बुधवार, 25 दिसंबर 2013

जल-संसाधन मंत्रालय की वर्ष-2013 की उपलब्धियां

वर्ष-2013 के दौरान जल-संसाधन मंत्रालय द्वारा उठाए गए कदमों की खास-खास बातें निम्‍नलिखित है:-
    
सरकार और रवांडा के बीच जल-संसाधनों के विकास और प्रबंधन संबंधी परस्‍पर सहयोग का समझौता    
भारत और रवांडा ने जल-संसाधन विकास एवं प्रबंधन में परस्‍पर सहयोग के एक समझौता ज्ञापन पर हस्‍ताक्षर किए। इस पर भारत की और से केंद्रीय जल-संसाधन मंत्री श्री हरीश रावत और रवांडा सरकार की तरफ से कृषि एवं पशु संसाधन मंत्री डॉ. (श्रीमती), ऐग्‍नेस एम. कालीबाता ने 23 जनवरी, 2013 को नई दिल्‍ली में हस्‍ताक्षर किए।
    
देशभर के 13 बच्‍चों ने जल संरक्षण पर तृतीय राष्‍ट्रीय चित्रकला प्रतियोगिता में पुरस्‍कार जीते  
देशभर के कुल मिलाकर 13 स्‍कूली बच्‍चों को तृतीय राष्‍ट्रीय चित्रकला प्रतियोगिता में पुरस्‍कार प्रदान किए गए। यह प्रतियोगिता पूसा नई दिल्‍ली के ए. पी. शिंदे सिम्‍पोजियम हॉल, एनएएस परिसर पूसा में 21 जनवरी, को आयोजित की गई। इसका उद्घाटन केंद्रीय जल-संसाधन मंत्री, श्री हरीश रावत ने किया। प्रतियोगिता का आयोजन जल-संसाधन मंत्रालय के केंद्रीय भू-जल बोर्ड ने किया।
    
राष्‍ट्रीय परियोजना निर्माण निगम लिमिटेड की फिर से डिजाइन की गई वेबसाइट का उद्घाटन   
तत्कालीन सचिव, जल-संसाधन मंत्रालय, श्री ध्रुव विजय सिंह ने राष्‍ट्रीय परियोजना निर्माण निगम लिमिटेड की फिर से डिज़ाइन की गई वेबसाइट का 7 जनवरी, 2013 को उद्घाटन किया। यह वेबसाइट भारत सरकार के वेबसाइट मार्ग दर्शक नियमों के अनुसार है और इसकी खास-खास बातें निम्‍नलिखित हैं:-
  • गतिशील विषय प्रबंधन व्‍यवस्‍था
  • वेबसाइट भारत सरकार के वेबसाइट नियमों का पूरी तरह पालन करती है
  • इस वेबसाइट की सुरक्षा की समीक्षा दूर संचार विभाग डीओटी में सूचीबद्ध ऑडिटर ने हैंकिग और अन्‍य सुरक्षा संबंधी मुद्दों को लेकर की है
  • द्विभाषी (अंग्रेजी एवं हिन्‍दी)
  • नवीनतम वेबसाइट डिजाइन टेक्‍नालॉजी


केंद्रीय बजट 2013-14 में उल्लिखित पांच आंतरिक जल मार्गों को राष्‍ट्रीय जल मार्ग घोषित किया गया   
वर्ष 2013-14 के बजट प्रस्‍तावों में पांच आंतरिक जल मार्गों को राष्‍ट्रीय जल मार्ग घोषित किया गया था। इस बात की घोषणा लोक सभा में 28 फरवरी, 2013 को बजट प्रस्‍तावों में की गई। केंद्रीय वित्‍त मंत्री पी. चिदम्‍बरम ने कहा कि असम में लखीपुर से भंगा तक के बरक नदी के हिस्‍से को राष्‍ट्रीय जल मार्ग घोषित करने के लिए जल-संसाधन मंत्रालय एक प्रस्‍ताव लायेगा। इसके लिए तैयारी की जानी है। इन संबंधित जल मार्गों को राष्‍ट्रीय जल मार्ग से जोड़ दिया जाए। 12वीं योजना अवधि में निर्माण कार्यों के लिए पर्याप्‍त आवंटन रखा गया है। इसमें राष्‍ट्रीय राजमार्गों से तलछट हटाने का काम शामिल है। प्रतियोगी बोलियों के जरिए नौका संचालकों का चयन किया जाना है जो इन राष्‍ट्रीय जल मार्गों पर बड़े पैमाने पर माल ढोएंगे। प्रथम परिवहन ठेकेदार को पश्चिम बंगाल में हल्दिया से फरक्‍का तक माल ढोने का ठेका दिया जा चुका है।

जल-संसाधन मंत्रालय ने अंतिम सीडब्‍ल्‍यूडीटी ठेका अधिसूचित किया
जल-संसाधन मंत्रालय ने 5 फरवरी, 2007 के सीडब्‍ल्‍यूडीटी के अंतिम ठेके को 19 फरवरी, 2013 को अधिसूचित कर दिया है। यह कदम उच्‍चतम न्‍यायालय के 4 जनवरी, 2013 की‍ टिप्‍पणी के संदर्भ में उठाया गया है। इस टिप्‍पणी में कहा गया था कि राज्‍य कावेरी जल विवाद ट्रिब्यूनल को अधिसूचित किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं करेंगे।

भारत जल सप्‍ताह-2013 आयोजित
जल-संसाधन मंत्रालय ने 8 से 12 अप्रैल, 2013 को नई दिल्‍ली में जल-संसाधन सप्‍ताह 2013 आयोजित किया। इसका विषय था कुशल जल-प्रबंधन: चुनौतियां और अवसर। इस समारोह के दो प्रमुख घटक थे:- पहला था एक सम्‍मेलन के समक्ष डिसिप्‍लीनरी डॉयलॉग और इसके साथ ही आयोजित की जाने वाली एक प्रदर्शनी जिसमें जल क्षेत्र में इस्‍तेमाल होने वाली टेक्‍नालॉजी दिखाई गई।

