शनिवार, 28 सितंबर 2013

Income, Savings and Investment

Income:
 What wealth yields called income. Income is possible if wealth is there. Hence wealth is pre-requisite for income. Income may be money income and real income. When income expressed it terms of money, called money income. But real income refers to goods and services that a person purchases with his money income. Real income depends upon prices. Real income is inversely related with prices.

Savings:
Saving refers to the excess of income over consumption. A person consumes some part of his current income and after it whatever income remains in his hands it is called saving.

Investment:
 Investment means an addition made to the physical stock of capital i.e. amount utilized for constructing building, dam, new factory etc.

I = Investment, Y = Income, S = Savings, C = consumption

1. Y = C + S         2.  S = Y-C      3.  C = Y – S


4.  Y = C + I , Provided S = I

रक्षा सहयोग पर भारत-अमरीका संयुक्त घोषणा

भारत और अमरीका के संबंधों में समग्र रूप से प्रगाढ़ता के साथ भारत-अमरीका रक्षा सहयोग और संबंधों में पिछले दशक में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। हम 2005 में नई रूपरेखा समझौते के अनुरूप रक्षा सहयोग में विस्तार की पूर्ण संभावना हासिल करने की दिशा में काम करते रहेंगे।

इस संदर्भ में, भारत और अमरीका इस विजन को पूरा करने के लिए निम्नलिखित सामान्य सिद्धांतों की पुनः पुष्टि करते हैं:

संयुक्त राज्य अमरीका और भारत के साझा रक्षा हित हैं और दोनों निकट सहयोगी के रूप में उन्हें समान स्तर पर रखते हैं। यह सिद्धांत रक्षा प्रौद्योगिकी अंतरण, व्यापार, शोध, अत्यधिक उन्नत एवं परिष्कृत रक्षा सामान एवं सेवाओं के सह-विकास और सह-उत्पादन के संबंध में लागू होगा। वे लाइसेंस प्रक्रिया सुधारने के लिए काम करेंगे और जहां लागू है, इस सहयोग को सुगम बनाने के लिए लाइसेंस अनुमोदन में तेजी लाने के लिए कार्य करेंगे। अमरीका और भारत एक दूसरे की संवेदनशील प्रौद्योगिकी और जानकारी की रक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।

अमरीका चार अंतर्राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण संगठनों में भारत की पूर्ण सदस्यता का पूरा समर्थन करता है जिससे प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान और सुगम होगा। - दोनों पक्ष संबंधित खरीद प्रणालियों और अनुमोदन प्रक्रियाओं की आपसी समझ को मजबूत करने और रक्षा व्यापार, प्रौद्योगिकी तबादले एवं सहयोग में प्रक्रिया संबंधी मुश्किलों को दूर करने के लिए प्रयास जारी रखेंगे।


दोनों देश अगले वर्ष के अंदर एन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों में सहयोग एवं साझा परियोजनाओं के लिए विशेष अवसरों की पहचान की दिशा में काम करेंगे। दोनों पक्ष ऐसे अवसरों को अपनी राष्ट्रीय नीतियों एवं प्रक्रियाओं के अनुरूप इस ढंग से आगे बढ़ाएंगे कि उससे संबंधों की पूरी क्षमता की झलक मिलेगी।  

अपराध और उम्र

दिल्ली में सोलह दिसंबर को हुए सामूहिक बलात्कार कांड ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। विचलित करने वाला एक पहलू यह भी रहा कि मुजरिमों में एक नाबालिग था। इस पर जहां किशोरों में बढ़ती अपराध-प्रवृत्ति को लेकर सामाजिक नजरिए से चर्चा शुरू हुई, वहीं यह मुद्दा भी उठता रहा कि क्या जघन्य अपराधों के मामलों में भी किशोर न्याय कानून लागू होना चाहिए? यह अच्छी बात है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस कानून में बदलाव के बारे में सोच रहा है। इस बहुचर्चित मामले में नाबालिग अभियुक्त को छोड़ कर बाकी अभियुक्तों की बाबत अदालत ने मृत्युदंड का फैसला सुनाया। नाबालिग मुजरिम के खिलाफ मुकदमा अलग से चला और उसे तीन साल के लिए सुधार-गृह में भेज दिया गया। मौजूदा कानूनों के तहत इससे अधिक सजा उसे नहीं दी जा सकती थी। अदालत का फैसला आने के बाद अपराध और उम्र को लेकर चली बहस और तेज हुई है। इसलिए भी कि किसी किशोर के सामूहिक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में शामिल होने का यह अकेला मामला नहीं है।
मुंबई में शक्ति मिल्स और हाल में गुवाहाटी में हुई सामूहिक बलात्कार की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि इनमें किशोरों के लिप्त होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस तरह के और भी उदाहरण दिए जा सकते हैं। सोलह दिसंबर कांड के बाद पैदा हुए जनाक्रोश के दबाव में सरकार ने यौनहिंसा से संबंधित कानूनों की समीक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में समिति गठित की। समिति की सिफारिशों के आधार पर पहले अध्यादेश जारी हुआ और फिर एक विधेयक के जरिए उन संशोधनों पर संसद की भी मुहर लग गई। लेकिन किशोर न्याय कानून अब भी वैसा ही है जैसा एक जमाने से चला आ रहा है। अगर इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया तो अठारह साल से कम उम्र के आरोपी ने कितना भी संगीन जुर्म किया हो, उसे तीन
साल सुधार-गृह में रखने से ज्यादा सजा नहीं होगी। सुधार-गृहों का रिकार्ड बताता है कि वहां रखे जाने वाले अधिकतर किशोरों में कोई सुधार नहीं आ पाता; उनके फिर से अपराध की ओर उन्मुख होने की आशंका बनी रहती है। इन सब कारणों से किशोर न्याय कानून में बदलाव जरूरी हो गया है।
यों दुनिया भर में वयस्कों और अवयस्कों के लिए अपराध दंड संहिता अलग-अलग है। किशोरों के लिए कहीं भी मृत्युदंड का प्रावधान नहीं है। पर कई विकसित देशों में अपराध की प्रकृति को ध्यान में रख कर ही किशोर न्याय कानून लागू किया जाता है। नाबालिग अगर हत्या, सामूहिक बलात्कार जैसे चरम अपराध में शामिल हो तो उसके साथ कोई रियायत नहीं बरती जाती। ऐसे मामलों में इन देशों ने नाबालिग माने जाने की उम्र एक-दो साल कम रखी है। भारत में भी यह किया जा सकता है कि जघन्य अपराधों के मामलों में अठारह साल का प्रावधान छोड़ कर सोलह साल या उससे ऊपर के आरोपियों पर सामान्य कानूनों के तहत मुकदमा चले। खबर है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अब तक विशेषज्ञों से जो सलाह-मशविरा किया है उसमें भी यही राय उभर कर आई है। इसलिए सरकार को इस दिशा में पहल करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए अठारह साल का होने की शर्त है। इसे भी घटा कर सोलह साल किया जा सकता है। एक समय मतदाता होने के लिए न्यूनतम इक्कीस वर्ष का होना अनिवार्य था। इस तर्क पर कि अब शिक्षा और तकनीक आदि के प्रसार जैसे अनेक कारणों से जागरूकता और समझदारी और पहले आ जाती है, मतदान की उम्र घटा कर अठारह साल कर दी गई। दूसरे कई मामलों में भी उम्र संबंधी प्रावधान पर पुनर्विचार की जरूरत है।


