने पर भी जोर देती है। मंत्री महोदय ने भारतवासि‍यों के सार्वजनि‍क हि‍त व सुरक्षा के लि‍ए पीपीपी द्वारा सरकारी क्षेत्र के साथ मि‍लकर काम करने के लि‍ए नि‍जी क्षेत्र का आह्वान कि‍या।

भारत सरकार के वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय और जापान के रि‍केन ने संयुक्‍त अनुसंधान संबंधी पहलों की शुरूआत के लि‍ए सहमति‍ पत्र पर हस्‍ताक्षर कि‍ए

भारत सरकार के वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय (डीबीटी एवं डीएसटी) और जापान की सबसे बड़ी अनुसंधान संस्‍था रि‍केन के बीच जैव-वि‍ज्ञान, जीवन-वि‍ज्ञान व पदार्थ वि‍ज्ञान के क्षेत्रों में संयुक्‍त अनुसंधान कार्यक्रम शुरू करने के लि‍ए 14 सि‍तंबर 2013 को एक सहमति‍ पत्र पर हस्‍ताक्षर कि‍ए गए। जीनोम संबंधी अनुसंधान ने जैव-वि‍ज्ञान, कम्‍प्‍यूटेशनल-वि‍ज्ञान सहि‍त बॉयोइंफोरमेटि‍क्‍स उपकरणों का वि‍कास और सुरक्षा के लि‍ए उपकरणों की खोज (जैसे स्‍पेक्‍ट्रोस्‍कोपी) व साझा हि‍त के अन्‍य क्षेत्र शामि‍ल हैं। सहमति‍ पत्र पर रि‍केन के अध्‍यक्ष प्रोफेसर नोयोरी और वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की वि‍भाग के सचि‍व डॉ. टी. रामासामी और जैव-प्रौद्योगि‍की वि‍भाग (डीएसटी) के सचि‍व डॉ. के. राघवन द्वारा हस्‍ताक्षर कि‍ए गए। इससे रि‍केन-डीबीटी एवं डीएसटी की संयुक्‍त अनुसंधान गति‍वि‍धि‍यां औपचारि‍क रूप से शुरू हो सकेंगी।

इस सहयोग से इन क्षेत्रों में भारत व जापान के बीच वि‍नि‍मय आसान हो सकेगा व सहभागि‍ता प्रोत्‍साहि‍त होगी।

वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय ने इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना के ई-प्रबंधन की शुरूआत की

वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रालय ने भवि‍ष्‍य में इंस्‍पायर पुरस्‍कार के लि‍ए ई-एमआईएएस की नई परि‍योजना जारी की है। इसे केंद्रीय वि‍ज्ञान व सूचना प्रौद्योगि‍की एवं पृथ्‍वी वि‍ज्ञान मंत्री द्वारा 10 अक्‍टूबर 2013 को वि‍ज्ञान व प्रौद्योगि‍की मंत्रायल की इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना के अंतर्गत हो रही तीसरी राष्‍ट्रीय स्‍तर की प्रदर्शनी व परि‍योजना प्रति‍स्‍पर्धाओं के दौरान शुरू कि‍या गया। यह एप्‍लीकेशन सॉफ्टवेयर सभी राज्‍यों/केंद्रशासि‍त प्रदेशों, जि‍लों और स्‍कूलों व तीन केंद्रीय संस्‍थाओं- केंद्रीय वि‍द्यालय, नवोदय वि‍द्यालय स्‍कूलों व सैनि‍क सोसाईटी स्‍कूलों में प्रयोग कि‍ए जाने के लि‍ए तैयार है। सभी संबंधि‍त अधि‍कारि‍यों से अनुरोध है कि‍ वह नए एप्‍लीकेशन सॉफ्टवेयर का प्रयोग करना शुरू करें और वि‍भि‍न्‍न स्‍तरों पर प्रति‍योगि‍ताएं आयोजि‍त करने के लि‍ए पुरूस्‍कारों व पूंजी के लि‍ए ऑनलाइन प्रस्‍ताव भेजें।