भू-जल के दोहन पर नीति
जल-संसाधन मंत्रालय ने भू-जल विकास एवं प्रबंधन को विनियमित एवं नियंत्रित करने के लिए एक आदर्श विधेयक तैयार किया। इसे सभी राज्‍यों/केंद्र शासित प्रदेशों को इसी की तर्ज पर विधेयक तैयार करने के लिए प्रचालित किया गया। अब  तक 14 राज्‍यों ने आवश्‍यक कानून बनाए। इन राज्‍यों के नाम है:- आंध्र प्रदेश, असम बिहार, गोवा, हिमाचल प्रदेश, जम्‍मू कश्‍मीर, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल तथा केंद्र शासित प्रदेश लक्ष्‍द्वीप  पुडुचेरी, चंड़ीगढ़ और दादरा तथा नागर हवेली। भू-जल को दूषित होने से बचाना मुख्‍य रूप से संबंद्ध राज्‍य की जिम्‍मेदारी है। भू-जल संरक्षण के लिए भारत सरकार ने कई तरह के उपाय किए है। इनमें जल गुणवत्‍ता मूल्‍यांकन प्राधिकरण का गठन शामिल है। इसके अलावा भू-जल और सतही जल को प्रदूषण से बचाने की रिपोर्टे डब्‍ल्‍यूक्‍यूएए वेबसाइट पर जनता को देखने के लिए उपलब्‍ध करा दी गई है। भू-जल और सतही जल प्रदूषित होने के प्रमुख स्‍थलों की सूची भी इस प्राधिकरण की वेबसाइट पर है।

जल और मौसम संबंधी आँकड़ों की नीति (2013) जारी
जल-संसाधन  मंत्रालय ने 7 मई, 2013 को जल मौसम संबंधी आँकड़ों की नीति पब्लिक डोमेन पर डालने के लिए जारी की। यह पानी संबंधी सभी आँकड़े, राष्‍ट्रीय सुरक्षा को ध्‍यान में रखते हुए सभी वर्गीकृत सूचनाएं और राष्‍ट्रीय जल-नीति‍ (2012) की सिफारिशों के अनुसरण में था। इसे संबद्ध मंत्रालयों/विभागों में भी प्रचालित किया गया। जल और मौसम संबंधी आँकड़ों की नीति पर मिली टिप्‍पणियों के आधार पर जरूरी संशोधन किए गए और नीति को अंतिम रूप दिया गया।

वर्ष-2013 को जल-संरक्षण वर्ष-2013 घोषित करना
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 7 मई, 2013 को वर्ष-2013 को जल-संरक्षण वर्ष-2013 घोषित करने को अपना अनुमोदन प्रदान किया। इस जल-संसाधन वर्ष-2013 के दौरान अनेक प्रकार की सार्वजनिक गतिविधियों की रूप रेखा बनाई गई। खास जोर जल संबंधित मुद्दों पर रखा गया ताकि लोगों को पानी किफायत के साथ इस्‍तेमाल करने और इसे बचाने के बारे में प्रोत्‍साहित किया जा सके।



राष्‍ट्रीय जल रूपरेखा विधेयक, राष्‍ट्रीय नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक और जल वितरण पर मार्ग दर्शक नीति को संबद्ध राज्‍यों में टिप्‍पणी के लिए भेजने के मसौदे
जल-संसाधन मंत्रालय ने राष्‍ट्रीय जल रूपरेखा विधेयक, नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक का मसौदा और जल-संसाधन मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए राष्‍ट्रीय मार्ग दर्शक नीति के विधेयक को 24 जून, 2013 को राज्‍यों/संघ शासित प्रदेशों को उनके संबद्ध मंत्रालयों के पास समितियों के जरिए भेजा गया। इसे मंत्रालय की वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया।

12वीं योजना के लिए जल क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम का अनुमोदन
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने विभिन्‍न क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास कार्यक्रम जारी रखने को अपना अनुमोदन प्रदान किया। इसके लिए 12वीं योजना में 360 करोड़ रुपये का आवंटन 17 जुलाई, 2013 को निर्धारित किया गया। यह स्‍कीम जल-संसाधन परियोजनाओं की योजनाएं बनाने, डिज़ाइन निर्माण एवं संचालन में अधिकतम कुशलता लाने के लिए बनाई गई है।

उत्‍तरकाशी में हाल ही में आई बाढ़ और भूस्‍खलन के संभावित कारणों को जानने के लिए समिति गठित
जल-संसाधन मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया है जो उत्‍तराखंड राज्‍य में इस वर्ष आई बाढ़ और भूस्‍खलन के संभावित कारणों का पता लगाएगी कि किस कारण वहां पर जान-माल का इतना नुकसान हुआ है। यह समिति नदी तट कटाव के विभिन्‍न कारणों का अध्ययन करेगी और इन कारणों को दूर करने तथा चेतावनी व्‍यवस्‍था कायम करने बहुत ऊचाई पर स्थित झीलों, हिमनदों पर नजर रखने और इनसे आने वाली बाढ़ की चेतावनी जल्‍दी देने का काम करेगी। इस समिति से अनुरोध किया गया है कि वह तीन हफ्तों के अंदर मौके पर जाकर अपनी सिफ़ारिशें तैयार कर ले।

भू-जल प्रबंधन और विनियमन योजना
आर्थिक मामलों की मंत्रिमडलीय समिति ने 29 अगस्‍त, 2013 को भू-जल प्रबंधन योजना को जारी रखने के लिए अपना अनुमोदन प्रदान किया। इसमें संभावित भू-जल भंडारों की मैपिंग और खासतौर से जल-संसाधन मंत्रालय द्वारा भू-जल प्रबंधन की बात कही गई है। इस स्‍कीम पर 12वीं योजना अवधि में 3,319 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इस स्‍कीम को 28 राज्‍यों और सात संघ शासित प्रदेशों (दिल्‍ली सहित) में लागू किया जाएगा और इससे 12वीं योजना के दौरान 8.89 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र लाभांवित होगा। शेष 14.36 लाख वर्ग किलोमीटर इलाक़ों को 13वीं योजना के दौरान इस स्‍कीम में शामिल किया जाएगा।