  

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

बीजिंग में छठी चीन-भारत वित्‍तीय वार्ता के बाद जारी संयुक्‍त वक्‍तव्‍य

भारत और चीन के बीच छठी वित्तीतय वार्ता कल बीजिंग में आयोजित की गई। यह वार्ता चीन की जनता का गणराज्यब और भारत गणराज्या के बीच वित्तीोय वार्ता के शुभारम्भी पर अप्रैल 2005 में हस्ताकक्षरित समझौता ज्ञापन पर आधारित है। इससे पहले दोनों पक्षों ने अप्रैल 2006, दिसम्ब02007, जनवरी 2009, सितम्बसर 2010 और नवम्बरर 2011 में वार्ता के पाँच दौर सफलतापूर्वक सम्पान्नज किये।

इस वार्ता के दौरान दोनों पक्षों ने विश्वा की अर्थव्योवस्थाष के सामने नई चुनौतियों, भारत और चीन में वृहत आर्थिक स्थितियां और नीतियां, दोनों देशों में ढ़ांचागत सुधारों में प्रगति, बहुपक्षीय ढांचे और द्विपक्षीय वित्तीनय सहयोग के अधीन सहयोग पर गहराई से विचार विनमय हुआ। दोनों पक्ष वृहत आर्थिक नीतियों और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीधय आर्थिक एवं वित्तीिय मुद्दों पर नियमित संवाद और सहयोग को सुदृढ़ करने पर सहमत हुए।

वृहत आर्थिक स्थिति और नीति
दोनों पक्षों ने इस बात को स्वीरकार किया कि विश्वक में आर्थिक सुधार की स्थिति अभी कमजोर है और उसमें गिरावट के खतरे अभी बने हुए हैं। वित्तीकय बाज़ारों में उतार-चढ़ाव भी तेज हो गया है। विकसित देशों में हो रहे तेज विकास के चलते यह आवश्यीक है कि ये देश उभरती हुई बाजार अर्थव्यंवस्था ओं (ईएमई) के साथ सहयोग करें। समूह के रूप‍ में  बाजार अर्थव्येवस्थांएं विकसित हो रही हैं, लेकिन कुछ देशों में इसकी गति धीमी है। ऐसी परिस्थितियों में भारत और चीन के लिए यह आवश्यैक है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक नीतियों को लेकर आपसी ताल-मेल बने। विशेष रूप से जी-20 द्वारा अपनाई गई नीतियों को लागू करने के लिए दोनों देशों में आपसी सहयोग आवश्येक है, ताकि आर्थिक वृद्धि और रोजगार सृजन के माध्यतम से विश्वे का मजबूत, टिकाऊ और संतुलित विकास हो सके।

भारत और चीन में वृहत आर्थिक नीतियां तथा ढांचागत सुधार

मोटे तौर पर चीन के आर्थिक परिदृश्यं में स्थाधयित्व  बना हुआ है। ढांचागत सुधारों ने गति पकड़ ली है, व्यारपक पैमाने पर उपभोग बढ़ रहा है, मूल्योंु में स्थाधयित्वड बना हुआ है तथा रोजगार की स्थिति भी अच्छी, बनी हुई है। साथ ही व्यरय संरचना में सुधार के लिए राजस्व  नीति पर ध्यानन केंद्रित किया गया है, प्रशासनिक व्यथय को कम किया गया है। लोक कल्यालण पर ध्या न दिया जा रहा है तथा लघु एवं सूक्ष्म  उद्यमों को करों में छूट दी जा रही है।

वैश्विक आर्थिक मंदी के बावजूद भारतीय अर्थव्यटवस्थाह का आधार अभी भी मजबूत बना हुआ है। भारत में कुछ जोखिमपूर्ण व्यादपक आर्थिक तथा राजस्वह प्रबंधन नीतियां अपनाई है, ताकि समावेशी विकास एवं उच्चो आर्थिक वृद्धि, इन दोनों लक्ष्यों  को साधा जा सके। केंद्रीय बजट (2013-14) में निवेश को बढ़ाने, मुद्रा स्फीकति पर नियंत्रण करने, उच्चा स्तेर के ढांचागत विकास तथा वंचित तबकों के लिए व्या़पक सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं गए हैं।