ई-एमआईएएस क्‍या है


इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना के अंतर्गत लाखों की संख्‍या में नामांकनों में से पुरस्‍कृत कि‍ए जाने वाले वि‍द्यार्थि‍यों का चयन कि‍या जाता है। सूचना व प्रौद्योगि‍की वि‍भाग (डीएसटी) द्वारा पूरी इंस्‍पायर पुरस्‍कार योजना का अत्‍याधुनि‍क सूचना-प्रौद्योगि‍की का प्रयोग करते हुए ई-प्रबंधन करने की योजना है जि‍ससे देश भर में स्‍कूलों से नामांकनों की ई-फाईलिंग हो सकेगी, योजना के मानदंडों के अनुसार सूचना-प्रौद्योगि‍की के साथ ही जि‍ला और राज्‍य के अधि‍करि‍यों द्वारा इसकी प्रक्रि‍या, बैंकों को चुनिंदा वि‍द्यार्थि‍यों का वि‍वरण भेजने, पुरस्‍कार राशि‍ को पुरस्‍कार वि‍जेताओं के खाते में जमा करना अथवा बैंकों द्वारा इंस्‍पायर पुरस्‍कार वारंट तैयार करना और चुने हुए पुरस्‍कार वि‍जेताओं ऐसी संबंधि‍त गति‍वि‍धि‍यों के लि‍ए उन्‍हें भेजना भी संभव हो सकेगा।      

2013 के दौरान अंतरिक्ष विभाग की उपलब्धियां

वर्ष 2013 के दौरान केन्द्रीय पृथ्‍वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा की गई पहल की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:-

अंतरिक्ष मिशन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 12वी पंचवर्षीय योजना,    2012-17 के दौरान 58 अंतरिक्ष मिशनों के संचालन की योजना प्रस्‍तुत की हैं। तदनुसार, अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बजट योजना में 12वी पंचवर्षीय योजना की अवधि में अनंतिम रूप से 39,750 करोड़ रुपये के योजना परिव्‍यय की व्‍यवस्‍था की गई है। चालू वर्ष 2012-13 के दौरान 5,615 करोड़ रुपये की राशि आबंटित की गर्इ।
  
श्री वी.नारायणसामी ने बेंगलुरू के नजदीक इसरो नौवहन केन्‍द्र का उद्घाटन किया

इसरो नौवहन केन्‍द्र की बयालालू में भारतीय गहन अंतरिक्ष नेटवर्क (आईडीएसएन) के परिसर में स्‍थापना की गई है। यह बेंगलुरू से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर है। इसरो नौवहन केन्‍द्र का उद्घाटन 28 मई को प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्‍यमंत्री श्री वी.नारायणसामी ने किया। यह केन्‍द्र भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) का महत्‍वपूर्ण हिस्सा है। यह एक स्‍वतंत्र नौवहन उपग्रह प्रणाली है, जिसे भारत द्वारा विकसित किया जा रहा है।

जीसैट-15 संचार उपग्रह और प्रक्षेपण सुविधाएं 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 28 जून, 2013 को प्रक्षेपण सेवाओं तथा बीमा सहित जीसैट-15 संचार उपग्रह परियोजना के एवं प्रक्षेपण सेवाओं तथा बीमा के प्रस्‍ताव को मंजूरी दी।