नदियों को आपस में जोड़ने के लिए विशेष समितियां
उच्‍चतम न्‍यायालय के निर्देशों के अनुसार जल-संसाधन मंत्रालय द्वारा 6 मई, 2013 और 28 मई, 2013 को जारी कार्यालय विज्ञप्ति के तहत नदियों को आपस में जोड़ने के लिए विशेष समिति का गठन किया गया था। एनसीएईआर द्वारा प्रस्‍तुत रिपोर्ट में सिफारिशों/निष्‍कर्षो में नदियों को परस्‍पर जोड़ने के विभिन्‍न लाभ गिनाये गए है जैसे- सिंचाई और ऊर्जा के लिए अतिरिक्‍त लाभ, कृषि के विकास दर में वृद्धि, प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रोजगार में वृद्धि, ग्रामीण इलाकों के लोगों की जिंदगी में गुणवत्‍तापूर्ण सुधार और बाढ़ तथा सूखे जैसे हालातों से निपटने जैसे लाभ शामिल है। इस अध्‍ययन को राष्‍ट्रीय जल विकास एजेंसी अर्थात www.nwda.gov.in नामक वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया था। एनसीएईआर के रिपोर्ट में परस्‍पर जोड़ने वाली परियोजनाओं के विभिन्‍न लाभ बताये गये है। लेकिन इसमें राज्‍यवार लाभ का ब्‍यौरा नहीं दिया गया है। राज्‍य सरकारों से कोई टिप्‍पणी प्राप्‍त नहीं हुई है।


12वीं योजना में त्वरित सिंचाई लाभ की राष्‍ट्रीय परियोजना कार्यक्रम और योजनाओं को जारी रहना
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 12 सितम्‍बर, 2013 को कुल 55 हजार 200 करोड़ रुपये की लागत वाली त्वरित सिंचाई लाभ की राष्‍ट्रीय परियोजना कार्यक्रम और योजनाओं को जारी रखने को अपनी मंजूरी दी। राज्‍यों से उम्‍मीद की गई है कि वे 87 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में अतिरिक्‍त सिंचाई की व्‍यवस्‍था कर सकेंगे।
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 12वीं योजना के दौरान कुल 15 हजार करोड़ रुपये की लागत वाली कमांड एरिया डेवलप्‍मेंट एंड वाटर मेनेजमेंट नाम की दो संबंधित राष्‍ट्रीय परियोजनाओं को भी मंजूरी दे दी। इससे 76 लाख हेक्‍टेयर कृषि क्षेत्र को सिंचाई का लाभ मिलेगा।

12वीं योजना के लिए मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण व्‍यवस्‍था
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 12वीं योजना के दौरान 3 सितम्‍बर, 2013 को कुल 351 करोड़ रुपये लागत वाली जल-संसाधन मंत्रालय की मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण स्‍कीम को लागू करने को मंजूरी दे दी। इस योजना का उद्देश्‍य आम जनता, स्‍कूली बच्‍चों, कृषकों, उद्योगपतियों और अन्‍य जल उपभोक्‍ताओं को ध्‍यान में रखकर पानी के कुशल प्रयोग संरक्षण और प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। इसके तहत मौजूदा प्रशिक्षण संस्‍थानों को मजबूत करना रहेगा। इसमें केंद्र और राज्‍य सरकारों के अधिकारियों सहित राष्‍ट्रीय जल अकादमी, राजीव गांधी राष्‍ट्रीय भू-जल प्रशिक्षण और शोध संस्‍थान पूर्वोत्‍तर क्षेत्रीय जल और भूमि प्रबंधन संस्‍थान तेजपुर, केंद्रीय भू-जल बोर्ड, केंद्रीय जल आयोग और अन्‍य शामिल है।

बभाली बैराज पर निगरानी समिति का गठन

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 17 अक्‍तूबर, 2013 को उच्‍चतम न्‍यायालय के 28 फरवरी, 2013 के निदेर्शों को बभाली बैराज पर लागू करने संबंधित तीन सदस्‍यीय निगरानी समिति के गठन को अपनी मंजूरी दे दी। समिति में एक प्रतिनिधि केंद्रीय जल आयोग से होगा जो निगरानी समिति का अध्‍यक्ष होगा और एक-एक प्रतिनिधि आंध्र प्रदेश तथा महाराष्‍ट्र सरकार का होगा।     

2013 के दौरान खेल-कूद विभाग की पहल और उपलब्धियां

बड़े खेल-कूद आयोजनों के काम की प्रगति पर नजर रखने और उनमें तालमेल लाने की संचालन समिति गठित :
 बड़े खेल-कूद आयोजनों से संबंधित काम की प्रगति पर नजर रखने और उनमें तालमेल के लिए 2020 तक ओलंपिक समिति और संचालन समिति गठित कर दी गई है, जिसके अध्‍यक्ष खेल-कूद सचिव हैं और जिसमें महानिदेशक खेल-कूद प्राधिकरण, संयुक्‍त सचिव (खेल-कूद), संयुक्‍त सचिव (विकास), संबंद्ध खेल-कूद के सरकारी प्रेक्षक, संबंद्ध राष्‍ट्रीय खेल-कूद परिसंघ के प्रतिनिधि, भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन के प्रतिनिधि, संबंद्ध खेल-कूद के चीफ कोच और कार्यपाल निदेशक (टीम्‍स), भारत के खेल-कूद प्राधिकरण शामिल हैं। इस समिति के कार्य नियमित रूप से संभावित खेल-कूद भागीदारों, उनके कामकाज की समीक्षा नियमित रूप से करना और जिन लोगों को रखा गया है/निकाला गया है/शामिल किया गया है उनकी जरूरतों के बारे में फैसले करना है।