दोनों पक्ष ढांचागत सुधारों की प्रक्रिया में एक-दूसरे को सहयोग करने तथा आपसी ताल-मेल की संभावनाओं को तलाशने पर सहमत हुए हैं।

बहुपक्षीय रूपरेखा के अंतर्गत आपसी सहयोग

दोनों पक्षों ने जी-20, ब्रिक्सर तथा अंतर्राष्ट्री य वित्तीमय संस्थावनों जैसी बहुपक्षीय रूपरेखाओं के तहत द्विपक्षीय ताल-मेल के महत्व, को समझा है। दोनों पक्ष जी-20 के सेंट पीटर्सबर्ग शिखर सम्मेालन में लिए गए महत्वापूर्ण निर्णयों को लागू करने में एक-दूसरे का सहयोग करने के लिए तैयार हुए है। दोनों देशों के बीच अन्यर ब्रिक्सग सदस्यै देशों के साथ सहयोग पर सहमति बनी है ताकि 'ब्रिक्सि विकास बैंक' तथा 'आककस्मिक संरक्षण प्रबंध' जैसे कदमों को किसी ठोस परिणाम तक पहुंचाया जा सके। इसी प्रकार दोनों पक्ष मिलकर अंतर्राष्ट्री्य वित्तीधय संस्थादनों से विकासशील देशों के लिए ऋण क्षमता बढ़ाने का आह्वान करेंगे।

द्विपक्षीय वित्तीआय सहयोग

दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यायपार एवं निवेश के विस्ता्र में मजबूत मुद्रास्फींति तथा वित्तीलय सहयोग की आवश्यशकता को पहचाना है। दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय वित्तीमय सहयोग को बढ़ाने के लिए आपसी संवाद को मजबूत करने तथा संभावनाओं को तलाशने पर सहमति बनी है। दोनों देशों के वित्तींय नियंत्रकों ने विदेशी बैंकों के लिए बाजार अभिगम्यीता नियंत्रक नीतियों पर विचार-विमर्श किया तथा एक-दूसरे के बाजार में विभिन्न  बैंकों को अपनी शाखाएं तथा उप-शाखाएं खोलने के लिए सहयोग करने पर भी बातचीत हुई।


दोनों पक्षों ने भारत-चीन वित्ती य संवाद को बढ़ाने के लिए आपसी सहयोग को मजबूत करने, आपसी विश्वापस को गहरा करने तथा द्विपक्षीय राजस्वव और वित्तीलय संवाद को प्रोत्सानहन देने पर सहमति जताई। दोनों पक्ष 2014 में नई दिल्ली में 7वें भारत-चीन वित्तीहय संवाद के लिए भी तैयार हुए हैं।

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ-एसईएआरओ) एक ऐसा संगठन है जिसने सभी लोगों के लिए स्‍वास्‍थ्‍य के क्षेत्र में बहुत सी उपलब्धियां हासिल की हैं। यह संगठन डब्‍ल्‍यूएचओ के उन छह क्षेत्रीय संगठनों में से एक है जिसने चेचक पूरी तरह समाप्‍त करने, औसत जीवन दर बढ़ाने, शिशु और माता मृत्‍यु दर में कमी लाने, पोलियो तथा गिनी वर्म जैसी बीमारियों को समाप्‍त करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। 

संगठन में एंटीमाइक्रोबायल प्रतिरोधक, रक्‍त सुरक्षा और प्रयोगशाला टेक्‍नोलॉजी, एचआईवी/एड्स, कुष्‍ठ रोग, मलेरिया, तपेदिक, वैक्‍टर बोर्न और उपेक्षित उष्‍णकटिबंधीय प्रदेश में होने वाली बीमारियां, बच्‍चों और किशोरों के स्‍वास्‍थ्‍य, प्रतिरक्षण और टीके का विकास, गर्भधारण और प्रजनन स्‍वास्‍थ्‍य को सुरक्षित बनाने और पोषण जैसे अनेक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम शामिल हैं। 

दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र इसलिए महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि इसमें 1.79 अरब लोग रहते हैं, जो विश्‍व की आबादी का 26.4 प्रतिशत हैं। इस क्षेत्र में स्‍वास्‍थ्‍य पर सबसे कम खर्च किया जाता है जो जीडीपी का करीब 3.8 प्रतिशत है और सामाजिक-आर्थिक प्रगति के बावजूद इसे स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी मामलों से निपटना पड़ता है। गैर संक्रामक बीमारियों के कारण बड़े पैमाने पर होने वाली मौतों की संख्‍या बढ़ रही है और अनेक संक्रामक बीमारियां सामने आ रही हैं। इस क्षेत्र पर गैर संक्रामक रोगों का 27 प्रतिशत बोझ है। तपेदिक और मलेरिया तथा एचआईवी/एड्स की भयावह चुनौती ने इस क्षेत्र के स्‍वास्‍थ्‍य परिदृश्‍य में एक नया आयाम जोड़ दिया है।

डब्‍ल्‍यूएचओ एसईएआरओ देश स्‍वास्‍थ्‍य उपलब्धि के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए कार्य कर रहे हैं। भारत ने इस दिशा में सराहनीय कार्य किया है। हाल में नई दिल्‍ली में सम्‍पन्‍न एसईएआरओ स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की बैठक में स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि भारत दवाओं की कीमतों में पर्याप्‍त कमी लाया है; एचआईवी/एड्स के इलाज के खर्च में काफी कमी आई है। भारत उच्‍च गुणवत्‍ता वाली सस्‍ती दवाओं का केन्‍द्र है और इसे ‘’दुनिया की फार्मेसी’’ कहा जाता है। श्री आजाद ने कहा कि भारत  को चिकित्‍सा शिक्षा और प्रशिक्षण के क्षेत्र में अच्‍छे सुधार करने में प्रसन्‍नता होगी क्‍योंकि इस तरह के आदान-प्रदान से यह क्षेत्र स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल के क्षेत्र में वैश्विक ज्ञान का खजाना बन जाएगा।