आकस्मिक स्थितियों का सामना करने तथा वर्तमान उपयोगकर्ताओं की सेवाओं की रक्षा करने के लिए अंतरिक्ष कक्षा में अतिरिक्‍त सुविधा उपलब्‍ध कराने की दृष्टि से जीसैट-15 का निर्माण इसरो के प्रयासों का एक भाग रहा है। उपग्रह से अपेक्षित क्षमता प्राप्‍त होगी, क्‍यू बैण्‍ड क्षमता में बढ़ोतरी होगी और कक्षा में जीवन गतिविधियों को सुरक्षा मिलेगी। इससे देश में नागरिक उड्डयन सेवाओं को भी लाभ मिलेगा। 9 परिचालित इनसैट\जीसैट उपग्रह इस समय करीब 195 ट्रांसपोंडरों को विभिन्‍न फ्रिक्‍वेंसी बैण्‍ड उपलब्ध‍ करा रहे हैं। जीसैट-15 उपग्रह समस्‍त भारतीय मुख्‍य भूमि को कवर करेगा। सभी हे‍रिटेज सिद्ध बस प्रणालियों का उपयोग 18 माह में उपग्रह का निर्माण करने में किया जायेगा। यह उपग्रह जीसैट-8 जैसा होगा। प्रक्षेपण सेवाओं समेत परियोजना की कुल लागत 859.5 करोड़ रुपये है।

जीसैट-16 संचार उपग्रह और प्रक्षेपण सेवाएं

केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने 28 जून, 2013 को प्रक्षेपण सेवाओं तथा बीमा सहित जीसैट-16 संचार उपग्रह परियोजना के प्रस्‍ताव को भी मंजूरी दी।

यह परियोजना आकस्मिक आवश्‍यकताओं की पूर्ति करेगी और वर्तमान उपयोगकर्ताओं की सेवाओं की सुरक्षा करेगी तथा देश में वर्तमान दूरसंचार, टेलीविजन, वीसैट एवं अन्‍य उपग्रह आधारित सेवाओं को बढ़ावा देगी। नौ परिचालित इनसैट/जीसैट उपग्रह  करीब 195 ट्रांसपोडरों को फिलहाल विभिन्‍न फ्रिक्‍वेंसी  बैंड मुहैया करा रहे हैं। सभी हे‍रिटेज सिद्ध बस प्रणालियों का उपयोग 24 माह में उपग्रह का निर्माण करने में किया जायेगा। यह उपग्रह जीसैट-10 जैसा होगा। प्रक्षेपण सेवाओं समेत परियोजना की कुल लागत 865.50 करोड़ रुपये है।

कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्‍थान में प्रोफेसर सतीश धवन अधिछात्रवृत्ति

अंतरिक्ष विभाग/भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने प्रोफेसर सतीश धवन के सम्‍मान में कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्‍थान, अमरीका की ग्रेजुएट ऐरोस्‍पेस लैब्रॉरटिज में अधिछात्रवृत्ति की शुरूआत की है। प्रो. सतीश धवन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की प्रारंभिक अवधि में 1972 से 1984 तक इसके अध्‍यक्ष थे।

इस अधिछात्रवृत्ति का उद्देश्‍य भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संस्‍थान, तिरूवनन्‍तपुरम के अंतरिक्ष विभाग के एक प्रतिभाशाली स्‍नातक विद्यार्थी को हर साल अकादमी वर्ष 2013-14 के शीतकालीन सत्र से कैलिफोर्निया प्रौद्योगिकी संस्‍थान में अंतरिक्ष इंजीनियरिंग में स्‍नातकोत्‍तर डिग्री प्राप्‍त करने के लिए एक उत्कृष्‍ट अवसर प्रदान करना था। 

भारत के उन्‍नत मौसम उपग्रह इनसैट-3डी का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण

26 जुलाई, 2013 को भारत के मौसम उपग्रह इनसैट-3डी का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। इसे एरियाने-5 (वीए214) प्रक्षेपण यान द्वारा  कोउरू, फ्रैंच गुयाना से प्रक्षेपण किया गया। इसमें उत्‍कृष्‍ट मौसम निगरानी प्रणाली का समावेश है। कार्यक्रम के अनुसार इसे सही समय पर सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।

इसरो द्वारा भारत के पहले नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1ए का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण

आईआरएनएसएस-1ए को 02 जुलाई, 2013 की सुबह सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र, श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण किया गया। यह भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) है। यह पीएसएलवी का 23वां लगातार सफल मिशन रहा। इस मिशन के लिए 'XL'  समाकृति के पीएसएलवी यान का उपयोग किया गया। इससे पहले इसी आकृति के प्रक्षेपण  यान का उपयोग चन्‍द्रयान-1, जीसैट-12 और रीसैट-1 उपग्रहों के प्रक्षेपण में किया गया था।