शहरी खेल-कूद बुनियादी सुविधा स्‍कीम के अंतर्गत 13 खेल-कूद बुनियादी सुविधा परियोजनाओं का अनुमोदन :
इस मंत्रालय ने वर्ष के दौरान मंत्रालय की शहरी खेल-कूद बुनियादी सुविधा योजना के अंतर्गत 13 खेल-कूद बुनियादी सुविधा परियोजनाओं को अनुमोदित किया।

2020 के ओलंपिक्‍स में कुश्‍ती को शामिल करना :
ब्‍यूनस आयर्स में अपने 125वें अधिवेशन के दौरान अंतर्राष्‍ट्रीय ओलंपिक समिति ने 08 सितम्‍बर, 2013 को 2020 के ओलंपिक खेलों में कुश्‍ती को शामिल करने का फैसला किया। यह खेल-कूद के विकास के लिए अतिरिक्‍त 25 करोड़ रूपये की मंजूरी के अतिरिक्‍त था। कुश्‍ती, स्‍क्‍वैश और बेसबॉल/सॉफ्टबॉल भी 2020 के ओलंपिक खेलों में अतिरिक्‍त रूप में शामिल करने का भी फैसला किया गया। इससे पहले एक्जिक्यूटिव बोर्ड (ईबी) ने आईओसी ने 12 फरवरी, 2013 को अपनी बैठक में सिफारिश की थी कि कुश्‍ती को 2020 ओलंपिक्‍स में मुख्‍य खेल-कूद प्रतियोगिताओं में न शामिल किया जाए। युवा मामलों और खेल-कूद मंत्रालय ने आईओसी के सामने अन्‍य देशों के साथ मिलकर यह मसला उठाया, जिसके बाद यह सुनिश्चित किया गया कि ओलंपिक खेलों में कुश्‍ती को शामिल किया जाए।

खेल-कूद में मानव संसाधन विकास की शुरुआत :
युवा मामलों और खेल-कूद मंत्रालय ने प्रतिभा तलाश और प्रशिक्षण की स्‍कीम संशोधित कर दी है और अब इसका नाम ''खेल-कूद में मानव संसाधन विकास स्‍कीम'' रखा गया है। संशोधित स्‍कीम के अंतर्गत सरकार मानव संसाधन में खेल-कूद विज्ञान और खेल-कूद औषधियों के विकास पर ध्‍यान देना चाहती है, ताकि देश में खेल-कूद और खेलों का समुचित विकास हो सके। इससे इन क्षेत्रों में भी देश स्‍वावलंबी होगा और देश में खेल-कूद का विकास हो सकेगा। इससे प्रस्‍तावित खेल-कूद विज्ञान और औषधियों के राष्‍ट्रीय संस्‍थान की जरूरतें खासतौर से पूरी हो सकेंगी। खेल-कूद विज्ञान/खेल-कूद औषधियों में उन्‍नत अध्‍ययन के लिए दो डाक्‍टरों के पद सृजित करने को पहले ही अनुमोदित किया जा चुका है।

2017 में 17 वर्ष  तक के खिलाड़ियों के फुटबॉल विश्‍वकप टूर्नामेंट के लिए सरकारी अनुमोदन :
13 जून, 2013 को आयोजित मंत्रिमंडल की बैठक में अखिल भारतीय 2017 में फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) द्वारा 'फेडरेशन इं‍टरनेशनल फुटबॉल एसोसिएशन (फीफा) 17 वर्ष तक के खिलाड़ियों के फुटबॉल विश्‍वकप टूर्नामेंट' को आयोजित करने के प्रस्‍ताव को भारत सरकार ने अनुमोदित किया है। फीफा अंडर-17 विश्‍वकप 2017 में भारत में आयोजित किया जाएगा। फीफा ने यह दायित्‍व भारत को प्रदान किया। फीफा अंडर-17 विश्‍वकप भारत में पहली बार होने वाला गौरवपूर्ण आयोजन है। एआईएफएफ ने पांच राज्‍यों-‍दिल्‍ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्‍ट्र, कर्नाटक तथा असम, गोवा और केरल में से किसी एक राज्‍य में मैच आयोजित किए जाने का प्रस्‍ताव रखा है। अंडर-17 विश्‍वकप के इस आयोजन से देश में युवाओं को खेलों में अधिक से अधिक भागीदारी करने और विशेषकर फुटबॉल जैसे खेल के विकास को बढ़ावा मिलेगा। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। यह आयोजन विशेषकर 17 वर्ष तक के खिलाड़ियों के लिए खेल तकनीक, प्रशिक्षण, कोचिंग और प्रतिस्‍पर्धा की दृष्टि से महत्‍वपूर्ण होगा और इस प्रकार भारत में फुटबॉल के भविष्‍य के लिए भी बेहतर होगा।

मानक संचालक प्रक्रिया (एसओपी) के माध्‍यम से उन विशेष परिस्थितियों (महिला हार्इपरएंड्रोगेनिज्‍म) की पहचान करना जिनके कारण महिला श्रेणी में कोई खिलाड़ी भागीदारी के लिए पात्र नहीं है :
प्रेस में ऐसी महिला खिलाड़ियों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं जिनमें पुरूष लिंग की शारीरिक विशेषताएं हैं। इस प्रकार के मामले में ऐसे खिलाड़ियों को अपने लिंग को लेकर सार्वजनिक चर्चा और अपमान की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार के विवादास्‍पद मामलों से बचने के लिए मंत्रालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एम्‍स) से ऐसे परीक्षण तथा प्रक्रियाएं सुझाने का निवेदन किया है जिससे ऐसे खिलाड़ियों के लिंग के बारे में जानकारी प्राप्‍त की जा सके। इसे ध्‍यान में रखते हुए एम्‍स के चिकित्‍सा बोर्ड की सिफारिशों तथा महिला हार्इपरएंड्रोगेनिज्‍म अंतर्राष्‍ट्रीय ओलम्पिक समिति के नियमों के अनुसार खेल विभाग ने 19 मार्च, 2013 को मानक संचालक प्रक्रिया(एसओपी) का गठन किया है, ताकि उन विशेष परिस्थितियों (महिला हार्इपरएंड्रोगेनिज्‍म) की पहचान की जा सके जिनके चलते कोई विशेष खिलाड़ी महिला श्रेणी की प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए अर्हता हासिल न कर सके।