डब्‍लयूएचओ के महानिदेशक डा. मार्गरेट चान ने भारत सरकार द्वारा इस दिशा में किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। उन्‍होंने कहा कि भारत सरकार और उसके स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री देश में स्‍वास्‍थ्‍य परिदृश्‍य में सुधार करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।

पृष्‍ठभूमि

विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र की स्‍थापना 1948 में की गई थी। यह डब्‍ल्‍यूएचओ के छह क्षेत्रीय संगठनों में पहला था। डब्‍ल्‍यूएचओ दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में 11 सदस्‍य देश-भारत, बांग्‍लादेश, भूटान, कोरिया लोकतांत्रिक गणराज्‍य, इंडोनेशिया, मालदीव,म्‍यांमार, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड और तिमोर लेस्‍ते शामिल हैं।

 इसका मुख्‍यालय नई दिल्‍ली में है। डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह को स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की 31वीं बैठक में इसका नया क्षेत्रीय निदेशक चुना गया है।

एसईएआरओ के महत्‍वपूर्ण कार्य

संगठन के प्रमुख कार्य हैं:- विशेषज्ञता प्राप्‍त एजेंसियों, सरकारी स्‍वास्‍थ्‍य प्रशासनों, पेशेवर समूहों और ऐसे अन्‍य संगठनों के साथ प्रभावकारी सहयोग स्‍थापित करना और उसे बनाए रखना।- स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को मजबूत बनाने के लिए अनुरोध मिलने पर सरकारों की सहायता करना, उचित तकनीकी सहायता देना और आपात स्थिति में क्षेत्र की सरकारों के अनुरोध पर आवश्‍यक सहायता प्रदान करना।- महामारी, क्षेत्र विशेष में होने वाली और अन्‍य बीमारियों को समाप्‍त करने के कार्य के लिए प्रोत्‍साहित करना।- जहां जरुरी हो वहां अन्‍य विशेष तरह की एजेंसियों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना, पोषण, आवास, स्‍वच्‍छता, आर्थिक या काम करने की स्थितियों तथा पर्यावरण स्‍वास्‍थ्‍य विज्ञान के अन्‍य पहलुओं में सुधार करना।- स्‍वास्‍थ्‍य को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया में लगे वैज्ञानिक और पेशेवर समूहों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।- सम्‍मेलनों, समझौतों और नियमों का प्रस्‍ताव करना, और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़े मुद्दों के सम्‍बन्‍ध में सिफारिशें करना।

हाल का घटनाक्रम

हाल में भारत ने डब्‍ल्‍यूएचओ-एसईएआरओ देशों के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की 31वीं बैठक और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए डब्‍ल्‍यूएचओ क्षेत्रीय समिति का 66वां सत्र आयोजित किया।

बैठक में बुढ़ापे और स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में 2012 के योग्‍याकार्ता घोषणापत्र और 2015 के बाद विकास एजेंडा में स्‍वास्‍थ्‍य क्‍योंकि 2015 में मिलेनियम विकास लक्ष्‍य हासिल करना तय किया गया है।
बुढ़ापे और स्‍वास्‍थ्‍य के अलावा बैठक में अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नियमों को लागू करने, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य और तंत्रिका संबंधी पेरशानियों सहित गैर संक्रामक रोगों; आपात स्थितियों के प्रबंधन में डब्‍ल्‍यूएचओ की भूमिका, स्‍वास्‍थ्‍य जन बल प्रशिक्षण और शिक्षा; महामारी के रुप में फैलने वाले जुकाम के लिए तैयारी; और पोलियो समाप्‍त करने की चुनौतियों पर विशेष रुप से चर्चा की गई।    डब्‍ल्‍यूएचओ क्षेत्रीय समिति के सत्र के दौरान जिन मुद्दों पर प्रमुखता से विचार-विमर्श किया गया उनमें: व्‍यापक स्‍वास्‍थ्‍य कवरेज, गैर संक्रामक रोगों की रोकथाम और उन पर नियंत्रण तथा खसरा जड़ से समाप्‍त करने और रुबेला पर नियंत्रण करने के लिए लक्ष्‍य तय करना शामिल है। अन्‍य मुद्दों में डब्‍ल्‍यूएचओ सुधार और कार्यक्रम बजट मामले, मलेरिया पर प्रगति रिपोर्ट तथा क्षेत्रीय समिति के कुछ चुने हुए प्रस्‍तावों पर प्रगति रिपोर्ट शामिल है।

एसईएआरओ के 11 देशों में वर्ष 2011 में खसरे से 70,700 बच्‍चों की मौत हो गई। सदस्‍यों ने 2020 तक खसरे को जड़ से समाप्‍त करने और रुबेला और जन्‍मजात होने वाले लक्षणों पर नियंत्रण करने की प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की। सरकार 95 प्रतिशत आबादी को इन बीमारियों से बचाएगी और इसके लिए प्रत्‍येक जिले में प्रतिरक्षण और /या पूरक अभियान चलाए जाएंगे।

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की 31वीं बैठक में इन देशों के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों ने उच्‍च रक्‍तचाप पर नई दिल्‍ली घोषणपत्र को मंजूरी दी। इन मंत्रियों ने प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की कि वे उच्‍च रक्‍तचाप की रोकथाम और उस पर नियंत्रण करने को सर्वोच्‍च प्राथमिकता देंगे और क्षेत्र में 2025 तक हाइपरटेंशन की संभावना को कम करने का प्रयास करेंगे। दुनिया भर में हाइपरटेंशन मौत का सबसे बड़ा जोखिम भरा कारक है। इसके कारण दक्षिण पूर्व एशिया में हर साल 90 लाख लोगों की मौत हो जाती है। दक्षिण पूर्व एशिया में हर तीसरा व्‍यक्ति हाइपरटेंशन का शिकार है जिसके कारण दिल की बीमारियां, स्‍ट्रोक और किडनी के काम करना बंद करने जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