भारत के उन्‍नत संचार उपग्रह -7 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण 

भारत के उन्‍नत मल्‍टीबैंड संचार उपग्रह जीसैट-7 को 30 अगस्‍त, 2013 को सुबह कोउरू, फ्रैंच गुयाना से एरियाने स्‍पेस के प्रक्षेपण यान एरियने-5 से प्रक्षेपण किया गया।

इनसैट-3डी उपग्रह का भू-समकक्ष कक्षा में सफल स्‍थापन

भारत के उन्‍नत मौसम उपग्रह इनसैट-3डी को 26 जुलाई, 2013 को कोउरू, फ्रैंच गुयाना से प्रक्षेपण सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। 

जीसैट-7 ट्रांसपोडरों का सफलतापूर्वक संचालन

भारत के उन्‍नत मल्‍टीबैंड संचार उपगह जीसैट-7 के सभी 11 संचार ट्रांसपोडरों को (यूएचएफ, एस, सी एवं क्‍यू-बैंड में परिचालित) सफलतापूर्वक संचालित किया गया और इन्‍होंने सामान्‍य तौर पर कार्य किया। जीसैट-7 सही तरह से अपनी निर्धारित स्थिति में पहुंच गया। 

जीसैट-7 उपग्रह भू-समकक्ष कक्षा में स्‍थापित

30 अगस्‍त, 2013 को कोउरू, फ्रैंच गुयाना से लांच किए गये भारत के उन्नत मल्‍टी-बैंड संचार उपग्रह जीसैट-7 को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा गया और तीन बार ऊंचाई बढ़ाने की प्रक्रिया के बाद यह 03 सितम्‍बर, 2013 की सुबह को भूतल से करीब 36,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-समकक्ष कक्षा में स्‍थापित हो गया।

सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र, श्रीहरिकोटा में प्रक्षेपण यान की असेम्‍बली के लिए दूसरा भवन
 
केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने 12 सितम्‍बर, 2013 को सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र, श्रीहरिकोटा में प्रक्षेपण यान की असेम्‍बली के लिए दूसरे भवन के निर्माण की मंजूरी दी। इस पर 363.95 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत आएगी, जिसमें सात करोड़ रुपये का खर्च विदेशी मुद्रा में होगा।

इस दूसरी बिल्डिंग के उपलब्‍ध हो जाने से पीएसएलवी और जीएसएलवी की प्रक्षेपण फ्रीक्वेंसी बढ़ेगी। यह जीएसएलवी एमके-III के एकीकरण के लिए वर्तमान व्‍हीकल असेम्‍बली बिल्डिंग को अतिरिक्‍त सुविधा मुहैया करायेगी । तीसरे प्रक्षेपण पैड तथा भविष्‍य में सामान्‍य यान प्रक्षेपण के लिए भी इससे काफी सुविधा मिलेगी।

मंगलग्रह मिशन का सफलतापूर्वक संचालन

इसरो ने 5 नवम्‍बर 2013 को सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र, श्री हरि‍कोटा से मंगलग्रह मिशन को सफलतापूर्वक संचालित किया।

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

ऊर्जा प्रणाली विकास निधि‍ को चालू करने के लिए योजना

केन्‍द्रीय मंत्रि‍मंडल ने आज ऊर्जा मंत्रालय की ऊर्जा प्रणाली विकास निधि को चालू करने और केन्‍द्रीय विद्युत नियामक आयोग ऊर्जा प्रणाली विकास निधि में दी गई प्रक्रियाओं के आधार पर निधियों को इस्‍तेमाल करने के संबंध में योजना बनाने के प्रस्‍ताव को मंजूरी दी।ऊर्जा प्रणाली विकास निधि को निम्‍नलिखित उद्देश्‍यों के लिए इस्‍तेमाल किया जाएगा:-