खेलों में सहयोग के लिए भारत और हंगरी के बीच समझौता :
हंगरी के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान 17 अक्टूबर 2013 को भारत और हंगरी के बीच खेलों में सहयोग के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते में ओलंपिक समितियों, खेल महासंघों, विश्वविद्यालयों, खेलों से जुड़े वैज्ञानिक संस्थानों, दोनों देशों के बीच खेल से जुड़े ढांचे की स्थापना, प्रबंधन एवं खेल सुविधाओं के प्रशासन के लिए अनुभव तथा जानकारी का आदान-प्रदान करना शामिल है।

राष्ट्रीय खेल विकास मसौदा विधेयक 2013 :
सेवानिवृत्त न्यायाधीश मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता में राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक 2013 का मसौदा तैयार करने के लिए 21 मार्च 2013 को एक कार्यकारी समूह का गठन किया गया, इस समूह से मौजूदा मसौदा विधेयक की खेल शासन एवं कानूनी पहलू से समीक्षा करने को कहा गया है।

इसके अलावा इसे और अधिक कारगर बनाने, विधेयक के तहत मसौदा के आदर्श नियमों को बनाने की सिफारिश करना, अलग खेल निकायों जैसे खेल चुनाव आयोग, विवाद निपटारा प्राधिकरण एवं नीति समिति के गठन, उनकी शक्तियों, कार्यों, गठन, वित्त प्रावधानों की संभावनाओं का पता लगाना, निर्वाचक मंडल की तैयारी, राज्य/जिला निकायों की शक्तियों को कम करने संबंधी सिफारिशें देना जैसा मुद्दे शामिल थे।

इस समूह ने राष्ट्रीय खेल विकास मसौदा विधेयक-2013 को 10 जुलाई 2013 को सौंप दिया। इस पर आम जनता तथा इससे जुड़े लोगों की प्रतिक्रिया जानने, सलाह देने के लिए इसे 31 जुलाई 2013 तक इसे वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया गया। कार्यकारी समूह ने इस पर मिली प्रतिक्रिया के बाद संशोधित राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक 2013 को अंतिम रूप से सौंप दिया। इस मामले में आगे की कार्रवाई जारी है।

खेलों में धोखाधड़ी की रोकथाम संबंधी विधेयक-2013 :
देश में खेलों की गतिविधियों को बढ़ावा देने तथा उन्हें साफ-सुथरा रखने के मद्देनजर खेल एवं युवा मामलों के मंत्रालय ने विधि मंत्रालय के साथ मंत्रणा के बाद एक विशेष "खेलों में धोखाधड़ी विधेयक-2013" का मसौदा तैयार किया। मंत्रालय ने इस पर आम लोगों तथा इससे जुड़े व्यक्तियों के सुझावों/प्रतिक्रियाओं को तीन दिसंबर तक जानने के लिए इसे अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया। इस पर मिले सुझावों पर विचार किया गया है और मंत्रालय इस पर विचार के लिए जल्दी ही इसे मंत्रिमंडल के पास भेजेगा।

राष्ट्रीय खेल महासंघों के पदाधिकारियों की आयु तथा उनका कार्यकाल निश्चित करना :
देश के सभी 53 राष्ट्रीय खेल महासंघों ने राष्ट्रीय खेल विकास कोड 2011 के नियमों के अनुरूप अपने संघों के संविधान में पदाधिकारियों की आयु एवं उनके कार्यकाल की शर्तों के संबंध में संशोधन किए जाने के लिखित आश्वासन दिए। इनमें से 45 ने आयु एवं कार्यकाल संबंधी प्रतिबंधों को शासित करने के लिए अपने संविधान में पहले ही संशोधन कर लिए हैं।
खेल विभाग एवं एड्स नियंत्रण विभाग के बीच आपसी सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर :
खेल विभाग एवं एड्स नियंत्रण विभाग ने 29 नवंबर को एक आपसी सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसका मकसद गांवों, जिलों तथा राज्य स्तर पर खेलों में सक्रिय युवाओं को एड्स तथा विभिन्न यौन जनित रोगों के संबंध में आम लोगों को जानकारी प्रदान करना, खेल शिक्षा क्षेत्र में क्षमता निर्माण करना, खेल क्षेत्र में एड्स संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए खेल प्रशिक्षकों, प्रशासकों और कोचों को जानकारी देने के लिए प्रेरित करना, एचआईवी एड्स की रोकथाम संबंधी गतिविधियों में खेल संघों तथा युवा संगठनों को शामिल करना, राष्ट्रीय/राज्य स्तरीय घटनाओं तथा टूर्नामेंटों के दौरान एवं महत्वपूर्ण स्थान पर होर्डिंग तथा बैनर के जरिए जागरूकता कार्यक्रम चलाने तथा एड्स/एचआईवी के साथ जुड़े मिथकों एवं भेदभाव संबंधी सामाजिक मुद्दों पर प्रख्यात खेल हस्तियों को शामिल करना है।


मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

सेक्शन 377 को निरस्त किया जाए

पिछले दिनों भारत ने विश्व में अपनी प्रतिभा और विज्ञान का लोहा मनवाते हुए, मंगल-ग्रह पर बेहद कम खर्च पर अपना मंगलयान भेजा। दूसरी तरफ़, उसी भारत का सुप्रीम कोर्ट 1861 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए एक कानून में हस्तक्षेप से इनकार करता है, और इसकी जिम्मेदारी संसद को सौंप देता है। ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाया गया 'इंडियन पीनल कोड' का सेक्शन 377 दो वयस्कों के समलैंगिक यौन संबध बनाने को अपराध मानता है, जिसके लिए आपको दस साल की जेल या आजीवन कारावास तक हो सकता है। इस कानून के समर्थकों का कहना है कि समलैंगिक संबंधों से एड्स का खतरा बढ़ता है, हालांकि भारत में दफा 377 पर सवाल सबसे पहले 1991 में एड्स भेदभाव विरोधी आंदोलन ने ही उठाया था।

पत्नी का यौन उत्पीड़न

गौर करने की बात है कि जो आईपीसी 377 में दो वयस्कों के समलैंगिक यौन संबध को अपराध कहता है, वही सेक्शन 375 में पति द्वारा अपनी पत्नी को बिना उसकी सहमति से भोगने को अपराध नहीं मानता। पिछले साल दिसंबर में हुए निर्भया आंदोलन के बाद बलात्कार के कानून में बदलाव जरूर हुए लेकिन विवाह के दायरे में पत्नी पर किया यौन उत्पीड़न कानून की नज़र में अब भी अपराध नहीं है। जिन अंग्रेजों ने 200 साल पहले ये कानून बनाए, वे 1991 में ही अपने संविधान में बदलाव कर पति द्वारा किए यौन उत्पीड़न को बलात्कार की श्रेणी में रख चुके हैं।

इस साल जुलाई में ब्रिटिश संसद ने समलैंगिक विवाह को भी जायज मान लिया है। विज्ञान और विकास-दर के विषय में दुनिया को टक्कर देने की बात करने वाले कई वर्ग समलैंगिकता पर प्रहार क्यों कर रहे हैं? क्यों सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से एक बड़े तबके के बीच खुशी खिल आई है?

कुतर्क कई हैं। जैसे अगर आदमी का आदमी के साथ यौन संबध बनाना नैतिक है, तो आदमी का जानवर के साथ यौन संबंध बनाना भी नैतिक होगा। यहां नैतिक-अनैतिक की बहस छेड़ना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है। बात सिर्फ इतनी है कि संविधान इंसान के लिए है। दो इंसान अपनी मर्जी से हमबिस्तर होना चाहें, तो कानून को खिड़की से अंदर झांकने का अधिकार नहीं होना चाहिए। जो वयस्क वोट देकर सरकार चुन सकते हैं, सड़क पर गाड़ी चला सकते हैं, वो अपनी खुशी से जैसा चाहें वैसा संबंध बना सकते हैं।

दूसरा कुतर्क इसके धर्म और सभ्यता के विरुद्ध होने का है। भारत के प्राचीन मंदिरों में समलैंगिक कलाकृतियों का अंबार लगा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है, लेकिन इस बोर्ड को बूढ़ी शाहबानो के हाथ में तलाक के बाद निर्वाह के चंद रुपए नहीं देखे गए थे और उसने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में पलटवा दिया था। टीवी चैनलों पर आजकल ईसाई धर्म के पैरोकार भी नजर आ रहे हैं, जो कहते हैं 'समलैंगिकता पाप है, लेकिन समलैंगिक होना पाप नहीं है, इसलिए उन्हें सज़ा नहीं देनी चाहिए।' शायद बाइबल की ये 'चाइल्ड सेक्शुअल अब्यूज़' के केसों से घिरे पादरियों को माफ करने में काम आती होगी।

तीसरा कुतर्क, समलैंगिकता को दस-बीस साल की चीज मानने का है, लेकिन यह कोई आज की उपज नहीं है। समलैंगिक लोग सदियों से इसी समाज का हिस्सा रहे हैं जिसमें आप आंखें और कान बंद करके जी रहे हैं। दुनियाभर के इतिहास, साहित्य, कला-कृतियों और कविताओं पर नजर डालें तो एहसास होगा कि भारत में इस तबके ने आवाज़ उठाने में कुछ ज़्यादा ही वक्त लगा दिया। आठवीं शताब्दी में अरबी, तुर्की, फ़ारसी में समलैंगिक प्रेम कविताएं लिखी गईं जो बाद में उर्दू में भी अनूदित हुईं। चौथा कुतर्क- समलैंगिकता चुनाव है।

पहली बात तो ये कि अगर यह चुनाव है, तब भी हर इन्सान को अपनी जिंदगी चुनने का हक है, चाहे वो आपसे कितना भी अलग क्यों न हो। दूसरी बात, यह चुनाव नहीं है, क्योंकि अगर आप पैदाइशी समलैंगिक नहीं हो सकते, तो आप पैदाइशी स्ट्रेट भी नहीं हो सकते। दुनिया भर में इस विषय पर वैज्ञानिकों दवारा सैकड़ों अध्ययन किए गए हैं, जिनमें समलैंगिकता को सामान्य पाया गय। अमेरिकन अकेडमी ऑफ पीडिऐट्रिक्स, अमेरिकन साइकॉलॉजिकल असोसिएशन, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंडन, बॉस्टन यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन...लिस्ट बहुत लम्बी है।

इंसान तो समझें

 रही बात इसकी कि ये सभी विदेशी यूनिवर्सिटी हैं, इन पर कैसे भरोसा कर लें तो याद रखिए आपके हाथ में जो मोबाइल फोन है, घर में जो बल्ब लगा है, जिस कंप्यूटर को आप इस्तेमाल करते हैं, सब विदेशियों की ही देन हैं। बहस बहुत लंबी चल सकती है। पर एलजीबीटी समुदाय के पक्ष को समझने के लिए सिर्फ इतना याद रखना काफी है कि वो भी उतने ही इंसान हैं, जितने आप। और समलैंगिकों को भी गांठ बांधनी होगी- जैसे उन्नीसवीं सदी से शुरू हुई स्त्री-आंदोलन की लड़ाई इक्कीसवीं सदी में भी जारी है- बहुत कठिन है डगर पनघट की।