इस अवसर पर स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्री श्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि उच्‍च रक्‍तचाप पर दिल्‍ली घोषणापत्र न केवल राष्‍ट्रीय कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में मदद करेगा बल्कि इस बीमारी को नियंत्रित करने के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रियों की प्रतिबद्धता को इससे जोड़ेगा। डब्‍ल्‍यूएचओ महानिदेशक डा. मार्गरेट चान ने कहा कि दिल की बीमारियों और स्‍ट्रोक से हर वर्ष 94 लाख लोगों की मौत्‍हो जाती है। इसलिए जीवन शैली को बदलना और दवाइयां महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखती हैं।

दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के अनेक देशों में धन और मानव संसाधन की कमी जैसी अनेक बाध्‍यताएं हैं। क्षेत्र के अनेक देश टेक्‍नोलोजी, बुनियादी ढांचा और एक उचित स्‍वास्‍थ्‍य नीति जैसी कमी का सामना कर रहे हैं। ये बाधाएं सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य, विशेष तौर पर 2015 तक मिलेनियम विकास लक्ष्‍य को हासिल करने में गंभीर चुनौती खड़ा करती हैं।


इन चुनौतियों और बाधाओं के बावजूद डब्‍ल्‍यूएचओ एसईएआरओ के प्रयास सराहनीय हैं। इस बारे में कोई दो राय नहीं है कि ये एक महत्‍वपूर्ण संगठन है जो क्षेत्र में स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ी सभी चुनौतियों से जड़ से निपटने में महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

बचपन संवारने पर सरकार की पहल

छह साल तक की उम्र जीवन की आधारशिला होती है। यदि इस शैशवकाल में बच्‍चों को सही शिक्षा और संस्‍कार मिलें तो जीवन की राह में उनका व्‍यक्तित्‍व पुष्पित व पलल्‍वित हो सकता है। लेकिन आज के परिवेश पर नजर डालें तो पिछले एक दशक से महानगरों में माता-पिता अपने बच्‍चों के नर्सरी में दाखिले को लेकर इतने परेशान और बदहवास से दिखाई देते हैं, जिसकी कल्‍पना भी नहीं की जा सकती। इससे एक बात साफ है कि‍ देश में ज्‍यादातर अभि‍भावक अपने मासूम बच्‍चों की शि‍क्षा को लेकर बेहद संवेदनशील होते जा रहे हैं। अच्‍छे स्‍कूलों में दाखि‍ले का एकमात्र रास्‍ता नर्सरी कक्षा से ही शुरू होता है। शायद यही सोचकर ही ज्‍यादातर अभि‍भावक अपने बच्‍चों को बि‍ना सोचे-समझे और जांचे शि‍क्षा के लि‍ए कि‍सी भी नजदीकी नर्सरी स्‍कूल या क्रैच में दाखि‍ला दि‍ला देते हैं। देश की शि‍क्षा व्‍यवस्‍था अभी भी पहली कक्षा से बारहवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं तक ही ध्‍यान केंद्रि‍त करने पर आधारि‍त रही है। लेकि‍न अभी भी 0-6 उम्र के मासूमों की शि‍क्षा पर ध्‍यान नहीं दि‍या गया।

केन्‍द्रीय महि‍ला एवं बाल वि‍कास मंत्रालय की ओर से हाल ही में 'नेशनल अर्ली चाइल्‍डहुड एंड एडुकेशन (एनईसीसीई)' पॉलि‍सी तैयार की गई है जि‍से पि‍छले हफ्ते प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की अध्‍यक्षता वाली केन्‍द्रीय कैबि‍नेट ने मंज़ूरी दे दी है। भारतीय शि‍क्षा व्‍यवस्‍था में यह नई पॉलि‍सी एक मील का पत्‍थर साबि‍त हो सकती है। एनईसीसीई पॉलि‍सी देश में मौजूद 0-6 उम्र के 158.7 मि‍लि‍यन बच्‍चों का भवि‍ष्‍य दुरुस्‍त करने की राह में एक कदम है।

पॉलिसी पर ज्‍यादा विस्‍तार से चर्चा करने से पहले इन आंकड़ों पर ध्‍यान दीजिए : भारत में प्री-स्‍कूल या नर्सरी तक की शिक्षा समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) के तहत आंगनवाड़ी सेंटरों की मदद से दी जाती हैं। 2005 में हुए सातवें अखिल भारतीय ऑल इं‍डिया शिक्षा सर्वे के अनुसार भारत में कुल 4,93,700 प्री-प्राइमरी संस्‍थाएं हैं। इनमें से 4,56,994 सेंटर ग्रामीण इलाकों में हैं। भारत में अभी भी पहली कक्षा में दाखिला लेने वाले बच्‍चे नर्सरी शिक्षा प्राप्‍त होते हैं। 2005-06 में कराए गए राष्‍ट्रीय परिवार स्‍वास्‍थ्‍य सर्वे के अनुसार मात्र 56 प्रतिशत बच्‍चे ही आंगनवाड़ी सेंटरों में पंजीकृत हैं। इनमें से भी मात्र 31 प्रतिशत बच्‍चे ही लगातार इन सेंटरों में आते हैं। योजना आयोग ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के मसौदे में इस बात का जिक्र साफ तौर पर किया है कि स्‍वास्‍थ्‍य और भोजन से जुड़े मामलों समेत अन्‍य बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण अभी भी ज्‍यादातर अभिभावक अपने बच्‍चों को आंगनवाड़ी सेंटर में प्री-नर्सरी शिक्षा के लिए नहीं भेजते हैं, जो चिंता का विषय है।