  • रणनीतिक रूप से महत्‍वपूर्ण आवश्‍यक पारेषण प्रणाली तैयार करना, जो लोड डिस्‍पैच केन्‍द्रों की रिपोर्ट पर आधारित होगी। इससे अंतर्राज्‍यीय पारेषण प्रणालियों से संकुलन कम करने में मदद मिलेगी।
  • ग्रिड में वोल्‍टेज में सुधार के लिए शंट कैपिसेटर, कंपनसेटर और अन्‍य ऊर्जा जेनरेटरों को लगाया जाएगा।
  • पायलट परियोजनाओं और विशेष सुरक्षा एवं मानक योजनाओं को चलाया जाएगा।
  • संकुलन कम करने के लिए पारेषण और वितरण प्रणालियों को दुरुस्‍त किया जाएगा और उन्‍हें उन्‍नत बनाया जाएगा।
  • तकनीकी अध्‍ययन और क्षमता निर्माण सहित उपरोक्‍त लक्ष्‍यों को आगे बढ़ाने के लिए अन्‍य योजना/परियोजना तैयार की जाएगी।



ऊर्जा प्रणाली विकास निधि तीन महीनों के अंदर चालू हो जाएगी।   

वर्ष 2013 में परमाणु ऊर्जा विभाग की उपलब्धियां

वर्ष 2013 में परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किए गए प्रयासों की मुख्‍य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) ने विकिरण सुरक्षा निदेशालय गठित करने के लिए महाराष्‍ट्र सरकार तथा ओडिशा सरकार के साथ सहमति पत्र पर हस्‍ताक्षर किए। परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) ने राज्‍य स्‍तर पर विकिरण सुरक्षा निदेशालय गठित करने के लिए महाराष्‍ट्र सरकार तथा ओडिशा सरकार के साथ सहमति पत्र पर हस्‍ताक्षर किए। इसका उद्देश्‍य चिकित्‍सा जांच एक्‍सरे सुविधाओं पर विनियामक नियंत्रण को मज़बूत करना है। इस संबंध में सहमति पत्र पर हस्‍ताक्षर किए गए जिसमें सबसे पहले 18 जनवरी 2013 को महाराष्‍ट्र सरकार के लोक स्‍वास्‍थ्‍य विभाग के अपर मुख्‍य सचिव तथा संबंधित राज्‍यों में विकिरण सुरक्षा निदेशालय गठित करने के लिए, दूसरा स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण विभाग  के मुख्‍य सचिव के साथ किया गया।

इसके साथ ही एईआरबी ने कुल 10 राज्‍यों ( केरल, मिज़ोरम, मध्‍य प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, छत्‍तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्‍ट्र और ओडिशा) के साथ सहमति पत्र पर हस्‍ताक्षर किए हैं जिसमें से केरल और मिज़ोरम में विकिरण सुरक्षा निदेशालय पहले से ही कार्य कर रहा है। उत्‍तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश की सरकारें भी जल्‍द ही इस समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर करेंगी।

नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान

परमाणु ऊर्जा विभाग नाभिकीय विज्ञान, अभियंत्रिकी और उन्‍नत गणित के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास  कार्य कर रहा है। अनुसंधान केंद्रों, विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत सहायता प्राप्‍त संस्‍थानों तथा नाभिकीय विज्ञान अनुसंधान बोर्ड (बीआरएनएस) की अतिरिक्‍त सहायता के ज़रिए अनुसंधान और विकास संबंधी गतिविधियां की जाती हैं। विभाग ने 12वीं पंचवर्षीय योजना में नाभिकीय ऊर्जा में अनुसंधान पर ज़ोर देते हुए परियोजनाएं बनाई हैं। 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में अनुसंधान और विकास क्षेत्र  पर व्‍यय के लिए 19,740 करोड़ रूपए उपलब्‍ध कराए गए हैं। पिछले तीन साल में नाभिकीय विज्ञान में अनुसंधान और विकास कार्य के लिए पर्याप्‍त वित्‍तीय सहायता उपलब्‍ध कराई गई है जो कि इस प्रकार है:

              2010-11: 1817.07 करोड़ (वास्‍तविक व्‍यय)
              2011-12: 2512.63 करोड़ (वास्‍तविक व्‍यय)
                     2012-13: 2940.90 करोड़ (स्‍वीकृत योजना खर्च)

परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) की नाभिकीय और विकिरण सुरक्षा नीति

एईआरबी गठित करने संबंधी 15 नवंबर 1983 को राष्‍ट्रपति के आदेशों के अनुरूप एईआरबी के कार्यों में धारा 2(i) के अनुसार विकिरण और औद्योगिक सुरक्षा क्षेत्रों में सुरक्षा नीतियों का विकासतथा  इसके अतिरिक्‍त 2 (iv) के अनुसार अंतरराष्‍ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) और अन्‍य अंतरराष्‍ट्रीय संगठनों द्वारा सुझाए गए सुरक्षा मानदंड पर आधारित मुख्‍य सुरक्षा नीतियों का विकास जिसे भारतीय स्थितियों के अनुरूप अपनाया जा सके, शामिल है। तदानुसार, एईआरबी द्वारा विनियमित की जाने वानी सुरक्षा नीतियों को एईआरबी के उच्‍च स्‍तरीय दस्‍तावेज़ों, परमाणु ऊर्जा (विकिरण संरक्षण) नियम, 2004, मिशन स्‍टेटमेंट और एईआरबी के विभिन्‍न नियामवली में शामिल किया गया है। इन दस्‍तावेज़ों में उपयुक्‍त गतिविधि/ क्षेत्र पर लागू होने वाली नीतियों, सिद्धांतों तथा/या सुरक्षा उद्देश्‍यों के साथ इन्‍हें पूरा करने के लिए विशेष विनियामक आवश्‍यकताओं को शामिल किया गया है।

यह सिद्धांत और उद्देश्‍य देश में नाभिकीय सुरक्षा के लिए एईआरबी की व्‍यापक नीति को दर्शाते हैं। एईआरबी पहले ही 141 विनियामक दस्‍तावेज़ों को प्रकाशित कर चुका है। विशेष विनियामक दस्‍तावेज़ बनाने को प्राथमिकता देने के संबंध में एईआरबी का दृष्टिकोण गतिशील और अविरत है। 27 शेष दस्‍तोवेज़ों को एईआरबी द्वारा स्‍थापित विकास ढांचा संबंधी दस्‍तावेज़ में शामिल किया गया है।

कुडनकुलम इकाई-1 से बिजली उत्‍पादन

कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना (केकेएनपीपी) की पहली इकाई 22 अक्‍तूबर 2013 को चालू हो गई और इससे अब 160 मेगावॉट बिजली का उत्‍पादन किया जा रहा है। यह जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्‍य मंत्री श्री वी. नारायण सामी ने नई दिल्‍ली में दी। उन्‍होंने कहा कि इसे विभिन्‍न चरणों में 500 मेगावॉट, 750 मेगावॉट और फिर 1000 मेगावॉट तक बढ़ाया जाएगा। इसके लिए हर चरण में विभिन्‍न परीक्षण किए गए और तकनीकी मानदंडों को जांचा गया है। प्रत्‍येक चरण में इन परीक्षणों के आधार पर तथा परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) द्वारा मंज़ूरी मिलने पर आगे के चरणों के लिए कार्य किया गया है।

कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना की इकाई-1 से 1000 मेगावॉट बिजली के उत्‍पादन के साथ ही देश में इस तरह से पैदा होने वाली बिजली का योगदान 4780 मेगावॉट से बढ़कर 5780 मेगावॉट हो जाएगा।


कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना इकाई-1 देश के पावर ग्रिड से जुड़ने वाला न्‍यूकलियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) का 20वां परमाणु बिजली घर है।

बुधवार, 1 जनवरी 2014

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की 2013 के दौरान उपलब्धियां

वर्ष 2013 के दौरान केन्द्रीय भू-विज्ञान मंत्रालय द्वारा किए गए प्रयासों की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-

केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा भू-विज्ञान मंत्री श्री एस. जयपाल रेड्डी ने नई दिल्ली में भारतीय मौसम-विज्ञान विभाग के 138वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में- मोबाइल पर भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की मौसम सेवाएं - योजना का उद्घाटन किया। भू-विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. शैलेश नायक, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के उप-महाप्रबंधक डॉ. एल.एस. राठौर और अन्य वरिष्ठ अधिकारी इस अवसर पर मौजूद थे।

मौसम की स्थान विशिष्ट तात्कालिक सूचना

भू-विज्ञान मंत्रालय के भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने देश भर में भू-प्रणाली विज्ञान संगठन के माध्यम से स्थान विशिष्ट तात्कालिक मौसम सेवाओं की शुरूआत की है। इसमें वैब-आधारित सूचनाएं हैं। इस सेवा योजना के अंतर्गत, जो इस समय 117 शहरी केन्द्रों में प्रयोग के तौर पर चलाई जा रही है, गरज के साथ छींटे पड़ने, भारी वर्षा, हवा के कम दबाव आदि के बारे में मौसम की तात्कालिक जानकारी दी जाती है। सभी संभव साधनों से मौसम की गंभीरता के मूल कारणों और परि‍वर्तन आदि‍ की जांच की जाती है। इसमें उपग्रह से वायु दवाब के बारे में प्राप्‍त सूचना, तापमान, नमी आदि‍ की जानकारी के आधार पर मौसम की भविष्‍यवाणी की जाती है। इससे मौसम की गहनता का अनुमान लगाकर चेतावनि‍यां दी जाती है।

भूवि‍ज्ञान और संबंद्ध वि‍षयों में अध्‍ययन के लि‍ए भारतीय अनुसंधानकर्ताओं से प्रस्‍ताव आमंत्रि‍त

भूवि‍ज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत भू-प्रणाली वि‍ज्ञान संगठन ने राष्‍ट्रीय अनुसंधान संस्‍थानों, वि‍श्‍ववि‍द्यालयों और अन्‍य सरकारी संगठनों में काम करने वाले भारतीय अनुसंधानकर्ताओं से भूवि‍ज्ञान, भू-रसायन, पेट्रोग्राफी, जि‍योक्रोनोलॉजी, पालेओ-मैगनेटीज्म, हाइड्रो जि‍योओलॉजी और अन्‍य संबंद्ध वि‍षयों में गहन अध्‍ययन करने के लि‍ए प्रस्‍ताव आमंत्रि‍त कि‍ए हैं। महाराष्‍ट्र के कोयना वार्ना क्षेत्र में आरटीएस की प्रक्रि‍या को समझने के लि‍ए हैदराबाद के राष्‍ट्रीय भू-भौति‍की अनुसंधान संस्‍थान के साथ मि‍लकर भूवि‍ज्ञान मंत्रालय के भू-प्रणाली वि‍ज्ञान संगठन ने एक बड़ा वैज्ञानि‍क कार्यक्रम शुरू कि‍या है, जि‍सके संदर्भ में ये प्रस्‍ताव मांगे गए हैं। इस कार्यक्रम का मुख्‍य पहलु यह है कि‍ शुरू में कोयना में लगभग 1500 मीटर की गहराई पर चार बोरहोल खोदे जाएंगे। पहला बोरहोल खोदा जा चुका है और आगे का कार्य चल रहा है।  बोरहोल के तल से प्राप्‍त पदार्थों से कई प्रकार के वैज्ञानि‍क परीक्षण कि‍ए जाएंगे।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 2013 में दक्षिण-पश्‍चि‍मी मानसून की मौसमी वर्षा की भवि‍ष्‍यवाणी की