 - फौजिया रियाज

साभारः नवभारत टाइम्स

बदलाव की वही रफ्तार

महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले में वर्ष 2013 नई सामाजिक चेतना का संदेश देकर विदा होने जा रहा है। नया काननू बन गया, पीड़ित महिलाओं की मदद के लिए कोष की स्थापना कर दी गई, लेकिन व्यवस्था में जिस बुनियादी बदलाव की आशा की गई थी, वह आज भी आधी-अधूरी है। बहरहाल, महिलाओं को हौसला मिला है कि वे अपने खिलाफ होने वाले अपराधों पर चुप रहने की बजाय खुलकर बोल सकती हैं। यह कौन कल्पना कर सकता था कि संत-महात्मा कहलाने वालों से लेकर जज, पत्रकार तक महिला अत्याचार के मामलों में सीखचों के पीछे होंगे। निश्चय ही यह बड़े सामाजिक बदलाव का संकेत है, मगर इसके साथ व्यवस्था को बदलने की रफ्तार भी तेज करने की जरूरत है।  दुर्भाग्य की बात है कि इसकी इच्छा शक्ति काफी कमजोर दिखाई दे रही है। 16 दिसम्बर 2012 की घटना के बाद छत्तीसगढ़ में भी महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दें पर काफी चर्चा हुई। पुलिस व्यवस्था को महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने, हर थाने में महिला डेस्क स्थापित कर पुलिस को सक्रिय बनाने की बात भी कही गई थी। पुलिस कितनी बदली है इस पर विचार करने की जरूरत है।  यानी जब हम आधी आबादी की बात करते हैं तो पूरी व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी के बारे में सोचा जाना चाहिए। थानों में महिला डेस्क स्थापित करने की घोषणा तो कर दी गई लेकिन इस डेस्क को चलाने के लिए महिला पुलिस कर्मी ही नहीं है। डेस्क के नाम पर थाने के गलियारे में एक मेज और कुर्सी देकर किसी एक महिला पुलिस कर्मी को बैठा देने से तो महिलाओं की सुरक्षा हो नहीं सकती। जांजगीर थाने के महिला डेस्क का यही हाल है। राज्य के अन्य थानों में भी स्थिति  इससे अधिक अलग नहीं है। इसी जिले से हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में सवाल किया गया था कि पुलिस में महिलाओं के मामलों की जांच के लिए महिला पुलिस अधिकारियों की क्या व्यवस्था है। पुलिस ने जवाब में जो जानकारी दी उससे पता चलता है कि महिला सुरक्षा के मुद्दे को कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है। राज्य में एक महिला आईपीएस अधिकारी तक नहीं है। जाहिर है महिलाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस में ढांचागत सुधार के लिए अभी भी काफी कुछ किया जाना है। जब तक व्यवस्था नहीं बदलेगी तब तक समाज में आई नई चेतना का सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करना बेमानी होगा। यह व्यवस्था का ही दोष है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कोई कमी नहीं आई है। काननू सख्त होने के बावजूद दुष्कर्म की घटनाएं हो रही है, दहेज प्रताड़ना की घटनाएं भी नहीं रूक रही हैं। पारिवारिक विवादों को सुलझाने के लिए स्थापित किए गए, पुलिस परामर्श केन्द्र भी प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रहे हें। यदि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर आई नई चेतना का लाभ उठाना है तो व्यवस्था को बदलने की दिशा में भी काम करना होगा।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

अमेरिका का असली चेहरा

न्यूयॉर्क में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागडे की नौकरानी को दिए जा रहे वेतन पर जो बवाल मचा है उससे दूसरे देशों में महत्वपूर्ण पदों पर तैनात भारतीयों के आधिकारिक प्रपत्रों पर हस्ताक्षर करने में बरती जाने वाली लापरवाही साफ झलकती है। किंतु एक व्यक्तिगत विवाद का भारत और अमेरिका के बीच बड़े कूटनीतिक टकराव में बदलना एक अलग मुद्दा है। हां, आइएफएस अधिकारियों में इस बात को लेकर रोष व्याप्त है कि अमेरिकी अधिकारियों ने स्थानीय राजनीतिक आकांक्षाओं के चलते भारतीय राजनयिक को जानबूझकर निशाना बनाया है। इस रोष का ही नतीजा था कि भारत सरकार अचानक गहरी नींद से जागी और वियना संधि के उल्लंघन पर अमेरिका के खिलाफ तीखी प्रतिक्त्रिया दिखाई। इस मामले का स्याह पक्ष यह है कि देवयानी का सार्वजनिक तौर पर अपमान किया गया, खासतौर पर उन्हें हथकड़ी लगाकर और कपड़े उतरवाकर तलाशी लेकर।

इस प्रकार के मामलों में भारत सरकार संबंधित देश को संदेश भेजती है कि जल्द से जल्द कठघरे में खड़े अधिकारी को वापस बुला लिया जाए। ऐसे बहुत से मामले सामने आते हैं जिनमें राजनयिक अपने शराब के कोटे का दुरुपयोग करते पाए गए हैं या फिर अपने कूटनीतिक बैग में प्राचीन वस्तुओं की तस्करी में पकड़े गए हैं। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि इस प्रकार की हरकतें करने वाले राजनयिक को स्थानीय हवालात में एक रात काटनी पड़ी हो या फिर पटियाला कोर्ट में धक्के खाने को मजबूर होना पड़ा हो। राजनयिकों के मामले में टकराव टालने में ही समझदारी मानी जाती है और यही अंतरराष्ट्रीय मानक माना जाता है।