देश के हर गांव और शहर में कुकुरमुत्‍ते की तरह उग आए अनगि‍नत नर्सरी और केजी स्‍कूलों के लि‍ए यह एक दि‍शा-नि‍र्देश तय करने में मदद करेगा। अभी तक आपके पड़ोस में चलने वाले नर्सरी स्‍कूलों की व्‍यवस्‍था पर सरकार और शि‍क्षा नि‍देशालयों का कभी हस्‍तक्षेप नहीं रहा है। जि‍सकी वजह से छोटे-छोटे कमरों में चलाए जा रहे ऐसे स्‍कूलों में मासूम बच्‍चों की बुनि‍यादी शि‍क्षा और मानवीय अधि‍कारों की अवहेलना होती रही है।

हम पि‍छले सालों में 6 साल तक के छोटे बच्‍चों पर होने वाले शि‍क्षकों के अतिवाद और शि‍कायतों के बारे में मीडि‍या के माध्‍यम से सुनते आए हैं। एक दशक पहले बच्‍चों को स्‍कूलों में अनुशासन के नाम पर प्रताड़ि‍त करना या सजा देना मौन रूप से स्‍वीकार माना जाता था। लेकि‍न अब अध्‍यापकों के ऐसे बर्ताव को अभि‍भावक बर्दाश्‍त नहीं करते हैं। कई बार ऐसे मामलों में स्‍कूलों के बाहर अभि‍भावकों के गुस्‍सा फूटने के वाकये भी देखने को मि‍लते रहे हैं। ज़रा सोचि‍ए उन 6 साल से कम उम्र के बच्‍चों पर होने वाले अत्‍याचारों के बारे में जि‍से डर या कि‍सी अन्‍य कारण से वे अपने माता-पि‍ता को बता भी नहीं पाते। ठीक इसी तरह स्‍कूलों में बुनि‍यादी सुवि‍धाएं जैसे साफ पीने का पानी, शौचालय और खेलने का मैदान आज अहम पहलू माने जाते हैं। देश में ज्‍यादातर नर्सरी स्‍कूल मात्र एक या दो कमरों में चलाए जा रहे हैं। नई पॉलि‍सी में इन सभी मुद्दों पर ध्‍यान दि‍या गया है। नर्सरी स्‍कूल खोलने के लि‍ए बुनि‍यादी ढांचे, बच्‍चों-अध्‍यापक के अनुपात और अभि‍भावकों के जुड़ाव को ध्‍यान में रखा गया है, ताकि‍ बुनि‍यादी शि‍कायतों व जरूरतों का नि‍पटान कि‍या जा सके।

मौजूदा नए एनईसीसीई पॉलि‍सी में ऐसी ही बुनि‍यादी जरूरतों को पूरा करने की कोशि‍श की गई है। मसलन, 0-6 साल तक के बच्‍चों की शि‍क्षा के लि‍ए एक राष्‍ट्रीय स्‍तर के आयोग का गठन कि‍या जाएगा। यह आयोग बदलते समय के साथ इन बच्‍चों के वि‍कास से जुड़े मामलों पर नई नीति‍यां तैयार कि‍या करेगा। ठीक इसी तरह राज्‍यों में भी ऐसे आयोगों का गठन कि‍या जाएगा। अगले 6 महीने के भीतर छोटे बच्‍चों की शि‍क्षा पाठ्यक्रम को तैयार कर अधि‍सूचि‍त करने की योजना है।
वि‍भि‍न्‍न शोधों से यह भी पता चला है कि‍ बच्‍चों का मानसि‍क और शारीरि‍क वि‍कास 0-6 वर्ष की उम्र तक सबसे ज्‍यादा होता है। ऐसे में उनकी बेहतर शि‍क्षा, नैति‍कता और अन्‍य सामाजि‍क सरोकारों के बारे में बुनि‍यादी जानकारी अगर इसी उम्र सीमा के दौरान मुहैया करा दी जाए तो इनका सबसे बेहतर वि‍कास हो सकता है। नई पॉलि‍सी में इस वि‍षय पर भी वि‍स्‍तार से दि‍शा-नि‍र्देश तैयार कि‍ए गए हैं। जैसे, अध्‍यापकों को अलग-अलग वि‍षयों से जुड़ी बातें समझाने का तरीका, बच्‍चों से संवाद करने और उनके आचरण से जुड़ी बातें और बच्‍चों की मानसि‍क प्रवृत्‍ति‍ का भी वि‍स्‍तार से ज़ि‍क्र कि‍या गया है, ताकि‍ बच्‍चों को सही और सुगम तरीके से पढ़ाया-सि‍खाया जा सके।

केन्‍द्रीय महि‍ला एवं बाल वि‍कास मंत्रालय को 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत समेकि‍त बाल वि‍कास सेवाएं (आईसीडीएस) कार्यक्रम के लि‍ए 2500 करोड़ रुपए आवंटि‍त कि‍ए गए हैं। मंत्रालय ने नई पॉलि‍सी के तहत देश के वि‍भि‍न्‍न आंगनवाड़ी सेंटरों को बच्‍चों की कि‍ताबों, रि‍पोर्ट कार्ड पत्र और अन्‍य खर्चों के लि‍ए हर महीने 3000 रूपए देने का प्रस्‍ताव कि‍या है। उम्‍मीद की जा सकती है कि‍ इस नई पॉलि‍सी के लागू होने के बाद 0-6 वर्ष के ज्‍यादातर बच्‍चों का शारीरि‍क व मानसि‍क वि‍कास बेहतर ढंग से हो सकेगा।


भारत में पर्यटन

पर्यटन, भारत का सबसे विशाल सेवा उद्योग है। आर्थिक विकास विशेषकर दूर-दराज और पिछड़े क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए पर्यटन का विशेष महत्‍व है। पर्यटन निम्‍न आय वर्ग और महिलाओं के लिए भी आय के बेहतर स्रोत विकसित करने में सक्षम है।