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने भवि‍ष्‍यवाणी की थी कि‍ 2013 के दौरान देश में जून से सि‍तंबर तक 96-104 प्रति‍शत सामान्‍य दक्षिण-पश्‍चि‍मी मानसून की मौसमी वर्षा होगी। श्री जयपाल रेड्डी ने 25 अप्रैल 2013 को एक संवाददाता सम्‍मेलन में इसकी घोषणा की थी। यह भवि‍ष्‍यवाणी सही नि‍कली।
एल. एस. राठौर वि‍श्‍व मौसम वि‍ज्ञान संगठन के सदस्‍य चुने गए

मौसम विज्ञान के उप-महाप्रबंधक और वि‍श्‍व मौसम वि‍ज्ञान संगठन में भारत के स्‍थायी प्रति‍नि‍धि‍ डॉ. लक्ष्‍मण सिंह राठौर संगठन की कार्यकारी परि‍षद की 65वीं बैठक में परि‍षद के सदस्‍य चुने गए। डॉ. लक्ष्‍मण सिंह राठौर अंतर-सरकारी बोर्ड के सह- उपाध्‍यक्ष चुने गए।

डॉ. लक्ष्‍मण सिंह राठौर मौसम सेवाओं के अंतर-सरकारी बोर्ड के सह- उपाध्‍यक्ष चुने गए

मौसम विज्ञान के उप-महाप्रबंधक और वि‍श्‍व मौसम वि‍ज्ञान संगठन में भारत के स्‍थायी प्रति‍नि‍धि‍ डॉ. लक्ष्‍मण सिंह राठौर को 1-5 जुलाई 2013 तक जेनेवा में हुई मौसम सेवाओं के अंतर-सरकारी बोर्ड की पहली बैठक में इसका सह-उपाध्‍यक्ष चुना गया। वे हाल में वि‍श्‍व मौसम वि‍ज्ञान संगठन की कार्यकारी परि‍षद के सदस्‍य भी चुने गए थे। इससे पहले उन्‍होंने कृषि‍ मौसम वि‍ज्ञान आयोग के उपाध्‍यक्ष के रूप में काम कि‍या। नार्वे मौसम वि‍ज्ञान संस्‍थान के महानि‍देशक एंटन एलि‍यासन अंतर-सरकारी बोर्ड के अध्‍यक्ष चुने गए हैं और दक्षि‍ण अफ्रीका के डॉ. लिंडा माकुलेनी इसके दूसरे सह अध्‍यक्ष हैं।

डॉ. राठौर की नि‍युक्‍ति‍ से भारत जलवायु सेवा के ग्‍लोबल फ्रेमवर्क में महत्‍वपूर्ण भूमि‍का नि‍भा सकेगा। भारत वि‍कासशील देशों के हि‍तों को आगे बढ़ाता रहा है। ग्‍लोबल फ्रेमवर्क का गठन तीसरे वि‍श्‍व जलवायु सम्‍मेलन के बाद हुआ था। इसका उद्देश्‍य मौसम में परि‍वर्तन के खतरों से नि‍पटने के बेहतर प्रबंधन के लि‍ए राष्‍ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्‍वि‍क स्‍तर पर वि‍ज्ञान आधारि‍त जलवायु सूचना और भवि‍ष्‍यवाणी को आयोजना, नीति‍ और कार्यक्रमों में शामि‍ल करना था। ग्‍लोबल फ्रेमवर्क के प्राथमि‍कता वाले चार क्षेत्र हैं- कृषि‍ और खाद्य सुरक्षा, आपदा जोखि‍म में कमी, स्‍वास्‍थ्‍य और जल।

फेलि‍न चक्रवात के बारे में भविष्‍यवाणी


भारतीय मौसम वि‍ज्ञान वि‍भाग में अक्‍टूबर 2013 में  बंगाल की खाड़ी में उठ रहे फेलि‍न चक्रवाती तूफान के बारे में समय-पूर्व स्‍पष्‍ट भवि‍ष्‍यवाणी की थी, जि‍ससे ओडि‍शा और आंध्रप्रदेश के तटवर्ती क्षेत्रों में लाखों लोगों का जीवन बचाने में सहायता मि‍ली।

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