अमेरिका का मानना है कि यह मामला अलग तरह का है। अमेरिका यह भी मानता है कि वह पूरे विश्व का नैतिक अभिभावक और दरोगा है। इसीलिए वह इसे सही मानता है कि विदेशी राजनेताओं की टेलीफोन पर बातचीत में उसे कान घुसेड़ने का अधिकार है। साथ ही अमेरिका को यह भी लगता है कि उसे भारत के नेताओं के कथित मानवाधिकार हनन पर बिना किसी साक्ष्य या सुनवाई के मनमाफिक फैसला करने और इस बारे में निर्णय सुनाने का अधिकार है कि किस देश में धार्मिक स्वतंत्रता है और किस देश में नहीं। देवयानी मामले में अमेरिका ने अपने इसी विश्वास का प्रदर्शन किया है कि वह तमाम कूटनीतिक विवादों का एकमात्र पंच है और उसे विश्व में कहीं से भी किसी को भी निकालने का अधिकार है। इस संबंध में दूसरे देश का कानून कुछ भी कहता हो, उसकी बला से।

यह जानकर कुछ राहत मिल सकती है कि अमेरिका की दबंगई सर्वव्यापी है और केवल भारत को ही निशाना नहीं बनाया गया है। देवयानी मामले ने इस भयावह सच्चाई को उजागर कर दिया है कि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध पारस्परिक आदान-प्रदान पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि साफ तौर पर अमेरिका के पक्ष में झुके हुए हैं। अमेरिका जब भी मौका पाता है अपनी दादागीरी और दबंगई दिखाने से नहीं चूकता। देवयानी के मामले को भी इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। भारत में अमेरिकी दूतावास के सामने से बैरिकेड हटाने की बहुप्रचारित घटना पहली नजर में तुच्छ लग सकती है, किंतु यह उस चौंकाने वाली उदारता की संकेतक है जो भारत की तरफ से अमेरिका को दी जा रही है।

अमेरिका पर असाधारण सुविधाओं की बारिश नई दिल्ली के साथ वाशिंगटन के विशेष संबंधों का नतीजा नहीं है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के भारत के साथ संबंध सुधारने के विशेष प्रयासों के बावजूद पिछले कुछ वषरें से द्विपक्षीय संबंध विशुद्ध रूप से भारत की चिंता का कारण रह गए हैं। भारत ने अमेरिकी संबंधों में हद से आगे जाकर निवेश किया है और इस प्रकार अमेरिका को यह छूट दे दी है कि वह इसे हल्के में ले।

पिछले एक दशक में भारतीय जीवन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अमेरिका का प्रभाव बेहिसाब बढ़ा है। इस हद तक कि यह प्रभाव साफ तौर पर नुकसानदायक प्रतीत होने लगा है। बड़े नौकरशाहों से लेकर वरिष्ठ जनरलों तक जिन्हें लगता है कि भारत सरकार से अनुमति लेने की जहमत उठाए बिना भी वे अमेरिका में सम्मानित हो सकते हैं, आज अमेरिका भारत में उसी स्थिति को प्राप्त कर चुका है जो सातवें दशक में सोवियत संघ की थी। यहां तक कि मीडिया और शैक्षिक संस्थाओं जैसे संस्थान भी अमेरिका के इस अति प्रभाव से नहीं बच सके हैं। भारत की कूटनीतिक सोच पूरी तरह से अमेरिकी थिंक टैंक की बंधुआ है। यह कुप्रभाव रिसता हुआ हमारी विदेश नीति में भी पहुंच गया है।

सार्वजनिक जीवन में अमेरिका का बढ़ता दखल उचित भी ठहराया जा सकता था, बशर्ते क्षेत्रीय और वैश्रि्वक स्तर पर भारत के हितों की रक्षा के लिए अमेरिका के खड़े होने के पुख्ता साक्ष्य होते। दुर्भाग्य से यह सच्चाई से कोसों दूर है। कई एक घटनाओं से साफ है कि जब भारत की सुरक्षा का मुद्दा उठता है, अमेरिका का रवैया निराशाजनक होता है। अफगानिस्तान से अपनी विदाई को अधिकाधिक आसान बनाने के लिए और वहां किसी तरह के नुकसान से बचने के लिए अमेरिका भारत के पड़ोसियों की बहुत सी भारत विरोधी हरकतों की अनदेखी करता आ रहा है। ऐसा लगता है कि अमेरिका के लिए भारत एक व्यावसायिक अवसर या फिर ऐसा दोस्त है जिसका उसके साथ बराबरी का रिश्ता नहीं है और जिसे कोई सवाल करने का हक नहीं है।

भारत को अपने वश में मानने का एक कारण इस विश्वास में है कि भारत के पढ़े-लिखे और कुलीन तबके के अमेरिका से इस कदर हित जुड़े हुए हैं कि भारत एक हद से आगे जाकर कभी अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की कोशिश नहीं करेगा। मुझे डर है कि अमेरिका का आकलन सही है। अमेरिका ने हमारे नीति-नियंताओं को बड़े पैमाने पर उपकृत कर रखा है। उसने वीजा में रियायत, ग्रीन कार्ड और बड़े अधिकारियों के बच्चों को छात्रवृत्तिायां आदि देकर अपने पक्ष में किया हुआ है। अमेरिका का हौसला इतना बढ़ गया है कि अब वह मानने लगा है कि वह किसी भी राजनयिक का अपमान कर सकता है या फिर किसी बड़े खेल में उनका इस्तेमाल कर सकता है।


वास्तव में अमेरिका और उसका भारतीय मूल का ईष्र्यालु अभियोजक इस काम में सफल हो जाते अगर देवयानी दलित महिला न होतीं और अगर यह मामला एक जज द्वारा 1984 दंगे के लिए सोनिया गांधी को समन भेजने के मामले के साथ-साथ न उठ खड़ा होता। आखिरकार एक सुस्त प्रतिष्ठान ने महसूस तो किया कि यह कहने का वक्त आ गया है-बस, अब बहुत हुआ।

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