देश के सकल घरेलू उत्‍पाद में पर्यटन क्षेत्र का प्रत्‍यक्ष योगदान 3.7 प्रतिशत है, जबकि कुल प्रत्‍यक्ष एवं अप्रत्‍यक्ष योगदान 6.8 प्रतिशत है। देश के रोजगार में पर्यटन क्षेत्र का प्रत्‍यक्ष योगदान 4.4 प्रतिशत है, जबकि कुल प्रत्‍यक्ष एवं अप्रत्‍यक्ष योगदान 10.2 प्रतिशत है। पर्यटन क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो अकुशल तथा अर्धकुशल श्रमिकों को भी बेहतर रोजगार मुहैया कराता है। महिलाओं को रोजगार मुहैया कराने में इसका विशेष योगदान है। पर्यटन क्षेत्र में कार्यरत कुल श्रमिक बल में 70 प्रतिशत महिलाएं हैं। वैश्विक स्‍तर पर भी अन्‍य क्षेत्रों के मुकाबले पर्यटन क्षेत्र में लगभग दोगुनी संख्‍या में महिलाएं कार्यरत हैं। वैश्विक स्‍तर पर पाँच पर्यटन मंत्रियों में एक मंत्री महिला हैं। इस दृष्टि से पर्यटन क्षेत्र समाज में समानता तथा सामाजिक न्‍याय को समर्थन देने का भी माध्‍यम है।

12वीं पंचवर्षीय योजना में इस बात पर विशेष ध्‍यान दिया गया है कि तेजी से विकसित होते सेवा क्षेत्र के बरक्‍स पर्यटन क्षेत्र में कम-से-कम 12 प्रतिशत की वृद्धि प्राप्‍त की जाए। साथ ही इस पर विशेष बल दिया गया है कि 2004-2009 के बीच घरेलू पर्यटन में होने वाली उच्‍च वृद्धि दर को कायम रखा जाए। पर्यटन क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर भी योजना में ध्‍यान दिया गया है। यह चुनौतियां हैं- कौशल विकास, आधारभूत-ढांचागत विकास, विपणन तथा ब्रांड प्रोत्‍साहन, उत्‍पादों की व्‍यापक श्रेणी, उत्‍तरदायी पर्यटन, साफ-सफाई एवं स्‍वच्‍छता तथा विभिन्‍न गतिविधियों के बीच सुसंगतता।

इन चुनौतियों से निपटने के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में 2.49 करोड़ नए रोजगारों के सृजन का लक्ष्‍य रखा गया है। साथ ही 'हुनर से रोजगार' पहल के अंतर्गत कौशल विकास के लिए कदम उठाये गये हैं। योजना में पर्यटन के अंतर्गत निम्‍न क्षेत्रों पर ध्‍यान दिया जाएगा:-
·        चिकित्‍सा/ स्‍वास्‍थ्‍य पर्यटन को प्रोत्‍साहन देने के लिए योजना
चिकित्‍सा/स्‍वास्‍थ्‍य पर्यटन के लिए विपणन विकास सहायता योजना (एमडीए) के संदर्भ में 22.02.2009 को जारी किये गये दिशा-निर्देशों को पर्यटन मंत्रालय द्वारा संशोधित  किया गया है। एमडीए योजना के अंतर्गत अनुमोदित चिकित्‍सा पर्यटन सेवा प्रदाताओं को वित्‍तीय सहायता मुहैया कराई जाएगी।
समुद्री पर्यटन
समुद्री पर्यटन वैश्विक स्‍तर पर पर्यटन क्षेत्र के अंतर्गत तेजी से विकसित होने वाला आकर्षक क्षेत्र है। शिपिंग मंत्रालय द्वारा 20 जून 2008 को समुद्री शिपिंग नीति का अनुमोदन किया गया। इस नीति का उद्देश्‍य ढांचागत तथा अन्‍य सुविधाओं का विकास करके समुद्री पर्यटन को महत्‍वपूर्ण पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करना था। शिपिंग मंत्रालय के सचिव की अध्‍यक्षता में एक संचालन समिति का गठन किया गया जो समुद्री पर्यटन से संबंधित सभी मामलों के लिए केंद्रीय निकाय के रूप में काम करेगी।

ग्रामीण पर्यटन
पर्यटन के क्षेत्र में संभावित वृद्धि की रणनीति को अमल में लाकर ग्रामीण विकास किया जा सकता है। ग्रामीण विकास की धारणा को विकास का एक मजबूत मंच बनाया जा सकता है जो भारत जैसे देश में बहुत लाभदायक सिद्ध होगी, जहां कुल जनसंख्‍या की लगभग 74 फीसदी आबादी 70 लाख गांव में रहती है। पूरे विश्‍व में औद्योगिकरण और विकास के मद्देनजर शहरीकरण का दृष्टिकोण बढ़ा है। इसके साथ-साथ शहरी जीवन शैली ने केंद्रीय शहरीकरण का रास्‍ता अपना लिया है।

उपरोक्‍त क्षेत्रों के अलावा जिन क्षेत्रों पर विशेष ध्‍यान दिया जाएगा उनमें साहसिक गतिविधियां, जंगल एवं पर्यावरण पर्यटन, एम आई सी ई- सम्‍मेलन गोष्ठियां तथा प्रदर्शनी पर्यटन, फिल्‍म पर्यटन, व्‍यंजन एवं ख‍रीदारी पर्यटन और गोल्‍फ, पोलो तथा खेल पर्यटन शामिल हैं।

पर्यटन मंत्रालय ने भारतीय पर्यटन के विकास के लिए विशेष कदम उठाये हैं। उपरोक्‍त पर्यटन क्षेत्रों पर ध्‍यान देने के अलावा ऐसे पर्यटन क्षेत्रों के विकास पर भी ध्‍यान दिया जाएगा जिनसे लोग कम परिचित हैं। इसके अतिरिक्‍त उत्‍तरदायित्‍व के साथ पर्यटन क्षेत्र के विकास पर भी बल दिया गया है। उत्‍तरदायी पर्यटन के अंतर्गत, टिकाऊ विकास तथा पर्यटन क्षेत्रों की वहन क्षमता पर ध्‍यान दिया जाएगा। साथ ही सुरक्षित और गरिमापूर्ण पर्यटन के विकास पर भी ध्‍यान दिया जाएगा।
भारत पर्यटन विकास निगम का योगदान
भारत पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) अक्‍तूबर 1966 में अस्तित्‍व में आया और इसने देश में पर्यटन के उत्तरोतर विकास, संवर्धन और विस्‍तार में प्रमुख भूमिका निभाई है। व्‍यापक रूप से निगम के मुख्‍य उद्देश्‍य इस प्रकार हैं:- होटलों का निर्माण, वर्तमान होटलों का अधिग्रहण और प्रबंध तथा होटलों, तट-विहारों, ट्रैवर्ल्‍स लॉज/रैस्‍त्रां का विपणन, परिवहन, मनोरंजन, खरीदारी और सम्‍मेलन सेवाएं प्रदान करना। पर्यटक प्रचार सामग्री की प्रस्‍तुति एवं वितरण, भारत तथा विदेश में परामर्श एवं प्रबंधन सेवाएं प्रदान करना। संपूर्ण मनी चेंजर्स (एफएफएमसी), प्रतिबंधित मनी चेंजर्स आदि के रूप में व्‍यवसाय करना तथा पर्यटन विकास और इंजीनियरिंग उद्योग की आवश्‍यकताओं के लिए नवीन एवं विश्‍वसनीय सेवाएं देना।

निगम पर्यटकों के लिए होटल तथा रैस्‍त्रां चला रहा है और साथ ही परिवहन सेवाएं प्रदान कर रहा है। इस समय भारत पर्यटन विकास निगम के नेटवर्क में अशोक होटल समूह के आठ होटल, पाँच संयुक्‍त उद्यम होटल, एक रैस्‍त्रां , 11 परिवहन इकाई, एक पर्यटक सेवा केंद्र, विमानपत्‍तनों एवं समुद्रपत्‍तनों पर नौ शुल्‍क-मुक्‍त दुकानें और दो ध्‍वनि एवं प्रकाश प्रदर्शन शामिल हैं। इसके अलावा निगम की ओर से भरतपुर में एक होटल और कोसी में एक रैस्‍तरां का प्रबंध भी किया जा रहा है। निगम इसके अतिरिक्‍त वैस्‍टर्न कोड, विज्ञान भवन, हैदराबाद हाऊस और शास्‍त्री भवन, नई दिल्‍ली में नेशनल मीडिया प्रेस सेंटर में खान-पान सेवाओं का प्रबंध भी कर रहा है।

राष्‍ट्रीय पर्यटन सलाहकार परिषद की बैठक

केंद्रीय पर्यटन मंत्री के.चिरंजीवी ने हाल ही में कहा कि सैलानियों की सुरक्षा, खासतौर से विदेशी महिला पर्यटकों की सुरक्षा चिंता की बात है। राष्‍ट्रीय पर्यटन सलाहकार परिषद की बैठक की अध्‍यक्षता करते हुए, श्री चिरंजीवी ने कहा कि हाल ही में विदेशी महिला पर्यटकों के साथ दुष्कर्म की कुछ घटनाओं से पर्यटन क्षेत्र में भारत की नकारात्‍मक छवि बनी है। उन्‍होंने कहा कि कानून और व्‍यवस्‍था राज्‍य का विषय है। श्री चिरंजीवी ने कहा कि उन्‍होंने पर्यटकों के लिए सहायक और दोस्‍ताना माहौल बनाने के वास्‍ते सभी मुख्‍यमंत्रियों को प्रभावी कदम उठाने की सलाह दी है।

भारत में पर्यटन क्षेत्र इस बात का प्रमाण है कि पिछले दशक में इस क्षेत्र में संतोषजनक बढ़ोत्‍तरी हुई है। भारत में वर्ष 2012 के दौरान 60 लाख 58 हजार विदेशी पर्यटक आए जबकि 2012 में घरेलू सैलानियों की संख्‍या एक अरब 2 करोड़ 70 लाख आंकी गई थी।

श्री चिरंजीवी ने कहा कि हमें अपने प्रमुख तीर्थस्‍थानों पर भी साधन और सुख-सुविधाओं को बढ़ाने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने कहा कि पर्यटन मंत्रालय ने उत्‍तराखंड में पर्यटन सुविधाओं के नवीनीकरण और पुनर्निर्माण के वास्‍ते एक सौ करोड़ रूपये के विशेष वित्‍तीय पैकेज को मंजूरी दी है।

पर्यटन क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भूमिका पर श्री चिरंजीवी ने कहा कि कॉरपोरेट और सामाजिक संबंधों के तहत, कॉर्पोरेट सेक्‍टर को खास पर्यटन केंद्रों और स्‍मारकों की देख-रेख करने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्‍यकता है।

एक मिसाल कायम करते हुए, भारतीय पर्यटन विकास निगम ने आगे बढ़कर कुतुब मीनार की देख-रेख करने की जिम्‍मेदारी ली है। अब तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) ने भी आगे कदम बढ़ाते हुए 6 स्‍मारकों- ताजमहल, लाल किला, एलीफेंटा की गुफाओं, एलोरा की गुफाओं, महाबलीपुरम और गोलकुंडा के किले की देखभाल करने का जिम्‍मा लिया है।


श्री चिरंजीवी ने कहा कि अब तक हमने भारत में करीब 120 स्‍मारकों की पहचान की है, जिनकी देख-रेख की जिम्‍मेवारी कॉरपोरेट सेक्‍टर को दी जा सकती है।

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